1) राज दारा के शासनकाल के द्वितीय वर्ष, सातवें महीने के इक्कीसवें दिन नबी हग्गय को प्रभु की यह वाणी सुनाई पड़ीः
2) "शअलतीएल के पुत्र, यूदा के राज्यपाल ज़रुबबाबेल से, योसादाक के पुत्र प्रधानयाजक योशुआ और राष्ट्र के शेष लोगों से यह कहो-
3) क्या तुम लोगों में कोई ऐसा व्यक्ति जीवित है, जिसने इस मन्दिर की पूर्व महिमा देखी है? और अब तुम क्या देख रहे हो? क्या तुम्हें ऐसा नहीं लगता कि कुछ भी नहीं बचा है?
4) फिर भी, ज़रुबबाबेल! धीरज रखो! यह प्रभु की वाणी है। योसादाक के पुत्र, प्रधानयाजक योशुआ! धीरज रखो! समस्त देश के निवासियों! धीरज रखो! यह प्रभु की वाणी है।
5) निर्माण-कार्य प्रारंभ करो। मैं तुम लोगों के साथ हूँ। यह विश्वमण्डल के प्रभु की वाणी है। जब तुम मिस्र से निकल रहे थे, उस समय मैंने तुम से जो प्रतिज्ञा की है, मैं उसे पूरा करूँगा। मेरा आत्मा तुम्हारे बीच निवास करेगा। मत डरो!
6) क्योंकि विश्वमण्डल का प्रभु यह कहता है, "मैं थोड़े समय बाद आकाश और पृथ्वी को, जल और थल को हिलाऊँगा,
7) मैं सभी राष्ट्रों को हिला दूँग। तब सब राष्ट्रों की सम्पत्ति यहाँ आयेगी और मैं इस मन्दिर को वैभव से भर दूँगा - विश्वमण्डल का प्रभु यह कहता है।
8) चाँदी मेरी है और सोना मेरा है- यह विश्वमण्डल के प्रभु की वाणी है।
9) इस पिछले मन्दिर का वैभव पहले से बढ़ कर होगा- विश्वमण्डल का प्रभु यह कहता है। और मैं इस स्थान पर शान्ति प्रदान करूँगा- यह विश्वमण्डल के प्रभु की वाणी है।"
10) राजा दारा के राज्यकाल की द्वितीय वर्ष, महीने के चैबीसवें दिन नबी हग्गय को प्रभु की यह वाणी सुनाई पड़ी:
11) विश्वमण्डल का प्रभु यह कहता हैः तुम याजकों से यह प्रश्न पूछ लो,
12) यदि कोई अपनी चादर की गाँठ में पवित्र मांस बाँध कर रख ले और उस गाँठ से रोटी, शोरबा, अंगूरी, तेल या अन्य कोई खाद्य-पदार्थ छू दे, तो क्या वे खाद्यपदार्थ भी पवित्र हो जायेंगे?" याजकों ने उत्तर दिया, "नहीं तो"।
13) फिर हग्गय ने पूछा, "यदि कोई शव को स्पर्श करने के कारण अशुद्ध हो और वह इन खाद्य-पदार्थों को छू दे, तो क्या वे अशुद्ध हो जायेंगे?" इस पर याजकों ने उत्तर दिया, "हाँ, अशुद्ध हो जायेंगे"।
14) तब हग्ग्य ने कहा, "प्रभु का यह कहना है कि यह इस जाति, इस राष्ट्र की भी स्थिति हैः उनके सभी कार्य और उनके बलिदान, सब अशुद्ध हैं।
15) "आज से तुम ध्यान दो। प्रभु के मन्दिर के निर्माण-कार्य में पत्थरों की जुडाई शुरू करने के पहले तुम लोगों की कैसी बुरी हालत थी?
16) यदि कोई अनाज जमा करने के बाद बीस किलो की आशा कर रहा था, तो दस ही मिलता था। और यदि कोई अपनी अंगूरी के कुण्ड में पचास लीटर पाने की आशा करता था, तो बीस ही मिलता था।
17) मैंने तुम्हारी समस्त फसलों पर पाला, गेरुआ और ओले भेज कर उन्हें नष्ट कर दिया। फिर भी तुम मेरे पास नहीं लौटे। प्रभु की वाणी सुन लोः
18) आज से तुम ध्यान दो- इस नौवें महीने के चैबीसवें दिन से, जिस दिन से प्रभु, के मन्दिर की नींव डाली गयी-
19) क्या बखार में बीज घट गये? क्या अंगूर, अंजीर, अनार और जैतून कम फल देते हैं? आज से ऐसा नहीं होगा, क्योंकि तुम पर मेरी आशिष बनी रहेगी।"
20) महीने के इसी चैबीसवें दिन हग्गय को दूसरे बार प्रभु की वाणी सुनाई पड़ी:
21) "यूदा के राज्यपाल ज़रुबबाबेल का सम्बोधन कर यह कह दोः "मैं आकाश और पृथ्वी को हिला दूँगा;
22) मैं राजसिंहासन गिर दूँगा और राष्ट्रों के राजाओं की शक्ति नष्ट कर दूँगा। मैं रथों और सारथियों को झट से उलट दूँगा; घोड़े और घुडसवार धराशायी हो जायेंगे और एक दूसरे की तलवार के शिकार हो जायेंगे।
23) विश्वमण्डल के प्रभु की वाणी यह हैं: शअलतीएल के पुत्र ज़रुबबाबेल! उसी दिन मैं तुम को अपना सेवक बना लूँगा; विश्वमण्डल का प्रभु ही यह कहता हैः मैं तुम को अपनी मृद्रिका बना लूँगा, क्योंकि मैंने तुम को ही चुना है।"