1) उस विद्रोही, दूषित और कठोर हृदय नगर को धिक्कार!
2) उसने न तो कभी प्रभु की वाणी पर ध्यान दिया और न कभी उसकी चेतावनी ही स्वीकारी। उसने कभी प्रभु पर भरोसा नहीं रखा। वह कभी उसकी शरण नहीं गया।
3) उसके पदाधिकारी गरजते सिंह हैं, उसके न्यायाधीश रात-भर के भूखे भेडिये।
4) उसके नबी बडबोल हैं, मिथ्यावादी उसके याजक पावन मन्दिर-गर्भ को अपवित्र कर चुके हैं और विधान का उल्लंघन कर गये हैं।
5) प्रभु-ईश्वर उसके मध्य विराजमान है; यह सत्यप्रतिज्ञ और कल्याणकारी है; वह प्रतिदिन प्रातः अपना विधान प्रकट करता है; वह तो उषा के आगमन के समान विश्वासी है।
6) मैंने राष्ट्रों को नष्ट किया है। और उनके बुर्ज मिट्ठ्ी में मिला दिये हैं। उनके चैक सुनसान हैं, अब वहाँ कोई नहीं चलता। उनके नगर लुट गये हैं, वे निर्जन, वीरान हैं।
7) मैं मन-ही-मन कहता था, "अब तू मुझे से भय खायेगी और शिक्षा ग्रहण करेगी, तू मेरी सब आज्ञाओं पर ध्यान दिये बिना नहीं रह सकेगी"। फिर भी वे अधिक चाव से दुष्कर्म करते गये।
8) अतः प्रभु-ईश्वर की यह वाणी हैः अब तू मेरी बाट जोहता रह; मैं एक दिन तुझे दोषी ठहराने के लिए खडा हो जाऊँगा। अब मैंने राष्ट्रों और राज्यों को बुला भेजकर एकत्रित करने की ठान ली है; तब मैं अपना रोष और अपनी क्रोधाग्नि बरसाऊँगा; मेरी आँखों से फूटती हुई चिनगारियों से समस्त पृथ्वी झुलस जायेगी।
9) मैं लोगों के होंठ फिर शुद्ध करूँगा, जिससे वे सब-के-सब प्रभु का नाम लें और एक हृदय हो कर उसकी सेवा करें।
10) इथोपिया की नदियों के उस पार से मेरे बिखरे हुए उपासक चढ़ावा लिये मेरे पास आयेंगे।
11) उस दिन तुम्हें लज्जित नहीं होना पडे़गा- तुम्हारे बीच मेरे विरुद्ध कोई पाप नहीं किया जायेगा, क्योंकि मैं तुम लोगों में से डींग हाँकने वाले अहंकारियों को दूर करूँगा। उसके बाद मेरे पवित्र पर्वत पर कोई भी घमण्ड नहीं करेगा।
12) मैं तुम लोगों के देश में एक विनम्र एवं दीन प्रजा को छोड़ दूँगा। जो इस्राएल में रह जायेंगे, वे प्रभु के नाम की शरण लेंगे।
13) वे अधर्म नहीं करेंगे, झूठ नहीं बोलेंगे और छल-कपट की बातें नही करेंगे। वे खायेंगे-पियेंगे और विश्राम करेंगे और कोई भी उन्हें भयभीत नहीं करेगा।
14) सियोन की पुत्री! आनन्द का गीत गा। इस्राएल! जयकार करो! येरूसालेम की पुत्री! सारे हृदय से आनन्द मना।
15) प्रभु ने तेरा दण्डादेश रद्द किया और तेरे शत्रुओं को भगा दिया है। प्रभु तेरे बीच इस्राएल का राजा है।
16) विपत्ति का डर तुझ से दूर हो गया है। उस दिन येरूसालेम से कहा जायेगा-"सियोन! नहीं डरना, हिम्मत नहीं हारना। तेरा प्रभु-ईश्वर तेरे बीच है।
17) वह विजयी योद्धा है। वह तेरे कारण आनन्द मनायेगा, वह अपने प्रेम से तुझे नवजीवन प्रदान करेगा,
18) वह उत्सव के दिन की तरह तेरे कारण आनन्दविभोर हो जायेगा।" मैं तेरी विपत्ति को दूर करूँगा, मैं तेरा कलंक मिटा दूँगा।
19) उस समय मैं तेरे शत्रुओं का विनाश करूँगा, मैं पंगुओं का उद्धार करूँगा और निर्वासितों को एकत्र कर लूँगा; जिन देशों में उनका अपमान हुआ था, वहाँ मैं उन्हें प्रशंसा और ख्याति दिलाऊँगा।
20) उस समय मैं तुम्हें इकट्ठा कर लूँगा और तुम्हें तुम्हारे अपने घर ले जाऊँगा प्रभु यह कहता है- जब मैं तुम्हारी आँखों के सामने तुम्हारे निर्वासितों को वापस ले आऊँगा, तो मैं पृथ्वी के सब राष्ट्रों में तुम्हें प्रशंसा और ख्याति दिलाऊँगा।