ईशवचन विषयानुसार

भिक्षादान / Almsgiving


सूक्ति 22:2 “अमीर और गरीब में यही समानता है कि प्रभु ने दोनों की सृष्टि की है।”

विधि-विवरण 15:7-11 “जब उस देश के तुम्हारे किसी नगर में जो प्रभु, तुम्हारा ईश्वर तुम्हें देने वाला है, तुम्हारा कोई भाई कंगाल हो जाये, तो तुम उसके प्रति निर्दय न बनो और उसकी सहायता करने के लिए अपना हाथ बन्द मत रखो, (8) बल्कि ज़रूरत हो, तो उसे खुले हाथ उधार दो। (9) अपने मन में ऐसा तुच्छ विचार न आने दो कि अब सातवाँ वर्ष, ऋण मुक्ति वर्ष, आने वाला है और इसलिए तुम निर्दय बन कर अपने कंगाल भाई को कुछ न दो; क्योंकि यदि वह तुम्हारे विरुद्ध प्रभु से दुहाई करेगा, तो तुम दोषी ठहरोगे। (10) तुम उसे अनिच्छा से नहीं, बल्कि, खुले हाथ दो। इसके लिए प्रभु, तुम्हारा ईश्वर तुम्हें अपने सब काम में आशीर्वाद देगा। (11) कंगाल तो बराबर देश में रहेंगे। इसलिए मैं तुम्हें यह आदेश देता हूँ कि अपने देश में रहने वाले अपने कंगाल और ग़रीब देश-भाई के लिए अपना हाथ खुला रखो।“

टोबीत 4:7-11 “बेटा! अपनी सम्पत्ति में से भिक्षादान दोगे और किसी कंगाल की उपेक्षा नहीं करोगे, जिससे ईश्वर भी तुम्हारी उपेक्षा नहीं करे। (8) अपनी सम्पत्ति के अनुसार दान दोगे। यदि तुम्हारे पास बहुत हो, तो अधिक दोगे; यदि तुम्हारे पास कम हो, तो कम देने में नहीं हिचकोगे। (9) तुम्हारा यह दान विपत्ति के दिन तुम्हारे लिए एक अच्छी निधि प्रमाणित होगा; (10) क्योंकि भिक्षादान मृत्यु से बचाता और अन्धकार में प्रवेश करने से रोकता है। (11) हर भिक्षा-दान सर्वोच्च प्रभु की दृष्टि में सर्वोत्तम चढ़ावा है।“

प्रवक्ता 29:11-18 “ फिर भी तुम दरिद्र के प्रति उदार बनो और उसे देर तक अपने दान की प्रतीक्षा मत करने दो। (12) आज्ञा का पालन करने के लिए दरिद्र की सहायता करो और उसे अपनी ज़रूरत में खाली हाथ मत जाने दो। (13) अपने धन का त्याग भाई और मित्र के लिए कर दो और ज़मीन के नीचे उस में जंग न लगने दो। (14) सर्वोच्च प्रभु की आज्ञा के अनुसार अपने धन का उपयोग करो और तुम सोने की अपेक्षा उस से अधिक लाभ उठाओगे। (15 (15-17) अपनी भिक्षा दरिद्र के हृदय में संचित करो और वह हर प्रकार की बुराई से तुम्हारी रक्षा करेगी। (18) वह पक्की ढाल और भारी भाले की अपेक्षा अधिक अच्छी तरह से तुम्हारे लिए शत्रु से लड़ेगी।”

प्रवक्ता 3:33 “ पानी प्रज्वलित आग बुझाता और भिक्षादान पाप मिटाता है।”

टोबीत 12:8-10 “प्रार्थना तथा उपवास और भिक्षादान तथा धार्मिकता उत्तम हैं। दुष्टता से संचित धन-सम्पदा की अपेक्षा धार्मिकता से कमाया हुआ थोड़ा धन भी अच्छा है। भिक्षादान स्वर्ण-संचय से श्रेष्ठ है। (9) भिक्षादान मृत्यु से बचाता और हर प्रकार का पाप हरता है। जो भिक्षादान करता है, उसे पूर्ण जीवन प्राप्त होगा। (10) जो पाप और अन्याय किया करते हैं, वे अपने को हानि पहुँचाते हैं।”

सूक्ति 3:28 “ यदि तुम दे सकते हो, तो अपने पड़ोसी से यह न कहो, "चले जाओ! फिर आना! मैं तुम्हे कल दूँगा।”

सूक्ति 11:24 “जो उदारता से दान देता, वह और धनवान् बनता है। जो कृपणता से देता, वह दरिद्र बनता है।”

सूक्ति 28:27 “दरिद्र को दान देने वाले को किसी बात की कमी नहीं होगी। उसकी ओर से आँखे बन्द करने वाला अभिशापों का शिकार बनेगा।”

प्रवक्ता 4:4-9 “संकट में पड़े की याचना मत ठुकराओे, कंगाल से अपना मुँह मत मोड़ो। (5) दरिद्र से आँखें मत फेरो, उसे अवसर मत दो कि वह तुम को अभिशाप दे। (6) यदि वह अपनी आत्मा की कटुता के कारण तुम को अभिशाप दे, तो उसका सृष्टिकर्ता उसकी प्रार्थना सुनेगा। (7) सभा में मिलनसार बनो और बड़े को प्रणाम करो। (8) कंगाल की बात पर कान दो और सौजन्य से उसके नमस्कार का उत्तर दो। (9) अत्याचारी के हाथों से उत्पीड़ित को छुड़ाओे और न्याय करने में आगा-पीछा मत करो।“

प्रवक्ता 12:3 “जो बुराई करता रहता और भिक्षादान करना नहीं चाहता, उसका कल्याण नहीं होगा; क्येांकि सर्वोच्च ईश्वर को उस से घृणा होती है और वह पश्चात्तापियों पर दया करता है।”

मत्ती 6:2-4 “जब तुम दान देते हो, तो इसका ढिंढोरा नहीं पिटवाओ। ढोंगी सभागृहों और गलियों में ऐसा ही किया करते हैं, जिससे लोग उनकी प्रशंसा करें। मैं तुम लोगों से यह कहता हूँ - वे अपना पुरस्कार पा चुके हैं। जब तुम दान देते हो, तो तुम्हारा बायाँ हाथ यह न जानने पाये कि तुम्हारा दायाँ हाथ क्या कर रहा है। (4) तुम्हारा दान गुप्त रहे और तुम्हारा पिता, जो सब कुछ देखता है, तुम्हें पुरस्कार देगा।“


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