ईशवचन विषयानुसार

ईश्वर को खोजना / Seeking God


स्तोत्र 53:3 “ईश्वर यह जानने के लिए स्वर्ग से मनुष्यों पर दृष्टि दौड़ाता है कि उन में कोई बुद्धिमान हो, जो ईश्वर की खोज में लगा रहता हो।”

स्तोत्र 9:11 “प्रभु! जो तेरा नाम जानते हैं, वे तुझ पर भरोसा रखें; क्योंकि तू उन लोगों का परित्याग नहीं करता, जो तेरी खोज में लगे रहते हैं।“

स्तोत्र 34:9-11 “ परख कर देखो कि प्रभु कितना भला है। धन्य है वह, जो उसकी शरण जाता है! (10) प्रभु-भक्तों! प्रभु पर श्रद्धा रखो! श्रद्धालु भक्तों को किसी बात की कमी नहीं। (11) धनी लोग दरिद्र बन कर भूखे रहते हैं, प्रभु की खोज में लगे रहने वालों का घर भरा-पूरा है।“

स्तोत्र 42 “ईश्वर! जैसे हरिणी जलधारा के लिए तरसती है, वैसे मेरी आत्मा तेरे लिए तरसती है, (3) मेरी आत्मा ईश्वर की, जीवन्त ईश्वर की प्यासी है। मैं कब जा कर ईश्वर के दर्शन करूँगा? (4) दिन-रात मेरे आँसू ही मेरा भोजन है। लोग दिन भर यह कहते हुए मुझे छेड़ते हैं: ’’कहाँ है तुम्हारा ईश्वर?’’ (5) मैं भावविभोर हो कर वह समय याद करता हूँ, जब उत्सव मनाती हुई भीड़ में मैं अन्य तीर्थयात्रियों के साथ आनन्द और उल्लास के गीत गाते हुए ईश्वर के मन्दिर की ओर बढ़ रहा था। (6) मेरी आत्मा! क्यों उदास हो? क्यों आह भरती हो? ईश्वर पर भरोसा रखो। मैं फिर उसका धन्यवाद करूँगा। वह मेरा मुक्तिदाता और मेरा ईश्वर है। (7) मेरी आत्मा मेरे अन्तरतम में उदास है; इसलिए मैं यर्दन और हेरमोन प्रदेश से, मिसार के पर्वत पर से तुझे याद करता हूँ। (8) तेरे जलप्रपातों का घोर निनाद प्रतिध्वनि हो कर गरजता है। तेरी समस्त लहरें और तरंगें मुझ पर गिर कर बह गयी हैं। (9) दिन में मैं प्रभु की कृपा के लिए तरसता हूँ, रात को मैं अपने जीवन्त ईश्वर की स्तुति गाता हूँ। (10) मैं ईश्वर से, अपनी चट्टान से, कहता हूँ, ’’तू मुझे क्यों भूल जाता है? शत्रु के अत्याचार से दुःखी हो कर मुझे क्यों भटकना पड़ता है?’’ (11) मेरी हड्डियाँ रौंदी जा रही हैं। मेरे विरोधी यह कहते हुए दिन भर मेरा अपमान करते हैं ’’कहाँ है तुम्हारा ईश्वर? (12) मेरी आत्मा! क्यों उदास हो? क्यों आह भरती हो? ईश्वर पर भरोसा रखो। मैं फिर उसका धन्यवाद करूँगा। वह मेरा मुक्तिदाता और मेरा ईश्वर है।“

स्त्रोत्र 63 “ईश्वर! तू ही मेरा ईश्वर है! मैं तुझे ढूँढ़ता रहता हूँँ। मेरी आत्मा तेरे लिए प्यासी है। जल के लिए सूखी सन्तप्त भूमि की तरह, मैं तेरे दर्शनों के लिए तरसता हूँ। (3) मैंने तेरे मंदिर में तेरे दर्शन किये, मैंने तेरा सामर्थ्य और तेरी महिमा देखी है। (4) तेरी सत्यप्रतिज्ञता प्राणों से भी अधिक प्यारी है। मेरा कण्ठ तेरी स्तुति करता था। (5) मैं जीवन भर तुझे धन्य कहूँगा और तुझ से करबद्ध प्रार्थना करता रहूँगा। (6) मेरी आत्मा मानों उत्तम व्यंजनों से तृप्त होगी; मैं उल्लसित हो कर तेरी स्तुति करूँगा। (7) मैं अपनी शय्या पर भी तुझे याद करता हूँ; मैं रात भर तेरा मनन करता हूँ। (8) तू सदा मेरा सहारा रहा है; मैं तेरे पंखों की छाया में सुखी हूँ। (9) मेरी आत्मा तुझे में आसक्त रहती है; तेरा दाहिना हाथ मुझे सँभालता रहता है। (10) जो मेरे प्राणों के गाहक हैं, उनका विनाश हो; वे अधोलोक जायें। (11) वे तलवार के घाट उतारे जाये; वे गीदड़ों का आहार बनें। (12) राजा प्रभु के कारण आनन्दित होंगे। जो ईश्वर की शपथ खाता है, वह अपने को धन्य समझेगा, जब कि मिथ्यावादियों का मुख बन्द रहेगा।

स्तोत्र 69:33-34 “तुम, जो ईश्वर की खोज में लगे रहते हो, तुम्हारे हृदय में नवजीवन का संचार हो; (34) क्योंकि प्रभु दरिद्रों की पुकार सुनता है, वह अपनी पराधीन प्रजा का परित्याग नहीं करता।”

विधि-विवरण 4:29-31 “यदि तुम वहाँ प्रभु, अपने ईश्वर से फिर मिलना चाहोगे तो वह तुम्हें तभी मिलेगा, जब तुम उसे सारे मन और सारी आत्मा से ढूँढ़ोगे। (30) जब तुम कष्ट से पीड़ित होगे और जब भविष्य में ये सब विपत्तियाँ तुम को अक्रान्त करेगी, तब तुम फिर प्रभु, अपने ईश्वर की ओर अभिमुख हो जाओगे और उसकी आज्ञा का पालन करने लगोगे। (31) इसका कारण यह है कि प्रभु, तुम्हारा ईश्वर एक करूणामय ईश्वर है। वह न तो तुम को त्यागेगा, न तुम्हारा विनाश करेगा और न वह विधान भूलेगा, जिसे उसने शपथ खा कर तुम्हारे पूर्वजों के लिए निर्धारित किया है।“

यिरमियाह 29:13-14 “यदि तुम मुझे सम्पूर्ण हृदय से ढूँढ़ोगे, (14) तो मैं तुम्हे मिल जाऊँगा“- यह प्रभु की वाणी है- “और मैं तुम्हारा भाग्य पलट दूँगा। मैं तुम्हें उन सब राष्ट्रों और उन सब स्थानों से, जहाँ मैंने तुम्हें निर्वासित कर दिया है, यहाँ फिर एकत्रित करूँगा।“ यह प्रभु की वाणी है। “मैं तुम्हें फिर उसी जगह ले आऊँगा, जहाँ से मैंने तुम्हें निर्वासित कर दिया था।''

आमोस 5:4 “प्रभु-ईश्वर इस्राएल के घराने से यह कहता हैः ’’मुझ को ढूँढो और तुम जीवित रहोगे।”

आमोस 5:6 “जीवित रहने के लिए प्रभु-ईश्वर को ही ढूँढो।”


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