ईशवचन विषयानुसार

विनम्रता


मीकाह 6:8 “''मनुष्य! तुम को बताया गया है कि उचित क्या है और प्रभु तुम से क्या चाहता है। यह इतना ही है- न्यायपूर्ण व्यवहार, कोमल भक्ति और ईश्वर के सामने विनयपूर्ण आचरण।''

2 इतिहास 7:14 “तब यदि मेरी अपनी प्रजा विनयपूर्वक प्रार्थना करेगी, मेरे दर्षन चाहेगी और अपना कुमार्ग छोड़ देगी, तो मैं स्वर्ग से उसकी सुनूँगा, उसके पाप क्षमा करूँगा और उसके देष का कल्याण करूँगा।“

स्तोत्र 25:9वह दीनों को सन्मार्ग पर ले चलता और पददलितों को अपने मार्ग की शिक्षा देता है।“

फ़िलिप्पियों 2:5-8 “आप लोग अपने मनोभावों को ईसा मसीह के मनोभावों के अनुसार बना लें। (6) वह वास्तव में ईश्वर थे और उन को पूरा अधिकार था कि वह ईश्वर की बराबरी करें, (7) फिर भी उन्होंने दास का रूप धारण कर तथा मनुष्यों के समान बन कर अपने को दीन-हीन बना लिया और उन्होंने मनुष्य का रूप धारण करने के बाद (8) मरण तक, हाँ क्रूस पर मरण तक, आज्ञाकारी बन कर अपने को और भी दीन बना लिया।“

मारकुस 1:7 “वह अपने उपदेश में कहा करता था, ''जो मेरे बाद आने वाले हैं, वह मुझ से अधिक शक्तिशाली हैं। मैं तो झुक कर उनके जूते का फ़ीता खोलने योग्य भी नहीं हूँ।“

1 कुरुन्थियों 1:26-30 “इस बात पर विचार कीजिए कि बुलाये जाते समय दुनिया की दृष्टि में आप लोगों में बहुत कम लोग ज्ञानी, शक्तिशाली अथवा कुलीन थे। (27) ज्ञानियों को लज्जित करने के लिए ईश्वर ने उन लोगों को चुना है, जो दुनिया की दृष्टि में मूर्ख हैं। शक्तिशालियों को लज्जित करने के लिए उसने उन लोगों को चुना है, जो दुनिया की दृष्टि में दुर्बल हैं। (28) गण्य-मान्य लोगों का घमण्ड चूर करने के लिए उसने उन लोगों को चुना है, जो दुनिया की दृष्टि में तुच्छ और नगण्य हैं, (29) जिससे कोई भी मनुष्य ईश्वर के सामने गर्व न करे। (30) उसी ईश्वर के वरदान से आप लोग ईसा मसीह के अंग बन गये है। ईश्वर ने मसीह के अंग बन गये है। ईश्वर ने मसीह को हमारा ज्ञान, धार्मिकता, पवित्रता और उद्धार बना दिया है।“

फ़िलिप्पियों 2:3-4 “ आप दलबन्दी तथा मिथ्याभिमान से दूर रहें। हर व्यक्ति नम्रतापूर्वक दूसरों को अपने से श्रेष्ठ समझे। (4) कोई केवल अपने हित का नहीं, बल्कि दूसरों के हित का भी ध्यान रखे।“


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