स्तोत्र 84:12 “ईश्वर हमारी रक्षा करता और हमें कृपा तथा गौरव प्रदान करता है। वह सन्मार्ग पर चलने वालों पर अपने वरदान बरसाता है।“
विधिविवरण 28:1-14 ''यदि तुम प्रभु, अपने ईष्वर की वाणी पर ध्यान दोगे और उन सब आदेषों का पालन करोगे, जिन्हें मैं आज तुम को दे रहा हँू। तो वह तुम्हें पृथ्वी भर के राष्ट्रों से महान् बनायेगा। (2) यदि तुम प्रभु, अपने ईष्वर की वाणी पर ध्यान दोगे, तो ये सब वरदान तुम को मिलेंगे और तुम्हारा साथ देते रहेंगे। (3) ''नगर मे तुम्हारा कल्याण होगा और देहात में तुम्हारा कल्याण होगा। (4) तुम्हारी संतान, तुम्हारी भूमि की उपज, तुम्हारे पषु धन, तुम्हारी गायों और भेड़-बकरियों के बच्चों को आषीर्वाद प्राप्त होगा। (5) तुम्हारी टोकरी और आटा गुँधने के पात्र को आषीर्वाद प्राप्त होगा। (6) घर आने पर और घर से बाहर जाने पर, दोनों समय तुम्हें आषीर्वाद प्राप्त होगा। (7) ''प्रभु तुम्हारा विरोध करने वाले शत्रुओं को पराजित करेगा। वे एक मार्ग से तुम पर आक्रमण करने आयेंगे, परन्तु तुम्हारे सामने से हो कर सात मार्गों से भाग निकलेंगे। (8) प्रभु तुम को तुम्हारे भण्डारों और तुम्हारे सब कार्यों में आषीर्वाद देता रहेगा। प्रभु, तुम्हारा ईष्वर तुम्हें उस देष में आषीर्वाद देता रहेगा, जिसे वह तुम्हें प्रदान करने वाला है। (9) यदि तुम प्रभु, अपने ईष्वर की आज्ञाओं का पालन करते हुए उसके बताए हुये मार्गों पर चलोगे, तो प्रभु तुमको अपनी पवित्र प्रजा बनायेगा, जैसी कि उसने तुम से शपथ पूर्वक प्रतिज्ञा की है। (10) पृथ्वी की समस्त जातियाँ देखेंगी कि तुम प्रभु की अपनी प्रजा हो और वे तुम्हारा सम्मान करेंगी। (11) प्रभु तुम्हें अपने सब तरह के वरदानों से सम्पन्न बनायेगा - सन्तानों की दृष्टि से, पषुओं के बच्चों की दृष्टि से और उस देष की भूमि की उपज की दृष्टि से, जिसे प्रभु ने तुम्हें देने की तुम्हारे पूर्वजों से शपथपूूर्वक प्रतिज्ञा की है। (12) प्रभु अपने आकाष का अपूर्व भण्डार खोलकर तुम्हारी भूमि पर ठीक समय पर पानी बरसाएगा और तुम्हारे सब कार्यों में तुम्हें आषीर्वाद देता रहेगा। तुम अन्य अनेक राष्ट्रों को उधार दे सकोगे और तुम्हें किसी से उधार लेने की आवष्यकता नहीं होगी। (13) (१३-१४) प्रभु तुम्हें नेता बनाएगा, किसी का अनुयायी नहीं। यदि तुम मेरे द्वारा अपने को दी गई प्रभु, अपने ईष्वर की आज्ञाओं का सावधानी से पालन करोगे और अन्य देवताओं की सेवा और पूजा करने से उन नियमों से जरा भी विचलित नहीं होगे, जिन्हें में तुम्हें आज दे रहा हँू, तो तुम्हारी अवनति नहीं, बल्कि उन्नति होती रहेगी।
स्तोत्र 128”धन्य हैं वे, जो प्रभु पर श्रद्धा रखते और उसके मार्गों पर चलते हैं! (2) तुम अपने हाथ की कमाई से सुखपूर्वक जीवन बिताते हो। (3) तुम्हारी पत्नी तुम्हारे घर के आँगन में दाखलता की तरह फलती-फूलती है। तुम्हारी सन्तान जैतून की टहनियों की तरह तुम्हारे चौके की शोभा बढ़ाती है। (4) जो प्रभु पर श्रद्धा रखता है, उसे यही आशीर्वाद प्राप्त होता है। (5) प्रभु सियोन पर्वत पर से तुम्हें आशीर्वाद प्रदान करे, जिससे तुम जीवन भर येरुसालेम का कुशल मंगल (6) और अपने पोत्रों को देख सको। इस्राएल को शान्ति! “
विधिविवरण 7:12-15 “यदि तुम इन विधि-निषेधों का ध्यान रखोगे और इनका सावधानी से पालन करोगे, तो प्रभु, तुम्हारा ईष्वर तुम्हारे लिए अपना विधान और अपनी सत्यप्रतिज्ञता बनाए रखेगा, जैसा उसने तुम्हारे पूर्वजों को शपथ पूर्वक वचन दिया था। (13) वह तुमसे प्रेम करेगा, तुम्हें आषीर्वाद देगा और तुम्हारी संख्या बढ़ायेगा। वह उस देष में, जिसे उसने तुम्हारे पूर्वजों को देने का शपथ पूर्वक वचन दिया था, तुम्हारी सन्तति, तुम्हारी भूमि की उपज - तुम्हारे अनाज, तुम्हारी नयी अंगूरी और तुम्हारे तेल - तुम्हारे मवेषी के बछड़ों और तुम्हारी भेड़-बकरियों के मेमनों को आषीर्वाद प्रदान करता रहेगा। (14) तुम को अन्य सभी जातियों की अपेक्षा अधिक आषीर्वाद मिलेगा। तुम में कोई पुरुष या स्त्री अथवा तुम्हारे पषुओं में कोई नर या मादा निस्सन्तान नहीं होगा। (15) प्रभु तुम से सब प्रकार की बीमारियों को दूर रखेगा और तुम पर वे भयानक महामारियाँ नहीं आने देगा, जिनका अनुभव तुमने मिस्र में किया। वह उन्हें उन लोगों पर ढाहेगा, जो तुम से घृणा करते हैं। “d
याकूब 1:12 “धन्य है वह, जो विपत्ति में दृढ़ बना रहता है; परीक्षा में खरा उतरने पर उसे जीवन का वह मुकुट प्राप्त होगा, जिसे प्रभु ने अपने भक्तों को देने की प्रतिज्ञा की है।“
1 पेत्रुस 3:9 “आप बुराई के बदले बुराई न करें और गाली के बदले गाली नहीं, बल्कि आशीर्वाद दें। आप यही करने बुलाये गये हैं, जिससे आप विरासत के रूप में आशीर्वाद प्राप्त करें”।
मत्ती 7:7-11 11 ''माँगो और तुम्हें दिया जायेगा; ढूँढ़ों और तुम्हें मिल जायेगा; खटखटाओं और तुम्हारे लिए खोला जायेगा। (8) क्योकि जो माँगता है, उसे दिया जाता है; जो ढूॅढता है, उसे मिल जाता है और जो खटखटता है, उसके लिए खोला जाता है। (9) ''यदि तुम्हारा पुत्र तुम से रोटी माँगे, तो तुम में ऐसा कौन है जो उसे पत्थर देगा? (10) अथवा मछली मँागे, तो उसे साँप देगा? (11) बुरे होने पर भी यदि तुम लोग अपने बच्चों को सहज ही अच्छी चीजें देते हो, तो तुम्हारा स्वर्गिक पिता माँगने वालों को अच्छी चीजें क्यों नहीं देगा?
1 योहन 5:14-15 “हमें ईश्वर पर यह भरोसा है कि यदि हम उसकी इच्छानुसार उस से कुछ भी मांगते हैं, तो वह हमारी सुनता है। (15) यदि हम यह जानते हैं कि हम जो भी मांगे, वह हमारी सुनता है, तो हम यह भी जानते हैं कि हमने जो कुछ मांगा है, वह हमें मिल गया है।“
फ़िलिप्पियों 4:6-7 “किसी बात की चिन्ता न करें। हर जरूरत में प्रार्थना करें और विनय तथा धन्यवाद के साथ ईश्वर के सामने अपने निवेदन प्रस्तुत करें (7) और ईश्वर की शान्ति, जो हमारी समझ से परे हैं, आपके हृदयों और विचारों को ईसा मसीह में सुरक्षित रखेगी। “