18 मई 1992 को सिस्टर रानी मरिया उदयनगर के स्नेहसदन कॉनवेन्ट पहुँची। एक अनुभवी समाज सेविका होने के कारण उन्होंने सब से पहले आस-पास के गाँवों के आदिवासियों का सर्वेक्षण किया। इस से उनको पता चला कि वहाँ के आदिवासी भाई-बहन कर्ज के कारण धनी लोगों के शोषण के शिकार बन गये थे। गरीबी के कारण उन्हें हर जरूरत के लिए कर्ज लेना पड रहा था और इसी कारण शोषण के चक्र से बाहर निकलना उनके लिए असंभव बन रहा था। इसका फायदा उठाते हुए अमीर लोग गरीबों की ज़मीन और अन्य संपत्ति पर कबजा कर रहे थे।
इसके अलावा उन गरीबों को विकास के लिए सरकारी योजनाओं तथा सहायताओं के बारे में कोई जानकारी नही मिलती थी। जागृति कार्यक्रमों के द्वारा सिस्टर रानी मरिया ने उपलब्ध योजनाओं तथा सुविधाओं के बारे में उन्हें अवगत कराया। उन्होंने उनका शोषण करने की अमीरों की प्रवणताओं से सतर्क रहने का सलाह भी दिया। फलस्वरूप उदयनगर के गरीब अपने अधिकारों के लिए आवाज उठाने लगे और शोषण के खिलाफ़ खडे होने लगे। सिस्टर रानी मरिया कई बार उन गरीब भाइ-बहनों के लिए सहायता की हर्जी लेकर सरकारी अधिकारियों से मिलने लगी। कुछ अधिकारियों ने उनकी मदद की तो अन्य अधिकारियों ने उनकी हँसी उडायी। एक बार एक नवदीक्षित बहन जो सिस्टर रानी मरिया के साथ एक बैंक अधिकारी के पास गरीबों के लिए सहायता माँगने गयी थी, ने अपना अनुभव इस प्रकार बताया – “
सिस्टर रानी मरिया क्रूस अपने हाथ में बैंक मैंनेजर से कहा, “सर, हमने इस जीवन का चयन कर यहाँ इसलिए नहीं आये कि हमारे पास जीविका चलाने का कोई संसाधन नहीं है, और न ही हमारे माता-पिता ने हमें अपने घर से निकाल दिया है। देखिए, हमने इस प्रकार का जीवन चुन लिया है – एक बलिदान का जीवन, गरीबों में ख्रीस्त की सेवा करने के लिए।” धीरे-धीरे सिस्टर रानी मरिया उनकी शालीनता, शांतिभाव तथा ईमानदारी के कारण कई अधिकारियों की प्रशंसा की पात्र बन गयी।
फ्रांसिस्कन करिश्मा से प्रभावित होकर अत्याचारियों के प्रति द्वेष के बिना उन्होंने अपने आप को दीन-दुखियों तथा पददलितों के लिए अपने जीवन को समर्पित किया। प्रार्थना में ही सभी विघ्नबाधाओं का सामना करने की शक्ति उन्हें मिलती थी। सिस्टर लिज़ा याद करती है, “सिस्टर रानी मरिया रोज सुबह 4 बजे उठ कर बहुत समय व्यक्तिगत प्रार्थना में बिताती थी। तत्पश्चात् वे सामुदायिक प्रार्थना में सक्रिय रूप से भाग लेती थी। सामुदायिक प्रार्थना की अगुवाइ करने में वे उत्सुक और सृजनात्मक थी।
सन 1994 में सिस्टर रानी मरिया को प्रोविन्स के समाज सेवा विभाग की सलाहकार के रूप में चुना गया। तब उन्हें प्रोविन्स के सभी समाज सेवा कार्यों को समन्वित करने का अवसर मिला। सिस्टर रानी मरिया ने मेहनत कर उदयनगर में परिवर्तन लाने की बहुत कोशिश की। उन्होंने पड़ती ज़मीन को कृषि-भूमि में परिणित करने में किसानों की मदद की। उन्होंने कुछ युवक-युवतियों को चुन कर उन्हें अनुप्राणदाता बनने के लिए प्रशिक्षण दिया और उन्हें गरीबों तथा अपने आपको सरकारी योजनाओं का फायदा उठा कर ऊपर उठाने को सक्षम बनाया। सभी बच्चों को स्कूल भेजने के लिए माता-पिताओं को प्रेरित किया। इस प्रकार उन्होंने उदयनगर से गरीबी हटाने में सफल रही। सिस्टर रोज़ का कहना है – “सिस्टर रानी मरिया ने ज़्यादात्तर आदिवासियों तथा दीन-दुखियों के बीच सेवा-कार्य किया। उन लोगों ने उन्हें एक माँ के समान प्यार किया क्योंकि उन्होंने पहली बार उनके जीवन में रुचि रखने वाले किसी व्यक्ति को पाया। उनका जीवन गरीबों के लिए समर्पित किया गया था। यह उनके स्वभाव में नहीं था कि वे परेशानी के बीच हार मान लें।“ ये विकास के कार्य बडे लोगों की योजनाओं विरुध्द थी, स्वाभाविक था कि वे उनसे नाराज हों। वे उन्हें पराजित करने, हटाने या खत्म करने की योजनाएँ बनाने लगे। वे इसके लिए एक मौका खोज रहे थे।
उनकी मृत्यु के आठ दिन पहले, भोपाल स्थित प्रोविन्शियल हाउस अंतिम बार पहुँचने कर मदर जनरल हेनरी सुसो से बातें करती हुयी सिस्टर रानी मरिया ने कहा, “हमें अपने मिशन कार्य में सुरक्षा और आराम नहीं खोजना चाहिए। बल्कि हमें ईश्वर पर भरोसा रखना चाहिए। अनेक धर्मबहनों को मिशन स्टेशनों के गाँवों में गरीबों की सेवा करने हेतु अपने जीवन को अर्पित करना चाहिए।” उन्होंने मदर इन्फ़ंट मेरी को अपने मिशन क्षेत्र उन्हें मिली धमकियों से अवगत कराया और कहा, “मैं येसु के प्रति प्यार और गरीबों के खातिर एक शहीद के रूप में मरना चाहती हूँ।”