21 जुलाई 1983 को सिस्टर रानी मरिया को उनकी अधिकारियों ने सतना धर्मप्रान्त के ओडगडी भेजा। वे 25 जुलाई 1983 को वहाँ पहुँची। वहाँ उन्हें धर्मप्रान्तीय स्थर पर सभी सामाजिक कल्याण कार्यों का संयोजक नियुक्त किया गया। उन्होंने गरीबों और पददलितों को ऊपर उठाने का हर संभव कोशिश की।
उनका दृढ़विश्वास था कि येसु के द्वारा घोषित पूर्ण मुक्ति पाने हेतु कोई भी बलिदान ज़्यादा नहीं है। उन्होंने बच्चों, युवकों तथा वयस्कों के लिए शैक्षणिक प्रणालियों को रूप दिया। उन्होंने गरीबों और शोषितों को भारत के नागरिक होने के नाते उनके अधिकारों तथा ज़िम्मेदारियों से अवगत कराया। इसके फलस्वरूप अत्याचार करने वाले सिस्टर रानी मरिया का विरोध करने लगे और उन पर यह आरोप लगाने लगे कि वे ये सब कार्य लोगों का धर्मान्तरण कराने के लिए कर रही हैं। ऐसे लोगों की धमकी से सिस्टर रानी मरिया पीछे हटने को तैयार नहीं थी, बल्कि वे और भी ज़्यादा दृढ़संकल्प के साथ आगे बढ़ने लगे। 1 जून से 31 जुलाई 1985 तक सिस्टर रानी मरिया ने अपने व्यस्थ जीवन के बीच प्रार्थना भवन, पोर्सिन्कुला, एफ़.सी.सी. जेनरलेट, आलुवा में दो महीने का समय मौन प्रार्थना और ध्यान-मनन् में बिताया। 30 मई 1989 से 15 मई 1992 तक सिस्टर रानी मरिया ने स्थानीय मठाधिकारी के पद पर सेवा की। इस समय सिस्टर ने रीवा विश्वविद्यालय से समाजशास्त्र में स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त की। तत्पश्चात् 8 सितंबर 1991 से 15 दिसंबर 1994 तक सिस्टर रानी मरिया ने अमला प्रोविन्स के समाजसेवा विभाग की सलाहकार का कार्य भी किया।
सिस्टर रानी मरिया के मेहनत और कार्यक्षमता पर आश्चर्य प्रकट करते हुए, उस समय के प्रोविन्शियल सुपीरियर मदर मरियन्ना ने अपने आधिकारिक दौरे पर कहा, “ओह! कितना बडा उत्साह! कितनी बडी बहादुरी! ये इतने सारे कार्य कैसे कर सक रही हैं। ये एक असाधारण व्यक्तित्व है। अगर मुझे इस प्रतिभा का एक अंश भी मिल जाता तो मैं कितना खुश होती! अगर रानी मरिया इसी प्रकार आगे बढ़ती है, तो वे अवश्य ही हत्यारों का शिकार बन जायेंगी।” जब सिस्टर रानी मरिया ओडगडी में कार्यरत थी, उन्होंने लोगों के सहयोग से विकास के कार्यों के द्वारा ओडगडी का चेहरा ही बदल दिया। फादर मैत्यु वट्टाकुज़ि, जो उस समय के धर्मप्रान्तीय समाज-सेवा आयोग के निर्देशक थे, कहते हैं, “ओडगडी में मिशन स्टेशन आरंभ होने से पहले ही वहाँ कुछ ख्रीस्तीय परिवार रहने लगे थे। सिस्टर रानी मरिया उनसे मिलने जाती थीं और उन्हें धर्मशिक्षा देती थी। बहुत से आदिवासी और हरिजन सिस्टर रानी मरिया के प्रेम, अनुकम्पा तथा सहानुभूति के कारण ख्रीस्तीय विश्वास से प्रभावित होते थे। बिशप एब्रहाम मट्टम कहते हैं, “सिस्टर रानी मरिया का दृढ़विश्वास था कि सुसमाचार वाहक को गरीबों को येसु का प्रेम तथा उनका मुक्तिदायक सन्देश प्रदान करने के लिए और आगे बढ़ने में साथ देने के लिए गरीबों में रुचि रखना चाहिए।“