भाषा के अध्ययन के बाद 24 दिसंबर 1975 को सिस्टर रानी मरिया बिजनूर धर्मप्रान्त में स्थित सेंट मेरीज़ कॉनवेंट पहुँची।
बिजनूर में ही सिस्टर रानी मरिया के मिशनरी जीवन की शुरूआत हुयी। वे अकसर कहती थी, “मिशनरी के रूप में मेरा जन्म और पालन बिजनूर में ही हुआ”।
स्थानीय शिक्षकों के अभाव में सिस्टर रानी मरिया बिजनूर के सेंट मेरीज़ स्कूल में एक शिक्षिका के रूप में नियुक्त की गयी हालाँकि वे गाँव में रह कर गरीबों की सेवा करना चाहती थीं।
उन्होंने 8 सितंबर 1976 से 7 आगस्त 1978 तक लगभग दो साल तक एक शिक्षिका के रूप में सेवा की। इस बीच रोज स्कूल में पढ़ाने के बाद वे सामाजिक कल्याण के कार्य में समय बिताती थी।
दो साल तक स्कूल में सेवा करने के बाद 21 जुलाई 1983 तक वे सामाजिक कल्याण के कार्य में अपना पूरा समय बिताने लगी। अपनी कार्यक्षमता बढ़ाने हेतु उन्होंने समाजशास्त्र का अध्ययन किया। इस समय भी उन्होंने अपना सामाजिक सेवा जारी रखी। 22 मई 1980 को केरल में अंकमाली के सेट होर्मिस चर्च में उन्होंने अपना नित्य वृत धारण किया।
हालाँकि बिजनूर में उनका कार्यकाल बहुत ही छोटा था, उनकी यह कोशिश रही कि वे वहाँ के गाँव-गाँव के एक-एक बच्चे, एक-एक मरीज और एक-एक शोषित गरीब व्यक्ति तक पहुँचे। उस समय के पल्लि-पुरोहित, फादर वर्गीस कोट्टूर कहते हैं, “सिस्टर रानी मरिया में प्रकट फ्रांसिस्की सादगी तथा प्रसन्नचित्तता का प्रभाव उन सबों पर पडा, जो उनके संपर्क में आये थे।“ सिस्टर इन्फंट मेरी लिखती हैं, “कड़ाके की सर्दी, मूसलाधार वर्षा, तीव्र गर्मी, अनियमित भोजन, पानी की कमी, यात्रा की जोखिम या असहायता के समय का अकेलापन – इन में से कोई भी बात सिस्टर रानी मरिया के मिशनरी कार्य में कभी बाधा नहीं बनी।” जब फादर कोट्टूर को सिस्टर रानी मरिया की आकस्मिक मृत्यु की खबर मिली, तब उन्हें सिस्टर रानी मरिया के शब्द याद आये – “मैं इन लोगों के लिए अपनी जान की कुर्बानी दूँगी।”