इश्वर की सेविका रानी मरिया

मिशनरी बनने की तैयारी


उत्तर भारत में बहुत से ऐसे लोग हैं जिन्होंने येसु के बारे में नहीं सुना है और उन्हें शायद येसु के बारे में सुनने का अवसर ही नहीं मिला है। इसी सच्चाई को जानते हुए फ्रांसिस्कन क्लारिस्ट धर्मसमाज सन 1960 में धर्मबहनों को उत्तर भारत में भेजने लगा। इस बात ने ही सिस्टर रानी मरिया को भी उत्तर भारत में एक मिशनरी के रूप में जाने को प्रेरित किया। “प्रभु का आत्मा मुझ पर छाया रहता है, क्योंकि उसने मेरा अभिशेक किया है। उसने मुझे भेजा है, जिससे मैं दरिद्रों को सुसमाचार सुनाऊँ, बन्दियों को मुक्ति का और अन्धों को दृष्टिदान का सन्देश दूँ, दलितों को स्वतन्त्र करूँ और प्रभु के अनुग्रह का वर्ष घोषित करूँ।“ (लूकस 4:18-19) इसी सुसमाचारीय वाक्य को अपनी डायरी में लिख कर उसे सिस्टर रानी मरिया ने अपने जीवन का आदर्श-वाक्य बनाया। उन्हें अपनी मिशनरी बुलाहट पर पक्का विश्वास था। अपनी कार्यक्षमता बढ़ाने के लिए उन्होंने स्थानीय भाषा अच्छी तरह सीखने का निर्णय लिया। इस उद्देश्य से 9 जुलाई 1975 को वे पटना के नोत्रे डाम सिस्टर्स के धर्मक्षेत्रीय अधिकारी के भवन में रह कर हिन्दी भाषा सीखने लगी।


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