प्रिय भाईयों एवं बहनों,
वर्ष 2015 का विश्व मिशन इतवार समर्पित जीवन के वर्ष के परिपेक्ष में पड़ता है जो हमें प्रार्थना एवं चिंतन करने का एक और अवसर प्रदान करता है। यदि हरेक बपतिस्मा प्राप्त व्यक्ति उपहार के रूप में प्राप्त किये गये अपने विश्वास की घोषण कर प्रभु का साक्ष्य देने के लिए बुलाया गया है, तो यह बात हरेक समर्पित व्यक्तियों के लिये विशेष रूप से लागू होती है। समर्पित जीवन एवं मिशन के बीच में एक स्पष्ट रिश्ता है। प्रभु येसु का करीबी से अनुसरण करने की इच्छा जिसके कारण कलीसिया में समर्पित जीवन की शुरूआत हुई, क्रूस लेकर उनके पीछे चलने, सेवा और प्रेम में उनके पिता के प्रति सम्पूर्ण समर्पण का अनुसरण करने तथा पाने के लिए अपने जीवन को न्यौछावर करने के लिए प्रभु येसु के बुलावा का प्रत्युत्तर है। येसु ख्रीस्त का सम्पूर्ण अस्तित्व मिशनरी स्वाभाव का था। इसलिये जो कोई भी उनका नजदीकी से अनुगमन करना चाहता है उसके पास यह मिशनरी गुण होना चाहिए।
मिशनरी आयाम जो कलीसिया का स्वाभाविक स्वरूप है, हर प्रकार के समर्पित जीवन का मूलभूत है तथा कृपोपहार (charism) को बिना घटाए या विरूपित किये इसे नकारा नहीं जा सकता। मिशनरी होने का तात्पर्य धर्मांतरण करना एवं योजनाकार बने रहना नहीं है। मिशन विश्वास के व्याकरण का हिस्सा है जो फुसफुसाकर ’आओ’ एवं ’जाओ’ कहने वाले आत्मा की आवाज सुनने वाले सभी लोगों के लिये परमावष्यक है। जो येसु ख्रीस्त का अनुसरण करते है वे मिशनरी बनने में असफल नहीं हो सकते क्योंकि वे जानते है ’’येसु उनके साथ चलते, बात करते एवं श्वाँस लेते हैं। वे येसु को अपने मिशनरी कार्यों के बीच जीवित महसूस करते हैं’’ (इवानजेली गौदियुम, 266)।
मिशन येसु के लिये एक आवेश है तथा इसके साथ ही उनकी प्रजा के लिये आवेश भी है। जब हम क्रूसित येसु के सामने प्रार्थना करते हैं तो हमें गरिमा प्रदान करने तथा संभालने वाले उनके प्रेम की गहराई का हम अनुभव करते हैं। इसी के साथ हमें यह भी अहसास होता है कि येसु के छेदित हृदय से बहने वाला प्रेम ईश्वर की प्रजा एवं सारी मानवता को गले लगा लेता है। एक बार फिर हमें एहसास होता है कि प्रभु अपनी प्रिय प्रजा तथा उन्हें सच्चे हृदय से खोजने वालों को अपनी ओर खीचनें के लिए हमारा उपयोग करना चाहते हैं। प्रभु येसु के आदेश ’जाओ’ में हम कलीसिया के प्रेरिताई मिशन के प्रति निरंतर बनी रहने वाली चुनौतियों का दृश्य देखते हैं। कलीसिया के सभी सदस्य अपने जीवन की गवाही के द्वारा सुसमाचार की घोषणा करने बुलाये गये हैं। विशेषत: समर्पित पुरूषों एवं स्त्रियों को आत्मा की आवाज को सुनने के लिये बुलाया जाता है जो उन्हें बाहरी इलाकों में जाकर जिन लोगों के लिए सुसमाचार की घोषणा अभी तक नहीं हुयी है, उन लोगों के पास जाने का निमंत्रण देते हैं।
द्वितीय वतिकान महासभा के दस्तावेज ’आद जेंतस’ की पचासवीं वर्षगांठ हमें इस दस्तावेज को पुनः पढ़कर उसकी विषय-वस्तु पर आत्मचिंतन करने का निमंत्रण देती है। यह दस्तावेज समर्पित जीवन के संस्थानों में शक्तिशाली मिशनरी प्रेरणा का आह्वान करता है। गहन मनन्-चिंतन के समुदायों के लिये बालक येसु की संत तेरेसा, मिशन की संरक्षिका एक नये प्रकाश में प्रकट होती है। वे नवीन भावपूर्णता के साथ चिंतन को प्रेरित करते हुए मिशन एवं गहन-मननशील जीवन के बीच के गहरे रिश्ते को प्रस्तुत करती है। कई क्रियाशील धर्मसंघों के द्वारा वतिकान महासभा से उत्पन्न मिशनरी प्रेरणा, ’आद जेंतस’ के मिशन को अतिसाधारण उन्मुखता के साथ स्वीकारा गया। उसके साथ-साथ प्रेरिताई के कार्यों के दौरान स्थानीय जगहों एवं संस्कृतियों के भाई-बहनों के प्रति खुलापन इस हद तक अपनाया गया कि आज हम समर्पित जीवन में ’अंतर-संस्कृतीकरण’ की बात कर सकते हैं। अतः इस बात की पुष्टि करने की अत्यंत आवश्यकता है कि मिशन कार्यॊं का केन्द्रीय आदर्श येसु ख्रीस्त है तथा इस आदर्श की यह मांग है कि व्यक्ति अपना सबकुछ सुसमाचार की घोषणा में लगा दे। इस बात पर कोई समझौता नहीं हो सकता कि जो ईश्वर की कृपा से इस मिशन को ग्रहण करते है उन्हें मिशन को अपने जीवन में जीने के लिये बुलाया गया है। उनके लिये दुनिया के विभिन्न में भागों में ख्रीस्त की घोषणा करना येसु के अनुसरण करने का मार्ग बन जाता है, वह मार्ग जो उनकी तकलीफों एवं त्यागों से कहीं अधिक उनको पुरस्कार प्रदान करता है। बुलाहट के इस मार्ग से, किसी भी कारण से भले ही वे कितने ही असंख्य एवं उच्च मेषपालीय, कलीसियाई, एवं मानवीय जरूरतें हो, विमुख होने की प्रवृत्ति व्यक्तिगत रूप से सुसमाचार की सेवा में उपस्थित रहने की ईश्वरीय बुलाहट के विरूद्ध है। इन मिशनरी संस्थानों में शिक्षकों को इस जीवन-योजना एवं कार्य को स्पष्ट करने तथा सच्ची एवं वास्तविक मिशनरी बुलाहट को पहचानने की आवश्यकता है। मैं विशेषकर युवाओं जो साहसिक गवाही एवं उदार कार्य करने में समक्ष है से यह अपील करता हूँ कि वे अपने सम्पूर्ण उपहारों के साथ येसु का अनुसरण करने के सच्चे मिशन के आदर्श को किसी को चुराने नहीं दे। अपने अंतरतम की गहराईयों में स्वयं से पूछो कि आपने क्यों इस धर्मसंघीय मिशनरी जीवन को चुना तथा इस धर्मसंघीय मिशनरी जीवन को जैसा वह है, स्वीकार करने में अपनी तत्परता का आकलन करें : सुसमाचार की घोषणा करने की सेवा में प्रेम का उपहार। याद रखिए, जिन्होंने सुसमाचार को अभी तक नहीं सुना है, उनसे अधिक सुसमाचार की घोषणा करने की आवश्यकता उनके लिये है जो गुरुवर से प्रेम करते हैं।
आज लोगों की ज़रूरतों को पूरा करना, उनकी जड़ों पर वापस जाना एवं उनकी संस्कृतियों के मूल्यों को बचाने आदि कलीसियाई मिशन की चुनौतियाँ हैं। इससे यह तात्पर्य है कि हम सभी परम्पराओं एवं दार्शनिक प्रणालियों को जानें और उनका आदर करें तथा यह महसूस करें कि सभी लोगों एवं संस्कृतियों का यह अधिकार है कि वे अपनी परंपराओं की परिधि के भीतर ही ईश्वर की प्रज्ञा के रहस्य में प्रवेश करे तथा येसु के सुसमाचार को स्वीकार करें, जो सभी संस्कृतियों की ज्योति एवं उन्हें रूपांतरण करने वाली शक्ति है।
इस जाटिल गतिविद्या के अभ्यंतर में हम स्वयं से पूछते हैः ’’वह कौन है जिन्हें सर्वप्रथम सुसमाचार का संदेश सुनाया जाये? सुसमाचार में इस प्रश्न का उत्तर सुस्पष्ट है; जो निर्धन, निम्न और रोगी हैं, जिनकी अक्सर अनदेखी की जाती है या भूला दिया जाता है और जो वापस चुका नहीं सकते है आदि (लूकस 14:13-14)। निम्न वर्ग के लोगों की ओर प्रेरिताई कार्य का निर्देशित होना स्वर्गराज्य का चिन्ह है जिसे येसु लेकर आये थे। ’’निर्धनों एवं हमारे विश्वास के बीच एक अवियोज्य संबंध है; इसे हम कभी भी न त्यागें” (इवानजेली गौदियम, 48)। समर्पित मिशनरी जीवन को स्वीकार करने वाले लोगों के लिए यह तथ्य सुस्पष्ट होना चाहिये: वे अपने निर्धनता के व्रत के द्वारा, येसु के निर्धनों के प्रति प्राथमिकता का अनुसरण, सिद्धांतवादी के रूप में नहीं बल्कि निर्धनों के साथ अपनी पहचान बना कर, जीवन की दैनिक अनिश्चितताओं के मध्य निर्धनों के समान जीवन बिताकर तथा सत्ता के प्रति अपने सभी दावों को त्यागकर करते हैं। वे इस तरह इन निर्धनों के भाई-बहन बन जाते और उनके लिये सुसमाचार के आनन्द की गवाही एवं ईश्वर के प्रेम के चिन्ह को लेकर आते हैं।
निर्धनों तथा निचले तबकों के लोगों के बीच ख्रीस्तीय गवाहों एवं पिता के प्रेम के चिन्ह के रूप में जीवन बिताते हुए समर्पित व्यक्तियों से कलीसिया के मिशन की सेवा में उपस्थित लोकधर्मियों को आगे बढ़ाने की आशा की जाती है। द्वितीय वतिकान महासभा कहती हैः ’’लोकधर्मियों को कलीसिया के प्रेरिताई के कार्यों में सहयोग करना चाहिये; अपने साक्ष्य तथा साथ ही जीवंत साधन के रूप में वे कलीसिया के मुक्ति के मिशन में सहभागी बन जाते हैं’’ (आद जेंतस, 41)। समर्पित व्यक्तियों को उदारता के साथ उन लोगों का स्वागत करना चाहिये जो उनके साथ काम करना चाहते हैं भले ही वे सीमित समय के लिये हो या इस क्षेत्र में अनुभव प्राप्त करने के उद्देश्य से। ये वे भाई-बहन है जो बपतिस्मा में प्राप्त अपनी मिशनरी बुलाहट को बाँटने के इच्छुक हैं। मिशन के घर एवं संस्थायें उनका स्वागत, उनकी मानवीय, आध्यात्मिक एवं प्रेरितिक आवश्यकताओं को पूरी करने के नैसर्गिक स्थल है।
कलीसियाई संस्थान एवं मिशनरी धर्मसंघ सम्पूर्ण रूप से उन लोगों की सेवा में समर्पित है जो येसु के सुसमाचार से अनभिज्ञ है। इसका तात्पर्य यह है कि उन्हें अपने समर्पित सदस्यों के कृपोपहारों एवं मिशनरी वचनबद्धता पर निर्भर रहना पड़ेगा। लेकिन सहभागिता सुनिश्चित करने हेतु, जो रोम के धर्माध्यक्ष की चिंता का विषय है, समर्पित स्त्री-पुरूषों को भी सेवा के ढांचे की आवश्यकता है। क्योंकि सहकारिता और तालमेल मिशनरी गवाही के अभिन्न अंग है। येसु ने शिष्यों की एकता को अनिवार्य माना था ताकि दुनिया विश्वास करे (योहन 17:21)। यह समावेश विधिवादिता एवं संस्थावाद जैसा नहीं है जो विभिन्नता की प्रेरणा देने वाले आत्मा की सृजनात्मकता को कम करे। यह सुसमाचार के संदेश को अधिक फलदायक बनाने तथा लक्ष्य की एकता को बढ़ावा देने हेतु है जो आत्मा का ही फल है।
संत पेत्रुस के उत्तराधिकारी के मिशनरी समाजों का वैश्विक प्रेरितिक कार्यक्षेत्र है। यही कारण है कि प्रेरिताई कार्य के विस्तृत कार्यक्षेत्र की जरूरतों को पूरा करने तथा जिस जगह पर वे भेजे जाये वहाँ अपनी पर्याप्त उपस्थिति दर्ज कराने हेतु उन्हें समर्पित जीवन के कृपोपहारों की आवश्यकता पड़ती है।
प्रिय भाईयों एवं बहनों एक सच्चा मिशनरी सुसमाचार के प्रति तीक्ष्ण बना रहता है। संत पौलुस कहते हैं, ’’धिक्कार मुझे यदि मैं सुसमाचार का प्रचार न करूँ!’’(1 कुरि 9:16)। सुसमाचार सभी पुरूषों एवं स्त्रियों के लिये आनन्द, स्वतंत्रता एवं मुक्ति का स्रोत है। कलीसिया इस उपहार से अवगत है। इसलिये वह निरंतर सभी को यह घोषणा करती है ’’जो आदि से विद्यमान था। हमने उसे सुना है। हमने उसे अपनी आँखों से देखा है’’ (1 योहन 1:1)। वचन के सेवकों - धर्माध्यक्षों, पुरोहितों, धर्मसंघियों एवं लोकधर्मियों - का मिशन सभी को बिना किसी अपवाद के येसु के साथ व्यक्तिगत संबंध बनाने देना है। कलीसिया की सम्पूर्ण मिशन गतिविधियों में, सभी विश्वासियों को अपनी व्यक्तिगत परिस्थितियों के अनुसार, बपतिस्मा की प्रतिज्ञाओं को पूर्णता तक जीने का आह्नान किया जाता है। वैश्विक बुलाहट का प्रत्युत्तर समर्पित स्त्री-पुरूष प्रार्थनामय जीवन तथा प्रभु एवं उनके मुक्ति के बलिदान के साथ संयुक्त हो कर दे सकते हैं।
मरियम, कलीसिया की माता एवं मिशनरयों की आदर्श को मैं उन सभी स्त्री-पुरुषों को सौंपता हूँ जो जीवन की हर स्थिति में सुसमाचार की घोषणा का कार्य आद जेंतस या अपनी ही मातृभूमि में कर रहे हैं। सभी मिशनरियों को मैं सहर्ष अपनी प्रेरिताई आशिष देता हूँ।