अप्रैल 12, 2015 ईश्वरीय करुणा के इतवार पर संत पापा फ्रांसिस ने वतिकान के महागिर्जाघर में पवित्र मिस्सा बलिदान के दौरान यह प्रवचन दिया था।
संत योहन जो विश्राम दिवस के बाद के प्रथम दिन शाम को अटारी में अन्य शिष्यों के साथ उपस्थित थे, हमें यह बताते हैं कि येसु आकर उनके बीच में खडे हो गये। उन्होंने उनसे कहा, “तुम्हें शांति मिले” और इसके बाद उन्हें अपने हाथ और अपनी बगल दिखायी (योहन 20:19-20)। उन्होंने उनको अपने घाव दिखाये। इस तरह उनको यह विश्वास हुआ कि वह एक आभास नहीं था, बल्कि वे ही थे, प्रभु!, और वे आनन्द से भर गये।
आठवें दिन प्रभु फिर से आटारी में आये और अपने घाव थॉमस को दिखाये, ताकि जैसे उसकी इच्छा थी वे उन घावों को स्पर्श कर विश्वास कर सकें और पुनरूत्थान के साक्षी बन सकें।
इस इतवार को जिसे संत योहन पौलुस द्वितीय ने ईश्वरीय करुणा के लिए समर्पित करना चाहा हमें भी सुसमाचार के द्वारा प्रभु अपने घाव दिखाते हैं। वे करुणा के घाव हैं। यह सच है कि येसु के घाव करुणा के घाव हैं।
येसु हमें इन घावों पर ध्यान देने के लिए, उन्हें स्पर्श करने के लिए जिस प्रकार संत थॉमस ने किया था, हमारे अल्पविश्वास को चंगा करने के लिए निमंत्रण देते हैं। खास कर के वे हमें इन घावों के रहस्य में प्रवेश करने का निमंत्रण देते हैं, जो उनके करुणामय प्रेम का रहस्य है।
इन घावों के द्वारा हम ख्रीस्त और ईश्वर के पूरे रहस्य को देख सकते हैं, उनका दुखभोग, धरती पर कमजोरों और गरीबों के लिए सहानुभूति से भरा उनका जीवन, मरियम के गर्भ में उनका मनुष्यावतार। ये हमें हमारी मुक्ति के इतिहास की याद दिलाते हैं; विशेषकर प्रभु के सेवक, स्तोत्र, संहिता और विधान से संबंधित भविष्यवाणियों की मिस्र देश से मुक्ति की, प्रथम पास्का समारोह और बलि चढाये हुए मेमनों के रक्त की; इस के अतिरिक्त पितामहों से इब्राहीम तक और हाबिल तक जिसका रक्त भूमि पर से पुकार रहा था। यह सब हम येसु के घावों में जो मर गये और जी उठे, देख सकते हैं। मरिया गान में हम यह देख सकते हैं कि उनकी “करुणा पीढ़ी दर पीढ़ी बनी रहती है” (लूकस 1:50)
अपने को मानव इतिहास की दुखद घटनाओं के बीच पाकर हम अपने को कुचला हुए महसूस करते हैं; क्यों? मानवजाति की बुराई इस दुनिया में एक अगाध गर्त जैसा प्रतीत सकती है दृ बडी शून्यतारू प्रेम का अभाव, भलाई का अभाव, जीवन का अभाव। इसलिए हम सवाल करते हैं; हम इस अगात गर्त को कैसे भर सकते हैं? यह हमारे लिए असंभव है, केवल ईश्वर ही इस अगाध गर्त को, जो बुराई हमारे हृदय तथा मानव इतिहास में पैदा करती है, भर सकते हैं। मनुष्य बनते ईश्वर येसु ही जो क्रूस पर मरे इस अगाध गर्त को अपनी करुणा की गहराई से भर सकते हैं।
“गीतों के गीत” (Canticle of Canticles) पर टिप्पणी में शक्तिशाली और स्पष्ट अभिव्यक्ति का सहारा ले कर संत बर्नार्ड विशेषकर प्रभु के घावों पर ध्यान करते हैं, जिसे हम आज भी दुहराते हैं। उनका कहना है कि “इन घावों के द्वारा हम ख्रीस्त के गुप्त हृदय को देख सकते हैं, प्रेम का रहस्य, उनकी करुणा की ईमानदारी जिसके साथ वे स्वर्ग से हम से मिलने आये।
भाईओं और बहनों उस मार्ग को देखिए जिसे ईश्वर ने हमारे लिए पाप और मृत्यु की दासता से बाहर निकलने के लिए खोल दिया है। येसु, क्रूसित और पुनर्जीवित, हमारा मार्ग हैं और उनके घाव करुणा से भरे हैं।
संत लोग हमें सिखाते हैं कि स्वयं के हृदय परिवर्तन से ही दुनिया में परिवर्तन शुरू होता है और यह ईश्वर की करुणा से ही होता है। इसलिए मेरे अपने पापों तथा दुनिया की आपदाओं के सामने “मेरा अंतकरण परेशान होगा, मगर कोई खलबली नहीं बचेगी, क्योंकि मैं प्रभु के घावों को याद करूँगा; “हमारे पापों के कारण वह छेदित किया गया है” (इसायाह 53:3)। कौन-सा पाप इतना मारक है कि उसे ख्रीस्त की मृत्यु से क्षमा प्राप्त नहीं हो सकती है?
पुनर्जीवित येसु के घावों को निहारते हुए, हम कलीसिया के साथ गा सकते हैं; “उनका प्रेम अनन्त काल तक बना रहता है” (स्तोत्र 117:2) उनकी करुणा अनन्त है। इन शब्दों को अपने हृदय में अंकित करते हुए, हमारे प्रभु और मुक्तिदाता, जो हमारा जीवन और आशा है, के हाथ पकड कर आईए हम इतिहास की राह पर चलें।