संता पिता फ्रांसिस के सार्वजनिक दर्शन का सन्देश, 4 फरवरी 2015

पिता की सकारात्मक भूमिका - भाग - 2

Translated by Fr. Francis Scaria. Source:Zenit News


प्यारे भाइयों और बहनों, आज मैं आप के साथ परिवार में एक पिता की भूमिका पर मनन-चिंतन करना चाहता हूँ। पिछली बार मैंने ’अनुपस्थित पिता’ के खतरे के बारे में मेरे विचार व्यक्त किये थे। परन्तु आज मैं इसके सकारात्मक पहलू पर प्रकाश डालना चाहता हूँ। जब मरियम गर्भवती पायी गयी तो संत यूसुफ को भी मरियम को छोडने का प्रलोभन हुआ था। लेकिन स्वर्गदूत ने उन्हें ईश्वर की योजना और मिशन के बारे में समझाया। फलस्वरूप यूसुफ अपनी पत्नी मरियम को अपने यहाँ ले गये और इस प्रकार यूसुफ नाजरेथ के परिवार के पिता बन गये।
हर परिवार को एक पिता की जरूरत होती है। आज हम इस भूमिका के महत्व पर मनन-चिंतन करेंगे। मैं सूक्तिग्रन्थ की कुछ उक्तियों से शुरू करना चाहता हूँ जिन शब्दों के जरिए एक पिता अपने बेटे को संबोधन करता है, “पुत्र! यदि तुम्हारे हृदय में प्रज्ञा का वास है, तो मेरा हृदय भी आनन्दित होता है। यदि तुम विवेकपूर्ण बातें करते हो, तो मेरा अन्तरम उल्लसित हो उठता है।“ (सूक्ति 23:15-16) कोई भी पिता अपने पुत्र को उसके जीवन के लिए सबसे महत्वपूर्ण चीज - एक ज्ञानी हृदय प्रदान कर पाने पर एक पिता के गर्व और उनके मनोभाव को इस से बेहतर तरीके से व्यक्त नही कर पाता। पिता यह नहीं कहता कि मैं तुम पर इसलिए गर्व करता हूँ कि तुम बिलकुल मेरे ही समान हो और तुम मेरे कार्यों और बातों को दुहराते हो। वह और भी महत्वपूर्ण बातों को उसके सामने रखता है जिसको हम इस प्रकार व्यक्त कर सकते हैं दृ “जब कभी तुम ज्ञान के साथ कार्य करोगो, उसे देख कर मैं आनन्दित होऊँगा और तुम्हारे मुँह से यथोचित बातें सुन कर मैं गर्व महसूस करूँगा। मैं यहीं तुम्हें प्रदान करना चाहता था; वह मनोभाव जिस के बल पर तुम ज्ञान और धार्मिकता के साथ महसूस करे, कार्य करे, बात करे तथा न्याय करे। ताकि तुम इस प्रकार बने रहो। मैंने तुम्हें ऐसी बातें सिखायी जिन्हें तुम जानते नहीं थे, मैंने तुम्हारी उन गलतियों को सुधारा जिन्हें तुमने खुद नहीं देखा था। मैंने तुम्हें एक अगाध और समझदार वात्सल्य का अनुभव प्रदान किया, जिसे तुमने शायद ही अपनी जवानी और अनिश्चितता के समय ठीक से पहचाना। मैंने तुम्हें प्रबलता और दृढता का साक्ष्य दिया जिस को तुमने शायद ठीक से नहीं समझा क्योंकि तुम सहापराधिता और संरक्षण चाहते थे। सबसे पहले मुझे स्वयं हृदय के ज्ञान की परीक्षा में उतीर्ण होना पडा जिससे मैं अनियंत्रित भावुकता और अप्रन्नता से बचकर कुछ अनिवार्य गलतफहमियों के बोझ उठा सकूँ और अपने दिल की बातों को ठीक से तुम्हारे सामने व्यक्त करने के शब्द पा सकूँ। आज तुम्हें अपने बच्चों और दूसरों के साथ इसी प्रकार बनने की चेष्टा करते हुए देख कर मैं भावुक बन जाता हूँ। तुम्हारे पिता बनने में मुझे अच्छा लगता है।“ एक ज्ञानी, परिपक्व पिता यही कहता है। एक पिता को मालूम है कि अपनी परम्परा को हस्तांतरित करने की क्या कीमत है दृ कितनी निकटता, कितना विनय और कितनी दृढ़ता। बच्चों को इस परम्परा को मान्यता देते हुए पाने पर पिता को कितनी तसल्ली और पुरस्कार प्राप्त होते हैं। वह एक ऐसा आनन्द है जो हर परिश्रम का मुआवजा, हर गलतफहमी की क्षतिपूर्ति तथा हर घाव की चंगाई है।
इसलिए प्रथम अनिवार्यता है दृ पिता का परिवार में उपस्थित रहना। वह अपनी पत्नी के साथ रह कर सुख-दुखों, परिश्रमों तथा आशाओं को बाँटे। वह अपने बच्चों की वृद्धि में उनके निकट रहे दृ जब वे खेलते हैं और जब वे व्यस्त रहते हैं, जब वे बेफिक्र है और जब उन्हें पीड़ा होती है, जब वे अपने को व्यक्त करते हैं और जब वे मौन साधते हैं, जब वे जोखिमों का सामना करते हैं और जब वे डर जाते हैं, जब वे एक गलत कदम उठाते हैं और फिर वापस ठीक मार्ग पर आते हैं। एक पिता, जो हमेशा उपस्थित रहते हैं! परन्तु उपस्थित रहने का मतलब नियंत्रित करना नहीं है क्योंकि जो पिता अपने बच्चों को बहुत नियंत्रित करते हैं, वे बच्चों की अवहेलना करते हैं, उन्हें बढ़ने नहीं देते हैं।
सुसमाचार हमें स्वर्गिक पिता की अनुकरणीयता के बारे में अवगत कराता है दृ केवल वहीं, येसु के अनुसार, उत्तम पिता है (देखिए मारकुस 10:18)। सब उड़ाउ पुत्र या करुणामय पिता के दृष्टान्त को जानते ही हैं जो संत लूकस के सुसमाचार में पाया जाता है (देखिए लूकस 15:11-32)। उस पिता के इंतजार में कितनी गरिमा और मृदुलता है जो अपने घर के दरवाजे पर अपने पुत्र की वापसी की राह देखता रहता है। पिता को धैर्य साधना चाहिए दृ कभी-कभी प्रतीक्षा करने के सिवा वे कुछ नहीं कर सकते हैं। प्रार्थना करो और धैर्य, विनय, महानुभावता तथा दयालुता के साथ इंतजार करते रहो।
एक अच्छा पिता प्रतीक्षा करने तथा अपने हृदय की गहराई से क्षमा करने में सक्षम है। अवश्य ही वह दृढ़ता के साथ सुधार के लिए भी सक्षम है दृ वह एक कमजोर, अनुवर्ती तथा भावुक पिता नहीं। जो पिता निरुत्साहित करते बिना सुधार सकता है, वह अथक रूप से संरक्षण भी दे सकता है। एक बार मैंने एक पिता को दम्पतियों की बैठक में यह कहते हुए सुना कि कभी-कभी मुझे मेरे बेटे को मारना भी पडता है, परन्तु कभी उसके चेहरे पर नहीं क्योंकि उससे उसका अपमान होगा। कितनी सुन्दर बात है! वह गरिमा का अर्थ जानता है। उसे अपने बच्चे को कभी कभी दण्ड देना पडता है, पर वह न्याय के साथ और आगे बढता है।
इसलिए, अगर कोई येसु द्वारा सिखायी गयी ’हे पिता हमारे’ प्रार्थना की गहराई को समझा सकता है, तो केवल वही जो पितृत्व को व्यक्तिगत रूप से जीता है। स्वर्ग में विराजमान पिता से प्राप्त कृपा के बिना पिता अपनी हिम्मत खो देते हैं और अपने कार्यक्षेत्र को त्याग देते हैं। तथापि बच्चों को एक पिता की जरूरत है जो अपनी विफलताओं से वापस आने पर उनके लिए इंतजार करता है। वे अपनी गलतियों को अस्वीकार करने तथा छिपाने की हर कोशिश करेंगे, फिर भी उनको उसकी जरूरत है। इस प्रकार के पिता के अभाव में बच्चों में ऐसे घाव प्रकट होने लगेंगे जिसे चंगा करना बहुत ही कठिन होगा।
हमारी माता कलीसिया अपनी पूरी ताकत से परिवारों में पिता की अच्छी और उदार उपस्थिति का समर्थन करने के लिए प्रतिबद्ध है क्योंकि वे संत यूसुफ के समान नई पीढ़ियों के लिए ईश्वर की भलाई, न्याय और संरक्षण में विश्वास के अद्वितीय अभिरक्षक और मध्यस्थ हैं।


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