येसु के अंतिम सात वचन

प्रस्तावना

मृत्यु के समय मनुष्य के मुंह से जो शब्द निकलते हैं, वे सीधे उसके हृदय से निकलते हैं। कहा जाता है कि फ्रांस के प्रसिद्ध जनरल नेपोलियन बोनापार्ट ने अपनी मृत्यु के समय यह कहा था, ‘‘मैं अपने समय से पहले मर रहा हूँ और मेरा शरीर मिट्टी में मिल जाएगा”। यह थी उस मनुष्य की किस्मत जिसे हम महान नेपोलियन कहते हैं। एक और फ्रांस के प्रसिद्ध लेखक, वोल्टेयर ने अपनी मृत्यु-शैया पर अपने डॉक्टर से यह कहा, “मुझे ईश्वर और मनुष्य दोनों ने त्याग दिया है। अगर आप मेरा जीवन 6 महीने बढ़ा दे तो मैं अपनी आधी संपत्ति आपके नाम कर दूंगा।”

स्वर्ग और पृथ्वी के बीच लटकते हुए अपने जीवन के आखिरी 6 घंटों में येसु मसीह ने सात वाक्य कहे जो उनके हृदय की पवित्रता और सच्चाई को दर्शाते हैं। क्रूस पर चढ़ा कर दंड़ देना मनुष्य के लिए सबसे भयानक यातना का जरीया था। शरीर का वजन बाजुओं से लटकता और छाती की मांसपेशियों में असहनीय दर्द पैदा करता और सांस लेना दूभर हो जाता। क्रूस पर चढ़ा व्यक्ति सांस अंदर तो ले सकता था लेकिन सांस बाहर निकालने के लिए उसे अपने पैरों पर जोर दे कर सीधा होने की कोशिश करनी पड़ती। यह कोशिश इतनी दर्दनाक होती कि वह तुरंत सब कोशिशें बंद कर देता। मौत आने में 2 से 3 दिन तक लग जाते। रोमी सिपाही जब उसकी यातना समाप्त करना चाहते तो अक्सर उसके पैरों की हडडी तोड देते थे। अपने पैरों पर सीधा ना हो पाने के कारण व्यक्ति की जल्द ही मौत हो जाती थी। सिपाहियों ने येसु के अगल -बगल में जो दो कुकर्मी क्रूस पर लटकाए थे उनके पैर तोड़ दिए और जल्द ही दोनों मर गए। लेकिन येसु के पैर नहीं तोडे गए क्योंकि वह पहले ही मर चुके थे। और इस तरह धर्मग्रंथ का कथन पूरा हुआ। “उसकी एक भी हड्डी नहीं तोड़ी जाएगी” (योहन 19:36)। इसी संदर्भ में हर एक सांस के लिए यातना सहते हुए येसु ने अपने अंतिम शब्द कहे।

पहला वाक्य

जब येसु को क्रूस पर ठोका जा रहा था। येसु ने कहा, ‘‘पिता, इन्हें क्षमा कर क्योंकि यह नहीं जानते कि क्या कर रहे हैं (लुकस 23: 34)।

गीतः पिता इन्हें क्षमा कर, क्योंकि ये नहीं जानते, कि यह क्या कर रहे हैं?

जो कुकर्मी क्रूस पर चढ़ाए जाते थे वे अकसर चिल्ला- चिल्ला कर दूसरों की निंदा करते थे और श्राप देते थे। लेकिन येसु ने शांति और प्रेम के साथ उनको यातना देने वालों के लिए पिता से क्षमा करने की प्रार्थना की। जे.सी. राईल, एक प्रसिद्ध एंगलीकन बिशप, ने कहा है, “जब सबसे बड़े बलिदान का लहू बहने लगा तब सबसे बड़े महायाजक ने याचना शुरू कर दी।” येसु जो मनुष्य रूप में ईश्वर थे। अपनी एक फूँक से अपनी यातना देने वालों को भस्म कर सकते थे लेकिन फिर उनकी यानाओं का क्या फायदा होता। वे न्याय करने नहीं बचाने आए थे। उन्होंने दोषियों के लिए मरना पसंद किया जो और भी हिम्मत और साहस का कार्य था। मानव के लिए अपने कुकर्मियों के लिए प्रार्थना करना संभव नहीं है। येसु यह कर पाए क्योंकि अपने पिता के साथ उनका घनिष्ठ संबंध था और यह करके उन्होंने इसायाह नबी का कथन पूरा किया। “क्योंकि उसने बहुतों के अपराध अपने उपर लेते हुए और पापियों के लिए प्रार्थना करते हुए अपने को बलि चढ़ा दिया और उसकी गिनती को कर्मियों में हुई” (इसायाह 53: 12)।


दुसरा वाक्य

येसु के एक तरफ एक कुकर्मी क्रूस पर लटका था। उसके विश्वास और पश्चाताप की भावना देखते हुए येसु ने उस से कहा, ”मैं तुमसे यह कहता हुँ। तुम आज ही परलोक में मेरे साथ होंगे।“ (लुकस 23:43)

गीतः मैं तुमसे यह कहता हुँ, तुम आज ही परलोक मेरे साथ होंगे।

पश्चातापी कुकर्मी का कथन यह दर्शाता हैं कि नम्र भाव ईश्वर को प्रसन्न करता है। भीड़ ने, सिपाहियों ने उसकी निंदा की और हंसी उड़ाई क्योंकि वे अपने आप में मग्न थे और येसु की असलियत को पहचान न सके। लेकिन एक कुकर्मी अलग था। उसने अपने दोष और उसके न्याय अनुसार दिए गए दंड को पहचाना। उसने जान लिया कि येसु निर्दोष है और वो मसीहा है (लुकस 23:42)। उसके पश्चाताप और विश्वास को देखकर येसु ने उस से वादा किया जो वह सोच भी नहीं सकता था। उसने येसु से कहा जब आप अपने राज्य में आयेंगे। 10,15, 50 साल में तो मुझे याद रखना। लेकिन येसु ने उसे आश्वासन दिया कि वे उसी दिन उसे परलोक ले जाएंगे। परलोक अदन की बारी के तुल्य है और स्वर्ग को दर्शाता है (2 कुरिंथियो 12:34 प्रकाशना 2:7)।

येसु का यह कथन बताता है कि येसु किस हद तक क्षमा करने को तैयार है। हम नम्र भाव से येसु के पास आए और उनकी क्षमा और चंगाई पाकर ईश्वर के साथ परलोक में जगह प्राप्त करें।


तीसरा वाक्य

मौत का सामना करते हुए भी येसु दूसरों के बारे में सोच रहे थे। उन्होंने अपनी माता के बारे में सोचा और यह व्यवस्था की कि उसे किसी बात की कमी ना हो। येसु ने अपनी माता को और उसके पास अपने उस शिष्य को जिसे वह प्यार करते थे देखा। उन्होंने अपनी माता से कहा, “भद्रे यह आपका पुत्र है”। इसके बाद उन्होंने उस शिष्य से कहा, “यह तुम्हारी माता है”। उस समय से उस शिष्य ने उसे अपने यहाँ आश्रय दिया (योहन 19:27)।

भद्रे ये आपका पुत्र है, पुत्र है। यह तुम्हारी माता है।

जब दुख झेलना पडता है तो हम अपनी तकलीफ से इतना भर जाते हैं और सब कुछ भूल जाते हैं। छोटा सा दांत का दर्द, या सिर दर्द हम में झुंझलाहट और क्रोध पैदा करने के लिए काफी है। इसीलिए यह अचंभा-सा लगता है कि क्रूस पर टंगे हुए येसु अपनी माता के लिए व्यवस्था कर रहे हैं। मरियम, मरियम की बहन, मरियम मगदलेना और योहन क्रूस के पास थे और येसु उन्हें सांत्वना देना चाहते होंगे। असहनीय यातना, सांस लेने में तकलीफ, दुख और पीडा, फिर भी वे दूसरों के दुख में शामिल होना चाह रहे थे, वे जो उनके साथ खड़े थे और निडर होकरउनका साथ दे रहें थे।

सुसमाचार बताता है कि जो भी येसु से मिला येसु ने उसे बहुत संवेदना दिखायी। माता मरियम जो अपनी बेटे पर अत्याचार होते देख रही थी जैसे कि वह कोई कानून तोड़ने वाला हो, चाहती होगी कि वह उसकी जगह ले ले। उसके लिए उसने खुद बहुत यातना सही और येसु यह जानते थे। 30 साल पहले जब सिमियोन ने बालक येसु को अपने हाथों में लेकर मरियम से कहा था। “एक तलवार आपके हृदय को आर-पार भेदेगी” (लुकस 2:35)।

मरियम विधवा थी और पहलौटे पुत्र होने के कारण येसु की कानूनी जिम्मेदारी थी की वे मरियम पूरी व्यवस्था करें। लेकिन येसु के लिए यह कोई बोझ नहीं था। वह उनके दर्द को पहचानते थे। स्वर्ग और पृथ्वी के बीच लटकते हुए उन्होंने सबसे अच्छी व्यवस्था उनके लिए की। अपने दोस्त और चेले योहन को ही उनकी देखरेख का भार संभालने को कहा। वे जानते थे कि वह माता मरियम का वैसा ही ख्याल रखेंगे जैसे कि वे खुद रखते थे (योहन 19:27)।

क्या हमारा हृदय येसु की तरह संवेदनशील है? क्या हम अपने आसपास के लोगों के दुख-तकलीफ में उनका साथ दे सकते हैं? हम अक्सर सुनते हैं - दूसरों की मदद करने में अपने आप को इतना मत झोंकिए; अपने आप के लिए भी कुछ ऊर्जा बचाके रखीए; इतना संवेदनशील होने की जरूरत नहीं है। लेकिन क्या हमारी बुलाहट यह नहीं है कि बजाए इसके कि अपने आप को बिखरने से बचाने के बदले हम इस उथल-पुथल दुनिया में प्रेम फैलाएं।


चैथा वाक्य

लगभग तीसरे पहर येसु ने ऊंचे स्वर से पुकारा, “ऐली ऐली लामा सबकतानी”। इसका अर्थ है ”मेरे ईश्वर, मेरे ईश्वर, तूने मुझे क्यों त्याग दिया है?” (मत्ती 27:46)।

गीतः हे मेरे ईश्वर, मेरे ईश्वर, तूने मुझे क्यों छोड़ दिया है? मेरे ईश्वर?

इन शब्दों का लेखा देते हुए सुसमाचार-लेखक मत्ती इस बात पर जोर देते हैं कि इसने अपने पिता ईश्वर से दूर किए जाने की जो यातना सही वह हमारे लिए निर्धारित थी। पिता और पुत्र का यह घनिष्ठ संबंध पहले कभी नहीं टुटा था। पिता द्वारा त्याग दिए जाने की भावना येसु के लिए ज्वलंत थी। पिता ने सही मायने में येसु को त्याग कर उनसे अपना मुंह मोड़ लिया था।

हमारी पापों के कारण यह वैसा ही हुआ जैसा इसायाह नबी ने कई 700 साल पहले भविष्यवाणी की थी। “परंतु वह हमारे ही रोगो को अपने ऊपर लेता था और हमारे ही दुखों से लदा हुआ था और हम उसे दंडित, ईश्वर का मारा हुआ और तिरस्कृत समझते थे। हमारे पापों के कारण वह छेदित किया गया है। हमारे कुकर्मों के कारण वह कुचल दिया गया है। जो दंड़ वह भोगता था उसके द्वारा हमें शांति मिली और उसके घावों द्वारा हम भले चंगे हो गए हैं” (इसयाह 53:4-6)।

एक पूर्ण मानव के रूप में क्रूस यातना सहते समय येसु को यह महसुस हुआ कि पिता ईश्वर ने उनसे अपना मुंह मोड़ लिया और उन पर अपना क्रोध उंडेल दिया था। इस त्याग दिए जाने की जो वेदना है उसका कोई मापदंड नहीं है, लेकिन हम कल्पना कर सकते हैं येसु की उस असहनीय तकलीफ की जिसे उन्होंने गैतसेमनी की बारी में सहा (मारकुस 14:33, लुकस 22:44)।

जब येसु अपने चेलों के साथ थे उन्होंने कहा, “इससे बड़ा प्रेम किसी का नहीं कि कोई अपने मित्रों के लिए अपने प्राण अर्पित कर दे” (योहन 15:13)। प्रेरित योहन अपने पत्र में इस बात को दोहराते हैं। हम प्रेम का मर्म इसी से पहचान गए कि येसु ने हमारे लिए अपना जीवन अर्पित किया और हमें भी अपने भाइयों के लिए अपना जीवन अर्पित करना चाहिए (1 योहन 3:16)। दूसरों के लिए अपने प्राण देना आसान नहीं है। लेकिन हम दूसरों को थोड़ा-सा अपना समय दे सकते हैं, दूसरों का ख्याल रख सकते हैं, अपना प्रेम दूसरों में बांट सकते हैं।


पाँचवा वाक्य

तब येसु ने यह जानकर कि अब सब कुछ पूरा हो चुका है धर्मग्रंथ का लेख पूरा करने के उद्देश्य से कहा, “मैं प्यासा हुँ” (योहन 19:28)।

गीतः मैं प्यासा हुँ (3)।

येसु खुद ईश्वर थे। पिता ईश्वर का पुत्र हमारी पापों के लिए क्रूस पर मर गया। लेकिन येसु पूर्ण रीती से मनुष्य भी थे। और मनुष्य की भांति उन्हें भी भूख प्यास और थकान महसूस होती थी और उसे व्यक्त करने में उन्हें कोई हिचकिचाहट नहीं हुई। क्रूस पर से उन्होंने चिल्लाया “मैं प्यासा हुँ”। इस तरह उन्होंने स्तोत्र ग्रंथ का कथन पूरा किया (देखिए - स्तोत्र ग्रंथ 69:21)। कौन कल्पना कर सकता था कि जो मनुष्य जाति के लिए जीवन का जल था, वह खुद एक दिन असहनिय प्यास की यातना सहेगा। क्योंकि मनुष्य की तरह येसु ने भूख प्यास और अकेलेपन की पीड़ाओं को सहा। वह हम मनुष्यों को अच्छी तरह समझते हैं? मानवीय यातना के समय वे हमें सांत्वना दे सकते हैं। (देखिए - इब्रानी 2:18, 4:15 और 16)

छठा वाक्य

येसु ने खट्टी अंगुरी चखकर कहा - ”सब पूरा हो चुका है” और सिर झुकाकर प्राण त्याग दिए (योहन 19:30)।

गीतः सब पुरा हो चुका है, पूरा हो चुका है।

तीन सुसमाचार यह वर्णन करते हैं कि प्राण त्यागते समय येसु चिल्ला उठे, लेकिन योहन वर्णन करते हैं कि उन्होंने क्या कहा। क्रूस पर टंगा व्यक्ति चिल्लाने की स्थिति में नहीं रहता था। वह एक आह के साथ अपने प्राण त्याग देता था, लेकिन येसु जोर से चिल्लाए। यह वाणी मृत्यु की नहीं थी। उनकी जीत की थी। येसु ने सबसे बड़ी विजय प्राप्त की थी। पिता ईश्वर के प्रति पूर्ण निष्ठा का जीवन और क्रूस पर अपनी मौत के द्वारा ईश्वर ने मनुष्य के लिए स्वर्ग के द्वार खोल दिए। ईश्वर से मनुष्य को दूर रखने वाली दीवार को उन्होंने गिरा दिया। अब जब स्वर्ग का मार्ग खुल चुका है तो हमें क्या करना है? यही कारण है कि जो लोग उनके द्वारा ईश्वर की शरण लेते हैं, वह उन्हें परिपूर्ण मुक्ति दिलाने में समर्थ है। क्युोंकि वे उनकी ओर से निवेदन करने के लिए सदा जीवित रहते हैं (देखिए - इब्रानी 7:25)।

हम अपने आप स्वर्ग में जगह पाने के लिए कुछ नहीं कर सकते (ऐफेसियो 2:8)। येसु ने हमारे यह काम किया है। हमें सिर्फ अपने पापों की क्षमा माँगकर पिता से मेल मिलाप करना है। हम वहाँ नहीं है लेकिन आज ही से हम स्वर्ग की खुशी और शांति का लाभ उठा सकते हैं (योहन 7:38)।


सातवाँ वाक्य

येसु ने ऊँचे स्वर से पुकार कर कहा, ”हे पिता, मैं अपनी आत्मा को तेरे हाथों में सौंपता हुँ” और यह कह कर उन्होंने अपने प्राण त्याग दिए (लुकस 23:46)।

गीतःहे, हे पिता! मै अपनी आत्मा को तेरे हाथों सौंप देता हुँ, सौंप देता हुँ।

येसु के यह आखिरी शब्द उस प्रार्थना से मेल खाते हैं जो हर यहुदी माँ अपने बच्चों को सोने से पहले बोलने को सिखाती है। यह प्रार्थना ईश्वर पर पूरा विश्वास व्यक्त करती है। यह बात स्तोत्र 3 मे कही गई है कि स्तोत्रकार पूरी निष्ठा और विश्वास के साथ अपना पूरा भविष्य ईश्वर के हाथों में सौंप देता है (देखिए - स्तोत्र 31:16)। मृत्यु के समय येसु ने अपने आप को ईश्वर के हाथों में छोड़ दिया जानते हुए कि पिता ने उनके लिए अद्भुत चीजों का इंतजाम कर रखा है। जब येसु ने अपनी आने वाली यातनाओं के बारे में अपने चेलों को बताया तो उसके बाद आने वाली महिमा के बारे में भी उन्हें बताया। (देखिए - मत्ती 16: 21, 17:9, 17: 22.23)। इसी आने वाली महिमा ने येसु को सारी तकलीफ और दुख को सहने का साहस दिया (इब्रानी 12:12)। हमारा क्या हाल है? दुख के समय सब अंधकार दिखाई देता है और दुख और निराशा हम पर छा जाती हैं। क्या हम ईश्वर की ओर देखते हैं? और अपने आप को उसके प्रेम के हवाले करते हैं? क्या हम विश्वास करते हैं कि सच में उसने हमारे लिए महान कार्य रख छोड़ा है। अपना जीवन हम उसके हाथों में क्यों न दे दे? ईश्वर हमें अपनी अशिषों से मालामाल करना चाहते हैं तो हमें किस बात का इंतजार है? हम ईश्वर से यह प्रार्थना कर सकते हैं - हे पिता मैं अपना दोष स्वीकार करता हुँ जिनके कारण आप मुझे तिरस्कृत कर सकते थे। लेकिन मेरी जगह पर आप ने येसु को त्याग दिया, उसके दुख और क्रूस पर मृत्यु के लिए मैं आपको धन्यवाद देता हुँ। आप मेरे सारे पाप क्षमा करें। मुझे अपनी आत्मा का दान दें ताकि मैं आप की संगति में एक नया जीवन शुरु कर सकूं। मैं आपके पीछे चलना चाहता हुँ। आपकी आवाज सुनना चाहता हुँ और आप को प्रसन्न करना चाहता हुँ। बिना इंतजार किए मैं अपने आपको आपकी सेवा में समर्पित करता हुँ आमेन।

✍ - श्री. जोसेफ डीसूज़ा (नागपुर)


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