हर साल उष्ण कटिबंधीय स्थानों, जैसे एया एवं अफ्रीका में ग्रीष्म ऋतु के प्रारम्भ होते ही पेड-पौधे अपनी पत्तियाँ गिरा देते हैं। ऐसा ही ठंडे प्रदेशों में शीत ऋतु के प्रारम्भ में होता है। इस प्रक्रिया को हम पतझड़ कहते हैं। इसके पीछे वैज्ञानिक तथ्य यह है कि पेड-पौधे आने वाले मौसम परिवर्तन का सामना करने के लिए ऐसा करते हैं। पतझड़ के इस मौसम में ऐसा प्रतीत होता है कि सारा जंगल सूख गया हों, पेड-पौधे मर गये हों। लेकिन थोडे समय बाद ये सूखे जंगल फिर से गुलज़ार हो जाते हैं; इनमें एक नयी जान व ताज़गी आ जाती है व चारों ओर फिर से हरियाली छा जाती है। यह प्रकृति के लिए एक परिवर्तन का समय होता है; एक नई शुरूआत का समय होता है। ठीक उसी प्रकार चालीसा का समय हर ख्रीस्तीय के लिए एक परिवर्तन का व एक नई शुरूआत का समय होता है। अपने पुराने पापमय स्वभाव को त्याग कर पूर्णरूप से नवीन जीवन धारण करने का समय होता है, चालीसाकाल।
इस पवित्रकाल में माता कलीसिया अपने बच्चों को यह कहते हुए प्रभु के पास पुनः लौट आने का आह्वान करती है - ‘‘पापियों प्रभु के पास लौट आओ’’ (टोबित 13:6)। माता कलीसिया हमें याद दिलाती है कि हम सब एक अत्यंत प्रेमी व दयालु ईश्वर की संतान है। हमारा ‘‘प्रभु, दया और अनुकम्पा से परिपूर्ण है, वह सहनशील और अत्यंत प्रेममय है। वह सदा दोष नहीं देता और चिरकाल तक क्रोध नहीं करता है और न हमारे अपराधों के अनुसार हमें दण्ड़ देता है। आकाश पृथ्वी पर जितना ऊँचा है, उतना महान है अपने भक्तों के प्रति प्रभु का प्रेम। पूर्व पश्चिम से जितना दूर है, प्रभु हमारे पापों को हमसे उतना ही दूर कर देता है’’ (स्त्रोत 103:8)।
संत पिता फ्रांसिस ने दया का असाधारण जयंती वर्ष घोषित करके प्रभ की असीम दया व अनुकम्पा पर मनन चिंतन करने व प्रभु के दयामय स्वभाव को समझने, उसकी दया को हमारे जीवन में गहराई से अनुभव करने का एक सुन्दर अवसर हमें दिया है। प्रभु की इस दिव्य दया का खासतौर पर गहराई से अनुभव करने का समय पवित्र चालीसाकाल के सिवा और क्या हो सकता है। प्रभु ने सारी मानवता के लिए अपनी दया के द्वार खोल दिये हैं। प्रभु की दया उमडते हुए झरने की तरह बह रही है। प्रभु येसु के पवित्रतम् हृदय से बह निकला लहू और जल हर किसी को अपने आगोश में ले लेना चाहता है। जो कोई दया के इस द्वार से प्रवेश करेगा, (योहन 10:9) जो कोई इस झरने से पियेगा (योहन 4:14 ) उसे अपने पापों की क्षमा मिलेगी व उसे अनन्त जीवन प्राप्त होगा। प्रभु हर किसी को अपने पास बुलाते हुए कहते हैं - ‘‘तुम जो प्यासे हो, पानी के पास चल आओ।’’ (इसा 55:1)। करूणामय ईश्वर ‘‘पश्चाताप करने वालों को अपने पास लौटने देता है।’’ (प्रवक्ता 17:20-23) वह हम सब से बस यही कहता है - ‘‘पुत्र क्या तुमने पाप किया है? तो फिर ऐसा मत करो। अपने पुराने पापों के लिए क्षमा माँगो’’ (प्रवक्ता 21:1)।
आज की दुनिया की विडम्बना यह है कि मानव ने अपराध बोध ही खो दिया है। हम प्रभु की दृष्टि में पाप तो करते हैं, लेकिन हमें ये लगता नहीं कि हमने पाप किया हैं। हमने पाप की परिभाषा ही बदल दी है। वचन कहता है ‘‘क्योंकि सबों ने पाप किया और सब ईश्वर की महिमा से वंचित किये गये’’ (रोम. 3:23)। इसलिए जब तक हमें यह एहसास नहीं होगा कि हम पापी हैं, हम प्रभु से दूर ही रहेंगे। उडाऊ पुत्र के दृष्टाँत में छोटे बेटे को जब तक अपनी गलती का एहसास नहीं हुआ तब तक वह अपने प्रेमी पिता से दूर रहा। लेकिन जैसे ही उसने अपनी गलती को कबूला उसने स्वयं को पिता के चरणों में पाया। इसलिए प्रभु हम से कहते हैं ‘‘मैं तुम पर और अप्रसन्न नहीं होऊँगा, क्योंकि मैं दयालु हूँ...मैं सदा तुम पर क्रोध नहीं करूँगा। तुम अपना दोष स्वीकार करो’’ (यिरमियाह. 3:12-13)।
प्रभु सदियों से अपनी प्रजा पर दया करता आया है। उसने इब्राहीम और उनके वंश के प्रति अपनी चिरस्थायी दया को बनाये रखा (लूकस 1:54)। जब प्रभु की चुनी हुई प्रजा मिस्र की दासता में थी तो प्रभु उनके रूदन को सुनते हैं, उनकी पुकार प्रभु के पास पहुँचती है और प्रभु मूसा को अपनी दिव्य दया व मुक्ति का मध्यस्थ बनाकर उसके द्वारा इस्राएल को एक विधान के द्वारा स्वतंत्रता की ओर ले चलते हैं। उन्होंने उन्हें अपनी निजी प्रजा, याजकों का राजवंश तथा पवित्र राष्ट्र बना लिया (निर्गमन 19:5)। एक ऐसा राष्ट्र जो उनकी दृष्टि में मुल्यवान हो (इसायाह 43:4)। अपने एकलौते पुत्र को इस संसार में भेजकर, उनके पवित्र रक्त से प्रेमी ईश्वर ने अपनी दिव्य दया के रहस्य को चरमोत्कर्ष पर पहुँचा दिया। प्रभु येसु मसीह ने हमें पिता की दया, क्षमा व उसके असीम प्रेम का दर्शन कराया। प्रभु येसु के लहू से धुलकर हम वास्तव में पापमुक्त हो जाते हैं और पिता के अतिप्रिय बेटे-बेटियाँ बन जाते हैं।
हर युग में अपनी कलीसिया को अपनी दया व कृपा प्रदान करने का अधिकार प्रभु ने अपने चुने हुए पुरोहितों को दिया है। पवित्र पापस्वीकार व यूखारिस्त, प्रभु की दया व कृपा के अमुल्य साधन हैं। संत पिता फ्रांसिस ने दया के इस जयंती वर्ष में हमें अधिकाधिक रूप से, सच्चे पश्चातापी हृदय से मेल-मिलाप संस्कार ग्रहण करने पर ज़ोर दिया है। हम दुःखभोग के इस पवित्रकाल में प्रभु से व अपने भाई-बहनों से मेल-मिलाप कर लें। जी हाँ! हम सिर्फ पिता ईश्वर की दया प्राप्त करने तक ही सीमित न रहें। प्रभु तो हमें अपनी असीम दयालुता दिखाते ही हैं, वैस ही हम भी अपने पडोसियों, व भाई-बहनों के प्रति दया दिखायें, जैसा कि दया के इस जयंती वर्ष का विषय है - ‘‘अपने स्वर्गीक पिता जैसे दयालु बनो’’ (लूकस 6:36)। और हम ये अच्छी तरह से जानते हैं कि हमारा पडोसी सिर्फ वही नहीं है जो हमारे करीब रहते , लेकिन वे सभी लोग जिनको हमारी मदद की ज़रूरत है। माता कलीसिया हमें दया के शारीरिक व अध्यात्मिक कार्यों को करने पर विषेष ज़ोर देती है। ये सब चीजें केवल पोस्टरों में छपवाने, पाम्पलेट बाँटने व इन सब चीज़ों के लिए केवल प्रार्थना मात्र करने तक ही सीमित नहीं रहना चाहिए। हम दया के इन कार्यों को हमारे जीवन में उतारें। प्रभु येसु ने स्वयं भूखों को खिलाकर, प्यासों को पिलाकर, बीमारों को चंगा कर, दुःखियों को दिलासा देकर, ज़रूरतमंदो की सहायता एवं पापियों को क्षमा कर हम सब के लिए पिता ईश्वर की असीम दया का प्रमाण दिया है। उन्होंने मृत्यु के समय भी अपने सताने वालों को क्षमा करते हुए हमें दिव्य दया का उत्तम उदाहरण दिया है।
चालीसा के इस पवित्र समय में हम उपवास व त्याग तपस्या बहुत करते हैं। परन्तु यदि हम दया के कार्यों को दरकिनार करते हैं तो इस प्रकार का पाखंडभरा उपवास प्रभु को प्रिय नहीं है। प्रभु कहते हैं यदि तुम एक ओर उपवास करते व दूसरे ओर अपने भाई-बहनों के विरूद्ध अत्याचार करते, लडाई-झगडा करते, दूसरों के प्रति ईर्ष्या की भावना रखते व गरीबों का शोषण करते हो तो स्वर्ग में तुम्हारी सुनवाई नहीं होगी (इसायाह 58:4-5)।
प्रभु जो उपवास हमसे चाहतें हैं वह इस प्रकार है- ‘‘अन्याय की बेडियों को तोडना,...पद्दलितों को मुक्त करना...अपनी रोटी भूखों के साथ खाना, बेघर दरिद्रों को अपने यहाँ ठहराना। जो नंगा है कपडे पहनाना, अपने भाई से मुँह नहीं मोडना’’ (इसायाह 58:6-7)। वचन कहता है ऐसा करने पर हमारी ज्योति उषा की तरह फूट निकलेगी।
तो आइये हम दुःखभोग के इस पवित्र समय में स्वयं को प्रभु की असीम दया से भर जाने के लिए समर्पित करें। हम हमारे हृदयों को प्रभु की दया से भरने के लिए खोल दें। हम प्रभु के सामने अपने पापों को कबूल करें; पिता से टूटे हमारे रिष्ते को फिर से जोडें। संत पौलुस हमसे कहते हैं ‘‘प्रभु ने आप लोगों को क्षमा कर दिया, आप लोग भी ऐसा ही करें। इसके अतिरिक्त आपस में प्रेमभाव बनाये रखें। वह सब कुछ एकता में बाँधकर पूर्णता तक पहुँचा देता है’’ (कलो 3:13-14)। जी हाँ, हम एक दूसरे को माफ करें व अपनी प्रेमपूर्ण सेवा व दया के कार्यों द्वारा इस दुनिया में परम पिता ईश्वर की दया के साधन बन जायें तथा इस चालीसे के पुण्य समय में हम पतझड के पेडों के समान अपने जीवन से पाप व बुराईयों की पत्तियों को गिर जाने दें। ताकि हम मसीह के साथ पास्का की नवीनता में एक नये जीवन की शुरूआत कर सकें।
-डीकन प्रीतम वसुनिया (इन्दौर धर्मप्रांत)