वर्ष का सातवाँ सप्ताह – शुक्रवार – वर्ष 2

पहला पाठ

सन्त याकूब का पत्र 5:9-12

“देखिए, न्यायकर्ता द्वार पर खड़े हैं।”

भाइयों ! एक दूसरे की शिकायत नहीं कीजिए, जिससे आप पर दोष न लगाया जाये। देखिए, न्यायकर्तता द्वार पर खड़े हैं। भाइयो ! जो नबी प्रभु के नाम पर बोले हैं, उन्हें साहिष्णुता तथा धैर्य का अपना आदर्श समझ लीजिए । हम उन्हें धन्य समझते हैं, जो दृढ़ बने रहे। आप लोगों ने योब की धीरज के विषय में सुना है और आप जानते हैं कि प्रभु ने अंत में उसके साथ कैसा व्यवहार किया, क्योंकि प्रभु दया और अनुकम्पा से परिपूर्ण है। मेरे भाइयो ! सब से बड़ी बात यह है कि आप शपथ नहीं खायें - न तो स्वर्ग की, न पृथ्वी की और न किसी अन्य वस्तु की। आपकी बात इतनी हो - हाँ की हाँ, नहीं की नहीं। कहीं ऐसा न हो कि आप दण्ड के योग्य हो जायें।

प्रभु की वाणी।

भजन : स्तोत्र 102:1-4,8-9,11-12

अनुवाक्य : प्रभु दया और अनुकम्पा से परिपूर्ण है।

मेरी आत्मा प्रभु को धन्य कहे, मेरा सर्वस्व उसके पवित्र नाम कीं स्तुति करे। मेरी आत्मा प्रभु को धन्य कहे और उसके वरदानों को कभी नहीं भुलाये।

2. वह मेरे सभी अपराध क्षमा करता और सारी कमजोरी दूर करता है। वह मुझे सर्वनाश से बचाता और प्रेम तथा अनुकम्पा से सँभालता है।

3. प्रभु दया तथा अनुकम्पा से परिपूर्ण है, वह सहनशील है और अत्यन्त प्रेममय। उसका क्रोध समाप्त हो जाता और सदा के लिए नहीं बना रहता है।

4. आकाश पृथ्वी के ऊपर जितना ऊँचा है, उतना महान्‌ है अपने भक्तों के प्रति प्रभु का प्रेम। पूर्व पश्चिम से जितना दूर है, प्रभु हमारे पापों को हम से उतना दूर कर देता है।

जयघोष

अल्लेलूया ! हे प्रभु ! तेरी ही शिक्षा सत्य है। तू सत्य की सेवा में हमें समर्पित कर। अल्लेलूया !

सुसमाचार

सन्त मारकुस के अनुसार पवित्र सुसमाचार

“ईश्वर ने जिसे जोड़ा है, उसे मनुष्य अलग नहीं करे।”

गलीलिया से विदा हो कर येसु यहूदिया और यर्दन के पास के प्रदेश पहुँचे। एक विशाल जनसमूह फिर उनके पास एकत्र हो गया और वह अपनी आदत के अनुसार लोगों को शिक्षा देने लगे। फरीसी येसु के पास आये और उनकी परीक्षा लेते हुए उन्होंने यह प्रश्न किया, “क्या अपनी पत्नी को त्याग देना पुरुष के लिए उचित है?” येसु ने उन्हें उत्तर दिया, “मूसा ने तुम्हें क्या आदेश दिया है?” उन्होंने कहा, “मूसा ने तो त्यागपत्र लिख कर पत्नी को त्यागने की अनुमति दी है।” येसु ने उन से कहा, “उन्होंने तुम्हारे हदय की कठोरता के कारण ही यह आदेश लिखा है। किन्तु सृष्टि के प्रारम्भ ही से ईश्वर ने उन्हें नर-नारी बनाया; इस कारण पुरुष अपने माता-पिता को छोड़ेगा और दोनों एक शरीर हो जायेंगे। इस तरह अब वे दो नहीं, बल्कि एक शरीर हैं। इसलिए जिसे इंश्वर ने जोड़ा है, उसे मनुष्य अलग नहीं करे।” शिष्यों ने, घर पहुँच कर, इस संबंध में येसु से फिर प्रश्न किया और उन्होंने यह उत्तर दिया, “जो अपनी पत्नी को त्याग देता और किसी दूसरी स्त्री से विवाह करता हैं, वह पहली के विरुद्ध व्यभिचार करता है और यदि पत्नी अपने पति को त्याग देती और किसी दूसरे पुरुष से विवाह करती है, तो वह व्यभिचार करती है।”

प्रभु का सुसमाचार।