वर्ष का सातवाँ सप्ताह – बुधवार – वर्ष 2

पहला पाठ

सन्त याकूब का पत्र 4:13-17

“तुम्हारा जीवन एक कुहरा मात्र है। तुम लोगों को यह कहना चाहिए - यदि ईश्वर की इच्छा होगी, तो।”

तुम लोग जो यह कहते हो, “हम आज या कल अमुक नगर जायेंगे, एक वर्ष तक वहाँ रह कर व्यापार करेंगे ओर धन कमायेंगे”, मेरी बात सुनो। तुम नहीं जानते कि कल तुम्हारा क्या हाल होगा। तुम्हारा जीवन एक कुहरा मात्र है - वह एक क्षण दिखाई दे कर लुप्त हो जाता है। तुम लोगों को यह कहना चाहिए, “यदि ईश्वर की इच्छा होगी, तो हम जीवित रहेंगे और यह अथवा वह काम करेंगे।” किन्तु तुम अपनी धृष्टता पर घमण्ड करते हो - इस प्रकार का घमण्ड बुरा है। जो मनुष्य यह जानता है कि उसे क्या करना चाहिए, किन्तु करता नहीं उसे याप लगता है।

प्रभु की वाणी।

भजन : स्तोत्र 48:2-3,6-11

अनुवाक्य : धन्य हैं वे, जो अपने को दीन-हीन समझते हैं - स्वर्गराज्य उन्हीं का है।

1. सभी राज्य मेरी बात सुनें। क्या बड़े, क्या छोटे, क्या धनी, क्या दरिद्र, पृथ्वी के सभी निवासी ध्यान दें।

2. मैं संकट के समय चिन्ता क्यों करूँ? मैं अपने शत्रुओं से क्यों डरूँ? वे तो अपने धन पर भरोसा रखते और अपने वैभव पर गर्व करते हैं।

3. किन्तु कोई भी अपने को छुड़ा नहीं सकता अथवा अपने जीवन का दाम ईश्वर को नहीं चुका सकता है। कोई भी अपने प्राणों का मूल्य दे नहीं सकता अथवा पृथ्वी पर चिरस्थायी जीवन नहीं खरीद सकता है। कोई भी मृत्यु से नहीं बच सकता है।

4. बुद्धिमान और नासमझ, दोनों ही समान रूप से मर कर अपनी सम्पत्ति दूसरों के लिए छोड़ जाते।

जयघोष : योहन 14:6

अल्लेलूया ! प्रभु कहते हैं, “मार्ग, सत्य और जीवन मैं हूँ। मुझ से हो कर गये बिना कोई पिता के पास नहीं आ सकता।” अल्लेलूया !

सुसमाचार

सन्त मारकुस के अनुसार पवित्र सुसमाचार

“जो हमारे विरुद्ध नहीं है, वह हमारे साथ ही है।”

योहन ने येसु से यह कहा, “गुरुवर ! हमने किसी को आपका नाम ले कर अपदूतों को निकालते देखा और हमने उसे रोकने की चेष्टा की, क्योंकि वह हमारे साथ नहीं चलता।” परन्तु येसु ने उत्तर दिया, “उसे मत रोको, क्योंकि कोई ऐसा नहीं, जो मेरा नाम ले कर चमत्कार दिखाये और बाद में मेरी निंदा करे। जो हमारे विरुद्ध नहीं है, वह हमारे साथ ही है।”

प्रभु का सुसमाचार।