जो आप लोगों में ज्ञानी और समझदार होने का दावा करता है, वह अपने सदाचरण द्वारा, अपने नम्र तथा बुद्धिमान् व्यवहार द्वारा इस बात का प्रमाण दे। यदि आपका हदय कर, ईर्ष्या और स्वार्थ से भरा हुआ है तो डींग मार कर झूठा दावा मत करें। इस प्रकार की बुद्धि ऊपर से नहीं आती, बल्कि वह पार्थिव, पाशविक और शैतानी है। जहाँ ईर्ष्या और स्वार्थ है, वहाँ अशांति और हर तरह की बुराई भी पायी जाती है। किन्तु ऊपर से आयी हुई प्रज्ञा सब से पहले निर्दोष है, और वह शांति-प्रिय, सहनशील, विनम्र, करुणामय, परोपकारी, पक्षपातहीन और निष्कपट भी है। धार्मिकता शांति के क्षेत्र में बोयी जाती है और शांति स्थापित करने वाले उसका फल प्राप्त करते हैं।
प्रभु की वाणी।
अनुवाक्य : प्रभु के उपदेश सीधे-साधे हैं; वे हदय को आनन्दित कर देते हैं।
1. प्रभु का नियम सर्वोत्तम है; वह आत्मा में नवजीवन कां संचार करता है। प्रभु की शिक्षा विश्वसनीय है; वह आज्ञानियों को समझदार बना देती है।
2. प्रभु के उपदेश सीधे-साधे हैं; वे हदय को आनन्दित कर देते हैं। प्रभु की आज्ञाएँ स्पष्ट हैं; वे आँखों को ज्योति प्रदान करती हैं।
3. प्रभु की वाणी परिशुद्ध है; वह अनन्तकाल तक बनी रहती है। प्रभु के निर्णय सच्चे हैं; वे सब के सब न्यायसंगत हैं।
4. हे प्रभु! तू मेरा सहारा और मुक्तिदाता है। मेरे मुख से जो शब्द निकलते हैं और मेरे मन में जो विचार उठते हैं, वे सब के सब तुझे अच्छे लगें।
अल्लेलूया ! हमारे मुक्तिदाता और मसीह ने मृत्यु का विनाश किया और अपने सुसमाचार द्वारा अमर जीवन को आलोकित किया। अल्लेलूया !
जब येसु पहाड़ से उतर कर शिष्यों के पास लौटे, तो उन्होंने देखा कि बहुत-से लोग उनके चारों ओर इकट्ठे हो गये हैं और कुछ शास्त्री उन से विवाद कर रहे हैं। येसु को देखते ही लोग अचम्भे में पड़ गये और दौड़ते हुए आ कर उन्हें प्रणाम करने लगे। येसु ने उन से पूछा, “तुम लोग इनके साथ क्या विवाद कर रहे हो? ” भीड़ में से एक ने उत्तर दिया, “गुरुवर ! मैं अपने बेटे को, जो एक गूँगे अपदूत के वश में है, आपके पास ले आया हूँ। वह जहाँ कहीं उसे लगता है, उसे वहीं पटक देता है और लड़का फेन उगलता है, दाँत पीसता है और उसके अंग अकड़ जाते हैं। मैंने आपके शिष्यों से उसे निकालने का निवेदन किया, परन्तु वे ऐसा नहीं कर सके।” येसु ने उत्तर दिया, “रे अविश्वासी पीढ़ी ! मैं कब तक तुम्हारे साथ रहूँ? कब तक तुम्हें सहता रहूँ? उस लड़के को मेरे पास ले आओ।” वे उसे येसु के पास ले आये। येसु को देखते ही अपदूत ने लड़के को मरोड़ दिया। लड़का गिर गया और फेन उगलता हुआ भूमि पर लोटने लगा। येसु ने उसके पिता से पूछा, “इसे कब से ऐसा हो जाया करता है? ” उसने उत्तर दिया, “बचपन से ही। अपदूत ने इसका विनाश करने के लिए इसे बार-बार आग अथवा पानी में डाल दिया है। यदि आप कुछ कर सकें तो हम पर तरस खा कर हमारी सहायता कीजिए।” येसु ने उस से कहा, “यदि आप कुछ कर सकें ! विश्वास करने वाले के लिए सब कुछ संभव है।” इस पर लड़के के पिता ने पुकार कर कहा, “मैं विश्वास करता हूँ, मेरे अल्पविश्वास की कमी पूरी कीजिए।” येसु ने देखा कि भीड़ बढ़ती जा रही है, इसलिए उन्होंने अशुद्ध आत्मा को यह कह कर डाँटा, “बहरे-गूँगे आत्मा ! मैं तुझे आदेश देता हूँ - इस से निकल जा और इस में फिर कभी नहीं घुसना।” अपदूत चिल्ला कर और लड़के को मरोड़ कर उस से निकल गया। लड़का मुरदा-सा पड़ा रहा और बहुत-से लोग कहने लगे, “यह मर गया है।” परन्तु येसु ने उसका हाथ पकड़ कर उसे उठाया और वह खड़ा हो गया। जब येसु घर पहुँचे, तो उनके शिष्यों ने एकांत में उन से पूछा, “हम लोग उसे क्यों नहीं निकाल सके?” उन्होंने उत्तर दिया, “प्रार्थना (और उपवास) के सिवा और किसी उपाय से वह जाति नहीं निकाली जा सकती।”
प्रभु का सुसमाचार।