सामान्य काल का छठा सप्ताह, सोमवार– वर्ष 1

पहला पाठ

सन्त याकूब का पत्र 1:1-11

“आपके विश्वास का परीक्षण धैर्य उत्पन्न करता है, जिससे आप पूर्ण तथा अनिन्द्य बन जायें।”

यह पत्र ईश्वर और प्रभु येसु मसीह के सेवक याकूब की ओर से है। संसार भर में बिखरे हुए बारह वंशों को नमस्कार ! भाइयो ! जब आप लोगों को अनेक प्रकार की विपत्तियों का सामना करना पड़ता है, तो अपने को धन्य समझिए। आप जानते हैं कि आपके विश्वास का इस प्रकार का परीक्षण धैर्य उत्पन्न करता है। धैर्य को पूर्णता तक पहुँचने दीजिए, जिससे आप लोग स्वयं पूर्ण तथा अनिन्द्य बन जायें और आप में किसी बात की कमी न हो। यदि आप लोगों में से किसी में प्रज्ञा का अभाव हो, तो वह ईश्वर से प्रार्थना करे और उसे प्रज्ञा मिलेगी, क्योंकि ईश्वर खुले हाथ और खुशी से सबों को देता है। किन्तु उसे विश्वास के साथ और संदेह किये बिना प्रार्थना करनी चाहिए; क्योंकि जो संदेह करता है, वह समुद्र की लहरों के सदृश है, जो हवा से इधर-उधर उछाली जाती हैं। ऐसा व्यक्ति यह न समझे कि उसे ईश्वर की ओर से कुछ मिलेगा; क्योंकि उसका मन अस्थिर है और उसका सारा आचरण अनिश्चित। जो भाई दरिद्र है, वह ईश्वर द्वारा प्रदत्त अपनी श्रेष्ठता पर गौरव करे। जो धनी है, वह अपनी हीनता पर गौरव करे, क्योंकि वह घास के फूल की तरह नष्ट हो जायेगा। जब सूर्य उगता है और लू चलने लगती है, तो घास मुर्झाती, फूल झड़ता है और उसका मनोहर सौन्दर्य नष्ट हो जाता है। उसी तरह धनी और उसका पूरा कारबार समाप्त हो जायेगा।

प्रभु की वाणी।

भजन : स्तोत्र 118:67,68,71,72,75,76

अनुवाक्य : हे प्रभु ! मुझे तेरा प्रेम मिल जाये, और मैं जीवित रहूँगा।

1. मैं कष्ट पाने से पहले ही भटक गया था, अब मैं तेरी आज्ञाओं का पालन करता हूँ।

2. तू भला है, हितकारी है, मुझे अपनी संहिता की शिक्षा देने की कृपा कर।

3. यह अच्छा हुआ कि मैंने कष्ट पाया - मैंने तेरी आज्ञाओं का पालन करना सीखा।

4. संसार की सोना-चाँदी की अपेक्षा मुझे तेरी संहिता कहीं अधिक वांछनीय है।

5. हे प्रभु! मैं जानता हूँ कि तेरा विधान न्यायपूर्ण है, यह उचित ही था कि मैं कष्ट पाऊँ।

6. तेरा प्रेम मुझे सान्त्वना देता रहे, जैसा कि तूने अपने सेवक से प्रतिज्ञा की है।

जयघोष : योहन 14:6

अल्लेलूया ! प्रभु कहते हैं, “मार्ग, सत्य और जीवन मैं हूँ। मुझ से हो कर गये बिना कोई भी पिता के पास नहीं आ सकता।” अल्लेलूया !

सुसमाचार

मारकुस के अनुसार पवित्र सुसमाचार

“यह पीढ़ी चिह्न क्यों माँगती है?''

फ़रीसी आ कर येसु से विवाद करने लगे। उनकी परीक्षा लेने के लिए वे स्वर्ग की ओर का कोई चिह्न माँगते थे। येसु ने गहरी आह भर कर कहा, “यह पीढ़ी चिह्न क्यों माँगती है? मैं तुम लोगों से कहे देता हूँ - इस पीढ़ी को कोई चिह्न नहीं दिया जायेगा।” इस पर येसु उन्हें छोड़ कर नाव पर चढ़े और उस पार चले गये।

प्रभु का सुसमाचार।