सामान्य काल का पाँचवाँ सप्ताह, मंगलवार – वर्ष 2

पहला पाठ

राजाओं का पहला ग्रन्थ 8:22-23,27-30

“तेरा नाम यहाँ विद्यमान रहेगा और तू अपनी प्रजा इस्त्राएल का निवेदन स्वीकार करेगा।”

सुलेमान इस्राएल के समस्त समुदाय के सम्मुख ईश्वर की वेदी के सामने खड़ा हो गया और आकाश की ओर हाथ उठा कर बोला, “प्रभु ! इस्राएल के ईश्वर ! न तो ऊपर स्वर्ग में और न नीचे पृथ्वी पर तेरे सदृश कोई ईश्वर है। तू विधान बनाये रखता और अपने सेवकों पर दयादृष्टि करता है, जो निष्कपट हृदय से तेरे मार्ग पर चलते हैं। क्या यह सम्भव है कि ईश्वर सचमुच पृथ्वी पर मनुष्यों के साथ निवास करे? आकाश और समस्त ब्रह्माण्ड में भी तू नहीं समा सकता, तो इस मंदिर की क्या, जिसे मैंने तेरे लिए बनवाया है ! हे प्रभु, मेरे ईश्वर ! अपने सेवक की प्रार्थना तथा अनुनय पर ध्यान दे। आज अपने सेवक की पुकार तथा विनती सुनने की कृपा कर। तेरी कृपादृष्टि रात-दिन इस मंदिर पर बनी रहे - इस स्थान पर, जिसके विषय में तूने कहा, मेरा नाम यहाँ विद्यमान रहेगा। तेरा सेवक यहाँ जो प्रार्थना करेगा, उसे सुनने की कृपा कर। जब इस स्थान पर तेरा सेवक और इस्राएल की समस्त प्रजा प्रार्थना करेगी, तो उनका निवेदन स्वीकार करने की कृपा कर। तू अपने स्वर्गीय निवासस्थान से उसकी प्रार्थना सुन और उन्हें क्षमा प्रदान कर।”

प्रभु की वाणी।

भजन : स्तोत्र 83:3-5,10-11

अनुवाक्य : है विश्वमंडल के प्रभु ! तेरा मंदिर कितना रमणीय है !

1. प्रभु का प्रांगण देखने के लिए मेरी आत्मा तरसती रहती है। मैं उललसित हो कर तन-मन से जीवन्त ईश्वर का स्तुतिगान करता हूँ।

2. गोरेया को बसेरा मिल जाता है और अबाबील को अपने बच्चों के लिए घोंसला। हे विश्वमंडल के प्रभु ! मेरे राजा मेरे ईश्वर ! मुझे तेरी वेदियाँ प्रिय हैं।

3. तेरे मंदिर में रहने वाले धन्य हैं ! वे निरन्तर तेरा स्तुतिगान करते हैं। हे ईश्वर ! हमारे रक्षक ! हमारी सुधि ले और अपने अभिषिक्त पर दयादृष्टि कर।

4. हजार दिनों तक और कहीं रहने की अपेक्षा, एक दिन भी तेरे प्रांगण में बिताना अच्छा है। दुष्टों के शिविरों में रहने की अपेक्षा ईश्वर के मंदिर की सीढ़ियों पर खड़ा होना अच्छा हे।

जयघोष : स्तोत्र 118:36,29

अल्लेलूया ! हे ईश्वर ! मेरे हृदय में अपने नियमों का प्रेम रोपने और मुझे अपनी आज्ञाएँ सिखाने की कृपा कर। अल्लेलूया !

सुसमाचार

मारकुस के अनुसार पवित्र सुसमाचार 7:1-13

“तुम लोग अपनी परम्परा बनाये रखने के लिए ईश्वर का-वचन रद्द करते हो।”

'फरीसी और येरुसालेम से आये हुए कई शास्त्री येसु के पास इकट्ठे हो गये। वे यह देख रहे थे कि उनके शिष्य अशुद्ध याने बिना धोये हुए हाथों से रोटी खा रहे हैं। पुरखों की परम्परा के अनुसार फ़रीसी और सभी यहूदी बिना हाथ धोये भोजन नहीं करते। बाजार से लौट कर वे अपने ऊपर पानी छिड़के बिना भोजन नहीं करते और अन्य बहुत-से परम्परागत रिवाजों का पालन करते हैं - जैसे प्यालों, सुराहियों और काँसे के बरतनों का शुद्धीकरण। इसलिए फ़रीसियों और शास्त्रियों ने येसु से पूछा, “आपके शिष्य पुरखों की परम्परा के अनुसार क्यों नहीं चलते? वे क्यों अशुद्ध हाथों से रोटी खाते हैं?” येसु ने उत्तर दिया, “इसायस ने तुम ढोंगियों के विषय में ठीक ही भविष्यवाणी की है। जैसा कि लिखा है - ये लोग मुख से मेरा आदर करते हैं, परन्तु इनका हृदय मुझ से दूर है। ये व्यर्थ ही मेरी पूजा करते हैं; और जो शिक्षा ये देते हैं, वह है मनुष्य के बनाये हुए नियम मात्र। तुम लोग मनुष्य की चलायी हुई परम्परा बनाये रखने के लिए ईश्वर की आज्ञा टाल देते हो।” येसु ने उन से कहा, “तुम लोग अपनी ही परम्परा का पालन करने के लिए ईश्वर की आज्ञा रद्द करते हो; क्योंकि मूसा ने कहा, “अपने पितां और अपनी माता का आदर करो; और जो अपने पिता और अपनी माता को शाप दे, उसे प्राणदंड दिया जाये। ' परन्तु तुम लोग यह मानते हो कि यदि कोई अपने पिता अथवा अपनी माता से कहे - आप को मुझ से जो लाभ हो सकता था, वह कुरबान (अर्थात्‌ ईश्वर को अर्पित) है, तो उस समय से वह अपने पिता अथवा अपनी माता के लिए कुछ नहीं कर सकता है। इस तरह तुम लोग अपनी परम्परा के नाम पर, जिसे तुम बनाये रखते हो, ईश्वर का वचन रद्द करते हो और इस प्रकार के और भी बहुत-से काम करते रहते हो।”

प्रभु का सुसमाचार।