जिस प्रकार प्रायश्चित के बलिदान में चरबी अलग की जाती है, उसी प्रकार दाऊद को इस्राएलियों में से चुना गया था। वह सिंहों के साथ खेलता था, मानो वे बकरी के बच्चे हों, और भालुओं के साथ खेलता था, मानो वे छोटे मेमने हों। उसने अपनी जवानी में भीमकाय योद्धा को मारा और अपने राष्ट्र का कलंक दूर किया। उसने हाथ से ढेलवाँस का पत्थर मारा और गोलयत का घमण्ड चूर-चूर कर दिया। क्योंकि उसने सर्वोच्च प्रभु से प्रार्थना की और उसने उसके दाहिने हाथ को शक्ति प्रदान की, जिससे वह बलवान योद्धा को पछाड़ कर अपनी प्रजा को शक्तिशाली बना सके। इसलिए लोगों ने उसे “दस हजार का विजेता' घोषित किया, ईश्वर के आशीर्वाद के कारण उसकी स्तुति की और उसे महिमा का मुकुट पहना दिया। क्योंकि उसने चारों ओर के शत्रुओं को परास्त किया और अपने फिलिस्तीनी विरोधियों का सर्वनाश किया। उसने सदा के लिए उनकी शक्ति समाप्त कर दी। वह अपने सब कार्यों में धन्यवाद देते हुए परमपावन सर्वोच्च ईश्वर की स्तुति करता रहा। वह अपने सृष्टिकर्त्त के प्रति अपना प्रेम प्रकट करने के लिए सारे हृदय से गीत गाया करता था। उसने गायकों को नियुक्त किया, जिससे वे वेदी के सामने खड़े हो कर मधुर गान सुनायें। उसने पर्वो के भव्य समारोह का प्रबन्ध किया और सदा के लिए पर्वचक्र निर्धारित किया, जिससे प्रभु का मंदिर प्रातःकाल से ही उसके पवित्र नाम की स्तुति से गूँज उठे। प्रभु ने उसके पाप क्षमा किये और सदा के लिए उसे शक्तिशाली बना दिया। उसने उसे राज्याधिकार तथा इस्राएल का महिमामय सिंहासन प्रदान किया।
प्रभु की वाणी।
अनुवाक्य : मेरे मुक्तिदाता प्रभु की स्तुति हो।
1. प्रभु का मार्ग निर्दोष है। उसकी प्रतिज्ञा परिष्कृत स्वर्ण के सदृश है। वह उन सबों की रक्षा करता है, जो उसकी शरण में जाते हैं।
2. प्रभु की जय! धन्य हे मेरी चट्टान ! मेरे मुक्तिदाता ईश्वर की स्तुति हो। हे प्रभु ! मैं राष्ट्रों के बीच तेरी स्तुति करूँगा, मैं तेरे प्रेम की महिमा का गीत गाऊँगा।
3. जिसका तूने राज्याभिषेक किया है, उसे तू सँभालता और विजय दिलाता है। दाऊद और उसके उत्तराधिकारियों के लिए तेरा प्रेम सदा बना रहता है।
अल्लेलूया ! धन्य हैं वे, जो सच्चे और निष्कपट हृदय से ईश्वर का वचन सुरक्षित रखते हैं और अपने धीरज के कारण फल लाते हैं। अल्लेलूया !
हेरोद ने येसु की चरचा सुनी, क्योंकि उनका नाम प्रसिद्ध हो गया था। लोग कहते थे - योहन बपतिस्ता मृतकों में से जी उठा है, इसलिए वह ये महान् चमत्कार दिखा रहा है। कुछ लोग कहते थे यह एलियस है। कुछ लोग कहते थे - यह पुराने नबियों की तरह कोई नबी है। हेरोद ने यह सब सुन कर कहा, “यह योहन ही है, जिसका सिर मैंने कटवाया और जो जी उठा है।” हेरोद ने अपने भाई फिलिप की पत्ली हेरोदियस के कारण योहन को गिरफ्तार किया और बन्दीगृह में बाँध रखा था; क्योंकि हेरोद ने हेरोदियस से विवाह किया था और योहन ने हेरोद से कहा था, “अपने भाई की पत्नी को रखना आपके लिए उचित नहीं है।” इसी से हेरोदियस योहन से बैर रखती थी और उसे मार डालना चाहती थी; किन्तु वह ऐसा नहीं कर पाती थी, क्योंकि हेरोद योहन को धर्मात्मा और सन्त जान कर उस पर श्रद्धा रखता और उसकी रक्षा करता था। हेरोद उसके उपदेश सुन कर बड़े असमंजस में पड़ जाता था। फिर भी, वह उसकी बातें सुनना पसंद करता था। हेराद् के जन्म-दिवस पर हेरोदियस को एक सुअवसर मिला। उस उत्सव के उपलक्ष्य में हेरोद ने अपने दरबारियों, सेनापतियों और गलीलिया के रइसों को भोज दिया। उस अवसर पर हेरोदियस की बेटी ने अंदर आ कर नृत्य किया और हेरोद तथा उसके अतिथियों को मुग्ध कर लिया। राजा ने लड़की से कहा, “जो भी चाहो, मुझ से माँगो। मैं तुम्हें दे दूँगा”, और उसने शपथ खा कर कहा, “जो भी माँगो, चाहे मेरा आधा राज्य ही क्यों न हो, मैं तुम्हें दे दूँगा।” लड़की ने बाहर जा कर अपनी माँ से पूछा, “मैं क्या माँगूँ"? उसने कहा, “योहन बपतिस्ता का सिर।” वह तुरन्त राजा के पास दौड़ती हुई आयी और बोली, “मैं चाहती हूँ कि आप मुझे इसी समय थाली में योहन बपतिस्ता का सिर दे दें।” राजा को धक्का लगा, परन्तु अपनी शपथ और अतिथियों के कारण वह उसकी माँग अस्वीकार करना नहीं चाहता था। राजा ने तुरन्त जल्लाद को भेज कर योहन का सिर ले आने का आदेश दिया। जल्लाद ने जा कर बन्दीगृह में उसका सिर काट डाला और उसे थाली में ला कर लड़की को दिया और लड़की ने उसे अपनी माँ को दे दिया। जब योहन के शिष्यों को इसका पता चला, तो वे आ कर उसका शव ले गये और उन्होंने उसे कब्र में रख दिया।
प्रभु का सुसमाचार।