राजा दाऊद ने अपने सेनाध्यक्ष योआब से यह कहा, “तुम दान से बएर-शेबा तक सब इस्नाएली वंशों में घूमघूम कर जनगणना करो। मैं लोगों की संख्या जानना चाहता हूँ।” योआब ने राजा को जनगणना का परिणाम बताया : इस्राएल में तलवार चलाने योग्य आठ लाख योद्धा थे और यूदा में पाँच लाख। जनगणना के बाद दाऊद को पश्चात्ताप हुआ और उसने प्रभु से कहा, “मैंने जगगणना करा कर घोर पाप किया है। हे प्रभु! अपने सेवक का पाप क्षमा कर। मैंने बड़ी मूर्खता का काम किया है।” जब दाऊद दूसरे दिन प्रातः उठा, तो दाऊद के द्रष्टा, नबी गाद को प्रभु की वाणी यह कहते हुए सुनाई पड़ी, “दाऊद के पास जा कर कहो : प्रभु यह कहता है - मैं तीन बात तुम्हारे सामने रख रहा हूँ। उन में एक को चुन लो। मैं उसी के द्वारा तुम को दण्डित करूँगा।” गाद ने दाऊद के पास आ कर यह सूचना दी और पूछा, “क्या तुम चाहते हो - तुम्हारे राज्य में सात वर्ष तक अकाल पड़े? अथवा तुम तीन महीनों तक पीछा करते हुए शत्रु के सामने भागते रहो अथवा तुम्हारे देश में तीन दिनों तक महामारी का प्रकोप बना रहे? अच्छी तरह विचार कर बताओ कि में उस को, जिसने मुझे भेजा है, क्या उत्तर दूँ।” दाऊद ने गाद से कहा, “मैं बड़ी असमंजस में हूँ। हम प्रभु के हाथों पड़ जायें - क्योंकि उसकी दया बड़ी है - किन्तु मैं मनुष्यों के हाथों न पडूँ।” इसलिए प्रभु ने सबेरे से निर्धारित समय तक इस्राएल में महामारी भेजी और दान से बएर-शेबा तक सत्तर हजार लोग मर गये। जब प्रभु के दूत ने येरुसालेम का विनाश करने के लिए अपना हाथ उठाया, तो प्रभु को विपत्ति देख कर दुःख हुआ और उसने लोगों का संहार करने वाले दूत से कहा, “बहुत हुआ। अब अपना हाथ रोक लो।” प्रभु का दूत यबूसी ओरनान के खलिहान के पास खड़ा था। जब दाऊद ने लोगों का संहार करने वाले दूत को देखा, तो उसने प्रभु से यह कहा, “मैंने ही पाप किया है, मैंने ही अपराध किया है। इन भेड़ों ने क्या किया है? तेरा हाथ मुझे और मेरे परिवार को दण्डित करे।”
प्रभु की वाणी।
अनुवाक्य : हे प्रभु ! मेरा पाप क्षमा कर।
1. धन्य है वह, जिसका अपराध क्षमा हुआ है, जिसका पाप मिट गया है। धन्य है वह, जिसे ईश्वर दोषी नहीं मानता, और जिसका मन निष्कपट है।2. मैंने अपना अपराध स्वीकार किया, मैंने अपना दोष नहीं छिपाया। मैंने कहा, “मैं प्रभु के सामने अपना अपराध स्वीकार करूँगा।” तब तूने मेरा दोष मिटा दिया, तूने मेरा पाप क्षमा किया।
3. इसलिए संकट के समय हर एक भक्त तेरी दुहाई दे। बाढ़ कितनी ऊँची क्योंै न उठ जाये, किन्तु जलधारा उसे नहीं छू पायेगी।
4. हे प्रभु! तू मेरा आश्रय है, तू मुझे संकट से बचाता और मुझे मुक्ति के गीत गाने देता है।
अल्लेलूया ! प्रभु कहते हैं, “मेरी भेड़ें मेरी आवाज पहचानती हैं। मैं उन्हें जानता हूँ और वे मेरा अनुसरण करती हैं।” अल्लेलूया !
वहाँ से विदा हो कर येसु अपने शिष्यों के साथ अपना नगर आये। जब विश्राम-दिवस आया, तो वह सभागृह में शिक्षा देने लगे। बहुत-से लोग सुन रहे थे और अचम्भे में पड़ कर कहते थे, “यह सब इसे कहाँ से मिला? यह कौन-सा ज्ञान है, जो इसे दिया गया है? जो महान् चमत्कार यह दिखाता है, वे क्या हैं? क्या यह वही बढ़ई नहीं है - मरियम का बेटा, याकूब, योसेफ, यूदस और सिमोन का भाई? क्या इसकी बहनें हमारे ही बीच नहीं रहतीं?” और बे येसु में विश्वास नहीं कर सके। येसु ने उन से कहा, “अपने नगर, अपने कुटुम्ब और अपने घर में नबी का आदर नहीं होता।” वह वहाँ कोई चमत्कार नहीं कर सके। उन्होंने केवल थोड़े-से रोगियों पर हाथ रख कर उन्हें अच्छा किया। उन लोगों के अविश्वास पर येसु को बड़ा आश्चर्य हुआ। येसु शिक्षा देते हुए गाँव-गाँव घूमते थे।
प्रभु का सुसमाचार।