सामान्य काल का तीसरा सप्ताह, शुक्रवार - वर्ष 2

पहला पाठ

समूएल का दूसरा ग्रन्थ 11:1-10,13-17

“तुमने मेरा तिरस्कार किया और ऊरिया की पत्नी को अपनी पत्नी बना लिया।”

वसन्त के समय, जब राजा लोग युद्ध के लिए प्रस्थान किया करते हैं, दाऊद ने अपने अंगरक्षकों और समस्त इस्राएली सेना के साथ योआब को भेजा। उन्होंने अम्मोनियों को तलवार के घाट उतारा और रब्बा नामक नगर को घेर लिया। दाऊद येरुसालेम में रह गया। दाऊद सन्ध्या समय अपनी शय्या से उठ कर महल की छत पर टहल ही रहा था कि उसने छत पर से एक स्त्री को स्नान करते देखा। वह स्त्री अत्यन्त रूपवती थी। दाऊद ने उस स्त्री के विषय में पूछताछ की और लोगों ने उस से कहा, “यह तो एलीआम की पुत्री और हित्ती ऊरीया की पत्नी बतशेबा है।” तब दाऊद ने उस स्त्री को ले आने के लिए दूतों को भेजा। वह उसके पास आयी और दाऊद ने उसके साथ रमण किया। इसके बाद वह अपने घर लौट गयी। उस स्त्री को गर्भ रह गया और उसने दाऊद को कहला भेजा कि “मैं गर्भवती हूँ”। तब दाऊद ने योआब को यह आदेश दिया, “हिती ऊरीया को मेरे पास भेज दो”। योआब ने ऊरीया को दाऊद के पास भेजा। जब ऊरीया उसके पास आया, तो दाऊद ने उस से योआब, सेना और युद्ध का समाचार पूछा। उसके बाद उसने ऊरीया से कहा, “अपने घर जा कर स्नान करो।” ऊरीया महल से चला गया और राजा ने उनके पास अपनी मेज का भोजन भेज दिया। किन्तु ऊरीया ने अपने स्वामी के सेवकों के पास महल के द्वार-मण्डप में रात बितायी और वह अपने घर नहीं गया। लोगों ने दाऊद से कहा कि ऊरीया अपने घर नहीं गया। तब दाऊद ने उसे अपने साथ खाने और पीने का निमंत्रण दिया और इतना पिलाया कि वह मतवाला हो गया। किन्तु ऊरीया फिर अपने प्रभु के सेवकों के पास अपने पलंग पर सोया और वह अपने घर नहीं गया। दूसरे दिन प्रात: दाऊद ने योआब के नाम पत्र लिख कर ऊरीया के हाथ भेजा। उसने पत्र में यह लिखा, “जहाँ घमासान युद्ध हो रहा है, वहीं ऊरीया को सब से आगे रखना और तब उसके पीछे से हट जाना, जिससे वह मारा जाये और खेत रहे।” इसलिए योआब ने नगर के घेराव में ऊरीया को एक ऐसे स्थान पर रखा, जिसके विषय में वह जानता था कि वहाँ शूरवीर योद्धा तैनात थे। नगर के निवासी योआब पर आक्रमण करने निकले। सेना और दाऊद के अंगरक्षकों में से कुछ लोग मारे गये और हिती ऊरीया भी मर गया।

प्रभु की वाणी।

भजन : स्तोत्र 50:3-7,10-11

अनुवाक्य : हे प्रभु! हम पर दया कर क्योंकि हमने पाप किया है।

1. हे ईश्वर ! तू दयालु है, मुझ पर दया कर। तू दया-सागर है, मेरा अपराध क्षमा कर। मेरी दुष्टता पूर्ण रूप से धो डाल, मुझ पापी को शुद्ध कर।

2. मैं अपना अपराध स्वीकार करता हूँ। मेरा पाप निरन्तर मेरे सामने है। मैंने तेरे विरुद्ध पाप किया है, जो काम तेरी दृष्टि में बुरा है, वही मैंने किया है।

3. इसलिए तेरा न्याय मुझे दोषी ठहराता है और तेरी दण्डाज्ञा उचित ही है। मैं तो जन्म से ही अपराधी हूँ, अपनी माता के गर्भ से ही पापी।

4. तू मुझे आनन्द का संदेश सुना और तुम से रौंदी हुई हड्डियाँ फिर खिल उठेंगी। तू मेरे पापों पर दृष्टि न डाल, तू मेरा अपराध मिटा देने की कृपा कर।

जयघोष

अल्लेलूया ! हे पिता ! हे स्वर्ग और पृथ्वी के प्रभु ! मैं तेरी स्तुति करता हूँ, क्योंकि तूने राज्य के रहस्यों को निरे बच्चों के लिए प्रकट किया है। अल्लेलूया !

सुसमाचार

मारकुस के अनुसार पवित्र सुसमाचार 4:26-34

“बीज उगता है और बढ़ता जाता है, हालाँकि उसे यह पता नहीं कि यह कैसे हो रहा है।”

येसु ने लोगों से कहा, “ईश्वर का राज्य उस मनुष्य के सदृश्य है, जो भूमि में बीज बोता है। वह रात को सोने जाता और सुबह उठता है। बीज उगता है और बढ़ता जाता है, हालाँकि उसे यह पता नहीं कि यह कैसे हो रहा है। भूमि अपने आप 'फसल पैंदा करती है - पहले अंकुर, फिर बाल और बाद में पूरा दाना। फसल तैयार होते ही वह हँसिया चलाने लगता है, क्योंकि कटनी का समय आ गया है।” येसु ने कहा, “हम ईश्वर के राज्य की तुलना किस से करें? हम किस दृष्टान्त द्वारा उसका निरूपण करें? वह राई के दाने के सदृश है। मिट्टी में बोया जाते समय वह दुनिया भर का सब से छोटा दाना है; परन्तु बाद में बढ़ते-बढ़ते वह सब पौधों से बड़ा हो जाता है और उस में इतनी बड़ी-बड़ी डालियाँ निकल आती हैं कि आकाश के पंछी उसकी छाया में बसेरा कर सकते हैं।” वह इस प्रकार के बहुत-से दृष्टान्तों द्वारा लोगों को उनकी समझ के अनुसार सुसमाचार सुनाते थे। वह बिना दृष्टान्त के लोगों से कुछ नहीं कहते थे, लेकिन एकान्त में अपने शिष्यों को सब बातें समझाते थे।

प्रभु का सुसमाचार।