सामान्य काल का तीसरा सप्ताह, बुधवार - वर्ष 2

पहला पाठ

समूएल का दूसरा ग्रन्थ 7:4-17

“मैं तुम्हारे पुत्र को तुम्हारा उत्तराधिकारी बनाऊँगा और उसका राज्य बनाये रखूँगा।”

प्रभु की वाणी नातान को यह कहते हुए सुनाई पड़ी, “मेरे सेवक दाऊद के पास जा कर कहो - प्रभु यह कहता है : क्या तुम मेरे लिए मंदिर बनवाना चाहते हों? जिस दिन मैं इस्राएलियों को मिस्र देश से निकाल लाया, उस दिन से आज तक मैंने किसी भवन में निवास नहीं किया। मैं तम्बू में रह कर उनके साथ भ्रमण करता रहा। जब तक मैं इस्राएलियों के साथ भ्रमण करता रहा, मैंने कभी किसी से यह नहीं कहा, “तुम मेरे लिए देवदार का मंदिर क्यों नहीं बनाते हो?” मैंने किसी न्यायकर्त्ता से, जिसे मैंने अपनी प्रजां चराने के लिए नियुक्त किया था, ऐसा निवेदन नहीं किया। इसलिए मेरे सेवक दाऊद से यह कहो - विश्वमंडल का प्रभु कहता है : तुम भेड़ें चराया करते थे और मैंने तुम्हें चरागाह से बुला कर अपनी प्रजा इल्राएल का शासक बनाया। मैंने तुम्हारे सब कार्यों में तुम्हाग साथ दिया और तुम्हारे सामने तुम्हारे सब शत्रुओं का सर्वनाश कर दिया है। मैं तुम्हें संसार के सब से महान्‌ पुरुषों की जैसी ख्याति प्रदान करूँगा। मैं अपनी प्रजा इस्राएल के लिए भूमि का प्रबन्ध करूँगा और उसे बसाऊँगा। वह वहाँ सुरक्षित रहेगी। कुकर्मी उस पर अत्याचार नहीं कर पायेंगे। ऐसा पहले हुआ करता था, जब मैंने अपनी प्रजा इस्राएल का शासन करने के लिए न्यायकर्त्ताओं को नियुक्त किया था। मैं उसे उसके सब शत्रुओं से छुड़ाऊँगा। प्रभु तुम्हारा वंश सुरक्षित रखेगा। जब तुम्हारे दिन पूरे हो जायेंगे और तुम अपने पूर्वजों के साथ विश्राम करोगे, तो मैं तुम्हारे पुत्र को तुम्हारा उत्तराधिकारी बनाऊँगा और उसका राज्य बनाये रखूँगा। वह मेरे आदर में एक मंदिर बनवायेगा और मैं उसका सिंहासन सदा के लिए सुदृढ़ बना दूँगा। मैं उसका पिता होऊँगा और वह मेरा पुत्र होगा। यदि वह बुराई करेगा, तो मैं उसे दूसरे लोगों की तरह बेंत और कोड़ों से दण्डित करूँगा। किन्तु मैं उस पर से अपनी कृपा नहीं हटाऊँगा, जैसा कि मैंने साऊल के साथ किया, जिसे मैंने तुम्हारे लिए ठुकराया। इस तरह तुम्हारा वंश और तुम्हारा राज्य मेरे सामने बना रहेगा और उसका सिंहासन अनन्तकाल तक सुदृढ़ रहेगा।” नातान ने दाऊद को ये सब बातें और यह सारा दृश्य बताया।

प्रभु की वाणी।

भजन : स्तोत्र 88:4-5,27-30

अनुवाक्य : प्रेरी कृपा उस पर बनी रहेगी।

1. मैं अपने कृपापात्र को प्रतिज्ञा दे चुका हूँ। मैंने शपथ खा कर अपने सेवक दाऊद से कहा - मैं तुम्हारा वंश सदा-सर्वदा के लिए स्थापित करूँगा, तुम्हारा सिंहासन युग युगों तक सुदृढ़ बनाये रखूँगा।

2. वह मुझ से यह कहेगा, “तू ही मेरा पिता, मेरा ईश्वर तथा मेरा उद्धारक है।” मैं उसे अपना पहलौठा मानूँगा और उसे पृथ्वी के राजाओं का अंधिपति बनाऊँगा।

3. मेरी कृपा उस पर बनी रहेगी। मेरी प्रतिज्ञा उसके लिए चिरस्थायी है। मैं उसका वंश सदा ही बनाये रखूँगा, उसका सिंहासन स्वर्ग की तरह चिरस्थायी होगा।

जयघोष

अल्लेलूया ! बीज ईश्वर का वचन है, बोने वाला मसीह है। जो उन्हें पाता है, वह अनन्तकाल तक बना रहता है। अल्लेलूया !

सुसमाचार

मारकुस के अनुसार पवित्र सुसमाचार 4:1-20

“कोई बोने वाला बीज बोने निकला।”

किसी दिन येसु समुद्र के किनारे शिक्षा देने लगे और उनके पास इतनी भीड़ इकट्ठी हो गयी कि वह समुद्र में एक नाव पर जा बैठे और सारी भीड़ समुद्र के तट पर बनी रही। उन्होंने दृष्टान्तों में उन्हें बहुत-सी बातों की शिक्षा दी। शिक्षा देते हुए उन्होंने कहा - “सुनो ! कोई बोने वाला बीज बोने निकला। बोते-बोते कुछ बीज रास्ते के किनारे गिरे और आकाश के पक्षियों ने आ कर उन्हें चुग लिया। कुछ बीज पथरीली भूमि पर गिरे, जहाँ उन्हें अधिक मिट्टी नहीं मिली। वे जल्दी ही उग गये, क्योंकि उनकी मिट्टी गहरी नहीं थी। सूरज चढ़ने पर वे झुलस गये और जड़ न होने के कारण सूख गये। कुछ बीज काँटें में गिरे और काँटों ने बढ़ कर उन्हें दबा दिया, इसीलिए वे फल नहीं लाये। कुछ बीज अच्छी भूमि में गिरे। वे उग कर फले-फूले और तीस-गुना या साठ-गुना या सौ-गुना फल लाये।” अन्त में उन्होंने कहा, “जिसके सुनने के कान हों, वह सुन ले !” येसु के अनुयायियों और बारहों ने एकान्त में उन से दृष्टान्तों का अर्थ पूछा। येसु ने उत्तर दिया, “तुम लोगों को ईश्वर के राज्य का भेद जानने का वरदान दिया गया है। बाहर वालों को दृष्टान्त ही मिलते हैं जिससे वे देखते हुए भी नहीं देखें और सुनते हुए भी नहीं समझें। कहीं ऐसा न हो कि वे मेरी ओर लौट आयें और मैं उन्हें क्षमा प्रदान कर दूँ। " येसु ने उन से कहा, “क्या तुम लोग यह दृष्टान्त नहीं समझते? तो सब दृष्टान्तों को कैसे समझोगे? बोने वाला वचन बोता है। जो रास्ते के किनारे हैं, जहाँ वचन बोया जाता है : ये वे लोग हैं जिन्होंने सुना है, परन्तु शैतान तुरन्त ही आ कर वह वचन, जो उनके हृदय में बोया गया था, ले जाता है। इस प्रकार, जो पथरीली भूमि में बोये जाते हैं : ये वे लोग हैं, जो वचन सुनते ही उसे प्रसन्नता से ग्रहण करते हैं; किन्तु उन में जड़ नहीं है और वे थोड़े ही दिन दृढ़ रहते हैं। वचन के कारण संकट या अत्याचार आ पड़ने पर, वे तुरन्त विचलित हो जाते हैं। दूसरे बीज काँटों में बोये जाते हैं : ये वे लोग हैं जो वचन सुनते हैं, परन्तु संसार की चिंताएँ, धन का मोह और अन्य बासनाएँ उन में प्रवेश कर वचन को दबा देती हैं और वह फल नहीं लाता। जो अच्छी भूमि में बोये गये हैं : ये वे लोग हैं जो वचन सुनते हैं, उसे ग्रहण करते हैं, और फल लाते हैं - कोई तीस-गुना, कोई साठे-गुना, कोई सौ-गुना।"

प्रभु का सुसमाचार।