वर्ष का प्रथम सप्ताह – मंगलवार, वर्ष 2

पहला पाठ

समूएल का पहला ग्रन्थ 1:9-20

“प्रभु ने अन्ना को याद किया और उसने समूएल को प्रसव किया।’’
किसी दिन जब अन्ना का परिवार शिलो में भोजन कर चुका था, तो वह उठ कर प्रभु के मंदिर गयी। उस समय याजक एली मंदिर के द्वार के पास अपने आसन पर बैठा हुआ था। अन्ना दुःखी हो कर प्रभु से प्रार्थना करती थी और आँसू बहाती हुई उसने यह प्रतिज्ञा की, “हे विश्वमंडल के प्रभु ! यदि तू अपनी दासी की दयनीय दशा को देख कर उसकी सुधि लेगा, यदि तू अपनी दासी को नहीं भुलायेगा और उसे पुत्र प्रदान करेगा, तो मैं उसे जीवन भर के लिए प्रभु को अर्पित करूँगी और उसके सिर पर उस्तरा कभी नहीं चलाया जायेगा।”! जब वह बहुत देर तक प्रभु से प्रार्थना करती रही, तो एली उसका मुख देखने लगा। अन्ना धीमे स्वर से बोलती थी, उसके होंठ तो हिल रहे थे किन्तु उसकी आवाज नहीं सुनाई दे रही थी। इसलिए एली को लगा कि वह नशे में है। उसने उस से कहा, “कब तक नशे में रहोगी ! जाओ और नशा उतरने दो।” अन्ना ने यह उत्तर दिया, “महोदय ! ऐसी बात नहीं है। मैं बहुत अधिक दुःखी हूँ। मैंने न तो अंगूरी पी ली और न कोई दूसरी नशीली चीज। मैं प्रभु के सामने अपना हृदय खोल रही थी। अपनी दासी को बदचलन न समझें - मैं दुःख और शोक से व्याकुल हो कर इतनी देर तक प्रार्थना करती रही।’’ एली ने उस से कहा, “शांति ग्रहण कर जाओ; इस्नाएल का प्रभु तुम्हारी प्रार्थना स्वीकार करे !” इस पर अन्ना यह उत्तर दे कर चली गयी : “आपकी कृपादृष्टि आपकी दासी पर बनी रहे।” उसने भोजन किया और उसकी उदासी दूर हो गयी। दूसरे दिन वे सबेरे उठे और प्रभु की आराधना करने के बाद रामा में अपने घर लौट गये। एल्काना का अपनी पत्नी अन्ना से संसर्ग हुआ और प्रभु ने उसे याद किया। अन्ना गर्भवती हो गयी। उसने पुत्र प्रसव किया और यह कह कर उसका नाम समूएल रखा, “क्योंकि मैंने उन को प्रभु से माँगा है”।

प्रभु की वाणी।

भजन : समूएल 2:1,4-7

अनुवाक्य : मेरा हृदय प्रभु के कारण आनन्दित हो उठता है।

1. मेरा हृदय प्रभु के कारण आनन्दित हो उठता है। मुझे अपने प्रभु से शक्ति मिली है और मैं अपने शत्रुओं का सामना कर सकता हूँ, क्योंकि तेरा सहारा मुझे उत्साहित करता है।

2. शक्तिशालियों के धनुष टूट गये और जो दुर्बल थे, वे शक्तिसम्पन्न बन गये। जो धनी थे, वे रोटी के लिए मजदूरी करते हें और जो भूखे थे, वे सम्पन्न बन गये। जो बाँझ थी, वह सात बार प्रसव करती है। और जो पुत्रवती थी, उसकी गोद खाली है।

3. प्रभु ही मारता और जिलाता है, वह मनुष्य को अधोलोक पहुँचाता और वहाँ से निकालता है, प्रभु निर्धन भी और धनी भी बना देता है, वह मनुष्यों को नीचा दिखाता और उन्हें ऊँचा उठाता है।

4. वह दीन-हीन को धूल में से निकालता है और कूड़े पर बैठे हुए कंगाल को ऊपर उठा कर उसे रइसों की संगति में पहुँचाता है और सम्मान के आसन पर बैठा देता है।

जयघोष

अल्लेलूया ! आप ईश्वर का संदेश मनुष्यों का नहीं, बल्कि जैसा कि वह वास्तव में है - ईश्वर का वचन समझ कर स्वीकार करें। अल्लेलूया !

सुसमाचार

मारकुस के अनुसार पवित्र सुसमाचार 1:21-28

“बह अधिकार के साथ बोलते थे।’’

वे कफरनाहुम आये। जब विश्रामदिवस आया, तो येसु सभागृह गये और शिक्षा देने लगे। लोग उनकी शिक्षा सुन कर अचंभे में पड़ गये; क्योंकि वह शास्त्रियों की तरह नहीं, बल्कि अधिकार के साथ शिक्षा देते थे। सभागृह में एक मनुष्य था, जो अशुद्ध आत्मा के वश में था। वह ऊँचे स्वर से चिल्लाया, “येसु नाजरी ! हम से आप को क्या्? क्या आप हमारा सर्वनाश करने आये हैं? मैं जानता हूँ कि आप कौन हैं - ईश्वर के भेजे हुए परमपावन पुरुष।” येसु ने यह कह कर उसे डाँटा, “चुप रह ! इस मनुष्य से बाहर निकल जा।” अपदूत उस मनुष्य को झकझोरते हुए ऊँचे स्वर से चिल्ला कर उस में से निकल गया। सब चकित रह गये और आपस में कहने लगे, “यह क्या है? यह तो नये प्रकार की शिक्षा है। वह अधिकार के साथ बोलते हैं। वह अशुद्ध आत्माओं को भी आदेश देते हैं और वे उनकी आज्ञा मानते हैं।” इसके बाद येसु की चरचा शीघ्र ही गलीलिया प्रांत के कोने-कोने में फैल गयी।

प्रभु का सुसमाचार।