वर्ष का सातवाँ सप्ताह – शनिवार – वर्ष 1

पहला पाठ

प्रवक्ता-ग्रन्थ 17:1-15

“ईश्वर ने मनुष्य को अपना प्रतिरूप बनाया।”

प्रभु ने मिट्टी से मनुष्य को बनाया और वह उसे फिर मिट्टी में मिला देता है। उसने मनुष्यों की आयु की सीमा निर्धारित की और उन्हें पृथ्वी की सब वस्तुओं पर अधिकार दिया। उसने उन को अपने सदृश शक्ति प्रदान की और उन्हें अपना प्रतिरूप बनाया। उसने सब प्राणियों में मनुष्य के प्रति भय उत्पन्न किया और उसे सब पशुओं तथा पक्षियों पर अधिकार दिया। उसने मनुष्यों को बुद्धि, भाषा, आँखें तथा कान दिये और विचार करने का मन भी। उसने उन्हें विवेक से सम्पन्न किया और भलाई तथा बुराई की पहचान से। उसने उनके मन की आँखों को ज्योति प्रदान की, जिससे वे उसके कार्यों की महिमा देख सकें। वे उसके पवित्र नाम का स्तुतिगान और उसके महिमामय कार्यों का बखान करेंगे। उसने उन्हें ज्ञान का वरदान और जीवनप्रद नियम दिया। उसने उनके लिए चिरस्थायी विधान निर्धारित किया और उन्हें अपनी आज्ञाओं की शिक्षा दी। उनकी आँखों ने उसके महिमामय ऐश्वर्य को देखा और उनके कानों ने उसकी महिमामय वाणी सुनी। उसने उस से यह कहा, “हर प्रकार की बुराई से दूर रहो।” उसने प्रत्येक को दूसरों के प्रति कर्तव्य सिखाया। मनुष्य जो कुछ करता है, वह सदा उसके लिए प्रकट है और उसकी आँखों से छिपा हुआ नहीं रह सकता।

प्रभु की वाणी।

भजन : स्तोत्र 102:13-18

अनुवाक्य : अपने भक्तों के प्रति प्रभु का प्रेम सदा-सर्वदा बना रहता है।

1. पिता जिस तरह अपने पुत्रों पर दया करता है, प्रभु उसी तरह अपने भक्तों पर दया करता है। क्योंकि वह जानता है कि हम किस चीज के बने हैं; उसे याद रहता है कि हम मिट्टी हैं।

2. मनुष्य की आयु घास की तरह होती है, वह खेत के फूल की तरह खिलता है। हवा का झोंका लगते ही, वह चला जाता है और फिर कभी दिखाई नहीं देता।

3. अपने भक्तों के प्रति प्रभु का प्रेम सदा-सर्वदा बना रहता है। प्रभु के विधान पर चलने वाले भक्तों के पुत्र-पौत्रों के लिए उसकी न्यायप्रियता चिरस्थायी है।

जयघोष

अल्लेलूया ! हे पिता ! हे स्वर्ग और पृथ्वी के प्रभु ! मैं तेरी स्तुति करता हूँ, क्योंकि तूने राज्य के रहस्यों को निरे बच्चों के लिए प्रकट किया है। अल्लेलूया !

सुसमाचार

सन्त मारकुस के अनुसार पवित्र सुसमाचार 10:13-16

“जो छोटे बालक की तरह ईश्वर का राज्य ग्रहण नहीं करता, वह उस में प्रवेश नहीं करेगा।”

लोग येसु के पास बच्चों को लाते थे, जिससे वह उन पर हाथ रख दें; परन्तु शिष्य लोगों को डाँटते थे। येसु यह देख कर बहुत अप्रसन्न हुए और उन्होंने कहा, “बच्चों को मेरे पास आने दो। उन्हें रोको मत, क्योंकि ईश्वर का राज्य उन जैसे लोगों का है। मैं तुम से कहे देता हूँ - जो छोटे बालक की तरह ईश्वर का राज्य ग्रहण नहीं करता, वह उस में प्रवेश नहीं करेगा।” तब येसु ने बच्चों को छाती से लगा लिया और उन पर हाथ रख कर आशीर्वाद दिया।

प्रभु का सुसमाचार।