वर्ष का सातवाँ सप्ताह – शुक्रवार – वर्ष 1

पहला पाठ

प्रवक्तास-ग्रन्थ 6:5-17

“सच्चा मित्र एक अमूल्य निधि है।”

प्रिय शब्दों से मित्रों की संख्या बढ़ती है और मधुर वाणी से मैत्रीपूर्ण व्यवहार। तुम्हारे परिचित अनेक हों, किन्तु तुम्हारा परामर्शदाता सहस्रों में से एक। कोई मित्र अवसरवादी होता है, वह विपत्ति के दिन तुम्हारा साथ नहीं देगा। कोई मित्र शत्रु बन जाता है और अलगाव का दोष तुम्हें ही देता है। कोई मित्र तुम्हारे यहाँ खाता-पीता है, किन्तु विपत्ति के दिन दिखाई नहीं देता। समृद्धि के दिनों में वह तुम्हारा अंतरंग मित्र बन कर तुम्हारे नौकरों पर रोब जमाता है, किन्तु दुर्दिन आते ही वह तुम्हारा शत्रु बन कर तुम से मुँह फेर लेता है। तुम अपने शत्रुओं से दूर रहो और अपने मित्रों से सावधान। सच्चा मित्र प्रबल सहायक है; जिसे मिल जाता है, उसे खजाना प्राप्त है। सच्चा मित्र एक अमूल्य निधि है, उसकी कीमत धन से चुकायी नहीं जा सकती। सच्चा मित्र संजीवनी है, वह प्रभु भक्तों को ही प्राप्त होता है। प्रभु-भक्त मित्रता का निर्वाह करता है, वह जैसा है, उसका मित्र वैसा ही होगा।

प्रभु की वाणी।

भजन : स्तोत्र 118:12,16,18,27,34,35

अनुवाक्य : हे प्रभु ! मुझे अपनी आज्ञाओं के पथ पर ले चल।

1. हे प्रभु! तू धन्य है ! मुझे अपनी संहिता की शिक्षा दे।

2. मुझे तेरी संहिता से अपार आनन्द मिलता है। मैं तेरे शब्द कभी नहीं भुलाऊँगा।

3. मेरी आँखों को ज्योति प्रदान कर, जिससे मैं तेरी संहिता की महिमा देख सकूँ।

4. मुझे अपनी आज्ञाओं का मार्ग समझा और मैं तेरे अपूर्व कार्यो का मनन करूँगा।

5. मुझे ऐसी शिक्षा दे कि मैं सारे हदय से तेरी संहिता का पालन करता रहूँ।

6. मुझे अपनी आज्ञाओं के पथ पर ले चल, क्योंकि इस से मुझे आनन्द मिलता है।

जयघोष

अल्लेलूया ! हे प्रभु ! तेरी ही शिक्षा सत्य है। तू सत्य की सेवा में हमें समर्पित कर। अल्लेलूया !

सुसमाचार

सन्त मारकुस के अनुसार पवित्र सुसमाचार

“ईश्वर ने जिसे जोड़ा है, उसे मनुष्य अलग नहीं करे।”

गलीलिया से विदा हो कर येसु यहूदिया और यर्दन के पास के प्रदेश पहुँचे। एक विशाल जनसमूह फिर उनके पास एकत्र हो गया और वह अपनी आदत के अनुसार लोगों को शिक्षा देने लगे। फरीसी येसु के पास आये और उनकी परीक्षा लेते हुए उन्होंने यह प्रश्न किया, “क्या अपनी पत्नी को त्याग देना पुरुष के लिए उचित है?” येसु ने उन्हें उत्तर दिया, “मूसा ने तुम्हें क्या आदेश दिया है?” उन्होंने कहा, “मूसा ने तो त्यागपत्र लिख कर पत्नी को त्यागने की अनुमति दी है।” येसु ने उन से कहा, “उन्होंने तुम्हारे हदय की कठोरता के कारण ही यह आदेश लिखा है। किन्तु सृष्टि के प्रारम्भ ही से ईश्वर ने उन्हें नर-नारी बनाया; इस कारण पुरुष अपने माता-पिता को छोड़ेगा और दोनों एक शरीर हो जायेंगे। इस तरह अब वे दो नहीं, बल्कि एक शरीर हैं। इसलिए जिसे इंश्वर ने जोड़ा है, उसे मनुष्य अलग नहीं करे।” शिष्यों ने, घर पहुँच कर, इस संबंध में येसु से फिर प्रश्न किया और उन्होंने यह उत्तर दिया, “जो अपनी पत्नी को त्याग देता और किसी दूसरी स्त्री से विवाह करता हैं, वह पहली के विरुद्ध व्यभिचार करता है और यदि पत्नी अपने पति को त्याग देती और किसी दूसरे पुरुष से विवाह करती है, तो वह व्यभिचार करती है।”

प्रभु का सुसमाचार।