वर्ष का सातवाँ सप्ताह – सोमवार – वर्ष 1

पहला पाठ

प्रवक्ताप-ग्रन्थ 1:1-10

“सब से पहले प्रज्ञा की सृष्टि हुई थी।”

समस्त प्रज्ञा प्रभु से उत्पन्न होती है, वह सदा उसके पास विद्यमान है। समुद्रतर के बालू-कण, वर्षा की बूँदें और अनन्तकाल के दिन कौन गिन सकता है? आकाश की ऊँचाई, पृथ्वी का विस्तार और अगाध गर्त्त की गहराई कौन नाप सकता है? सब से पहले प्रज्ञा की सृष्टि हुई थी। विवेकपूर्ण बुद्धि अनादिकाल से बनी हुई है। प्रज्ञा का स्रोत है - स्वर्ग में ईश्वर का शब्द। प्रज्ञा के मार्ग हैं - शाश्वत आदेश। प्रज्ञा की जड़ तक कौन पहुँचा है? उसकी बारीकियाँ कौन समझता है? प्रज्ञा की शिक्षा किस को मिली हैं? उस के विविध मार्ग कौन जानता है। परमश्रद्धेय प्रभु ही प्रज्ञा है, वह अपने सिंहासन पर विराजमान है। प्रभु ने ही प्रज्ञा की सृष्टि की हैं। उसने उसका अवलोकन एवं मूल्यांकन किया और उसे अपने सभी कार्यों में सन्निविष्ट किया है। उसने उसे अपनी उदारता के अनुरूप सब प्राणियों को और अपने भक्तों को प्रचुर मात्रा में प्रदान किया है।

प्रभु की वाणी।

भजन : स्तोत्र 92:1-2,5

अनुवाक्य : प्रभु, प्रताप से विभूषित हो कर, राज्य करता है।

1. प्रभु, प्रताप से विभूषित हो कर, राज्य करता है। उसने सामर्थ्य धारण कर लिया है।

2. तूने पृथ्वी को सुदृढ़ और सुस्थिर बनाया है। तेरा सिंहासन प्रारंभ से ही सुदृढ़ है। हे प्रभु ! तू अनादिकाल से विद्यमान है।

3. हे प्रभु ! तेरे आदेश अपरिवर्तनीय हैं। तेरे मंदिर की पवित्रता अनन्तकाल तक बनी रहेगी।

जयघोष : 2 तिम 1:10

अल्लेलूया ! हमारे मुक्तिदाता और मसीह ने मृत्यु का विनाश किया और अपने सुसमाचार द्वारा अमर जीवन को आलोकित किया। अल्लेलूया !

सुसमाचार

सन्त मारकुस के अनुसार पवित्र सुसमाचार 9:14-29

“मैं विश्वास करता हूँ, मेरे अल्पविश्वास की कमी पूरी कीजिए।”

जब येसु पहाड़ से उतर कर शिष्यों के पास लौटे, तो उन्होंने देखा कि बहुत-से लोग उनके चारों ओर इकट्ठे हो गये हैं और कुछ शास्त्री उन से विवाद कर रहे हैं। येसु को देखते ही लोग अचम्भे में पड़ गये और दौड़ते हुए आ कर उन्हें प्रणाम करने लगे। येसु ने उन से पूछा, “तुम लोग इनके साथ क्या विवाद कर रहे हो? ” भीड़ में से एक ने उत्तर दिया, “गुरुवर ! मैं अपने बेटे को, जो एक गूँगे अपदूत के वश में है, आपके पास ले आया हूँ। वह जहाँ कहीं उसे लगता है, उसे वहीं पटक देता है और लड़का फेन उगलता है, दाँत पीसता है और उसके अंग अकड़ जाते हैं। मैंने आपके शिष्यों से उसे निकालने का निवेदन किया, परन्तु वे ऐसा नहीं कर सके।” येसु ने उत्तर दिया, “रे अविश्वासी पीढ़ी ! मैं कब तक तुम्हारे साथ रहूँ? कब तक तुम्हें सहता रहूँ? उस लड़के को मेरे पास ले आओ।” वे उसे येसु के पास ले आये। येसु को देखते ही अपदूत ने लड़के को मरोड़ दिया। लड़का गिर गया और फेन उगलता हुआ भूमि पर लोटने लगा। येसु ने उसके पिता से पूछा, “इसे कब से ऐसा हो जाया करता है? ” उसने उत्तर दिया, “बचपन से ही। अपदूत ने इसका विनाश करने के लिए इसे बार-बार आग अथवा पानी में डाल दिया है। यदि आप कुछ कर सकें तो हम पर तरस खा कर हमारी सहायता कीजिए।” येसु ने उस से कहा, “यदि आप कुछ कर सकें ! विश्वास करने वाले के लिए सब कुछ संभव है।” इस पर लड़के के पिता ने पुकार कर कहा, “मैं विश्वास करता हूँ, मेरे अल्पविश्वास की कमी पूरी कीजिए।” येसु ने देखा कि भीड़ बढ़ती जा रही है, इसलिए उन्होंने अशुद्ध आत्मा को यह कह कर डाँटा, “बहरे-गूँगे आत्मा ! मैं तुझे आदेश देता हूँ - इस से निकल जा और इस में फिर कभी नहीं घुसना।” अपदूत चिल्ला कर और लड़के को मरोड़ कर उस से निकल गया। लड़का मुरदा-सा पड़ा रहा और बहुत-से लोग कहने लगे, “यह मर गया है।” परन्तु येसु ने उसका हाथ पकड़ कर उसे उठाया और वह खड़ा हो गया। जब येसु घर पहुँचे, तो उनके शिष्यों ने एकांत में उन से पूछा, “हम लोग उसे क्यों नहीं निकाल सके?” उन्होंने उत्तर दिया, “प्रार्थना (और उपवास) के सिवा और किसी उपाय से वह जाति नहीं निकाली जा सकती।”

प्रभु का सुसमाचार।