सामान्य काल का छठा सप्ताह, सोमवार– वर्ष 1

पहला पाठ

उत्पत्ति-ग्रन्थ 4:1-15,25

काइन ने अपने भाई हाबिल पर आक्रमण किया और उसे मार डाला।

आदम का अपनी पत्नी से संसर्ग हुआ और वह गर्भवती हो गयी। उसने काइन को जन्म दिया और कहा, “मैंने प्रभु की कृपा से एक पुत्र को जन्म दिया।” फिर उसने काइन के भाई हाबिल को जन्म दिया। हाबिल भेड-बकरियों का चरवाहा बना और काइन खेती करता था। कुछ समय बाद काइन ने भूमि की उपज का कुछ अंश प्रभु को अर्पित किया। हाबिल ने भी अपनी सर्वोत्तम भेड़ों के पहलौठे मेमनों को प्रभु को अर्पित किया। प्रभु ने हाबिल पर प्रसन्न हो कर उसकी भेंट स्वीकार की, किन्तु उसने काइन और उसकी भेंट को अस्वीकार किया। काइन बहुत क्रुद्ध हुआ और उसका चेहरा उतर गया। प्रभु ने काइन से कहा, “तुम क्यों क्रोध करते हो और तुम्हारा चेहरा उतरा हुआ क्यों है? जब तुम भला करोगे, तो प्रसन्न होगे। यदि तुम भला नहीं करोगे, तो पाप हिंसक पशु की तरह, तुम पर झपटने के लिए तुम्हारे द्वार पर घात लगा कर बैठेगा। क्या तुम उसका दमन कर सकोगे?” काइन ने अपने भाई हाबिल से कहा, “हम टहलने चलें।” बाहर जाने पर काइन ने हाबिल पर आक्रमण किया और उसे मार डाला। प्रभु ने काइन से कहा, “तुम्हारा भाई हाबिल कहाँ है?” उसने उत्तर दिया, “मैं नहीं जानता। क्याब मैं अपने भाई का रखवाला हूँ?” प्रभु ने कहा, “तुमने क्या किया? तुम्हारे भाई का रक्त भूमि पर से मुझे पुकार रहा है। भूमि ने मुँह फैला कर तुम्हारे भाई का रक्त ग्रहण किया, जिसे तुमने बहाया है। इसलिए तुम शापित हो कर उस भूमि से निर्वासित किये जाओगे। यदि तुम उस भूमि पर खेती करोगे, तो वह कुछ भी पैदा नहीं करेगी। तुम आवारे की तरह पृथ्वी पर मारे-मारे फिरोगे।” तब काइन ने प्रभु से कहा, “मैं यह दण्ड नहीं सह सकता। तू मुझे उपजाऊ भूमि से निर्वासित कर रहा है। मुझे तुझ से दूर रहना पड़ेगा। मैं आवारे की तरह पृथ्वी पर मारा-मारा फिरूँगा और भेंट होने पर कोई भी मेरा वध कर दे सकता है।” इस पर प्रभु ने उसे यह उत्तर दिया, “नहीं ! जो काइन का वध करेगा, उस से इसका सात-गुणा बदला लिया जायेगा।” कहीं ऐसा न हो कि काइन से भेंट होने पर कोई उसका वध करे, इसलिए प्रभु ने काइन पर एक चिह्न अंकित किया। आदम का अपनी पत्नी से फिर संसर्ग हुआ। उसने पुत्र प्रसत किया और उसका नाम सेत रखा। उसने कहा, “काइन ने हाबिल का वध किया, इसलिए प्रभु ने उसके बदले में मुझे एक अन्य पुत्र प्रदान किया।”

प्रभु की वाणी।

भजन : स्तोत्र 49:1,8,16-17,20-21

अनुवाक्य : “ईश्वर को धन्यवाद का यज्ञ चढ़ाओ।

1. प्रभु सर्वेश्वर उदयाचल से अस्ताचल तक पृथ्वी के सब लोगों को सम्बोधित करता है, “मैं यज्ञों के कारण तुम पर दोष नहीं लगाता - तुम्हारे बलिदान तो सदा मेरे सामने हैं।”

2. “तुम मेरी संहिता का तिरस्कार करते और मेरी बातों पर ध्यान नहीं देते हो, तो तुम मेरी आज्ञाओं का पाठ और मेरे विधान की चरचा क्यों करते हो?”

3. “तुम बैठ कर अपने भाई की निन्दार करते और अपनी माता के पुत्र की चुगली खाते हो। तुम यह सब करते हो और मैं चुप रहूँ? क्या तुम मुझे अपने जैसा समझते हो?"

जयघोष : योहन 14:6

अल्लेलूया ! प्रभु कहते हैं, “मार्ग, सत्य और जीवन मैं हूँ। मुझ से हो कर गये बिना कोई भी पिता के पास नहीं आ सकता।” अल्लेलूया !

सुसमाचार

मारकुस के अनुसार पवित्र सुसमाचार

“यह पीढ़ी चिह्न क्यों माँगती है?''

फ़रीसी आ कर येसु से विवाद करने लगे। उनकी परीक्षा लेने के लिए वे स्वर्ग की ओर का कोई चिह्न माँगते थे। येसु ने गहरी आह भर कर कहा, “यह पीढ़ी चिह्न क्यों माँगती है? मैं तुम लोगों से कहे देता हूँ - इस पीढ़ी को कोई चिह्न नहीं दिया जायेगा।” इस पर येसु उन्हें छोड़ कर नाव पर चढ़े और उस पार चले गये।

प्रभु का सुसमाचार।