प्रभु-ईश्वर ने आदम से पुकार कर कहा, “तुम कहाँ हो?” उसने उत्तर दिया, “मैं बगीचे में तेरी आवाज सुन कर डर गया, क्योंकि मैं नंगा हूँ और मैं छिप गया।” प्रभु ने कहा, “किसने तुम्हें बताया कि तुम नंगे हो? क्या तुमने उस वृक्ष का फल खाया, जिस को खाने से मैंने तुम्हें मना किया था?” मनुष्य ने उत्तर दिया, “मेरे साथ रहने के लिए जिस स्त्री को तूने दिया है, उसी ने मुझे फल दिया और मैंने खा लिया।” प्रभु-ईश्वर ने स्त्री से कहा, “तुमने क्या किया है?” और उसने उत्तर दिया, “साँप ने मुझे बहका दिया और मैंने खा लिया।” तब ईश्वर ने साँप से कहा, “चूँकि तूने यह किया है, तू सब घरेलू तथा जंगली जानवरों में शापित होगा। तू पेट के बल चलेगा और जीवन-भर मिट्टी खायेगा। मैं तेरे और स्त्री के बीच, तेरे वंश और उसके वंश में शत्रुता उत्पन्न करूँगा। वह तेरा सिर कुचल देगा और तू उसकी एड़ी काटेगा।” उसने स्त्री से यह कहा, “मैं तुम्हारी गर्भावस्थाा का कष्ट बढ़ाऊँगा और तुम पीड़ा में सन््ता न को जन्म दोगी। तुम वासना के कारण पति में आसक्त होगी और वह तुम पर शासन करेगा।” उसने पुरुष से यह कहा, “चूँकि तुमने अपनी पत्नी की बात मानी और उस वृक्ष का फल खाया है, जिस को खाने से मैंने तुम को मना किया था, भूमि तुम्हारे कारण शापित होगी। तुम जीवन-भर कठोर परिश्रम करते हुए उस से अपनी जीविका चलाओगे। वह काँटे और ऊँटकटारे पैदा करेगी और तुम खेत के पौधे खाओगे। तुम तब तक पसीना बहा कर अपनी रोटी खाओगे जब तक तुम उस भूमि में नहीं लौटोगे, जिस से तुम बनाये गये हो; क्योंकि तुम मिट्टी हो और मिट्टी में मिल जाओगे।” पुरुष ने अपनी पत्नी का नाम 'हौआ' रखा, क्योंकि वह सभी मानव प्राणियों की माता है। प्रभु-ईश्वर ने आदम और उसकी पत्नी के लिए खाल के कपड़े बनाये और उन्हें पहनाया। उसने कहा, “भले-बुरे का ज्ञान प्राप्त कर मनुष्य हमारे सदृश बन गया है। कहीं ऐसा न हो कि वह जीवन-वृक्ष का फल तोड़ कर खाये और अमर हो जाये !” इसलिए प्रभु-ईश्वर ने उसे अदन-वाटिका से निकाल दिया और मनुष्य को उस भूमि पर खेती करनी पड़ी, जिस से वह बनाया गया था। उसने आदम को निकाल दिया और जीवन-वृक्ष के मार्ग पर पहरा देने के लिए अदन-वाटिका के पूर्व में केरुबों और एक परिभ्रमी ज्वालामय तलवार को रख दिया।
प्रभु की वाणी।
अनुवाक्य : हैं प्रभु! तू पीढ़ी-दर-पीढ़ी हमारा आश्रय बना रहा।
1. पर्वतों के बनने के पहले से, पृथ्वी तथा संसार की उत्पत्ति के पहले से, तू ही अनादि-अनन्त ईश्वर है।
2. तू मनुष्य को फिर मिट्टी में मिला कर कहता है, “हे मनुष्य की सन्तति ! लौट जाओ।” एक हजार वर्ष भी तुझे बीते कल की तरह लगते हैं, वे तेरी गिनती में रात के पहर के सदृश हैं।
3. तू मनुष्यों को इस तरह उठा ले जाता है, जिस तरह सबेरा हो जाने पर स्वप्न मिट जाता है, जिस तरह घास प्रात: काल उग कर लहलहाती है और संध्या तक मुर्झा कर सूख जाती है।
4. हमें जीवन की क्षणभंगुरता सिखा, जिससे हम में सदबुद्धि आये। हे प्रभु ! क्षमा कर। हम कब तक तेरी प्रतीक्षा करें? तू अपने सेवकों पर दया कर।
अल्लेलूया ! मनुष्य रोटी से ही नहीं जीता है। वह ईश्वर के मुख से निकलने वाले हर एक शब्द से जीता है। अल्लेलूया !
उस समय फिर एक विशाल जनसमूह एकत्र हो गया था और लोगों के पास खाने को कुछ भी नहीं था। येसु ने अपने शिष्यों को अपने पास बुला कर कहा, “मुझे इन लोगों पर तरस आता है। ये तीन दिनों से मेरे साथ रह रहे हैं और इनके पास खाने को कुछ भी नहीं है। यदि मैं इन्हें भूखा ही घर भेजूँ, तो ये रास्ते में मूर्च्छित हो जायेंगे। इन में से कुछ लोग दूर से आये हैं।” उनके शिष्यों ने उत्तर दिया, “इस निर्जन स्थान में इन लोगों को खिलाने के लिए कहाँ से रोटियाँ मिलेंगी?” येसु ने उन से पूछा, “तुम्हारे पास कितनी रोटियाँ हैं?” उन्होंने कहा, “सात”। येसु ने लोगों को भूमि पर बैठ जाने का आदेश दिया और वे सात रोटियाँ ले कर धन्यवाद की प्रार्थना पढ़ी, और वह रोटियाँ तोड़-तोड़ कर शिष्यों को देते गये, ताकि वे लोगों को परोसते जायें। शिष्यों ने ऐसा ही किया। उनके पास कुछ छोटी मछलियाँ भी थीं। येसु ने उन पर आशिष की प्रार्थना पढ़ी और उन्हें भी बाँटने का आदेश दिया। लोगों ने खाया और खा कर तृप्त हो गये और बचे हुए टुकड़ों से सात टोकरे भर गये। खाने वालों की संख्या लगभग चार हजार थी। येसु ने लोगों को विदा कर दिया। वह तुरन्त अपने शिष्यों के साथ नाव पर चढ़े और दलमनूथा प्रान्त पहुँचे।
प्रभु का सुसमाचार।