सामान्य काल का पाँचवाँ सप्ताह, शुक्रवार – वर्ष 1

पहला पाठ

उत्पत्ति-ग्रन्थ 3:1-8

“तुम्हें भले-बुरे का ज्ञान हो जायेगा और इस प्रकार तुम ईश्वर के सदृश बन जाओगे।”

ईश्वर ने जिन जंगली जीव-जन्तुओं को बनाया था, उन में से साँप सब से धूर्त था। उसने स्त्री से कहा, “क्या ईश्वर ने सचमुच तुम को मना किया कि वाटिका के किसी वृक्ष का फल मत खाना?” स्त्री ने साँप को उत्तर दिया, “हम वाटिका के वृक्षों के फल खा सकते हैं। परन्तु वाटिका के बीचोबीच वाले वृक्ष के फलों के विषय में ईश्वर ने यह कहा - तुम उन्हें नहीं खाना। उनका स्पर्श तक नहीं करना, नहीं तो मर जाओगे।” साँप ने स्त्री से कहा, “नहीं। तुम नहीं मरोगे। ईश्वर जानता है कि यदि तुम उस वृक्ष का फल खाओगे, तो तुम्हारी आँखें खुल जायेंगी। तुम्हें भले-बुरे का ज्ञान हो जायेगा और इस प्रकार तुम ईश्वर के सदृश बन जाओगे।” अब स्त्री को लगा कि उस वृक्ष का फल स्वादिष्ट है, वह देखने में सुन्दर है और जब उसके द्वारा ज्ञान प्राप्त होता है, तो वह कितना लुभावना है ! इसलिए उसने फल तोड़ कर खाया। उसने पास खड़े हुए अपने पति को भी उस में से दिया और उसने भी खा लिया। तब दोनों की आँखें खुल गयीं और उन्हें पता चला कि वे नंगे हैं। इसलिए उन्होंने अंजीर के पत्ते जोड-जोड़ कर अपने लिए लंगोट बना लिये। जब दिन की हवा चलने लगी, तो पुरुष और उसकी पत्नी को वाटिका में टहलते हुए प्रभु-ईश्वर की आवाज सुनाई पड़ी और वे वाटिका के वृक्षों में प्रभु-ईश्वर से छिप गये।

प्रभु की वाणी।

भजन : स्तोत्र 31:1-2,5-7

अनुवाक्य : धन्य है वह, जिसका अपराध क्षमा हुआ है।

1. धन्य है वह, जिसका अपराध क्षमा हुआ है, जिसका पाप मिट गया है। धन्य है वह, जिसे ईश्वर दोषी नहीं मानता, और जिसका मन निष्कपट है।

2. मैंने अपना अपराध स्वीकार किया, मैंने अपना दोष नहीं छिपाया। मैंने कहा, “मैं प्रभु के सामने अपना अपराध स्वीकार करूँगा।” तब तूने मेरा दोष मिटा दिया, तूने मेरा पाप क्षमा किया।

3. इसलिए संकट के समय हर एक भक्त तेरी दुहाई दे। बाढ़ कितनी ऊँची क्योंा न उठ जाये, किन्तु जलधारा उसे नहीं छू पायेगी।

4. हे प्रभु ! तू मेरा आश्रय है, तू मुझे संकट से बचाता और मुझे मुक्ति के गीत गाने देता है।

जयघोष : प्रेरित 16:14

अल्लेलूया ! हे प्रभु ! हमारा हृदय खोल दे, जिससे हम तेरे पुत्र की शिक्षा ग्रहण कर सकें। अल्लेलूया !

सुसमाचार

मारकुस के अनुसार पवित्र सुसमाचार 7:31-37

“वह बहरों को कान और गूाँगों को वाणी देते हैं।”

येसु तीरुस प्रान्त से चले गये। वह सिदोन हो कर और देकापोलिस का प्रान्त पार कर गलीलिया के समुद्र के पास पहुँचे। लोग एक बहरे-गूँगे को उनके पास ले आये और उन्होंने यह प्रार्थना की कि आप उस पर हाथ रख दीजिए। येसु ने उसे भीड़ से अलग एकान्त में ले जा कर उसके कानों में अपनी उँगलियाँ डाल दीं और उसकी जीभ पर अपना थूक लगाया। फिर आकाश की ओर आँखें उठा कर उन्होंने आह भरी और उस से कहा, “एफेता” , अर्थात्‌ “खुल जा”। उसी क्षण उसके कान खुल गये और उसकी जीभ का बंधन छूट गया, जिससे वह अच्छी तरह बोलने लगा। येसु ने लोगों को आदेश दिया कि वे यह बात किसी से नहीं कहें; परन्तु वह जितना ही मना करते थे, लोग उतना ही इसका प्रचार करते थे। लोगों के आश्चर्य की सीमा न थी। वे कहते रहते थे, “वह जो कुछ करते हैं, अच्छा ही करते हैं। वह बहरों को कान और गूँगों को वाणी देते हैं।”

प्रभु का सुसमाचार।