सामान्य काल का पाँचवाँ सप्ताह, बुधवार – वर्ष 1

पहला पाठ

उत्पत्ति ग्रन्थ 2:4-9,15-17

“प्रभु ने मनुष्य को अदन की वाटिका में रख दिया।”

जिस समय प्रभु-ईश्वर ने पृथ्वी और आकाश बनाया, उस समय पृथ्वी पर न तो जंगली पौधे थे और न खेतों में घास उगी थी; क्योंकि प्रभु-ईश्वर ने पृथ्वी पर पानी नहीं बरसाया था और कोई मनुष्य भी नहीं था, जो खेती-बारी करे, भूमि में से पानी निकाले और धरती की सिंचाई करे। तब प्रभु ने धरती की मिट्टी से मनुष्य को गढ़ा और उसके नथनों में प्राणवायु फूँक दी। इस प्रकार मनुष्य एक सजीव सत्त्व बन गया। इसके बाद ईश्वर ने पूर्व की ओर, अदन में एक वाटिका लगायी और उस में अपने द्वारा गढ़े इस मनुष्य को रखा। प्रभु-ईश्वर ने धरती से सब प्रकार के वृक्ष उगाये, जो देखने में सुन्दर थे और जिनके फल स्वादिष्ट थे। वाटिका के बीचोबीच जीवन-वृक्ष था और भले-बुरे के ज्ञान का वृक्ष भी। तब प्रभु-ईश्वर ने मनुष्य को अदन की वाटिका में रख दिया, जिससे वह उसकी खेती-बारी और देख-रेख करता रहे। प्रभु-ईश्वर ने मनुष्य को यह आदेश दिया, “तुम वाटिका के सभी वृक्षों के फल खा सकते हो, किन्तु भले-बुरे के ज्ञान के वृक्ष का फल नहीं खाना; क्योंकि जिस दिन तुम उसका फल खाओगे, तुम अवश्य मर जाओगे।”

प्रभु की वाणी।

भजन : स्तोत्र 103:1-2,27-30

अनुवाक्य : मेरी आत्मा प्रभु का स्तुतिगान करे।

1. मेरी आत्मा प्रभु का स्तुतिगान करे। हे प्रभु ! मेरे ईश्वर ! तू कितना महान्‌ है। तू महिमा तथा प्रताप से समन्वित है। तू प्रकाश को चादर की तरंह ओढे है।

2. सब तुम से यह आशा करते हैं कि तू समय पर उन्हें भोजन प्रदान करे। तू उन्हें देता है और वे बटोर लेते हैं, तू अपना हाथ खोलता है और बे तृप्त हो जाते हैं।

3. तू उनके प्राण वापस लेता है, तो वे मरते और फिर मिट्टी में मिल जाते हैं। तू प्राण फूँक देता है, तो वे फिर पुनर्जीवित हो जाते हैं। और तू पृथ्वी का रूप नया कर देता है।

जयघोष : योहन 17:17

अल्लेलूया ! हे प्रभु ! तेरी शिक्षा ही सत्य है। तू सत्य की सेवा में हमें समर्पित कर। अल्लेलूया।

सुसमाचार

मारकुस के अनुसार पवित्र सुसमाचार 7:14-23

“जो मनुष्य में से निकलता है, वही उसे अशुद्ध कर देता है।”

येसु ने बाद में लोगों को फिर अपने पास बुलाया और कहा, “तुम लोग, सब के सब, मेरी बात सुनो और समझो। ऐसा कुछ भी नहीं है जो बाहर से मनुष्य में प्रवेश कर उसे अशुद्ध कर सके; बल्कि जो मनुष्य में से निकलता है, वही उसे अशुद्ध कर देता है। जिसके सुनने के कान हों, वह सुन ले।” जब येसु लोगों को छोड़ कर घर आ गये थे, तो उनके शिष्यों ने इस दृष्टान्त का अर्थ पूछा। येसु ने कहा, “क्या तुम लोग भी इतने नासमझ हो? क्याष तुम यह नहीं समझते कि जो कुछ बाहर से मनुष्य में प्रवेश करता है, वह उसे अशुद्ध नहीं कर सकता? क्योंकि वह तो उसके मन में नहीं, बल्कि उसके पेट में चला जाता है और शौचघर में निकलता है।” इस तरह वह सब खाद्य पदार्थ शुद्ध ठहराते थे। येसु ने फिर कहा, “जो मनुष्य में से निकलता है, वही उसे अशुद्ध करता है। क्योंकि बुरे विचार भीतर से, अर्थात्‌ मनुष्य के मन से निकलते हैं। व्यभिचार, चोरी, हत्या, परगमन, लोभ, विद्वेष, छल-कपट, लम्पटता, ईर्ष्या, झूठी निन्दाा, अहंकार और मूर्खता - ये सब बुराइयाँ भीतर से निकलती हैं और मनुष्य को अशुद्ध कर देती हैं। "

प्रभु का सुसमाचार।