ईश्वर ने कहा, “पानी जीव-जन्तुओं से भर जाये और आकाश के नीचे पृथ्वी के पक्षी उड़ने लगें,” और ऐसा ही हुआ। ईश्वर ने मकर और नाना प्रकार के जीव-जन्तुओं की सृष्टि की, जो पानी में भरे हुए हैं और उसने नाना प्रकार के पक्षियों की भी सृष्टि की। और यह ईश्वर को अच्छा लगा। ईश्वर ने यह कह कर उन्हें आशीर्वाद दिया, “फलो-फूलो। समुद्र के पानी में भर जाओ और पृथ्वी पर पक्षियों की संख्या बढ़ती जाये।” संध्या हुई और फिर भोर हुआ - यह पाँचवा दिन था। ईश्वर ने कहा, “पृथ्वी नाना प्रकार के घरेलू, जमीन पर रेंगने वाले और जंगली जीव-जन्तुओं को पैदा करे”, और ऐसा ही हुआ। ईश्वर ने नाना प्रकार के जंगली, घरेलू और जमीन पर रेंगने वाले जीव-जन्तुओं को बनाया। और यह ईश्वर को अच्छा लगा। ईश्वर ने कहा, “हम मनुष्य को अपना प्रतिरूप बनायें, वह हमारे सदृश हो। वह समुद्र की मछलियों, आकाश के पक्षियों, घरेलू और जंगली जानवरों और जमीन पर रेंगने वाले सब जीव-जन्तुओं पर शासन करे।” ईश्वर ने मनुष्य को अपना प्रतिरूप बनाया; उसने उसे ईश्वर का प्रतिरूप बनाया; उसने नर और नारी के रूप में उनकी सृष्टि की। ईश्वर ने यह कह कर उन्हें आशीर्वाद दिया, “फलो-फूलो। पृथ्वी पर फैल जाओ और उसे अपने अधीन कर लो। समुद्र की मछलियों, आकाश के पक्षियों और पृथ्वी पर विचरने वाले सब जीव-जन्तुओं पर शासन करो।” ईश्वर ने कहा, “मैं तुम को पृथ्वी भर के बीज पैदा करने वाले सब पौधे और बीजदार फल देने वाले सब पेड़ दे देता हूँ। यह तुम्हारा भोजन होगा। मैं सब जंगली जानवरों को, आकाश के सब पक्षियों को, पृथ्वी पर विचरने वाले जीव-जन्तुओं को उनके भोजन के लिए पौधों की हरियाली दे देता हूँ।” और ऐसा ही हुआ। ईश्वर ने अपने द्वारा बनाया हुआ सब कुछ देखा और यह उस को अच्छा लगा। संध्या हुई और फिर भोर हुआ - यह छठा दिन था। इस प्रकार आकाश तथा पृथ्वी, और जो कुछ उन में है, सब की सृष्टि पूरी हुई। सातवें दिन ईश्वर का किया हुआ कार्य समाप्त हुआ। उसने अपना समस्त कार्य समाप्त कर, सातवें दिन विश्राम किया। ईश्वर ने सातवें दिन को आशीर्वाद दिया और उसे पवित्र माना; क्योंकि उस दिन उसने सृष्टि का समस्त कार्य समाप्त कर विश्राम किया था। यह है स्वर्ग और पृथ्वी की उत्पत्ति का वृत्तान्त।
प्रभु की वाणी।
अनुवाक्य : हे प्रभु ! हमारे ईश्वर ! तेरा नाम समस्त पृथ्वी पर कितना महान् है।
1. जब मैं तेरे बनाये हुए आकाश, चाँद और तारे देखता हूँ, तो सोचने लगता हूँ - मनुष्य क्या है, जो तू उसकी सुध ले? आदम का पुत्र क्या है, जो तू उसकी देखभाल करे?
2. तूने उसे स्वर्गदूत से कुछ ही कम बनाया और उसे महिमा तथा सम्मान का मुकुट पहनाया। तूने उसे अपनी सृष्टि पर अधिकार दिया और सब-कुछ उसके पैरों तले डाल दिया।
3. सब भेड्-बकरियों, गाय-बैलों और जंगल के बनैले पशुओं को; आकाश के पक्षियों, समुद्र की मछलियों और सारे जलचारी जन्तुओं को।
अल्लेलूया ! हे ईश्वर ! मेरे हृदय में अपने नियमों का प्रेम रोपने और मुझे अपनी आज्ञाएँ सिखाने की कृपा कर। अल्लेलूया !
'फरीसी और येरुसालेम से आये हुए कई शास्त्री येसु के पास इकट्ठे हो गये। वे यह देख रहे थे कि उनके शिष्य अशुद्ध याने बिना धोये हुए हाथों से रोटी खा रहे हैं। पुरखों की परम्परा के अनुसार फ़रीसी और सभी यहूदी बिना हाथ धोये भोजन नहीं करते। बाजार से लौट कर वे अपने ऊपर पानी छिड़के बिना भोजन नहीं करते और अन्य बहुत-से परम्परागत रिवाजों का पालन करते हैं - जैसे प्यालों, सुराहियों और काँसे के बरतनों का शुद्धीकरण। इसलिए फ़रीसियों और शास्त्रियों ने येसु से पूछा, “आपके शिष्य पुरखों की परम्परा के अनुसार क्यों नहीं चलते? वे क्यों अशुद्ध हाथों से रोटी खाते हैं?” येसु ने उत्तर दिया, “इसायस ने तुम ढोंगियों के विषय में ठीक ही भविष्यवाणी की है। जैसा कि लिखा है - ये लोग मुख से मेरा आदर करते हैं, परन्तु इनका हृदय मुझ से दूर है। ये व्यर्थ ही मेरी पूजा करते हैं; और जो शिक्षा ये देते हैं, वह है मनुष्य के बनाये हुए नियम मात्र। तुम लोग मनुष्य की चलायी हुई परम्परा बनाये रखने के लिए ईश्वर की आज्ञा टाल देते हो।” येसु ने उन से कहा, “तुम लोग अपनी ही परम्परा का पालन करने के लिए ईश्वर की आज्ञा रद्द करते हो; क्योंकि मूसा ने कहा, “अपने पितां और अपनी माता का आदर करो; और जो अपने पिता और अपनी माता को शाप दे, उसे प्राणदंड दिया जाये। ' परन्तु तुम लोग यह मानते हो कि यदि कोई अपने पिता अथवा अपनी माता से कहे - आप को मुझ से जो लाभ हो सकता था, वह कुरबान (अर्थात् ईश्वर को अर्पित) है, तो उस समय से वह अपने पिता अथवा अपनी माता के लिए कुछ नहीं कर सकता है। इस तरह तुम लोग अपनी परम्परा के नाम पर, जिसे तुम बनाये रखते हो, ईश्वर का वचन रद्द करते हो और इस प्रकार के और भी बहुत-से काम करते रहते हो।”
प्रभु का सुसमाचार।