आप लोग ऐसे पर्वत के निकट नहीं पहुँचे हैं, जिसे आप स्पर्श कर सकते हैं। यहाँ न तो सिनाई पर्वत की धधकती अग्नि है, और न काले बादल, न घोर अन्धकार, बवण्डर, तुरही का निनाद और न बोलने वाले की ऐसी वाणी, जिसे सुन कर इस्राएली यह विनय करते थे कि वह फिर हम से कुछ न कहे। वह दृश्य इतना भयानक था कि मूसा बोल उठा, “मैं भय से काँप रहा हूँ।” आप लोग सियोन पर्वत, जीवन्त ईश्वर के नगर, स्वर्गीय येरुसालेम के पास पहुँचे हैं, जहाँ लाखों स्वर्गदूत, स्वर्ग के पहले नागरिकों का आनन्दमय समुदाय, सबों का न्यायकर्ता ईश्वर, धर्मियों की पूर्णता-प्राप्त आत्माएँ, और नवीन विधान के मध्यस्थ येसु विराजमान हैं, जिनका छिड़काया हुआ रक्त हाबिल के रक्त से कहीं अधिक कल्याणकारी है।
प्रभु की वाणी।
अनुवाक्य : हे प्रभु ! हम तेरे मंदिर में तेरे प्रेम का मनन करते हैं।
1. हमारे ईश्वर के नगर में प्रभु महान् और अत्यन्त प्रशंसनीय है। उसका पवित्र पर्वत ऊँचा और मनोहर है, वह समस्त पृथ्वी को आनन्द प्रदान करता है।
2. सियोन का पर्वत ! पृथ्वी का ध्रुव ! राजाधिराज का नगर ! ईश्वर उसके गढ़ों मंि निवास करता और उसे सुरक्षित रखता है।
3/. जैसा कि हमने पहले सुना था, वैसा ही हमने अब देखा भी है - विश्वमंडल का प्रभु इस नगर में निवास करता है। प्रभु इसे सदा सुदृढ़ बनाये रखता है।
4. हे प्रभु ! हम तेरे मंदिर में तेरे प्रेम का मनन करते हैं। हे ईश्वर ! तेरा नाम और तेरी स्तुति पृथ्वी के सीमान्तों तक फैल जाती है। तेरा दाहिना हाथ न्याय से भरा है।
अल्लेलूया ! ईश्वर का राज्य निकट आ गया है। सुसमाचार में विश्वास करो। अल्लेलूया !
येसु बारहों को अपने पास बुला कर और उन्हें अपदूतों पर अधिकार दे कर, दो-दो करके, भेजने लगे। येसु ने आदेश दिया कि वे लाठी के सिवा रास्ते के लिए कुछ भी नहीं ले जायें - न रोटी, न मोली, न फेंटे में पैसा। वे पैरों में चप्पल बाँधें और दो कुरते नहीं पहनें। उन्होंने उन से कहा, “जिस घर में ठहरने जाओ, नगर से विदा होने तक वहीं रहो। यदि किसी स्थान पर लोग तुम्हारा स्वागत न करें और तुम्हारी बातें न सुनें, तो वहाँ से निकल कर उन्हें चेतावनी देने के लिए अपने पैरों की धूल झाड़ दो।” वे चले गये। उन्होंने लोगों को पश्चात्ताप का उपदेश दिया, बहुत-से अपदूतों को निकाला और बहुत-से रोगियों पर तेल लगा कर उन्हें चंगा किया।
प्रभु का सुसमाचार।