सामान्य काल का तीसरा सप्ताह, शनिवार - वर्ष 1

पहला पाठ

इब्रानियों के नाम पत्र 11:1-2,18-19

“वह उस नगर की प्रतिक्षा में था जिसका वास्तुकार तथा निर्माता ईश्वर है।”

विश्वास उन बातों की स्थिर प्रतीक्षा है, जिसकी हम आशा करते हैं और उन वस्तुओं के अस्तित्व के विषय में दृढ़ धारणा है, जिन्हें हम नहीं देखते। विश्वास के कारण हमारे पूर्वज ईश्वर के कृपापात्र बन गये। विश्वास के कारण इब्राहीम ने ईश्वर का बुलावा स्वीकार किया और यह न जानते हुए भी कि मैं कहाँ जा रहा हूँ उसने उस देश के लिए प्रस्थान किया, जिसका वह उत्तराधिकारी बनने वाला था। विश्वास के कारण वह परदेशी की तरह प्रतिज्ञात देश में बस गया और वहाँ इसहाक तथा याकूब के साथ, जो एक ही प्रतिज्ञा के उत्तराधिकारी थे, तम्बुओं में रहने लगा। इब्राहीम ने ऐसा किया, क्योंकि वह उस बसे हुए नगर की प्रतीक्षा में था, जिसका वास्तुकार तथा निर्माता ईश्वर है। विश्वास के कारण ही सारा, उम्र ढल जाने पर भी, गर्भवती हो सकी, क्योंकि उसका विचार यह था कि जिसने प्रतिज्ञा की है, वह सच्चा है। और इसलिए एक मरणासन्न व्यक्ति से वह सन्तति उत्पन्न हुई, जो आकाश के तारों की तरह असंख्य है और सागर-तट के बालू के कणों की तरह अगणित। प्रतिज्ञा का फल पाये बिना, ये सब विश्वास करते हुए मर गये। उन्होंने उसे दूर से देखा और उसका स्वागत किया। वे अपने को पृथ्वी पर परदेशी तथा प्रवासी मानते थे। जो इस तरह की बातें कहते हैं, वे यह स्पष्ट कर देते हें कि वे स्वदेश की खोज में लगे रहते हैं। वे उस देश की बात नहीं सोचते थे, जहाँ से वे चले गये थे; क्योंकि वे वहाँ लौट सकते थे। वे तो एक उत्तम स्वदेश अर्थात्‌ स्वर्ग की खोज में लगे हुए थे। इसलिए ईश्वर उन लोगों का ईश्वर कहलाने से नहीं लजाता; उसने तो उनके लिए एक नगर का निर्माण किया है। जब ईश्वर इब्राहीम की परीक्षा ले रहा था, तब विश्वास के कारण उसने इसहाक को अर्पित किया। वह अपने एकलौते पुत्र को बलि चढ़ाने तैयार हो गया था, यद्यपि उसे यह प्रतिज्ञा की गयी थी कि , इसहाक से तेरा वंश चलेगा। इब्राहीम का विचार यह था कि ईश्वर मृतकों को भी जिला सकता है। इसलिए उसने अपने पुत्र को फिर प्राप्त किया। यह भविष्य के लिए प्रतीक था।

प्रभु की वाणी।

भजन : लूकस 1:69-75

अनुवाक्य : धन्य है प्रभु, इस्राएल का ईश्वर ! उसने अपनी प्रजा की सुध ली है।

1. प्रभु ने अपने दास दाऊद के वंश में हमारे लिए एक शक्तिशाली मुक्तिदाता उत्पन्न किया है। वह अपने पवित्र नबियों के मुख से प्राचीन काल से यह कहता आया है।

2. कि वह शत्रुओं और सब बैरियों के हाथ से हमें छुड़ायेगा और अपने पवित्र विधान को स्मरण कर हमारे पूर्वजों पर दया करेगा।

3. उसने शपथ खा कर हमारे पिता इब्राहीम से कहा था कि वह हम को शत्रुओं के हाथ से मुक्त करेगा। जिससे हम निर्भयता, पवित्रता और धार्मिकता से जीवन भर उसके सम्मुख उसकी सेवा कर सकें।

जयघोष : योहन 3:16

अल्लेलूया ! ईश्वर ने संसार को इतना प्यार किया कि उसने उसके लिए अपने एकलौते पुत्र को अर्पित कर दिया, जिससे जो कोई उस में विश्वास करे, वह अनन्त जीवन प्राप्त करे। अल्लेलूया !

सुसमाचार

मारकुस के अनुसार पवित्र सुसमाचार 4:35-40

“आखिर यह कौन है? वायु और समुद्र भी इनकी आज्ञा मानते हैं।”

उसी दिन, संध्या हो जाने पर, येसु ने अपने शिष्यों से कहा, “हम उस पार चलें।” लोगों को विदा करने के बाद शिष्य येसु को उसी नाव पर ले गये, जिस पर वह बैठे हुए थे। दूसरी नावें भी उनके साथ चलीं। उस समय एकाएक झंझावात उठा। लहरें इतने जोर से नाव से टकराने लगीं कि वह पानी से भरी जा रही थी। येसु दुम्बाल में तकिया लगाये सो रहे थे। शिष्यों ने उन्हें जगा कर कहा, “गुरुवर ! हम डूब रहे हैं! क्या आप को इसकी कोई चिंता नहीं?” वह जग गये और उन्होंने वायु को डाँट और समुद्र से कहा, “शांत हो ! थम जा !” वायु मंद हो गयी और पूर्ण शांति छा गयी। उन्होंने अपने शिष्यों से कहा, “तुम लोग इस प्रकार क्यों डर जाते हो? क्या। तुम्हें अब तक विश्वास नहीं है?” उन पर भय छा गया और वे आपस में यह कहने लगे, “आखिर यह कौन है? वायु और समुद्र भी इनकी आज्ञा मानते हैं।”

प्रभु का सुसमाचार।