प्रभु-प्रकाश के बाद का शनिवार

पहला पाठ

सन्त योहन का पहला पत्र 5:14-21

“हम जो कुछ भी माँगें, वह हमारी सुनता है।”

हमें ईश्वर पर यह भरोसा है कि यदि हम उनके इच्छानुसार उस से कुछ भी माँगते हैं, तो वह हमारी सुनता है। यदि हम यह जानते हैं कि हम जो कुछ भी माँगें, वह हमारी सुनता है, तो हम यह भी जानते हैं कि हमने जो कुछ माँगा है, वह हमें मिल गया है। यदि कोई अपने भाई को ऐसा पाप करते देखता है जो प्राणघातक न हो, तो वह उसके लिए प्रार्थना करे और ईश्वर उसका जीवन सुरक्षित रखेगा - यह उन लोगों पर लागू है जिनका पाप प्राणघातक नहीं है। क्योंकि एक ऐसा पाप होता ह जो प्राणघातक है - इसके विषय में मैं नहीं कहता कि प्रार्थना करनी चाहिए। हर अधर्म पाप है, किन्तु हर पाप प्राणघातक नहीं । हम जानते हैं कि ईश्वर की सन्तान पाप नहीं करती। ईश्वर का पुत्र उसकी रक्षा करता है और वह दुष्ट के वश में नहीं आता। हम जानते हैं कि हम ईश्वर के हैं, जब कि समस्त संसार दुष्ट के वश में है। हम जानते हैं कि ईश्वर का पुत्र आया है और उसने हमें सच्चे ईश्वर को पहचानने का विवेक दिया है। और हम सच्चे ईश्वर में निवास करते हैं, क्योंकि हम उसके पुत्र ईसा मसीह में निवास करते हैं। यही सच्चा ईश्वर और अनन्त जीवन है। बच्चो ! असत्य देवताओं से अपने को बचाये रखो।

प्रभु की वाणी।

भजन : स्तोत्र 149:1-6,9

अनुवाक्य : प्रभु अपनी प्रजा को प्यार करता है। (अथवा: अल्लेलूया !)

1. प्रभु के आदर में नया गीत गाओ, भक्तों की मण्डली में उसकी स्तुति करो। इस्राएल अपने सृष्टिकर्त्ता में आनन्द मनाये। सियोन के पुत्र अपने राजा का जयकार करें।

2. बे नृत्य करते हुए उसका नाम धन्य कहें, डफली और सितार बजाते हुए उसकी स्तुति करें। क्योंकि प्रभु अपनी प्रजा को प्यार करता और पदुदलितों का उद्धार करता है।

3. प्रभु के भक्त विजय के गीत सुनायें और अपने यहाँ आनन्द मनाएँ। वे प्रभु की स्तुति करते रहें। इस में सभी भक्तों का गौरव है।

जयघोष : मत्ती 4:16

अल्लेलूया ! अंधकार में रहने वालों ने एक महती ज्योति देखी है। मृत्यु के अंधकारमय प्रदेश में बैठने वालों पर ज्योति का उदय हुआ है। अल्लेलूया !

सुसमाचार

योहन के अनुसार पवित्र सुसमाचार 3:22-30

“वर का मित्र वर की वाणी पर आनन्दित हो उठता है।”

इसके बाद येसु अपने शिष्यों के साथ यहूदिया प्रदेश आये। वह उनके साथ वहाँ रह गये और बपतिस्मा देने लगे। योहन भी सलीम के निकट एनोन में बपतिस्मा दे रहा था, क्योंकि वहाँ बहुत पानी था। लोग वहाँ आ कर बपतिस्मा ग्रहण करते थे। योहन उस समय तक गिरफ्तार नहीं हुआ था। योहन के शिष्यों और यहूदियों में शुद्धीकरण के विषय में विवाद छिड़ गया। उन्होंने योहन के पास जा कर कहा, “गुरुवर ! देखिए, जो यर्दन के उस पार आपके साथ थे और जिनके विषय में आपने साक्ष्य दिया है, वह बपतिस्मा देते हैं और सब लोग उनके पास जाते हैं।” योहन ने उत्तर दिया, “मनुष्य को वही प्राप्त हो सकता है, जो उसे स्वर्ग की ओर से दिया जाये। तुम लोग स्वयं साक्षी हो कि मैंने यह कहा है, 'मैं मसीह नहीं हूँ'। मैं तो उनका अग्रदूत हूँ। वधू वर की ही होती है; परन्तु वर का मित्र, जो साथ रह कर वर को सुनता है, उसकी वाणी पर आनन्दित हो उठता है। मेरा आनन्द ऐसा ही है और अब वह परिपूर्ण है। यह उचित है कि वह बढ़ते जायें और 'मैं घटता जाऊँ।

प्रभु का सुसमाचार।