प्रभु-प्रकाश के बाद का बृहस्पतिवार

पहला पाठ

सन्त योहन का पहला पत्र 4:19-5:4

“जो ईश्वर को प्यार करता है, उसे अपने भाई को भी प्यार करना चाहिए।''

हम प्यार करते हैं क्योंकि उसने पहले हमें प्यार किया। यदि कोई यह कहे कि मैं ईश्वर को प्यार करता हूँ और वह अपने भाई से बैर करे, तो वह झूठा है। यदि वह अपने भाई को, जिसे वह देखता है, प्यार नहीं करता, तो वह ईश्वर को, जिसे उसने कभी देखा नहीं, प्यार नहीं कर सकता। इसलिए हमें मसीह से यह आदेश मिला है कि जो ईश्वर को प्यार करता है, उसे अपने भाई को भी प्यार करना चाहिए। जो यह विश्वास करता कि येसु ही मसीह हैं, वह ईश्वर की सन्तान है और जो जन्मदाता को प्यार करता है, वह उसकी सन्तान को भी प्यार करता है। इसलिए यदि हम ईश्वर को प्यार करते हैं और उसकी आज्ञाओं का पालन करते हैं, तो हमें ईश्वर की सन्तान को भी प्यार करना चाहिए। ईश्वर की आज्ञाओं का पालन करना - यही ईश्वर का प्रेम है। उसकी आज्ञाएँ भारी नहीं हैं, क्योंकि ईश्वर की हर सन्तान संसार पर विजयी हो जाती है। वह विजय, जो संसार को परास्त कर देती है, हमारा विश्वास ही है।

प्रभु की वाणी।

भजन : स्तोत्र 71:2,14-15,17

अनुवाक्य : हे प्रभु ! सभी राष्ट्र तुझे दण्डवत्‌ करेंगे।

1. हे ईश्वर ! राजा को अपना न्याय-अधिकार, राजपुत्र को अपनी न्यायशीलता प्रदान कर, जिससे वह तेरी प्रजा का न्यायपूर्वक शासन करें और पद्दलितों की रक्षा करें।

2. वह उन्हें अन्याय और अत्याचार से बचायेंगे, क्योंकि वह उनके प्राणों का मूल्य समझते हैं। लोग उनके लिए निरन्तर प्रार्थना करेंगे और उन्हें सदा धन्य कहेंगे।

3. उनका नाम सदा-सर्वदा धन्य हो और सूर्य की तरह बना रहे। वह पृथ्वी के सब निवासियों का कल्याण करेंगे और समस्त राष्ट्र उन्हें धन्य कहेंगे।

जयघोष : लूकस 4:18-19

अल्लेलूया ! प्रभु ने मुझे दरिद्रों को सुसमाचार सुनाने और बंदियों को मुक्ति का संदेश देने भेजा है। अल्लेलूया !

सुसमाचार

सन्त लूकस के अनुसार प्रवित्र सुसमाचार 4:14-22

“धर्मग्रन्य का यह कथन आज पूरा हो गया है।”

आत्मा के सामर्थ्य से सम्पन्न हो कर येसु गलीलिया लौटे और उनकी ख्याति सारे प्रदेश में फैल गयी। वह उनके सभागृहों में शिक्षा दिया करते थे और सब उनकी प्रशंसा करते थे। येसु नाज़रेत आये, जहाँ उनका. पालन-पोषण हुआ था। विश्राम के दिन वह अपनी आदत के अनुसार सभागृह गये। वह पढ़ने के लिए उठ खड़े हुए और उन्हें नबी इसायस की पुस्तक दी गयी। पुस्तक खोल कर येसु ने वह- स्थान निकाला जहाँ लिखा है; प्रभु का आत्मा मुझ पर छाया रहता है, क्योंकि उसने मेरा अभिषेक किया है। उसने मुझे भेजा है जिससे मैं दरिद्रों को सुसमाचार सुनाऊँ, बंदियों को मुक्ति का और अंधों को दृष्टिदान का संदेश दूँ, दलितों को स्वतंत्रता प्रदान करूँ और प्रभु के अनुग्रह का वर्ष घोषित करूँ। येसु ने पुस्तक बंद कर दी और उसे सेवक को दे कर वह बैठ गये। सभागृह के सब लोगों की आँखें उन पर लगी हुई थीं। तब वह उन से कहने लगे, “धर्मग्रन्थ का यह कथन आज तुम लोगों के सामने पूरा हो गया है।” सबों ने उनकी प्रशंसा की। वे उनके मनोहर शब्द सुन कर अचंभे में पड़ गये।

प्रभु का सुसमाचार।