8 जनवरी (या प्रभु-प्रकाश के बाद का मंगलवार)

पहला पाठ

सन्त योहन का पहला पत्र 4:7-10

“ईश्वर प्रेम है।”

प्रिय भाइयो ! हम एक दूसरे को प्यार करें, क्योंकि प्रेम ईश्वर से उत्पन्न होता है। जो प्यार करता है, वह ईश्वर की सन्तान है और ईश्वर को जानता है। जो प्यार नहीं करता, वह ईश्वर को नहीं जानता, क्योंकि ईश्वर प्रेम है। ईश्वर हम को प्यार करता है, वह इस से प्रकट हुआ है कि ईश्वर ने अपने एकलौते पुत्र को संसार में भेजा, जिससे हम उसके द्वारा जीवन प्राप्त करें। ईश्वर के प्रेम की पहचान इस में है कि पहले हमने ईश्वर को नहीं, बल्कि ईश्वर ने हम को प्यार किया और हमारे पापों के प्रायशिचत्त के लिए अपने पुत्र को भेजा है।

प्रभु की वाणी।

भजन : स्तोत्र 71:2-4, 7-8

अनुवाक्य : हे प्रभु ! सभी राष्ट्र तुझे दण्डवत करेंगे।

1. हे ईश्वर ! राजा को अपना न्याय-अधिकार, राजपुत्र को अपनी न्यायशीलता प्रदान कर, जिससे वह तेरी प्रजा का न्यायपूर्वक शासन करें और पद्दलितों की रक्षा करें।

2. पर्वत और पहाड़ियाँ जनता के लिए शांति और न्याय उत्पन्न करें। वह पद्दलितों की रक्षा करेंगे और दरिद्रों की सन्तति का उद्धार करेंगे।

3. उनके राज्यकाल में न्याय फलेगा-फूलेगा और अपार शांति सदा-सर्वदा छायी रहेगी। उनका राज्य एक समुद्र से दूसरे समुद्र तक, पृथ्वी के सीमान्तों तक फैल जायेगा।

जयघोष : लूकस 4:18-19

अल्लेलूया ! प्रभु ने मुझे दरिद्रों को सुसमाचार सुनाने और बंदियों को मुक्ति का संदेश देने भेजा है। अल्लेलूया !

सुसमाचार

मारकुस के अनुसार पवित्र सुसमाचार 6:33-44

“येसु रोटियों का चमत्कार दिखा कर अपने को नबी के रूप में प्रकट करते हैं।”

येसु ने एक विशाल जनसमूह देखा और उन्हें उन लोगों पर तरस आया, क्योंकि वे बिना चरवाहे की भेड़ों की तरह थे और वह उन्हें बहुत-सी बातों की शिक्षा देने लगे। जब दिन ढलने लगा, तो उनके शिष्यों ने उनके पास आ कर कहा, “यह स्थान निर्जन है और दिन ढल चुका है। लोगों को विदा कीजिए, जिससे वे आस-पास की बस्तियों और गाँवों में जा कर खाने के लिए कुछ खरीद लें।” येसु ने उन्हें उत्तर दिया, “'तुम लोग ही उन्हें खाना दे दो''। शिष्यों ने कहा, “क्या हम जा कर दो सौ दीनार की रोटियाँ खरीद लें और उन्हें लोगों को खिला दें?'' येसु ने पूछा, “तुम्हारे पास कितनी रोटियाँ हैं? जा कर देखो।” उन्होंने पता लगा कर कहा, “पाँच रोटियाँ और दो मछलियाँ।” इस पर येसु ने सब को अलग-अलग टोलियों में हरी घास पर बैठाने का आदेश दिया। लोग सौ-सौ और पचास-पचास की टोलियों में बैठ गये। येसु ने वे पाँच रोटियाँ और दो मछलियाँ ले लीं और स्वर्ग की ओर आँखें उठा कर आशिष की प्रार्थना पढ़ी। वह रोटियाँ तोड़-तोड़ कर अपने शिष्यों को देते गये, ताकि वे लोगों को परोसते जायें। उन दो मछलियों को भीं उन्होंने सब में बाँट दिया। सबों ने खाया और खा कर तृप्त हो गये। रोटियों और मछलियों के बचे हुए टुकड़ों से बारह टोकरे भर गये। रोटी खाने वाले पुरुषों की संख्या पाँच हजार थी।

प्रभु का सुसमाचार।