पवित्र परिवार का पर्व - वर्ष B

पहला पाठ

उत्पत्ति-ग्रंथ 15:1-6; 21:1-3

“तुम्हारे असंख्य वंशज होंगे। मैं उन्हें यह देश प्रदान करूँगा।”

अब्राम ने एक दिव्य दर्शन में ईश्वर की वाणी को यह कहते हुए सुना, “अब्राम ! मत डरो ! मैं तुम्हारी ढाल हूँ। तुम्हारा पुरस्कार महान्‌ होगा। ” अब्राम ने कहा, “हे प्रभु-ईश्वर ! तू मुझे क्या दे सकता है? मैं निस्सन्तान हूँ और मेरे घर का उत्तराघिकारी दमिश्क.का एलिआज़ार है। ” अब्राम ने फिर कहा, “तूने मुझे कोई सन्तान नहीं दी, मेरा नौकर मेरा उत्तराधिकारी होगा।” तब प्रभु ने उस से यह कहा, “वह तुम्हारा उत्तराधिकारी नहीं होगा। तुम्हारा औरस पुंत्र ही तुम्हारा उत्तराधिकारी होगा।” ईश्वर ने अब्राम को बाहर ले जा कर कहा, “आकाश की ओर दृष्टि लगाओ और संभव हो, तो तारों की गिनती करो।” उसने उस से यह भी कहा, “तुम्हारी संतति इतनी ही बड़ी होगी। ” अब्राम ने ईश्वर में विश्वास किया और इस कारण प्रभु ने उसे धार्मिक माना। प्रभु ने अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार सारा पर कृपादृष्टि की। प्रभु ने सारा के प्रति अपना वचन पूरा किया। सारा गर्भवती हुई और ईश्वर द्वारा निश्चित समय पर उसे इब्राहीम से उसकी वृद्धावस्था में एक पुत्र पैदा हुआ। इब्राहीम ने सारा से उत्पन्न अपने पुत्र का नाम इसाहक रखा।

प्रभु की वाणी।

भजन : स्तोत्र 104:1-6, 8-9

अनुवाक्य : प्रभु ही हमारा ईश्वर है। प्रभु को अपना विधान सदा स्मरण रहता है।

1. प्रभु की स्तुति करो, उसका नाम धन्य कहो; राष्ट्रों में उसके महान्‌ कार्यों का बखान करो। उसके आदर में गीत गाओ और बाजा बजाओ; उसके सब: चमत्कारों को घोषित करो।

2. उसके पवित्र नाम पर गौरव करो। प्रभु को खोजने वालों का हदय आनन्दित हो। प्रभु और उसके सामर्थ्य का मनन करो। उसके दर्शनों के लिए लालायित रहो।

3. उसके चमत्कार, उसके अपूर्व कार्य और उसके निर्णय याद रखो। प्रभु-भक्त इब्राहीम की सन्तति ! याकूब के पुत्रो ! प्रभु की चुनी हुई प्रजा !

4. प्रभु को अपना विधान सदा स्मरण रहता है, हज़ारों पीढ़ियों के लिए अपनी प्रतिज्ञाएँ, इब्राहीम के लिए निर्धारित विधान, इसहाक के सामने खायी हुई शपथ।

दूसरा पाठ

इब्रानियों के नाम पत्र 11:8,11-12, 17-19

इब्राहीम, सारा और इसहाक का विश्वास।

विश्वास के कारण इब्राहीम ने ईश्वर का बुलावा स्वीकार किया और यह न जानते हुए भी कि वह कहाँ जा रहा है, उसने उस देश के लिए प्रस्थान किया, जिसका वह उत्तराधिकारी बनने वाला था। विश्वास के कारण उमर ढल जाने पर भी सारा गर्भवती हो सकी; क्योंकि उसका विचार यह था कि जिसने प्रतिज्ञा की है, वह सच्चा है और इसलिए एक मरणासत्न व्यक्ति से वह सन्तति उत्पन्न हुई, जो आकाश के तारों की तरह असंख्य है और सागर-तट के बालू के कणों की तरह अगणित। जब ईश्वर इब्राहीम की परीक्षा ले रहा था, तब विश्वास के कारण उसने इसहाक को अर्पित किया। वह अपने एकलौते पुत्र को बलि चढ़ाने तैयार हों गया था, यद्यपि उस से यह प्रतिज्ञा की गयी थी कि इसहाक से तेरा वंश चलेगा। इब्राहीम का विचार यह था कि ईश्वर मृतकों को भी जिला सकता है, इसलिए उसने अपने पुत्र को फिर प्राप्त किया। यह भविष्य के लिए प्रतीक था।

प्रभु की वाणी।

जयघोष : कलो० 3:15-16

अल्लेलूया, अल्लेलूया ! मसीह की शांति आपके हदयों में राज्य करे; मसीह की शिक्षा अपनी परिपूर्णता में आप लोगों में निवास करे। अल्लेलूया !

सुसमाचार

लूकस के अनुसार पवित्र सुसमाचार 2:22-40

बालक बढ़ता गया। उस में बुद्धि का विकास होता गया।

[जब मूसा की संहिता के अनुसार शुद्धीकरण का दिन आया, तब वे बालक को प्रभु को अर्पित करने के लिए येरुसालेम ले गये; जैसा कि प्रभु की संहिता में लिखा है : हर पहलौठा बेटा प्रभु को अर्पित किया जाये और इसलिए भी कि वे प्रभु की संहिता के अनुसार पंडुकों का एक जोड़ा या कपोत के दों बच्चे बलिदान में चढ़ायें।]

उस समय येरुसालेम में सिमेयोन नामक एक धर्मी तथा भक्त पुरुष रहता था। वह इस्राएल की सान्त्वना की प्रतीक्षा में था और पवित्र आत्मा उस पर छाया रहता था। उसे पवित्र आत्मा से यह सूचना मिली थी कि वह प्रभु के मसीह को देखे बिना नहीं मरेगा। वह पवित्र आत्मा की प्रेरणा से मंदिर आया। माता-पिता शिशु येसु के लिए संहिता की रीतियाँ पूरी करने जब उसे भीतर लाये, तो सिमेयोन ने येसु को अपनी गोद में ले लिया और ईश्वर की स्तुति करते हुए कहा, “हे प्रभु, अब तू अपने वचन के अनुसार अपने दास को शांति के साथ विदा कर; क्योंकि मेरी आँखों ने उस मुक्ति को देखा है जिसे तूने सब राष्ट्रों के लिए प्रस्तुत किया है। यह ग़ैर-यहूदियों के प्रबोधन के लिए ज्योति है और तेरी प्रजा इस्राएल का गौरव''। बालक के सम्बन्ध में ये बातें सुन कर उसके माता-पिता अचम्भे में पड़ गये। सिमेयोन ने उन्हें आशीर्वाद दिया और उसकी माता मरियम से यह कहा,’‘देखिए, इस बालक के कारण इस्राएल में बहुतों का पतन और उत्थान होगा। यह एक चिह्न है जिसका विरोध किया जायेगा, जिससे बहुत-से हृदयों के विचार प्रकट हो जाये; और एक तलवार आपके हृदय को आर-पार बेधेगी’‘। अन्ना नामक एक नबिया थी, जो असेर-वंशी फनुएल की बेटी थी। वह बहुत बूढ़ी हो चली थी। वह विवाह के बाद केवल सात बरस अपने पति के साथ रह कर विधवा हो गयी थी और अब चौरासी बरस की थी। वह मंदिर से बाहर नहीं जाती थी और उपवास तथा प्रार्थना करते हुए रात-दिन ईश्वर.की उपासना में लगी रहती थी। वह उसी घड़ी आ कर प्रभु की स्तुति करने लगी और जो लोग येरुसालेम की मुक्ति की प्रतीक्षा में थे, वह उन सबों को उस बालक के विषय में बताया करती थी।

[प्रभु की संहिता के अनुसार सब कुछ पूरा कर लेने के बाद वे गलीलिया - अपनी नगरी नाजरेत - लौट गये। वह बालक बढ़ता गया। उस में बल तथा बुद्धि का विकास होता गया और उस पर ईश्वर का अनुग्रह बना रहा। ]

प्रभु का सुसमाचार।