वर्ष का आठवाँ इतवार - वर्ष C

पहला पाठ

प्रवक्ता के प्रस्तुत प्रसंग में मनुष्य की परख की चरचा है। बाइबिल में इस बात पर बहुत बल दिया जाता है कि किसी समय हर मनुष्य की परीक्षा ली जायेगी। मनुष्य जो सोचता है, वह उसकी बातचीत से प्रकट होता है और उसके आधार पर उसकी परीक्षा होती है।

प्रवक्ता्-ग्र॑थ 27:4-7

“किसी की प्रशंसा मत करो, जब तक कि वह नहीं बोले।”

छलनी हिलाने से कचरा रह जाता है, बातचीत में मनुष्य के दोष व्यक्त हो जाते हैं। भट्टी में कुम्हार के बरतनों की, और बातचीत में मनुष्य की परख होती है। पेड़ के फल बाग की कसौटी होते हैं। और मनुष्य के वचनों से उसका स्वभाव पता चलता है। किसी की प्रशंसा मत करो, जब तक वह नहीं बोले; क्योंकि यहीं मनुष्य की कसौटी है।

प्रभु की वाणी।

भजन : स्तोत्र 91:2-3,13-16

अनुवाक्य : हे प्रभु ! तुझे धन्यवाद देना अच्छा है।

1. प्रभु को धन्यवाद देना अच्छा है। हे सर्वोच्च ! तेरे नाम का भजन गाना, प्रात: तेरे प्रेम का और रात को तेरी सत्यप्रतिज्ञता का बखान करना अच्छा है।

2. धर्मी खजूर की तरह फलेंगे-फूलेंगे और लेबानोन के देवदार की तरह बढ़ेंगे। वे प्रभु के मंदिर में रोपित हो कर हमारे ईश्वर के प्रांगण में फलेंगे-फूलेंगे।

3. वे लम्बी आयु तक फल उत्पन्न करते रहेंगे। वे रसदार और हरे-भरे बने रहेंगे, जिससे वे यह घोषित करते रहें - प्रभु सच्चा है, वह मेरी चट्टान है, उस में कुछ भी कपट नहीं।

दूसरा पाठ

सन्त पौलुस पाप और मृत्यु में गहरा सम्बन्ध मानते हैं। येसु मसीह ने पाप और इसलिए मृत्यु पर विजय पायी है। यही कारण है कि हमें ईश्वर को धन्यवाद देते रहना चाहिए। ईश्वर ने हमें मसीह द्वारा पाप तथा मृत्यु पर विजय प्रदान की हें।

कुरिंथियों के नाम सन्त पौलुस का पहला पत्र 15:54-58

“उसने प्रभु येसु मसीह द्वारा हमें विजय प्रदान की है।”

जब यह नश्वर शरीर अनश्वरता को धारण करेगा - जब यह मरणशील शरीर अमरता को धारण करेगा, तब धर्मग्रंथ का यह कथन पूरा हो जायेगा : “मृत्यु का विनाश हुआ। विजय प्राप्त हुई। हे मृत्यु ! कहाँ है तेरी विजय? हे मृत्यु ! कहाँ है तेरा दंश?” मृत्यु का दंश तो पाप है और पाप को संहिता से बल मिलता है। ईश्वर को धन्यवाद, जो हमारे प्रभु येसु मसीह द्वारा हमें विजय प्रदान करता है। प्यारे भाइयो ! आप दृढ़ तथा अटल बने रहें और यह जान कर कि प्रभु के लिए आपका परिश्रम व्यर्थ नहीं है आप निरन्तर उनका कार्य करते रहें।

प्रभु की वाणी।

जयघोष

अल्लेलूया, अल्लेलूया ! प्रभु कहते हैं, “मार्ग, सत्य और जीवन मैं हूँ। मुझ से हो कर गये बिना कोई पिता के पास नहीं आ सकता”। अल्लेलूया !

सुसमाचार

प्रवक्ता-ग्रंथ के अनुसार - “पेड़ के फल बाग की कसौटी होते हैं और मनुष्यों के वचनों से उनका स्वभाव पता चलता है”। येसु यही बात दुहराते हैं। वह कहते हैं, “हर पेड़ अपने फल से पहचाना जाता है” और “जो हदय में भरा है, वही तो मुँह से बाहर आता है”।

लूकस के अनुसार पवित्र सुसमाचार 6:39-45

“जो हृदय में भरा है, वही तो मुँह से बाहर आता है।”

येसु ने उन्हें एक दृष्टान्त सुनाया, “क्या अंधा अंधे को रास्ता दिखा सकता है? क्या दोनों गड्ढे में नहीं गिर पड़ेंगे? शिष्य गुरु से बड़ा नहीं होता। पूरी-पूरी शिक्षा प्राप्त करने के बाद वह अपने गुरु जैसा बन सकता है। “जब तुम्हें अपनी ही आँख की धरन का पता नहीं है तो तुम अपने भाई की आँख का तिनका क्यों देखते हो? जब तुम अपनी आँख की धरन नहीं देखते, तो अपने भाई से कैसे कह सकते हो, 'भाई ! मैं तुम्हारी आँख से तिनका निकाल दूँ? ' रे ढोंगी ! पहले अपनी ही आँख से धरन निकाल लो। तभी तुम अपने भाई की आँख का तिनका निकालने के लिए अच्छी तरह देख सकोगे। “कोई भी अच्छा पेड़ बुरा फल नहीं देता और न कोई बुरा पेड़ अच्छा फल देता है। हर पेड अपने फल से पहचाना जाता है। लोग न तो 'कँटीली झाड़ियों से अंजीर तोड़ते हैं और न ऊँटकटारों से अंगूर। अच्छा मनुष्य अपने हदय के अच्छे भंडार से अच्छी चीजें निकालता है और जो बुरा है, वह अपने बुरे भंडार से बुरी चीजें निकालता है; क्योंकि जो हृदय में भरा है, वही तो मुँह से निकलता है।

प्रभु का सुसमाचार।