वर्ष का सातवाँ सप्ताह – इतवार - वर्ष - C

पहला पाठ

राजा सौल नवयुवक दाऊद को मार डालना चाहता था। संयोग ऐसा हुआ कि सौल दाऊद के वश में आ गया, किन्तु दाऊद ने यह सोच कर उसका वध नहीं किया कि वह प्रभु का अभिषिक्त है। वास्तव में हर मनुष्य पर ईश्वर की मुहर है और हमें हर मनुष्य का सम्मान करना चाहिए।

समूएल का पहला ग्रंथ 26:2,7-9,12-13,22-23

“प्रभु ने आप को मेरे हाथ में दे दिया था, किन्तु मैंने आप पर हाथ डालना नहीं चाहा।”

सौल इख्राएल के तीन हजार चुने हुए योद्धाओं को ले कर जीफ के ऊपर की ओर चल दिया, ताकि वह जीफ़ के ऊपर में दाऊद का पता लगाये। दाऊद और अबीशय रात को उन लोगों के पास पहुँचे। उन्होंने पड़ाव में सौल को सोया हुआ पाया - उसका भाला उसके सिरहाने जमीन में गड़ा हुआ था, अबनेर और दूसरे योद्धा उसके चारों ओर लेटे हुए थे। तब अबीशय ने दाऊद से कहा, “ईश्वर ने आज आपके शत्रु को आपके हाथ में दे दिया है। मुझे करने दीजिए - मैं उसे उसके अपने भाले के एक ही वार से जमीन में जकड़ दूँगा। मुझे दूसरी बार वार करने की जरूरत नहीं पड़ेगी”। दाऊद ने अबीशय को यह उत्तर दिया, “उसे मत मारो। कौन, प्रभु के अभिषिक्त को मार कर, दण्ड से बच सकता है?” दाऊद ने वह भाला और सौल के सिरहाने के पास रखी हुई पानी की सुराही ले ली और वे चले गये। न किसी ने यह सब देखा, न किसी को उसका पता चला और न कोई जगा, वे सब के सब सोये हुए थे, क्योंकि प्रभु की ओर से भेजी हुई गहरी नींद उन पर छायी हुई थी। दाऊद घाट पार कर दूर की पहाड़ी पर खड़ा हो गया। दोनों के बीच में बड़ा अन्तर था। दाऊद ने पुकार कर कहा, “यह राजा का भाला है - नवयुवकों में से कोई आ कर इसे ले जाये। प्रभु हर एक को उसकी धार्मिकता तथा ईमानदारी का फल देगा। आज प्रभु ने आप को मेरे हाथ में दे दिया था किन्तु मैंने प्रभु के अभिषिक्त पर हाथ डालना नहीं चाहा”।

प्रभु की वाणी।

भजन : स्तोत्र 102:1-4,8-10,12-13

अनुवाक्य : प्रभु दया तथा अनुकम्पा से परिपूर्ण है।

1. मेरी आत्मा प्रभु को धन्य कहे, मेरा सर्वस्व उसके पवित्र नाम की स्तुति करे। मेरी आत्मा प्रभु को धन्य कहे और उसके वरदानों को कभी नहीं भुलाये।

2. वह मेरे सभी अपराध क्षमा करता और मेरी सारी कमजोरी दूर करता है। वह मुझे सर्वनाश से बचाता और प्रेम तथा अनुकम्पा से मुझे सँभालता है।

3. प्रभु दया तथा अनुकम्पा से परिपूर्ण है, वह सहनशील है और अत्यन्त प्रेममय। वह न तो हमारे पापों के अनुसार हमारे साथ व्यवहार करता और न हमारे अपराधों के अनुसार हमें दण्ड देता है।

4. पूर्व पश्चिम से जितना दूर है, प्रभु हमारे पापों को हम से उतना दूर कर देता है। पिता जिस तरह अपने पुत्रों पर दया करता है, प्रभु उसी तरह अपने भक्तों पर दया करता है।

दूसरा पाठ

यहाँ आदम और मसीह की तुलना की गयी है। आदम इस धरती का प्राणी था, पुनर्जीवित मसीह स्वर्ग का प्राणी हैं। हम आदम के समान मिट्टी के बने मनुष्य हैं, किन्तु मसीह हमें एक दूसरा जीवन प्रदान करेंगे, जिससे हम भी स्वर्ग के प्राणी बन जायेंगे।

कुरिंथियों के नाम सन्त पौलुस का पहला पत्र 15:45-49

“हम स्वर्ग के मनुष्य का रूप धारण कर लेंगे।”

धर्मग्रंथ में लिखा है कि प्रथम मनुष्य आदम एक जीवन्त प्राणी बन गया। अंतिम आदम तो एक जीवनदायक आत्मा है। जो पहला है, वह आध्यात्मिक नहीं, बल्कि प्राकृतिक है। इसके बाद ही आध्यात्मिक आता है। पहला मनुष्य मिट्टी का बना है और पृथ्वी का है; दूसरा स्वर्ग का है । मिट्टी का बना मनुष्य जैसा था, वैसे ही मिट्टी के बने मनुष्य हैं। और स्वर्ग का मनुष्य जैसा है, वैसे ही सभी स्वर्गी होंगे जिस तरह हमने मिट्टी के बने मनुष्य का रूप धारण कर लिया है, उसी तरह हम स्वर्ग के मनुष्य का भी रूप॑ धारण कर लेंगे।

प्रभु की वाणी।

जयघोष : योहन 6:63,68

अल्लेलूया, अल्लेलूया ! हे प्रभु ! तेरी शिक्षा आत्मा और जीवन है। तेरे ही शब्दों में अनन्त जीवन का सन्देश है। अल्लेलूया !

सुसमाचार

मसीह का धर्म प्रेम का धर्म है। हमें न केवल अपने सम्बन्धियों को, बल्कि सभी मनुष्य तथा अपने शत्रुओं को भी प्यार करना चाहिए। तभी हम ईश्वर के योग्य 'पुत्र तथा मसीह के सच्चे भाई बन सकेंगे।

सन्त लूकस के अनुसार पवित्र सुसमाचार 6:27-38

“अपने स्वर्गिक पिता जैसे दयालु बनो।”

येसु ने अपने शिष्यों से कहा, “मैं तुम लोगों से, जो मेरी बात सुनते हो, कहता हूँ - अपने शत्रुओं से प्रेम रखो। जो तुम से बैर करते हैं, उनकी भलाई करो। जो तुम्हें शाप देते हैं, उन को आशीर्वाद दो। जो तुम्हारे साथ दुर्व्यवहार करते हैं, उनके लिए प्रार्थना करो। जो तुम्हारे एक गाल पर थप्पड़ मारता हैं, दूसरा भी उनके सामने कर दो। जो तुम्हारी चादर छीनता है, उसे अपना कुरता भी लेने दो। जो कोई तुम से माँगे, उसे दे दो और जो तुम से तुम्हारा अपना छीन ले, उसे वापस मत माँगो। दूसरों से अपने सांथ जैसा व्यवहार चाहते हो, तुम भी उनके साथ वैसा ही किया करो। यदि तुम उन्हीं को प्यार करते हो जो तुम्हें प्यार करते हैं, तो उस में तुम्हारा पुण्य क्या है? पापी भी अपने प्रेम करने वालों से प्रेम करते हैं। यदि तुम उन्हीं की भलाई करते हो जो तुम्हारी भलाई करते हैं, तो इस में तुम्हारा पुण्य क्या है? यदि तुम उन्हीं को उधार देते हो जिन से बापस पाने की आशा करते हो, तो इस में तुम्हारा पुण्य क्या है? पूरा-पूरा वापस पाने की आशा में पापी भी पापियों को उधार देते हैं। परन्तु अपने शत्रुओं से प्रेम रखो, उनकी भलाई करो और वापस पाने की आशा न रख कर उधार दो। तभी तुम्हारा पुरस्कार महान्‌ होगा और तुम सर्वोच्च प्रभु के पुत्र बन जाओगे, क्योंकि वह भी कृतघ्नों और दुष्टों पर दया करता है। अपने स्वर्गिक पिता जैसे दयालु बनो। दोष न लगाओ और तुम पर भी दोष नहीं लगाया जायेगा। किसी के विरुद्ध निर्णय न दो और तुम्हारे विरुद्ध भी निर्णय नहीं दिया जायेगा। क्षमा करो और तुम्हें क्षमा मिल जायेगी। दो और तुम्हें भी दिया जायेगा। दबा-दबा कर, हिला-हिला कर भरी हुई, ऊपर उठी हुई, पूरी की पूरी नाप तुम्हारी गोद में डाली जायेगी; क्योंकि जिस नाप से तुम नापते हो, उसी से तुम्हारे लिए भी नापा जायेगा”।

प्रभु का सुसमाचार।