वर्ष का सातवाँ सप्ताह – इतवार - वर्ष - A

पहला पाठ

ईश्वर मूसा के मुख से अपनी चुनी हुई प्रजा से यह माँग करता था - “पतित्र बनो, क्योंकि मैं प्रभु, तुम्हारा ईश्वर पवित्र हूँ” यह पवित्रता सब से पहले न्याय तथा भ्रातृ-प्रेम में प्रमाणित होती है।

लेवी-ग्रंथ 19:1-2,17-18

“तुम अपने पड़ोसी को अपने समान प्यार करो।”

प्रभु मूसा से बोला, “इस्राएलियों के सारे समुदाय से यह कहो - पवित्र बनो, क्योंकि मैं प्रभु, तुम्हारा ईश्वर पवित्र हूँ। अपने भाई के प्रति अपने हृदय में बैर मत रखो। यदि तुम्हारा पड़ोसी कोई अपराध करे, तो उसे डाँटो, नहीं तो तुम उसके पाप के भागी बनोगे। तुम न तो बदला लोगे और न अपने देश-भाइयों से मन-मुयव रखोगे। तुम अपने पड़ोसी को अपने समान प्यार करो। मैं प्रभु हूँ"।

प्रभु की वाणी।

भजन : स्तोत्र 102:1-4,8,10,12,13

अनुवाक्य : प्रभु दया तथा अनुकम्पा से परिपूर्ण है।

1. मेरी आत्मा प्रभु को धन्य कहे, मेरा सर्वस्व उसके पवित्र नाम की स्तुति करे। मेरी आत्मा प्रभु को धन्य कहे और उसके वरदानों को कभी नहीं भुलाये।

2. वह मेरे सभी अपराध क्षमा करता और मेरी सारी कमजोरी दूर करता है। वह मुझे सर्वनाश से बचाता, और प्रेम तथा अनुकम्पा से मुझे सँभालता है।

3. प्रभु दया तथा अनुकम्पा से परिपूर्ण है, वह सहनशील है और अत्यन्त प्रेममय। वह न तो हमारे पापों के अनुसार हमारे साथ व्यवहार करता और न हमारे अपराधों के अनुसार हमें दण्ड देता है।

4. पूर्व पश्चिम से जितना दूर है, प्रभु हमारे पापों को हम से उतना दूर कर देता है। पिता जिस तरह अपने पुत्रों पर दया करता है, प्रभु उसी तरह अपने भक्तों पर दया करता है।

दूसरा पाठ

सारी सृष्टि, मनुष्य का मान-मर्यादा, मनुष्य का जीवन - यह सब विश्वासी के लिए कम महत्त्व रखता है। उसके लिए ईश्वर ही हर कुछ का मापदण्ड है। इसलिए सन्त पौलुस कुर्रिधियों से कहते हैं - सब कुछ आपका है, परन्तु आप मसीह के और मसीह ईश्वर के हैं।

कुर्रिथियों के नाम सन्त पौलुस का पहला पत्र 3:16-23

“यह सब आपका है, परन्तु आप मसीह के और मसीह ईश्वर के हैं।”

क्या आप यह नहीं जानते कि आप ईश्वर के मंदिर हैं और ईश्वर का आत्मा आप में निवास करता है। यदि कोई ईश्वर का मंदिर नष्ट करेगा, तो ईश्वर उसे नष्ट करेगा; क्योंकि ईश्वर का मंदिर पवित्र है और वह मंदिर आप लोग हैं। कोई भी अपने को धोखा न दे - यदि आप लोगों में से कोई अपने को संसार की दृष्टि से ज्ञानी समझता हो, तो वह सचमुच ज्ञानी बनने के लिए अपने को मूर्ख बना ले; क्योंकि इस संसार का ज्ञान ईश्वर की दृष्टि में मूर्खता है। धर्मग्रंथ में यह लिखा है - “वह ज्ञानियों को उनकी चतुराई से ही फँसाता है” और “प्रभु जानता है कि ज्ञानियों के तर्क-वितर्क निस्सार हैं”। इसलिए कोई भी मनुष्यों पर गर्व न करे। सब कुछ आपका है, चाहे वह पौलुस, अपोल्लो अथवा कैफ़स हो, संसार हो, जीवन अथवा मरण हो, भूत अथवा भविष्य हो - यह सब आपका है। परन्तु आप मसीह के और मसीह ईश्वर के हैं।

प्रभु की वाणी।

जयघोष : 1 समूएल 3:9; योहन 6:68

अल्लेलूया, अल्लेलूया ! हे प्रभु ! बोल, तेरा दास सुन रहा है। तेरे ही शब्दों में अनन्त जीवन का संदेश है।

सुसमाचार

ईश्वर विश्वासियों का तथा अविश्वासियों का, ईसाइयों का तथा ग़ैर-ईसाइयों का, सभी मनुष्यों का कल्याण करता है। ऐसे पिता की सन्तति होने के नाते हमें भी सबों को प्यार करना चाहिए, चाहे वे मित्र हों या शत्रु, विश्वासी हों या अविश्वासी।

सन्त मत्ती के अनुसार पवित्र सुसमाचार 5:38-48

“अपने शत्रुओं से प्रेम करो।”

येसु ने अपने शिष्यों से कहा, “तुम लोगों ने सुना है, कि कहा गया है - आँख के बदले आँख, और दाँत के बदले दाँत; परन्तु में तुम से कहता हूँ - दुष्ट का सामना नहीं करो। यदि कोई तुम्हारे दाहिने गाल पर थप्पड़ मारे, तो दूसरा भी उसके सामने कर दो। यदि कोई मुकदमा लड़ कर तुम्हारा कुरता लेना चाहे, तो उसे अपनी चादर भी ले लेने दो। और यदि कोई तुम्हें आधा कोस बेगार में ले जाये, तो उसके साथ कोस भर चले जाओ। जो तुम से माँगे, उसे दो; और जो तुम से उधार लेना चाहे, उस से मुँह न मोड़ो। “तुम लोगों ने सुना है कि कहा गया है - अपने पड़ोसी से प्रेम करो और अपने बैरी से बैर, परन्तु मैं तुम से कहता हूँ - अपने शत्रुओं से प्रेम करो। और जो तुम पर अत्याचार करते हैं, उनके लिए प्रार्थना करो। इस से तुम अपने स्वर्गिक पिता को सन्तान बन जाओगे; क्योंकि वह अपना सूर्य भले और बुरे, दोनों पर उगाता है तथा धर्मी और अधर्मी, दोनों पर पानी बरसाता है। यदि तुम उन्हीं से प्रेम रखते हो जो तुम से प्रेम रखते हैं तो पुरस्कार का क्या दावा कर सकते हो? क्या नाकेदार भी ऐसा नहीं करते? और यदि तुम अपने भाइयों को ही नमस्कार करते हो, तो कौन-सा बड़ा काम करते हो? क्या ग़ैर-यहूदी भी ऐसा नहीं करते? इसलिए तुम पूर्ण बनो, जैसे तुम्हारा स्वर्गिक पिता पूर्ण है”।

प्रभु का सुसमाचार।