यदि तुम चाहते हो, तो आज्ञाओं का पालन कर सकते हो, ईश्वर के प्रति ईमानंदार रहना तुम्हारी इच्छा पर निर्भर है। उसने तुम्हारे सामने अग्नि और जल, दोनों रख दिया, हाथ बढ़ा कर उन में से एक को चुन लो। मनुष्य के सामने जीवन और मरण, दोनों रखे हुए हैं। जिसे मनुष्य चुनता, वही उसे मिल जाता है। ईश्वर की प्रज्ञा अपार है, वह सर्वशक्तिमान् और सर्वत्र है। वह अपने श्रद्धालु भक्तों की देख-रेख करता है। मनुष्य जो भी करते हैं, वह सब देखता रहता है। पाप करने की छूट उसने किसी को नहीं दी है।
प्रभु की वाणी।
अनुवाक्य : धन्य हैं वे, जो प्रभु की संहिता के मार्ग पर चलते हैं।
1. धन्य हैं वे, जो निर्दोष जीवन बिताते और प्रभु की संहिता के मार्ग पर चलते हैं। धन्य हैं वे, जो उनकी आज्ञाओं का पालन करते और उन्हें हृदय से चाहते हैं।
2. तूने अपने नियम इसीलिये दिये हैं कि हम उनका पूरा-पूरा पालन करें। ओह ! मैं तेरी इच्छा पूरी करने में सदा ही दृढ़ बना रहूँ।
3. अपने सेवक को आशिष प्रदान कर और मैं जीता रहूँगा और तेरी आज्ञाओं का पालन करूँगा। मेरी आँखों को ज्योति प्रदान कर, जिससे मैं तेरी संहिता की महिमा देख सकूँ।
4. हे प्रभु ! मुझे अपनी आज्ञाओं का मार्ग बतला, मैं उस पर सदा चलता रहूँगा। मुझे ऐसी शिक्षा दे कि मैं सारे हृदय से तेरी संहिता का पालन करता रहूँ।
उन लोगों के बीच, जो परिपक्व हो गये हैं, हम प्रज्ञा की बातें करते हैं। यह प्रज्ञा न तो इस संसार की है। और न इस संसार के अधिपतियों की। ये लोग तो समाप्त हो जाने वाले हैं। मैं ईश्वर की उस रहस्यमय प्रज्ञा और उद्देश्य की बातें करता हूँ, जो अब तक गुप्त रहा, जिसे ईश्वर ने संसार की सृष्टि से पहले ही हमारी महिमा के लिए निश्चित किया था, जिसे संसार के अधिपतियों में से किसी ने नहीं जाना। यदि वे लोग उसे जानते तो महिमामय प्रभु को क्रूस पर नहीं चढ़ाते। मैं उन बातों के विषय में बोलता हूँ जिनके संबंध में धर्मग्रंथ यह कहता है - ईश्वर ने अपने भक्तों के लिए जो कुछ तैयार किया है, वह किसी ने कभी देखा नहीं उसके विषय में किसी ने कभी सुना नहीं और कोई उसकी कल्पना कभी नहीं कर पाया। ईश्वर ने अपने आत्मा द्वारा हम पर वही प्रकट किया है, क्योंकि आत्मा सब कुछ की, ईश्वर के रहस्य की भी, थाह लेता है।
प्रभु की वाणी।
अल्लेलूया, अल्लेलूया ! प्रभु कहते हैं, “मार्ग, सत्य और जीवन मैं हूँ। मुझ से होकर गये बिना कोई पिता के पास नहीं आ सकता'“। अल्लेलूया।
येसु ने अपने शिष्यों से कहा,
[“यह न समझो कि मैं संहिता अथवा नबियों के लेखों को रद्द करने आया हूँ। उन्हें रद्द करने नहीं, बल्कि पूरा करने आया हूँ। मैं तुम लोगों से कहे देता हूँ:- आकाश और पृथ्वी भले ही टल जायें, किन्तु संहिता की एक मात्रा अथवा एक बिन्दु भी बिना पूरा हुए नहीं टलेगा। इसलिए जो उन छोटी-से-छोटी आज्ञाओं में से एक को भी भंग करता और दूसरों को ऐसा करना सिखाता है वह स्वर्गराज्य में छोटा समझा जायेगा। जो उनका पालन करता और उन्हें सिखाता है, वह स्वर्गराज्य में बड़ा समझा जायेगा।]
मैं तुम लोगों से कहता हूँ - यदि तुम्हारी धार्मिकता शास्त्रियों और फ़रीसियों की धार्मिकता से गहरी नहीं हुई, तो तुम स्वर्गराज्य में प्रवेश नहीं करोगे। तुम लोगों ने सुना है कि पूर्वजों से कहा गया है - हत्या मत करो ; यदि कोई हत्या करे, तो वह कचहरी में दण्ड के योग्य ठहराया जायेगा। परन्तु मैं तुम से कहे देता हूँ - जो अपने भाई पर क्रोध करता है, वह कचहरी में दण्ड के योग्य ठहराया जायेगा।
[ यदि वह अपने भाई से कहे, 'रे मूर्ख !' तो वह महासभा में दण्ड के योग्य ठहराया जायेगा। और यदि वह कहे, 'रे नास्तिक !', तो वह नरक की आग के योग्य ठहराया जायेगा। जब तुम बेदी पर अपनी भेंट चढ़ा रहे हो और तुम्हें वहाँ याद आये कि मेरे भाई को मुझ से कोई शिकायत है, तो अपनी भेंट वहीं बेदी के सामने छोड़ कर पहले अपने भाई से मेल करने जाओ, और तब आ कर अपनी भेंट चढ़ाओ। “कचहरी जाते समय रास्ते में ही अपने मुद्दई से समकौता कर लो। कहीं ऐसा न हो कि वह तुम्हें न््याेयकर्त्त के हवाले कर दे, न्यायकर्त्ता तुम्हें प्यादे के हवाले कर दे और प्यादा तुम्हें बंदीगृह में डाल दे। में तुम से कहे देता हूँ - जब तक कौड़ी-कौड़ी न चुका दोगे, तब तक वहाँ से नहीं निकल पाओगे”।]
“तुम लोगों ने सुना है कि कहा गया है - व्यभिचार मत करो ; परन्तु मैं तुम से कहता हूँ - जो बुरी इच्छा से किसी स्त्री पर दृष्टि डालता है, वह अपने मन में उसके साथ व्यभिचार कर चुका है।
[ यदि तुम्हारी दाहिनी आँख तुम्हारे लिए पाप का कारण बन जाये तो उसे निकाल कर फेंक दो। अच्छा यही है कि तुम्हारे अंगों में से एक नष्ट हो जाये, किन्तु तुम्हारा सारा शरीर नरक में न डाला जाये। और यदि तुम्हारा दाहिना हाथ तुम्हारे लिए पाप का कारण बन जाये, तो उसे काट कर फेंक दो। अच्छा यही है कि तुम्हारे अंगों में से एक नष्ट हो जाये, किन्तु तुम्हारा सारा शरीर नरक में न जाये। यह भी कहा गया है - जो कोई अपनी पत्नी को त्यागे, वह उसे त्याग-पत्र दे। परन्तु मैं तुम से कहता हूँ - व्यभिचार को छोड़ किसी अन्य कारण से जो अपनी पत्नी को त्याग देता है, वह उस से व्यभिचार कराता है। वह जो त्यागी हुई स्त्री से विवाह करता है वह व्यभिचार करता है। ]
तुम लोगों ने यह भी सुना है कि पूर्वजों से कहा गया है - झूठी शपथ मत खाओ। प्रभु के सामने खायी हुई शपथ को पूरा करो। परन्तु मैं तुम से कहता हूँ - शपथ कभी नहीं खानी चाहिए -
[न तो स्वर्ग की, क्योंकि वह ईश्वर का सिंहासन है; न पृथ्वी की, क्योंकि वह उसका पावदान है; न येरुसलेम की, क्योंकि वह राजाधिराज का नगर है और न अपने सिर की, क्योंकि तुम इसका एक बाल भी सफेद या काला नहीं कर सकते। ]
तुम्हारी बात इतनी हो - हाँ की हाँ, नहीं की नहीं। जो इस से अधिक है, वह बुराई से उत्पन्न होता है”।
प्रभु का सुसमाचार।