सामान्य काल का पाँचवाँ सप्ताह, इतवार – चक्र C

पहला पाठ

नबी इसायस ईश्वर द्वारा अपने बुलाबे का वर्णन करते हैं। उन्होंने एक दिव्य दर्शन में ईश्वर को देखा और एक स्वर्गदूत ने उनका शुद्धीकरण किया, जिससे वह प्रभु का सन्देश सुनाने योग्य हो जायें।
<4>नबी इसायस का ग्रंथ 6:1-8
“मैं प्रस्तुत हूँ, मुझ को भेज।”

राजा उज्जीया के देहान्त के वर्ष मैंने प्रभु को एक ऊँचे सिंहासन पर बैठा हुआ देखा। उसके वस्त्र का पल्ला मंदिर का पूरा फर्श ढक देता था। उसके ऊपर सेराफ़ीम विराजमान थे, उनके छह-छह पंख थे और बे एक दूसरे को पुकार कर यह कहते थे, “पवित्र, पवित्र, पवित्र है, विश्वमंडल का प्रभु ! उसकी महिमा समस्त पृथ्वी में व्याप्त है”। पुकारने वाले की आवाज से प्रवेशद्वार की नींव हिल उठी और मंदिर धुएँ से भर गया। मैंने कहा, “हाय ! हाय ! मैं नष्ट हुआ; क्योंकि मैं तो अशुद्ध होंठों वाला मनुष्य हूँ, अशुद्ध होंठों वाले मनुष्यों के बीच रहता हूँ और मैंने विश्वमंडल के प्रभु, राजाधिराज को अपनी आँखों से देखा है”। एक सेराफीम उड़ कर मेरे पास आया। उसके हाथ में एक अंगार था, जिसे उसने चिमटे से वेदी पर से ले लिया था। उस से मेरा मुँह छू कर उसने कहा, “देखो, अंगार ने तेरे होंठों का स्पर्श किया है। तेरा पाप दूर हो गया और तेरा अधर्म मिट गया है”। तब मुझे प्रभु की वाणी यह कहते हुए सुनाई पड़ी, “मैं किसे भेजूँ? हमारा संदेशवाहक कौन होगा?” और मैंने उत्तर दिया, “मैं प्रस्तुत हूँ, मुझ को भेज !”

प्रभु की वाणी।

भजन : स्तोत्र 137,1-5,7-8

अनुवाक्य : हे प्रभु ! मैं स्वर्गदूतों के सामने तेरा गुणणान करूँगा।

1. हे प्रभु ! मैं सारे हृदय से तुझे धन्यवाद देता हूँ; क्योंकि तूने मेरी सुनी है। मैं स्वर्गदूतों के सामने तेरा गुणणान करूँगा और तेरे पवित्र मंदिर को दण्डवत्‌ करूँगा।

2. तेरे अपूर्व प्रेम और सत्यप्रतिज्ञता के कारण मैं तुझे धन्यवाद देता रहूँगा। जिस दिन मैंने तुझे पुकारा, उसी दिन तूने मेरी सुनी और मुझे आत्मबल प्रदान किया।

3. हे प्रभु! पृथ्वी भर के सभी राजा तेरी प्रतिज्ञा सुन कर तुमे धन्यवाद देंगे। वे प्रभु के कार्यों का बखान करेंगे - प्रभु की महिमा सचमुच अपार है।

4. तूने हाथ बढ़ा कर मुझे बचा लिया है, तेरा दाहिना हाथ मेरी रक्षा करता रहता है। हे प्रभु ! तेरा प्रेम चिरस्थायी है। अपनी सृष्टि को सुरक्षित रखने की कृपा कर।

दूसरा पाठ

सन्त पौलुस कुरिंथियों को मसीह के पुनरुत्थान के विषय में अपने दृढ़ विश्वास का साक्ष्य देते हैं। येसु के प्रथम शिष्यों के विश्वास का आधार यही था - येसु के मरने के बाद हमने उन्हें देखा है।

कुरिंथियों के नाम सन्त पौलुस का पहला पत्र 15:1-11

[ कोष्ठक में रखा अंश छोड़ दिया जा सकता है ]
“चाहे मैं होऊँ, चाहे वे हों - हम वही शिक्षा देते हैं और उसी पर आप लोगों ने विश्वास किया है।”

[ भाइयो ! मैं आप लोगों को उस सुसमाचार का स्मरण दिलाना चाहता हूँ, जिसका प्रचार मैंने आपके बीच किया, जिसे आपने ग्रहण किया, जिसमें आप दृढ़ बने रहते हैं और यदि आप उसे उसी रूप में बनाये रखेंगे, जिस रूप में मैंने उसे आप को सुनाया था, तो उसके द्वारा आप को मुक्ति मिलेगी, नहीं तो आपका विश्वास व्यर्थ होगा। ]

जो शिक्षा मुझे मिली थी, वही मैंने सब से पहले आप लोगों को सुनायी। वह इस प्रकार है - मसीह हमारे पापों के प्रायश्चित्त के लिए मर गये, जैसा कि धर्मग्रंथ में लिखा है। वह कब्र में रखे गये और तीसरे दिन जी उठे, जैसा कि धर्मग्रंथ में लिखा है। वह केफ़स को और बाद में बारहों को दिखाई दिये। फिर वह एक ही समय पाँच सौ से अधिक भाइयों को दिखाई दिये। उन में से अधिकांश आज भी जीवित हैं, यद्यपि कुछ मर गये हैं। बाद में वह याकूब को और फिर सब प्रेरितों को दिखाई दिये। सबों के बाद वह मुझे भी मानो ठीक समय से पीछे जन्मे को दिखाई दिये।

[ मैं प्रेरितों में सब से छोटा हूँ। सच पूछिए, तो मैं प्रेरित कहलाने योग्य भी नहीं; क्योंकि मैंने ईश्वर की कलीसिया पर अत्याचार किया था। मैं जो कुछ भी हूँ, ईश्वर की कृपा से हूँ और जो कृपा मुझे उस से मिली, वह व्यर्थ नहीं हुई। मैंने उन सब से अधिक परिश्रम किया है - मैंने नहीं, बल्कि ईश्वर की कृपा ने, जो मुझ में विद्यमान है। ]

खैर चाहे मैं होऊँ, चाहे वे हों - हम वही शिक्षा देते हैं और उसी पर आप लोगों ने विश्वास किया।

प्रभु की वाणी।

जयघोष : योहन 17:17

अल्लेलूया, अल्लेलूया ! हे प्रभु ! तेरी शिक्षा ही सत्य है। हमें सत्य की सेवा में समर्पित कर। अल्लेलूया !

सुसमाचार

मछलियों के बझाव का चमत्कार देख कर येसु के शिष्य उन्हें ईश्वर का भेजा हुआ नबी मानते हैं। तब येसु पेत्रुस और उनके साथियों को समझाते हैं कि वे अब से अपना सब कुछ छोड़ कर जीवन भर सुसमाचार का प्रचार करते रहें।

सन्ता लूकस के अनुसार पवित्र सुसमाचार 5:1-11

“वे सब कुछ छोड़ कर उसके पीछे हो लिये।”

एक दिन येसु गेनेसरेत की झील के पास थे। लोग ईश्वर का वचन सुनने के लिए उन पर गिरे पड़ते थे। उस समय उन्होंने झील के किनारे लगी दो नावों को देखा। मछुए उन पर से उतर कर जाल धो रहे थे। येसु ने सिमोन की नाव पर चढ़ कर उसे किनारे से कुछ दूर ले चलने के लिए कहा। इसके बाद वह नाव पर बैठ कर जनता को शिक्षा देने लगे। उपदेश समाप्त करने के बाद उन्होंने सिमोन से कहा, “नाव को गहरे पानी में ले चलो और मछलियाँ पकड़ने के लिए अपने जाल डालो”। सिमोन ने उत्तर दिया, “गुरुवर ! रात भर मेहनत करने पर भी हम कुछ नहीं पकड़ सके, परन्तु आपके कहने पर मैं जाल डालूँगा”। ऐसा करने पर बहुत अधिक मछलियाँ फँस गयीं और उनका जाल फटने को हो गया। उन्होंने दूसरी नाव के अपने साथियों को इशारा किया, कि आ कर हमारी मदद करो। वे आये और उन्होंने द्वोनों नावों को मछलियों से इतना भर लिया कि नावें डूबने को हो गयीं। यह देख कर सिमोन ने येसु के चरणों पर गिर कर कहा, “प्रभु ! मेरे पास से चले जाइए। मैं तो पापी मनुष्य हूँ”। मछलियों के जाल में फँसने के कारण वह और उसके साथी विस्मित हो गये। यही दशा याकूब और योहन की भी हुई; ये जेबेदी के बेटे और सिमोन के साझेदार थे। येसु ने सिमोन से कहा, “डरो मत ! अब से तुम मनुष्यों को पकड़ा करोगे”। वे नावों को किनारे लगा कर और सब कुछ छोड कर येसु के पीछे हो लिये।

प्रभु का सुसमाचार।