सामान्य काल का चौथा सप्ताह, इतवार - वर्ष C

पहला पाठ

ईश्वर नबियों को चुन कर यहूदियों को अपना सन्देश सुनाने भेजता था। इसी तरह येसु ने अपने शिष्यों को सुसमाचार का प्रचार करने भेजा। नबियों की तरह ही धर्मप्रचारक विचलित नहीं होते, क्योंकि उन्हें दृढ़ विश्वास है कि ईश्वर उनके साथ है।

नबी येरेमियस का ग्रंथ 1:4-5,17-19

मैंने तुम को राष्ट्रों का नबी नियुक्त किया है।

प्रभु की वाणी मुझे यह कहते हुए सुनाई दी - “माता के गर्भ में तुम को रचने से पहले, मैंने तुम को जान लिया है। तुम्हारे जन्म से पहले ही, मैंने तुम को पवित्र किया है। मैंने तुम को राष्ट्रों का नबी नियुक्त किया है। अब तुम कमर कस कर तैयार हो जाओ और जो कुछ मैं तुम को बताऊँ, वह सब उन्हें सुना दो। तुम उनके सामने भयभीत मत हो जाओ, नहीं तो मैं तुम को उनके सामने भयभीत बना दूँगा। देखो ! इस सारे देश के सामने, यूदा के राजाओं, इसके अमीरों, इसके याजकों और इसके सब निवासियों के सामने, मैं आज तुम को एक सुदृढ़ नगर के सदृश, लोहे के खंभे और काँसे की दीवाल की तरह खड़ा कर देता हूँ। वे तुम्हारे विरुद्ध लड़ेंगे, किन्तु तुम को हराने में असमर्थ होंगे; क्योंकि मैं तुम्हारी रक्षा करने के लिए तुम्हारे साथ रहूँगा। यह प्रभु का कहना है”।

प्रभु की वाणी।

भजन : स्तोत्र 70:1-6,15,17

अनुवाक्य : मैं तेरी सहायता का बखान करूँगा।

1. हे प्रभु ! मैं तेरी शरण में आया हूँ। मुझे कभी निराश न होने दे। तू न्यायी है। तू मेरा उद्धार कर, तू मेरी सुन और मुझे बचा।

2. तू मेरे लिए आश्रय की चट्टान और रक्षा का शक्तिशाली गढ़ बन जा, क्योंकि तू ही मेरी चट्टान और मेरा गढ़ है। हे मेरे ईश्वर ! मुझे दुष्टों के हाथों से छुड़ा।

3. हे प्रभु ! तू ही है मेरा आसरा। मैं बचपन से तुझ पर ही भरोसा रखता हूँ। मैं जन्म से तुझ पर ही भरोसा रखता हूँ। मैं जन्म से तुझ पर ही निर्भर रहा हूँ, माता के गर्भ से मुझे तेरा सहारा मिला है।

4. मैं प्रतिदिन तेरे न्याय और तेरी सहायता का बखान करूँगा। हे प्रभु ! मुझे बचपन से ही तेरी शिक्षा मिली है। मैं अब तक तेरे महान्‌ कार्य घोषित करता रहा हूँ।

दूसरा पाठ

ईसाई धर्म का सार यह है - ईश्वर को तथा पड़ोसी को प्यार करना। सन्त पौलुस अपने पत्र में प्रेम की प्रशंसा करते हैं और इसके अभाव में हर प्रकार की धार्मिक साधना निरर्थक घोषित करते हैं।

कुरिंथियों के नाम सन््त् पौलुस का पहला पत्र 12:31-13:13

[ कोष्ठक में रखा अंश छोड़ दिया जा सकता है ]
“अभी तो विश्वास, भरोसा और प्रेम - ये तीनों बने हुए हैं। उन में से प्रेम ही सब से महान्‌ है।”

[ आप लोग उच्चतर वरदानों की अभिलाषा किया करें। मैं अब आप लोगों को सर्वोत्तम मार्ग दिखाना चाहता हूँ। मैं भले ही मनुष्यों तथा स्वर्गदूतों की सब भाषाएँ बोलूँ; किन्तु यदि मुझ में प्रेम का अभाव हो, तो मैं खनखनाता घड़ियाल अथवा झनझनाती झाँझ मात्र हूँ। मुझे भले ही भविष्यवाणी का वरदान मिला हो, मैं सभी रहस्य जानता होऊँ, मुझे समस्त ज्ञान प्राप्त हो गया हो, मेरा विश्वास इतना परिपूर्ण हो कि मैं पहाड़ों को हटा सकूँ; किन्तु यदि मुझ में प्रेम का अभाव हो, तो मैं कुछ भी नहीं हूँ। मैं भले ही अपनी सारी सम्पत्ति दान कर दूँ और अपना शरीर भस्म होने के लिए अर्पित करूँ; किन्तु यदि मुझ में प्रेम का अभाव हो, तो इस से मुझे कुछ भी लाभ नहीं। ]

प्रेम सहनशील और दयालु है प्रेम न तो ईर्ष्या करता है, न डींग मारता, न घमण्ड करता है। प्रेम अशोभनीय व्यवहार नहीं करता। वह अपना स्वार्थ नहीं खोजता। प्रेम न तो झुँझलाता है और न बुराई का लेखा रखता है। वह दूसरों के पाप से नहीं, बल्कि उनके सदाचरण से प्रसन्न होता है। वह सब-कुछ ढाँक देता है, सब-कुछ पर विश्वास करता है, सब-कुछ की आशा करता और सब-कुछ सह लेता है। भविष्यवाणियाँ जाती रहेंगी, भाषाएँ मौन हो जायेंगी और ज्ञान मिट जायेगा, किन्तु प्रेम का कभी अंत नहीं होगा; क्योंकि हमारा ज्ञान तथा हमारी भविष्यवाणियाँ अपूर्ण हैं और जब पूर्णता आ जायेगी, तो जो अपूर्ण है, वह जाता रहेगा। मैं जब बच्चा था, तो बच्चों की तरह बोलता, सोचता और समझता था; किन्तु सयाना हो जाने पर मैंने बचकानी बातों को छोड़ दिया। अभी तो हमें आईने में धुँधला-सा दिखाई देता है, परन्तु तब हम आमने-सामने देखेंगे। अभी तो मेरा ज्ञान अपूर्ण है; परन्तु तब मैं उसी तरह से पूर्ण रूप से जान पाऊँगा, जिस तरह से ईश्वर मुझे जान गया है। अभी तो विश्वास, भरोसा और प्रेम - ये तीनों बने हुए हैं। किन्तु उन में से प्रेम ही सब से महान्‌ है।

प्रभु की वाणी।

जयघोष : योहन 14:23

अल्लेलूया, अल्लेलूया ! यदि कोई मुझे प्यार करेगा, तो वह मेरी शिक्षा पर चलेगा। मेरा पिता उसे प्यार करेगा और हम सब उसके पास आ कर उस में निवास करेंगे। अल्लेलूया !

सुसमाचार

येसु नाजरेत के लोगों को याद दिलाते हैं कि ईश्वर ने प्राचीन काल में अपने नबियों द्वारा ग़ैर-यहूदियों का भी कल्याण किया है। इसी प्रकार ईश्वर के राज्य का प्रचार अन्य राष्ट्रों में भी किया जायेगा।
सन्त लूकस के अनुसार पवित्र सुसमाचार 4:21-30
“एलियस तथा एलिसेयस की तरह, येसु केवल यहूदियों के पास नहीं भेजे गये हैं।”

येसु सभागृह में उपस्थित लोगों से कहने लगे, “धर्मग्रंथ का यह कथन आज तुम लोगों के सामने पूरा हो गया है”। सबों ने उनकी प्रशंसा की। वे उनके मनोहर शब्द सुन कर अचम्भे में पड़े और कहने लगे, “क्या यह यूसुफ का बेटा नहीं हैं? येसु ने उन से कहा, “तुम लोग निश्चय ही मुझे यह कहावत सुना दोगे- ऐ वैद्य! अपना ही इलाज करो। कफरनाहूम में जो कुछ हुआ है, हमने उसके बारे में सुना है - वह सब अपनी मातृभूमि में भी कर दिखाइए”। फिर येसु ने कहा, “मैं तुम से कहे देता हूँ - अपनी मातृभूमि में नबी का स्वागत नहीं होता। मैं तुम्हें विश्वास दिलाता हूँ कि जब एलियस के दिनों में साढ़े तीन वर्षों तक पानी नहीं बरसा और सारे देश में घोर अकाल पड़ा था, तो उस समय इस्नाएल में बहुत-सी विधवाएँ थीं। फिर भी एलियस उन में से किसी के पास नहीं भेजा गया - वह सिदोन के सरेप्ता की एक विधवा के पास ही भेजा गया था। और नबी एलियस के दिनों में इस्राएल में बहुत-से कोढ़ी थे। फिर भी उन में से कोई नहीं, बल्कि सीरी नामन ही नीरोग किया गया था।” यह सुन कर सभागृह के सब लोग बहुत क्रुद्ध हो गये। वे उठ खड़े हो गये और उन्होंने येसु को नगर से बाहर निकाल दिया। जिस पहाड़ी पर उनका नगर बसा था, वे येसु को उसकी चोटी तक ले गये, ताकि उन्हें नीचे गिरा दें; परन्तु वह उनके बीच से निकल कर चले गये।

प्रभु का सुसमाचार।