सामान्य काल का चौथा सप्ताह, इतवार - वर्ष B

पहला पाठ

ईश्वर मूसा से कहता है कि मैं एक महान्‌ नबी को अपनी प्रजा के पास भेजूँगा। वह नबी ईश्वर के पुत्र हमारे प्रभु येसु मसीह हैं, जो मनुष्यों के बीच रह कर, उन्हें पिता परमेश्वर के विषय में सच्ची शिक्षा देंगे।

विधि-विवरण ग्रंथ 18:15-20

“मैं एक नबी उत्पन्न करूँगा और उसके मुख में अपने शब्द डालूँगा।”

सा ने लोगों से कहा, “तुम्हारा प्रभु-ईश्वर तुम्हारे बीच, तुम्हारे ही भाइयों में से, तुम्हारे लिए मुझ जैसा एक नबी उत्पन्न करेगा - तुम लोग उसकी बात सुनो। जब तुम पर्वत होरेब के सामने एकत्र थे, तुमने अपने प्रभु-ईश्वर से यही माँगा था। तुम लोगों ने कहा था “अपने प्रभु-ईश्वर की वाणी हमें फिर सुनाई नहीं पड़े और हम फिर यह भयानक अग्नि नहीं देखें, नहीं तो हम मर जायेंगे'। तब प्रभु ने मुझ से यह कहा, “लोगों का कहना ठीक ही है। मैं उनके ही भाइयों में से, उनके लिए तुम जैसा एक नबी उत्पन्न करूँगा। मैं अपने शब्द उसके मुख में डालूँगा और उसे जो-जो आदेश दूँगा, वह वही तुम्हें बतायेगा। वह मेरे नाम पर जो बातें कहेगा, यदि कोई उसकी उन बातों को नहीं सुनेगा, तो मैं स्वयं उस मनुष्य से उसका लेखा लूँगा। यदि कोई नबी मेरे नाम पर ऐसी बात कहने का साहस करेगा, जिसके लिए मैंने उसे आदेश नहीं दिया, या वह अन्य देवताओं के नाम पर बोलेगा, तो वह मर जायेगा।”

प्रभु की वाणी।

भजन : स्तोत्र 94:1-2,6-9

अनुवाक्य : ओह ! यदि तुम आज उसकी यह वाणी सुनो, “अपना हृदय कठोर न बनाओ ''।

1. आओ हम प्रभु के सामने आनन्द मनायें, अपने शक्तिशाली त्राणकर्त्ता का गुणगान करें। हम स्तुति करते हुए उसके पास जायें, भजन गाते हुए उसे धन्य कहें।

2. आओ! हम दण्डवत्‌ कर प्रभु की आराधना करें, अपने सृष्टिकर्त्ता के सामने घुटने टेकें। वही तो हमारा ईश्वर है, और हम हैं उसके चरागाह की प्रजा, उसकी अपनी भेड़ें।

3. ओह ! यदि तुम आज उसकी यह वाणी सुनो, “अपना हृदय कठोर न बनाओ, जैसा कि पहले मेरीबा और मस्सा की मरुभूमि में हुआ था। उस दिन तुम्हारे पूर्वजों ने मेरी परीक्षा ली। मेरे कार्यों को देखते हुए भी, उन्होंने मुम में विश्वास नहीं किया”।

दूसरा पाठ

विवाह एक पवित्र संस्कार है। सन्त पौलुस उसकी निन्दा नहीं करते, किन्तु उन्होंने अविवाहित रहना इसलिए पसन्द किया कि वह प्रभु की सेवा में अपने को पूर्ण रूप से अर्पित कर सकें।

कुरिंथियों के नाम सन्त पौलुस का पहला पत्र 7:32-35

“जो कुँवारी है वही प्रभु की बातों की चिन्ता करती है और पवित्र होने की कोशिश में लगी रहती है।”

मैं तो चाहता हूँ कि आप लोगों को कोई चिन्ता न हो। जो अविवाहित है, वह प्रभु की बातों की चिन्ता करता है। वह प्रभु को प्रसन्न करना चाहता है। जो विवाहित है, वह दुनिया की बातों की चिन्ता करता है। वह अपनी पत्नी को प्रसन्न करना चाहता है; उसमें परस्पर विरोधी भावों का संघर्ष है। जिसका पति नहीं रह गया या जो कूँवारी है, वे प्रभु की बातों की चिन्ता करती हैं। वे तन और मन से पवित्र होने की कोशिश में लगी रहती हैं। जो विवाहिता है, वह दुनिया की बातों की चिन्ता करती है और अपने पति को प्रसन्न करना चाहती है। यह मैं आप लोगों की भलाई के लिए कह रहा हूँ। मैं आपकी स्वतन्त्रता पर रोक लगाना नहीं चाहता। मैं तो आप लोगों के सामने प्रभु की अनन्य भक्ति का आदर्श रख रहा हूँ।

प्रभु की वाणी।

जयघोष : योहन 1:12,14

अल्लेलूया, अल्लेलूया ! शब्द ने शरीर धारण कर हमारे बीच निवास किया। जितनों ने उसे अपनाया, उन सबों को उसने ईश्वर की सन्तति बनने का अधिकार दिया है। अल्लेलूया !

सुसमाचार

यहूदी जनता येसु की अधिकारपूर्ण शिक्षा सुन कर और यह देख कर कि अपदूत भी उनकी आज्ञा मानते हैं, समझ गयी कि येसु ईश्वर की ओर से उनके पास भेजे गये।

मारकुस के अनुसार पवित्र सुसमाचार 1:21-28

“वह अधिकार के साथ शिक्षा देते थे।”

कफरनाहूम में येसु विश्राम के दिन सभागृह गये और शिक्षा देने लगे। लोग उनकी शिक्षा सुनकर अचंभे में पड़ गये; क्योंकि वह शास्त्रियों की तरह नहीं, बल्कि अधिकार के साथ शिक्षा देते थे। सभागृह में एक मनुष्य था, जो अशुद्ध आत्मा के वश में था। वह ऊँचे स्वर से चिल्लाया, “येसु नाजरी ! हम से आप को क्याक? क्या आप हमारा सर्वनाश करने आये हैं? मैं जानता हूँ कि आप कौन हैं - ईश्वर के भेजे हुएं परमपावन पुरुष। येसु ने यह कह कर उसे डाँटा, “चुप रह ! इस मनुष्य से बाहर निकल जा”। अपदूत उस मनुष्य को झकझोरते हुए ऊँचे स्वर से चिल्ला कर उस में से निकल गया। सब चकित रह गये और आपस में कहने लगे, “यह क्यार है? यह तो नये प्रकार की शिक्षा है। वह अधिकार के साथ बोलते हैं। वह अशुद्ध आत्माओं को भी आदेश देते हैं और वे उनकी आज्ञा मानते हैं”। इसके बाद येसु की चरचा शीघ्र ही गलीलिया प्रांत के कोने-कोने में फैल गयी।

प्रभु का सुसमाचार।