सामान्य काल का चौथा सप्ताह, इतवार - वर्ष A

पहला पाठ

ईश्वर नबियों द्वारा हमें याद दिलाता हे कि दीन-दरिद्रों को ही मुक्ति मिलेगी। बाइबिल की भाषा में वे लोग 'दरिद्र' कहलाते हैं जो या तो सच में गरीबी के कारण या अपनी कामनाओं के शुद्धीकरण के फलस्वरूप, इस संसार की धन-सम्पत्ति में आसक््तण नहीं होते और अपने को ईश्वर पर छोड़ देते हैं।

नबी सफन्या का ग्रंथ 2:3;3:12-13

“मैं तुम लोगों के देश में एक विनम्र एवं दीन प्रजा को छोड़ दूँगा।”

ईश्वर के आदेश पर चलने वाले, देश-भर के विनम्र लोगो ! धार्मिकता तथा विनम्रता की साधना करो। तब ईश्वर के क्रोध के दिन तुम संभवत: सुरक्षित रह सकोगे। मैं तुम लोगों के देश में एक विनम्र एवं दीन प्रजा को छोड़ दूँगा। जो इल्राएल में रह जायेंगे वे प्रभु के नाम की शरण लेंगे। वे अधर्म नहीं करेंगे, झूठ नहीं बोलेंगे और छल-कपट की बातें नहीं करेंगे। वे खायेंगे-पीयेंगे और विश्राम करेंगे और कोई भी उन्हें भयभीत नहीं करेगा।

प्रभु की वाणी।

भजन : स्तोत्र 145:7-10

अनुवाक्य : धन्य हैं वे, जो अपने को दीन-हीन समझते हैं- स्वर्गराज्य उन्हीं का है। (अथवा : अल्लेलूया।)

1. प्रभु सदा ही सत्यप्रतिज्ञ है। वह पद्दलितों को न्याय दिलाता है। वह भूखों को तृप्त करता और बन्दियों को मुक्त कर देता है।

2. प्रभु अन्धों की आँखों को अच्छा-करता और झुक़े हुए को सीधा करता है। वह परदेशी की रक्षा करता और अनाथ तथा विधवा को सँभालता है।

3. प्रभु धर्मियों को प्यार करता और विधर्मियों के मार्ग में बाधा डालता है। प्रभु, सियोन का ईश्वर, युगानुयुग राज्य करता रहेगा।

दूसरा पाठ

सन्त पौलुस कुरिंथियों को उनके सांसारिक विचारों के कारण डाँटते हैं और इस पर बल देते हैं कि ईश्वर उन लोगों के द्वारा अपना कार्य सम्पन्न करता हैं जो दुनिया की दृष्टि में अज्ञानी, दुर्बल तथा नगण्य हैं।

कुरिंथियों के नाम सन्तं पौलुस का पहला पत्र 1:26-31

“ईश्वर ने उन लोगों को चुना जो दुनिया की दृष्टि में मूर्ख हैं।”

भाइयो ! इस बात पर विचार कीजिए कि बुलाये जाते समय आप लोगों में से दुनिया की दृष्टि में बहुत कम लोग ज्ञानी, शक्तिशाली अथवा कुलीन थे। ज्ञानियों को लज्जित करने के लिए ईश्वर ने उन लोगों को चुना, जो दुनिया की दृष्टि में मूर्ख हैं। शक्तिशालियों को लज्जित करने के लिए उसने उन लोगों को चुना, जो दुनिया की दृष्टि में दुर्बल हैं। गण्य-मान्य लोगों का घमण्ड चूर करने के लिए उसने उन लोगों को चुना, जो दुनिया की दृष्टि में तुच्छ और नगण्य हैं, जिससे कोई भी मनुष्य ईश्वर के सामने गर्व न करे। उसी ईश्वर के वरदान से आप लोग येसु मसीह के अंग बन गये हैं। ईश्वर ने मसीह को हमारा ज्ञान, धार्मिकता, पवित्रता तथा उद्धार बना दिया है। इसलिए, जैसा कि धर्मग्रंथ में लिखा है - यदि कोई गर्व करना चाहे, तो वह प्रभु पर गर्व करे।

प्रभु की वाणी।

जयघोष : योहन 6:63,68

अल्लेलूया, अल्लेलूया ! हे प्रभु ! तेरी शिक्षा आत्मा और जीवन है। तेरे ही शब्दों में अनन्त जीवन का संदेश है। अल्लेलूया !

सुसमाचार

जो लोग विशेष रूप से ईश्वर के राज्य के योग्य माने जाते हैं, उन में वे लोग हैं जो मसीह की तरह धर्म के नाम पर अत्याचार सहते हैं। वे विशेष रूप से मसीह से निकट संबंध रखते हें।

मत्ती के अनुसार पवित्र सुसमाचार 5:1-12

“धन्य हैं वे, जो अपने को दीन-हीन समझते हैं।”

येसु विशाल जनसमूह देख कर पहाड़ी पर चढ़े और बैठ गये। उनके शिष्य उनके पास आये और वह यह कह कर उन्हें शिक्षा देने लगे : “धन्य हैं वे, जो अपने को दीन-हीन समझते हैं - स्वर्गराज्य उन्हीं का है। धन्य हैं वे, जो नम्र हैं - उन्हें प्रतिज्ञात देश प्राप्त होगा। धन्य हैं वे, जो शोक करते हैं - उन्हें सान्त्वना मिलेगी। धन्य हैं वे, जो धार्मिकता के भूखे और प्यासे हैं - वे तृप्त किये जायेंगे। धन्य हैं वे, जो दयालु हैं - उन पर दया की जायेगी। धन्य हैं वे, जिनका हृदय निर्मल है - वे ईश्वर के दर्शन करेंगे। धन्य हैं वे, जो मेल कराते हैं - वे ईश्वर के पुत्र कहलायेंगे। धन्य हैं बे, जो धार्मिकता के कारण अत्याचार सहते हैं - स्वर्गराज्य उन्हीं का है। धन्य हो तुम, जब लोग मेरे कारण तुम्हारा अपमान करते हैं, तुम पर अत्याचार करते और तरह-तरह के झूठे दोष लगाते हैं। खुश हो और आनन्द मनाओ - स्वर्ग में तुम्हें महान्‌ पुरस्कार प्राप्त होगा।”

प्रभु का सुसमाचार।