मैं सियोन के विषय में तब तक चुप नहीं रहूँगा, मैं येरसालेम के विषय में तब तक विश्राम नहीं लूँगा, जब तक उसकी धार्मिकता उषा की तरह नहीं चमकेगी, जब तक उसका उद्धार धधकती मशाल की तरह प्रकट नहीं होगा। तब राष्ट्र तेरी धार्मिकता देखेंगे, और समस्त राजा तेरी महिमा। तेरा एक नया नाम रखा जायेगा, जो प्रभु के मुख से उच्चरित होगा। तू प्रभु के हाथ में एक गौरवपूर्ण मुकुट बन जायेगा, अपने ईश्वर के हाथ में एक राजकीय किरीट। तू न तो फिर ‘परित्यक्ता' कहलायेगी और न तेरा देश 'उजाड', किन्तु तू 'परमप्रिय' कहलायेगी, और तेरे देश का नाम होगा - सुहागिन, क्योंकि प्रभु तुझ पर प्रसन्न है और तेरे देश को एक स्वामी मिल जायेगा। जिस तरह नवयुवक किसी कन्या को ब्याहता है, उसी तरह तेरा निर्माता तेरा पाणिग्रहण करेगा, जिस तरह वर अपनी वधू पर रीझता है, उसी तरह तेरा ईश्वर तुझ पर प्रसन्न होगा।
प्रभु की वाणी।
अनुवाक्य : सभी राष्ट्रों में प्रभु के अपूर्व कार्यो का गीत सुनाओ।
1. प्रभु के आदर में नया गीत गाओ। समस्त पृथ्वी प्रभु का भजन सुनाये। भजन गाते हुए प्रभु का नाम धन्य कहो।
2. दिन-प्रतिदिन उसका मुक्ति-विधान घोषित करते जाओ। सभी राष्ट्रों में उसकी महिमा का बखान करो। सभी लोगों को उसके अपूर्व कार्यों का गीत सुनाओ।3. पृथ्वी की सभी जातियो ! प्रभु की महिमा तथा शक्ति का बखान करो। उसके नाम की महिमा का गीत सुनाओ।
4. प्रभु के मंदिर में उसकी आराधना करो। समस्त पृथ्वी उसके सामने काँप उठे। राष्ट्रों को यह घोषित करो, “प्रभु ही राजा है”। वह न्यायपूर्वक सभी लोगों का विचार करेगा।
कृपादान तो नाना प्रकार के होते हैं, किन्तु आत्मा एक ही है। सेवाएँ तो नाना प्रकार की होती हैं, किन्तु प्रभु एक ही है। प्रभावशाली कार्य तो नाना प्रकार के होते हैं, किन्तु एक ही ईश्वर सबों में सब-कुछ कराता है। वह प्रत्येक को वरदान देता है, जिससे वह सबों के हित के लिए पवित्र आत्मा को प्रकट करे। किसी को आत्मा द्वारा प्रज्ञा के शब्द दिये जाते हैं, किसी को उसी आत्मा द्वारा ज्ञान के शब्द दिये जाते हैं और किसी को उसी आत्मा द्वारा विश्वास दिया जाता है। वही आत्मा किसी को रोगियों को चंगा करने का, किसी को चमत्कार दिखाने का, किसी को भविष्यवाणी करने का, किसी को आत्माओं की परख करने का, किसी को भाषाएँ बोलने का और किसी को भाषाओं की व्याख्या करने का वरदान देता है। वही एक आत्मा यह सब करता है; वह अपनी इच्छा के अनुसार प्रत्येक को अलग-अलग वरदान देता है।
प्रभु की वाणी।
अल्लेलूया, अल्लेलूया ! प्रभु कहते हैं “मैंने तुम्हें मित्र कहा है, क्योंकि मैंने अपने पिता से जो कुछ सुना है, वह सब तुम्हें बता दिया है।” अल्लेलूया !
गलीलिया के काना में एक विवाह था। येसु की माता वहाँ थी। येसु और उनके शिष्य भी विवाह में निमंत्रित थे। अंगूरी समाप्त हो जाने पर येसु की माता ने उन से कहा, “उन लोगों के पास अंगूरी नहीं रह गयी है”। येसु ने उत्तर दिया, “भद्रे ! इस से मुझ को और आप को क्या? अभी तक मेरा समय नहीं आया है”। उनकी माता ने सेवकों से कहा, “वह तुम लोगों से जो कुछ कहें, वही कर देना”। वहाँ यहूदियों के शुद्धीकरण के लिए पत्थर के छह मटके रखे थे। उन में दो-दो तीन-तीन मन समाता था। येसु ने सेवकों से कहा, “मटकों में पानी भर दो”। सेवकों ने उन्हे लबालब भर दिया। फिर येसु ने उन से कहा, “अब निकाल कर भोज के प्रबंधक के पास ले जाओ”। उन्होंने ऐसा ही किया। प्रबंधक ने वह पानी चखा, जो अंगूरी बन गया था। उसे मालूम नहीं था कि वह अंगूरी कहाँ से आयी है। जिन सेवकों ने पानी निकाला था, वे जानते थे। इसलिए प्रबंधक ने दुलहे को बुला कर कहा, “सब कोई पहले बढ़िया अंगूरी परोसते हैं, और लोगों के नशे में आ जाने पर घटिया। आपने तो अंब तक बढ़िया अंगूरी रख छोड़ी हे”। येसु ने अपना यह पहला चमत्कार गलीलिया के काना में दिखाया। उन्होंने अपनी महिमा प्रकट की और उनके शिष्यों ने उन में विश्वास किया। इसके बाद येसु अपनी माता, अपने भाइयों और अपने शिष्यों के साथ कफरनाहूम चले गये, परन्तु वे वहाँ थोड़े ही दिन रहे।
प्रभु का सुसमाचार।