यह मेरा सेवक है। मैं इसे सँभालता हूँ। मैंने इसे चुना है। मैं इस पर अत्यन्त प्रसन्न हूँ। मैंने इसे अपना आत्मा प्रदान किया है, जिससे यह राष्ट्रों में धार्मिकता प्रचार करे। यह न तो चिल््ला्ता और न शोर मचाता है; बाजारों में कोई भी इसकी आवाज नहीं सुनता। यह न तो कुचला हुआ सरकंडा ही तोड़ता है और न धुआँती हुई बत्ती ही बुझाता है। यह ईमानदारी से धार्मिकता का प्रचार करता है। यह न तो थकता है और न हिम्मत हारता है, जब तक यह पृथ्वी पर धार्मिकता की स्थापना न करे, क्योंकि समस्त द्वीप उसकी शिक्षा की प्रतीक्षा करते हैं। जिसने आकाश बना कर फैला दिया और पृथ्वी और उसकी हरियाली उत्पन्न की है, जिसने उस में रहने वाले मनुष्यों को जीवन प्रदान किया और उस पर विचरने वाले जीव-जन्तुओं में प्राण डाले हैं, वही प्रभु-ईश्वर यह कहता हि मैं - प्रभु - ने दया कर तुम को बुलाया और तुम्हारा हाथ पकड़ कर तुम को सँभाला है। मैंने तुम्हारे द्वारा अपनी प्रजा को एक विधान दिया और तुम्हें राष्ट्रों की ज्योति बनाया है, जिससे तुम अन्धों को दृष्टि दो, बन्दियों को मुक्त करो और अन्धकार में रहने वालों को ज्योति प्रदान करो।
प्रभु की वाणी।
अनुवाक्य : प्रभु मेरी ज्योति और मेरी मुक्ति है।
1. प्रभु मेरी ज्योति और मेरी मुक्ति है, तो मैं किस से डरूँ? प्रभु मेरे जीवन की रक्षा करता है, तो मैं किस से भयभीत होऊँ?
2. जब कुकर्मी मुझ पर टूट पड़ते हैं और मुझे निगलना चाहते हैं, तो वे ही - मेरे शत्रु और विरोधी - लडखड़ा कर गिर जाते हैं।
3. भले ही शत्रुओं की सेना मेरे सामने पड़ाव डाले, मैं भयभीत नहीं होऊँगा। भले ही मेरे विरुद्ध युद्ध छिड़ जाये, मेरा भरोसा दृढ़ रहेगा।
4. मुझे विश्वास है कि मैं इस जीवन में प्रभु की भलाई को देख पाऊँगा। प्रभु पर भरोसा रखो, दृढ़ रहो और प्रभु पर भरोसा रखो।
हे हमारे राजा! तुझे प्रणाम! तूने ही हम पापियों से सहानुभूति दिखायी।
पास्का के छह दिन पहले येसु बेथानिया आये। वहाँ लाजरुस रहता था, जिसे उन्होंने मृतकों में से जिलाया था। लोगों ने वहाँ येसु के सम्मान में एक भोज का आयोजन किया। मरथा परोसती थी और येसु के साथ भोजन करने वालों में लाजरुस भी था। मरियम ने आधा सेर असली जटामांसी का बहुमूल्य इत्र ले कर येसु के चरणों का लेपन किया और अपने केशों से उनके चरण पोंछे। इत्र की सुगंध से सारा घर गमक उठा। इस पर येसु का एक शिष्य, यूदस इसकारियोती, जो उनके साथ विश्वासघात करने वाला था, यह बोला, “तीन सौ दीनार में बेच कर, इस इत्र की कीमत गरीबों में क्यों नहीं बाँटी गयी?” उसने यह इसलिए नहीं कहा कि उसे गरीबों की चिन्ता थी, बल्कि इसलिए कि वह चोर था। उसके पास थैली रहती थी और उस में जो डाला जाता था, वह उसे निकाल लेता था। येसु ने कहा, “इसे छोड़ दो। इसने यह मेरे दफ़न के दिन की तैयारी में किया है। गरीब तो बराबर तुम्हारे साथ रहेंगे, किन्तु मैं हमेशा तुम्हारे साथ नहीं रहूँगा।” बहुत-से यहूदियों को पता चला कि येसु वहाँ हैं। वे येसु के कारण ही नहीं, बल्कि उस लाजरुस को भी देखने आये, जिसे येसु ने मृतकों में से पुनर्जीवित किया था। इसलिए महायाजकों ने निश्चय किया कि हम लाजरुस को भी मरवा डालेंगे, क्योंकि उसी के कारण बहुत-से लोग उन से अलग हो रहे थे और येसु में विश्वास करने लगे थे।
प्रभु का सुसमाचार।
ख्रीस्त में प्रिय भाईयो और बहनों हम सभी पुण्य सप्ताह में हैं जहाँ हम प्रभु के दुःखभोग और क्रूस मरण को करीबी से अनुभव करते हैं। पहले पाठ में ईश्वर के सेवक संबंधी काव्य प्रस्तुत किया गया है कि वह किस प्रकार ईमानदारी से धार्मिकता का प्रचार करेगा। येसु के इन्हीं कार्यों को हम सुसमाचार में पाते हैं कि किस प्रकार येसु मरियम का बचाव करते हुये यूदस को लालच बुराई से बचने का संदेश देते हैं। इसके बावजूद यूदस अपने बुरी योजना को छोड़ता नहीं है। हमारा ईश्वर एक उदार एवं असीमित प्रेम करने वाला ईश्वर है-
पापियों के प्रति प्रेम- प्रभु येसु ने जो कहा कि मैं धर्मियों को नहीं बल्कि पापियों को बुलाने आया हूँ (मार. 2ː17) उसे उसने अपने जीवन में करके दिखाया। वह चाहे व्यभिचार में पकड़ी गई नारी हो (योहन 8), समारी स्त्री हो (योहन 4), मरियम मगदलेना हो या अन्य कोई भी व्यक्ति जो एक पश्चातापी ह्रदय से उसके पास आया हो हमेशा से ही उसने अपने असीमित प्रेम का प्रमाण दिया है।
लोगों के प्रति उदारता- हमारा ईश्वर उदारता के धनी हैं उसने हमें बहुमूल्य वरदान जीवन दिया है, सांस लेने के लिये हवा, पीने के लिये पानी एवं जरुरत की सारी चीजें प्रदान किया है। ये सब ईश्वर ने हमें मुफ्त में प्रदान किया है वो बदले में हमसे कुछ नहीं चाहता केवल वो चाहता है कि हम उसकी आराधना करें, उसके उपकारों के लिये सदा कृतज्ञ बने रहें एवं अपने भाई-बहनों के प्रति उदार बनें।
मरियम प्रभु येसु के विलेपन के लिये बहुमूल्य इत्र लेकर आती है यहाँ हमें समझने की जरुरत है प्रभु के लिये हमें हम जितना सर्वश्रेष्ट कर सके करें। जिस प्रकार हाबिल ने अपने भेड़ों में से सबसे अच्छा और शुद्ध बलि प्रभु को अर्पित करते हैं इसलिये ईश्वर उनकी बलि स्वीकार करते हैं। एक विधवा केवल दो अधेले दान में देती है लेकिन वह ईश्वर की दृष्टि में सर्वश्रेष्ठ दान है। हमारे उपहारों, भेंट एवं दान को बहुमूल्य बनाने वाला है हमारा त्याग, समपर्ण और प्रेम। इनके अभाव में हम कितना ही कीमती और बहुमूल्य भेंट चढ़ा लें वह ईश्वर की दृष्टि में महत्व नहीं रखता है।
✍ - फादर संजय परस्ते (इन्दौर धर्मप्रान्त)
Dear brothers and sisters in Christ, we are all in Holy Week where we experience the Lord's Passion and death on the cross closely. In the first reading, the servant song is presented which speaks about his mission that how he will preach righteousness with sincerity.
We find these very actions of Jesus in the Gospel, how Jesus defends Mary Magdalene and warns Judas to stay away from greed and evil. In spite of this, Judas does not give up his evil plan.
Our God is infinitely loving and a generous God.
1. Love for sinners: Lord Jesus proved in his life what he said, "I have not come to call the righteous but sinners" (Mark 2:17). Whether it is the woman caught in adultery (John 8), the Samaritan woman (John 4), Mary Magdalene or any other person who has come to him with a repentant heart, he has always given proof of his infinite love.
2. Generosity towards people: Our God is very generous. He has given us the precious gift of life, air to breathe, water to drink and all the things needed for our survival. God has given us all this for free. He does not want anything in return. He only wants us to worship him, always remain grateful for his blessings and be generous towards our brothers and sisters.
Mary Magdalene brings precious perfume to anoint Lord Jesus. Here we need to understand that we should do the best we can for the Lord. Just as Abel offered the best of his sheep to the Lord, so God accepted his sacrifice (Gen 4:4). A widow gives only two small copper coins in charity but this is the best offering in the eyes of God (Lk 21:1-4). What makes our gifts, offerings and donations valuable is our sacrifice, dedication and love. Without these, no matter how precious and valuable gift we offer, it has no value in the eyes of God.
✍ -Fr. Sanjay Paraste (Indore Diocese)
प्रभु ईश्वर अपने चुने हुए सेवक को संभालते हैं क्योंकि उन्होंने उसे चुना है। वह उससे अति प्रसन्न हैं, और उसे अपना आत्मा प्रदान करते हैं। कलीसिया के इतिहास मे भी प्रभु ने कई सेवकों को चुना और उन्हें कलीसिया का कार्यभार सौंपा। पुराने व्यस्थान में हमे पाते हैं कि प्रभु ने कई राजाओं, नेताओं, एवं नबीयों को चुना। सभी ने प्रभु ईश्वर की ईच्छा को पूरा करने में किसी न किसी प्रकार से अपना योगदान दिया। नबी इसायह की इस भविष्यवाणी में भावी सेवक के बारे में बताया गया है जो सभी राष्ट्रों के लिए ज्योति बनेगा।
प्रभु येसु खी्स्त ही वह सेवक एवं ज्योति हैं जिसका ज़िक्र नबी इसायह ने किया है, जो अन्धों को दृष्टि एवं बंदियों को मुक्ति का संदेश देने आये। प्रभु येसु के बपतिस्मा के समय नबी की इस बात को पिता ईश्वर प्रकट करते हैं। प्रभु का आत्मा उन पर उतरता है। पिता ईश्वर घोषित करते हैं, “यह मेरा प्रिय पुत्र है, इस पर मैं अत्यंत पसन्न हूँ”। प्रभु येसु अपना दूसरा बपतिस्मा लेने के लिए व्याकूल हैं। विश्वासघाती यूदस इस बात की बाट़ जोह रहा है कि प्रभु को कैसे पकडवाये। क्या हम सच्ची ज्योति येसु के प्रकाश से अलोकित होते हैं? आइये, हम एक दूसरे के लिए ज्योति बनें।
✍ - फादर साइमन मोहता (इंदौर धर्मप्रांत)
God takes care of his chosen servant because he has chosen him. He is very pleased with him, and gives him his spirit. Throughout the history of the Church, the Lord has chosen many ministers and put them in charge of the Church. In the Old Testament we find that the Lord chose many kings, leaders, and prophets. Everyone contributed in one way or the other in fulfilling the will of God. This prophecy of the prophet Isaiah spoke of a future servant who would be a light for all nations.
The Lord Jesus Christ is the servant and the light mentioned by the prophet Isaiah, who came to bring sight to the blind and deliverance to the prisoners. God reveals this thing of the prophet at the time of baptism of Lord Jesus. The Spirit of the Lord descends upon him. God declares, "This is my beloved son, in whom I am well pleased". Lord Jesus is eager to take his second baptism. The traitor Judas is looking for ways to get the Lord caught. Are we enlightened by the light of Jesus, the true light? Come, let us be a light for each other.
✍ -Fr. Simon Mohta (Indore Diocese)
ईश्वर का चुनाव बहुत सारी प्रतिज्ञाओं, धीरज और जीत के आश्वासन से भरा हुआ है। हालाँकि, ये सभी उत्कृष्ट वादे मिशन के लिए दिए गए हैं।
इसायाह जैसे नबी भविष्यद्वक्ता को वचन और कार्य में पराक्रमी होना था और मसीह द्वारा किए जाने वाले कार्यों और मसीह-युग की घोषणा करनी थी। जैसा कि वे कहते है, " वह राष्ट्रों में धार्मिकता का प्रचार करेगा। वह अन्धों को दृष्टि, बन्दियों को मुक्ति प्रदान करेगा। अन्धकार में रहने वालों को ज्योति प्रदान करेगा।" इसायाह की भविष्यवाणी येसु में पूरी हुई।
ये सभी चिन्ह एक वास्तविकता बन गए जब येसु पृथ्वी पर आये। उन्होंने ठीक वही किया जो एक मसीह को करना चाहिए था। जब योहन बपतिस्ता ने येसु से एक मसीह के रूप में उनकी पहचान के बारे में पूछा, तो येसु ने आज के पहले पाठ से केवल धर्मग्रन्थ को उद्धृत किया।
इस मार्ग से हमें यह पहचानने में मदद मिलनी चाहिए कि येसु ही सदियों पहले घोषित मसीह थे और इस के द्रारा हमारे विश्वास की यात्रा में मजबूती से आगे बढ़े।
✍ - फादर रोनाल्ड मेलकम वॉन
God’s choice is loaded with a great many promises and assurance of endurance and victory. However, all these superlative promises are given for the mission. A prophet like Isaiah mighty in word and deed had to proclaim the messianic age and the works that Messiah would do. As it says, “He will bring forth justice to the nations….to open the eyes that are blind, to bring out the prisoners from the dungeon, from the prison those who sit in darkness.” Isaiah’s prophesy was fulfilled in Jesus.
All these signs became a reality when Jesus walked on the face of the earth. He did exactly what a Messiah was supposed to do. When John the Baptist asked Jesus about his identity as a Messiah, Jesus just quoted the scripture from today’s first reading.
This passage must us help to recognize that Jesus was the Messiah proclaimed centuries ago and get strengthened in our journey of faith.
✍ -Fr. Ronald Melcom Vaughan
आज हमारे समक्ष वह पाठ है जिसमें मरियम येसु के चरणों का बहुमूल्य इत्र से विलेपन करती है। उस समय इब्रानी संस्कृति में मेहमानों का पैर धोने का रिवाज था जिसमें वे पानी में कुछ सुगंधित्र इत्र डाल कर मेहमानो का उस पानी से पैर धोया करते थे जिससे उसकी सुगंध बनी रहें, परन्तु पूरा का पूरा इत्र नहीं मिलाया जाता था। प्रभु येसु के चरणों का बहुमूल्य इत्र से धोने पर युदस इस कार्य पर आपत्ति उठाने पर येसु मरियम का बचाव करते हुए कहते हैं कि उसने उनके दफन की तैयारी के लिए यह किया है।
मरियम का वह कार्य येसु द्वारा उनके परिवार के लिए किए गये अद्भुत कार्य के प्रति कृतज्ञ भावना को दर्शाता है जो उन्होने लाज़रुस को जिंदा करके किया। इस विलेपन द्वारा मरियम की यह भावना का ज्ञात होता है कि सबसे मूल्यावन वस्तु जो वह ला सकती है वह प्रभु येसु के चरणों के सामने भी कुछ नहीं है।
मरियम का वह कार्य हमें बताता हैं कि इस संसार में वे कौन सी चीज़े हैं जिन्हें हम सबसे मूल्यावान मानते है? क्या वह कोई वस्तु है, पदार्थ, व्यक्ति, ज्ञान, प्रज्ञा, विज्ञान, भावना, प्रसिद्धि, पद, रिश्ता या जों कुछ भी है? जब हम उन चीजों को येसु के साथ तुलना करेंगे तो वे येसु के चरणों के करीब तक के भी मूल्य नहीं है।
ज़केयुस के लिए धन और सम्मान बहुत ही मूल्यवान चीजें थी। लेकिन येसु से मिलने के बाद उसने जाना कि ये सब चीजें येसु के प्यार के सामने कुछ भी नहीं हैं।
इस संसार में हमें नश्वर चीजों को प्राप्त करने की अपेक्षा अनश्वर वस्तुओं के लिए प्रयासरत रहना चाहिए; अर्थात् येसु और उनके वचनों के लिए। जिससे कि हम अपने जीवन में वस्तुओं की अपेक्षा येसु को ज्यादा से ज्यादा अपने पास रख सकें या ग्रहण कर सकें तब हम भी संत पौलुस के समान यह कह पायेंगे, ‘‘मैं प्रभु ईसा मसीह को जानना सर्वश्रेष्ठ लाभ मानता हूँ और इस ज्ञान की तुलना में हर वस्तु को हानि ही मानता हूँ। उन्हीं के लिए मैंने सब कुछ छोड़ दिया है और उसे कूड़ा समझता हूँ।’’ (फिल्ली. 3ः8)। आमेन!
✍ - फादर डेन्नीस तिग्गा
Today in front of us is the passage in which Mary anoints the feet of Jesus with the costly ointment. In those times the Hebrew culture was to wash the feet of the guest with water pouring some amount of perfume in the water for the aroma but not using the full ointment. When she was objected by Judas for her act, Jesus defends her by saying she has done this as the day for his burial.
The act of Mary shows the attitude of gratitude towards Jesus for the marvelous thing Jesus has done for their family by raising Lazarus from dead. In this one act, Mary’s attitude is that the most valuable things that she could bring are not even close to the worthiness of the least part of Jesus - His feet.
The act of Mary tells us what are all those things which we consider more valuable in this world? Is it any thing, material, person, knowledge, wisdom, science, emotion, fame, position, relationship or anything? When we compare those things with Jesus they are not worth enough even to his feet.
For Zaccheaus money and honour was the most precious thing. After meeting Jesus he realized they are nothing in front of the love of Jesus.
In this world we have to stop striving after things which are perishable but strive for the things which are eternal that is striving for Jesus and his words; So that we may posses Jesus in our lives more than anything else and will be able to say like St. Paul, “I regard everything as loss because of the surpassing value of knowing Christ Jesus my Lord. For his sake I have suffered the loss of all things, and I regard them as rubbish, in order that I may gain Christ.” (Philip 3:8) Amen
✍ -Fr. Dennis Tigga