दुःखभोग इतवार (खजूर इतवार)

प्रभु का येरुसालेम में समारोही प्रवेश

सुसमाचार – वर्ष A

नबी जकर्या के ग्रंथ में लिखा था कि एक राजा मसीह के रूप में येरुसालेम में प्रवेश करेंगे। इसके अनुसार, राजा तथा मसीह होते हुए भी, येसु दरिद्र तथा विनम्र हैं। क्रूस पर मरने के बाद ही वह अपनी महिमा में प्रवेश करेंगे। उनका राज्य आध्यात्मिक है।

मत्ती के अनुसार पवित्र सुसमाचार 21:1-11

“धन्य हैं वह, जो प्रभु के नाम पर आते हैं।”

जब वे येरुसालेम के निकट पहुँचे और जैतून पहाड़ के समीप बेथफगे आ गये, तो येसु ने दो शिष्यों को यह कह कर भेजा, “सामने के गाँव में जाओ। वहाँ पहुँचते ही तुम्हें बँधी हुई गदही मिलेगी और उसके साथ एक बछेड़ा। उन्हें खोल कर मेरे पास ले आओ। यदि कोई कुछ बोले, तो कह देना - प्रभु को इनकी जरूरत है, वह इन्हें शीघ्र ही वापस भेज देंगे”। यह इसलिए हुआ कि नबी का यह कथन पूरा हो जाये - सिओन की पुत्री से कहो : देख! तेरे राजा तेरे पास आते हैं। वह विनम्र हैं। वह गदहे पर, बछेड़े पर, लद्दू जानवर के बच्चे पर सवार हैं। शिष्य चले गये। येसु ने जैसा आदेश दिया, उन्होंने वैसा ही किया। गदही और बछेडा ले आ कर उन्होंने उन पर अपने कपड़े बिछा दिये और येसु सवार हो गये। भीड़ में से बहुत-से लोगों ने अपने कपड़े रास्ते में बिछा दिये। कुछ लोगों ने पेड़ों की डालियाँ काट कर रास्ते में फैला दीं। येसु के आगे-आगे जाते हुए और पीछे-पीछें आते हुए लोग यह नारा लगा रहे थे, "दाऊद के पुत्र को होसन्ना! धन्य हैं वह, जो प्रभु के नाम पर आते हैं! सर्वोच्च स्वर्ग में होसन्ना!” येसु ने येरुसालेम में प्रवेश किया, तो सारे शहर में हलचल मच गयी। लोग पूछने लगे, “यह कौन है!” और जनता उत्तर देती थी, “यह गलीलिया के नाजरेत के नबी येसु हैं”।

प्रभु का सुसमाचार।

सुसमाचार - वर्ष B

यहूदी लोग मसीह को एक महान्‌ राजा के रूप में देखते थे, जो सदा के लिए पृथ्वी पर राज्य करेंगे। वह अवश्य ही राजा हैं, किन्तु उनका राज्य इस संसार का नहीं हैं। इसलिए वह राजसी वैभव के साथ नहीं, बल्कि गधे पर बैठ कर येरुसालेम में प्रवेश करते हैं।

मारकुस के अनुसार पवित्र सुसमाचार 11:1-10

“धन्य हैं बह, जो प्रभु के नाम पर आते हैं।”

पास्का पर्व के कुछ दिन पहले येसु और उसके शिष्य येरुसालेम के निकट पहुँचे। जब वे जैतून पहाड़ के समीप बेथफगे और बेथानिया आ गये थे, तो येसु ने अपने दो शिष्यों को यह कह कर भेजा, “सामने के गाँव में जाओ। वहाँ पहुँचते ही तुम्हें बँधा हुआ एक बछेड़ा मिलेगा, जिस पर अब तक कोई नहीं सवार हुआ है। उसे खोल कर ले आओ; यदि कोई तुम से कहे - यह क्या कर रहे हो, तो कह देना, प्रभु को इसकी जरूरत है, वह इसे शीघ्र ही वापस भेज देंगे। शिष्य चले गये और बछेड़े को बाहर सड़क के किनारे एक फाटक पर बँधा हुआ पा कर, उन्होंने उसे खोल दिया। वहाँ खड़े लोगों में से कुछ कहने लगे, “यह क्या कर रहे हो? बछेड़ा क्यों खोलते हो?” येसु ने जैसा बताया, शिष्यों ने वैसा ही कहा और लोगों ने उन्हें जाने दिया। उन्होंने, बछेड़ा येसु के पास ले आ कर, उस पर अपने कपड़े बिछा दिये और येसु सवार हो गये। बहतु-से लोगों ने कपड़े रास्ते में बिछा दिये; कुछ लोगों ने खेतों में हरी-हरी डालियाँ काट कर फैला दीं। येसु के आगे-आगे जाते हुए और पीछे-पीछे आते हुए लोग यह नारा लगा रहे थे : होसन्ना! धन्य हैं वह, जो प्रभु के नाम पर आते हैं! धन्य है हमारे पिता दाऊद का आने वाला राज्य! सर्वोच्च में होसन्ना!”

प्रभु का सुसमाचार।

वैकल्पिक सुसमाचार - वर्ष B

नबी जकर्या के ग्रंथ में लिखा था कि एक राजा मसीह के रूप में येरुसालेम में प्रवेश करेंगे। इसके अनुसार, राजा तथा मसीह होते हुए भी, येसु दरिद्र तथा विनम्र हैं। क्रूस पर मरने के बाद ही वह अपनी महिमा में प्रवेश करेंगे। उनका राज्य आध्यात्मिक है।

योहन के अनुसार पवित्र सुसमाचार

पास्का पर्व के कुछ दिन पहले पर्व के लिए आये हुए विशाल जनसमूह को पता चला कि येसु येरुसालेम आ रहे हैं इसलिए वे लोग खजूर की डालियाँ लिये उनकी अगवानी करने निकले और यह नारा लगाने लगे - होसन्ना! धन्य हैं वह, जो प्रभु के नाम पर आते हैं! धन्य हैं, इस्राएल के राजा! येसु को गदही का बछेड़ा मिला और वह उस पर सवार हुए, जैसा कि घर्मग्रंथ में लिखा है - सिओन की पुत्री! नहीं डरना! तेरे राजा, गदही के बछेड़े पर सवार होकर, तेरे पास आ रहे हैं। येसु के शिष्य पहले यह नहीं समझते थे, परन्तु येसु के महिमान्वित हो जाने के बाद उन्हें याद आया कि यह उनके विषय यें लिखा हुआ था और लोगों ने उनके साथ ऐसा ही किया था।

प्रभु का सुसमाचार।

सुसमाचार - वर्ष C

मसीह राजा के रूप में येरुसालेम में प्रवेश करते हैं। हमें सदा याद रखना चाहिए कि उनका राज्य आध्यात्मिक है। वह ईश्वर की आज्ञा का पालन करते हुए क्रूस द्वारा मनुष्यों का उद्धार करने आते हैं और इस प्रकार उनके लिए एक नये येरुसालेम का द्वार खोल देते हैं।

लूकस के अनुसार पवित्र सुसमाचार 19:29-40

“धन्य है वह, जो प्रभु के नाम पर आते हैं।”

जब येसु जैतून पहाड़ के समीप - बेथफगे और बेथानिया के निकट - पहुँचे, तो उन्होंने दो शिष्यों को यह कह कर भेजा, “सामने के गाँव में जाओ। वहाँ पहुँच कर तुम एक बछेड़ा बँधा हुआ पाओगे, जिस पर अब तक कोई नहीं सवार हुआ है। उसे खोल कर यहाँ ले आओ। यदि कोई तुम से पूछे कि तुम उसे क्यों खोल रहे हो, तो उत्तर देना - प्रभु को इसकी जरूरत है”। जो भेजे गये थे, उन्होंने जा कर येसु ने जैसा कहा था, वैसा ही पाया। जब वे बछेड़ा खोल रहे थे, तो उसके मालिकों ने उन से कहा “इस बछेड़े को क्यों खोल रहे हो?” उन्होंने उत्तर दिया, 'प्रभु को इसकी जरुरत है' वे बछेड़ा येसु के पास ले आये और उस बछेडे पर अपने कपड़े बिछा कर उन्होंने येसु को उस पर चढ़ाया। ज्यों-ज्यों येसु आगे बढ़ते जा रहे थे, लोग रास्ते पर अपने कपड़े बिछाते जा रहे थे। जब वह जैतून पहाड़ की ढाल पर पहुँचे, तो पूरा शिष्य-समुदाय आनन्द-विभोर हो कर आँखों देखे सब चमत्कारों के लिए ऊँचे स्वर से इस प्रकार ईश्वर की स्तुति करने लगा - धन्य हैं वह राजा, जो प्रभु के नाम पर आते हैं! स्वर्ग में शांति! सर्वोच्च स्वर्ग में महिमा! भीड़ में कुछ फरीसी थे। उन्होंने येसु से कहा, “गुरुवर! अपने शिष्यों को डाँटिए”। परन्तु येसु ने उत्तर दिया, “मैं तुम से सच कहता हूँ, यदि वे चुप रहें तो पत्थर ही बोल उठेंगे” ।

प्रभु का सुसमाचार।

मिस्सा

[दुःखभोग का पाठ अनिवार्य है। पहला तथा दूसरा पाठ विशेष कारण से छोड़ दिया जा सकता है।]

पहला पाठ – वर्ष A, B, C

प्रस्तुत पाठ का विषय है नबी इसायस द्वारा मसीह के दुः:खभोग की भविष्यवाणी। इस में विशेष रूप से मसीह के आज्ञापालन तथा ईश्वर पर उनके भरोसे पर बल दिया जाता है।

नवी इसायस का ग्रंथ 50:4-7

“मैंने अपमान करने वालों से अपना मुँह नहीं छिपाया। मैं जानता हूँ कि मुझे निराश नहीं होना पड़ेगा।”

प्रभु ने मुझे शिष्य बना कर वाणी दी है, जिससे मैं थके-माँदे को सँभाल सकूँ। वह प्रतिदिन प्रात: मेरे कान खोल देता है, जिससे में शिष्य की तरह सुन सकूँ। प्रभु ने मेरे कान खोल दिंये हैं; मैंने न तो उसका विरोध किया और न पीछे हटा। मैंने मारने वालों के सामने अपनी पीठ कर दी और दाढ़ी नोचने वालों के सामने अपना गाल। मैंने अपमान करने और थूकने वालों से अपना मुँह नहीं छिपाया। प्रभु मेरी सहायता करता है; इसलिए मैं अपमान से विचलित नहीं हुआ। मैंने अपना मुँह पत्थर की तरह कड़ा कर लिया; मैं जानता हूँ कि अंत में मुझे निराश नहीं होना पड़ेगा।

प्रभु की वाणी।

भजन : स्तोत्र 21:8-9,17-20,23-24

अनुवाक्य : हे मेरे ईश्वर! मेरे ईश्वर! तूने मुझे क्यों छोड़ दिया है?

1. मुझे जो भी देखते हैं, मेरा उपहास करते हैं; वे सिर हिलाते हुए मेरी हँसी उड़ाते हैं; उसने प्रभु पर भरोसा रखा है, वही अब उसे बचाये; यदि वह उसे प्यार करता है, तो वह उसे छुड़ाये।

2. कुत्तों के झुण्ड ने मुझे घेर लिया है, कुकर्मियों का दल मेरे चारों ओर खड़ा है। वे मेरे हाथ-पाँव छेद देते हैं; मैं अपनी एक-एक हड्डी गिन सकता हूँ।

3. वे मेरे वस्त्र आपस में बाँट लेते हैं और मेरे कुरते पर चिट्ठी डालते हैं। हे प्रभु! तू मेरे पास रह जा। तू मेरा बल है; मेरी सहायता कर।

4. मैं अपने भाइयों के सामने तेरे नाम का बखान करूँगा, मैं सभाओं में तेरा गुणगान करूँगा। प्रभु के भक्तों, उसकी स्तुति करो। याकूब के सब वंशजो! उसकी महिमा गाओ। इस्राएल के सब वंशजो! उसका आदर करो।

दूसरा पाठ - बर्ष A, B, C

येसु ने कहा है, “जो अपने को बड़ा मानता है वह छोटा बनाया जायेगा और जो अपने को छोटा मानता है, वह बड़ा बनाया जायेगा”। सन्त पौलुस इस सच्चाई को मसीह के विषय में स्पष्ट कर देते हैं - मसीह ने अपने दुःखभोग तथा क्रूस पर अपने मरण द्वारा अपने को दीन-हीन बना लिया है, इसलिए ईश्वर ने उन्हें महान्‌ बना दिया है।

फिलिप्पियों के नाम सन्त पौलुस का पत्र 2:6-11

“उन्होंने अपने को दीन-हीन बना लिया है, इसलिए इंश्वर ने उन्हें महान बना दिया है।“

यद्यपि येसु मसीह ईश्वर थे और उनका पूरा अधिकार था, कि वह ईश्वर की बराबरी करे, फिर भी उन्होंने दास का रूप धारण कर तथा मनुष्यों के समान बन कर अपने को दीन-हीन बना लिया है। और मनुष्य का रूप धारण करने के बाद वह मरण तक, हाँ क्रूस के मरण तक, आज्ञाकारी बन गये और इस प्रकार उन्होंने अपने को और भी दीन बना लिया है। इसलिए ईश्वर ने उन्हें महानू बना दिया है, और उन को वह नाम प्रदान किया है, जो सब नामों में श्रेष्ठ है, जिससे येसु का नाम सुन कर आकाश, पृथ्वी और पाताल के सब निवासी घुटने टेकें तथा पिता की महिमा के लिए सब लोग यह स्वीकार करें कि येसु मसीह प्रभु ही हैं। थ यह प्रभु की वाणी है।

प्रभु की वाणी।

जयघोष : फिलि० 2:8-9

मसीह हमारे लिए मरण तक, हाँ क्रूस के मरण तक, आज्ञाकारी बन गये, इसलिए ईश्वर ने उन्हें महान्‌ बना दिया है और उन को वह नाम प्रदान किया है जो सब नामों में श्रेष्ठ है।

सुसमाचार - वर्ष A

मत्ती के अनुसार प्रभु येसु का दुःखभोग 26:14-27,66

[कोष्ठक में रखा अंश छोड़ दिया जा सकता है]

[तब बारहों में से एक, जो यूदस इसकारियोती कहलाता था, महायाजकों के पास गया और उसने उन से कहा, “यदि मैं येसु को आप लोगों के हवाले कर दूँ, तो आप मुझे क्या देने को तैयार हैं?” उन्होंने उसे चाँदी के तीस सिक्के दिये। उस समय से यूदस येसु को पकड़वाने का अवसर ढूँढ़ने लगा। बेखमीर रोटी के पहले दिन शिष्य येसु के पास आ कर बोले, “आप क्या चाहते हैं? हम कहाँ आपके लिए पास्का-भोज की तैयारी करें?" येसु ने उत्तर दिया, “शहर में अमुक के पास जाओ और उस से कहो,” “गुरु कहते हैं - मेरा समय निकट आ गया है, मैं अपने शिष्यों के साथ तुम्हारे यहाँ पास्का का भोजन करूँगा।” येसु ने जैसा आदेश दिया, शिष्यों ने वैसा ही किया और पास्का-भोज की तैयारी कर ली। संध्या हो जाने पर येसु बारहों शिष्यों के साथ भोजन करने बैठे। उनके भोजन करते समय येसु ने कहा, “मैं तुम लोगों से कहे देता हूँ - तुम में से ही एक मुझे पकड़वा देगा”। वे बहुत उदास हो गये और एक-एक करके उन से पूछने लगे, “प्रभु! कहीं वह मैं तो नहीं हूँ?” येसु ने उत्तर दिया, “जो मेरे साथ थाली में खाता है, वह मुझे पकड़वा देगा। मानव पुत्र तो चला जाता है, जैसा कि उसके विषय में लिखा है; परन्तु धिक्कार उस मनुष्य को, जो मानव पुत्र को पकड़वाता है! उस मनुष्य के लिए कहीं अच्छा यही होता कि वह पैदा ही नहीं हुआ होता!” येसु के विश्वासघाती यूदस ने भी उन से पूछा, “गुरुवर! कहीं वह मैं तो नहीं हूँ?” येसु ने उसे उत्तर दिया, “यह तुमने ठीक कहा”। उनके भोजन करते समय येसु ने रोटी ले ली और धन्यवाद की प्रार्थना पढ़ने के बाद उसे तोड़ा और यह कहते हुए शिष्यों को दिया, “ले लो और खाओ। यह मेरा शरीर है"। तब उन्होंने प्याला ले कर धन्यवाद की प्रार्थना पढ़ी और यह कहते हुए उसे शिष्यों को दिया, “तुम सब इस में से पियो; क्योंकि यह मेरा रक्त है, विधान का रक्त, जो बहु्तों की पापक्षमा के लिए बहाया जा रहा है मैं तुम लोगों से कहता हूँ - जब तक मैं अपने पिता के राज्य में तुम्हारे साथ नवीन रस न पी लूँ, तब तक मैं दाख का यह रस फिर नहीं पिऊँगा”। भजन गाने के बाद वे जैतून पहाड़ चल दिये। उस समय येसु ने उन से कहा, “इसी रात को तुम सब मेरे कारण विचलित हो जाओगे, क्योंकि यह लिखा है - मैं चरवाहे को मारूँगा और झुण्ड की भेड़ें तितर-बितर हो जायेंगी; किन्तु अपने पुनरुत्थान के बाद मैं तुम लोगों से पहले गलीलिया जाऊँगा”। इस पर पेत्रुस ने येसु से कहा, “आपके कारण चाहे सभी विचलित हो जायें, किन्तु मैं कभी विचलित नहीं होऊँगा”। येसु ने उसे उत्तर दिया, “मैं तुम से कहे देता हूँ - इसी रात को, मुरगे के बाँग देने से पहले ही, तुम मुझे तीन बार अस्वीकार करोगे”। पेत्रुस ने उन से कहा, “मुझे आपके साथ चाहे मरना ही क्यों न पड़े, किन्तु मैं आप को कभी अस्वीकार नहीं करूँगा"। और सब शिष्यों ने यही कहा। जब येसु अपने शिष्यों के साथ गेतसेमानी नामक बारी में पहुँचे, तो वह उन से बोले, “तुम लोग यहाँ बैठे रहो। मैं तब तक वहाँ प्रार्थना करने जाता हूँ।” वह पेत्रुस और जेबेदी के दो पुत्रों को अपने साथ ले गये। वह उदास और व्याकुल होने लगे और उन से बोले, “मेरी आत्मा इतनी उदास है कि मैं मरने-मरने को हूँ। यहाँ ठहर जाओ और मेरे साथ जागते रहो”। वह कुछ आगे बढ़ कर मुँह के बल गिर पड़े और यह कह कर प्रार्थना करने लगे, “मेरे पिता! यदि हो सके, तो यह प्याला मुझ से टल जाय। फिर भी मेरी इच्छा नहीं, बल्कि तेरी ही इच्छा पूरी हो”। तब वह अपने शिष्यों के पास गये और उन्हें सोता हुआ देख कर पेत्रुस से बोले, “क्या तुम लोग घंटे-भर भी मेरे साथ नहीं जाग सके? जागते रहो और प्रार्थना करते रहो, जिससे तुम परीक्षा में न पड़ जाओ। आत्मा तो तत्पर है, परन्तु शरीर दुर्बल है"। वह फिर दूसरी बार गये और उन्होंने यह कहते हुए प्रार्थना की, “मेरे पिता! यदि यह प्याला मेरे पिये बिना नहीं टल सकता तो तेरी ही इच्छा पूरी हो”। लौटने पर उन्होंने अपने शिष्यों को फिर सोया हुआ पाया, क्योंकि उनकी आँखें भारी थीं। वह उन्हें छोड़ कर चले गये और उन्हीं शब्दों को दोहराते हुए उन्होंने तीसरी बार प्रार्थना की। इसके बाद उन्होंने अपने शिष्यों के पास आ कर उन से कहा, “अब तक सो रहे हो? अब तक आराम कर रहे हो? देखो! वह घड़ी आ गयी है, जब मानव पुत्र पापियों के हवाले कर दिया जायेगा। उठो! हम चलें। मेरा विश्वासघाती निकट आ गया है”। येसु यह कह ही रहे थे कि बारहों में से एक, यूदस, आ गया। उसके साथ तलवारों और लाठियाँ लिये एक बड़ी भीड़ थी, जिसे महायाजकों और जनता के नेताओं ने भेजा था। विश्वासघाती ने उन्हें यह कह कर संकेत दिया था, “मैं जिसका चुम्बन करूँगा, वही है। उसी को पकड़ लेना”। उसने सीधे येसु के पास आ कर कहा, “गुरुवर! प्रणाम!” और उनका चुम्बन किया। येसु ने उस से कहा, “मित्र! जो करने आये हो, कर लो” तब लोग आगे बढ़ आये और उन्होंने येसु को पकड़ कर गिरफ्तार कर लिया। इस पर येसु के साथियों में से एक ने अपनी तलवार खींच ली और प्रधानयाजक के नौकर पर चला कर उसका कान उड़ा दिया। येसु ने उस से कहा, “तलवार म्यान में कर लो, क्योंकि जो तलवार उठाते हैं, वे तलवार से मरते हैं। क्या तुम यह समझते हो कि मैं अपने पिता से सहायता नहीं माँग सकता? तब क्या वह अभी मेरे लिए स्वर्गदूतों की बारह से भी अधिक सेनाएँ नहीं भेज देगा? लेकिन तब धर्मग्रंथ कैसे पूरा होगा? उस में तो लिखा है कि ऐसा ही होना आवश्यक है”। इसके बाद येसु ने भीड़ से कहा, “क्या तुम लोग मुझे डाकू समझते हो, जो तलवारें और लाठियाँ ले कर मुझे पकड़ने आये हो? मैं तो प्रतिदिन मंदिर में बैठ कर शिक्षा दिया करता था, फिर भी तुमने मुझे गिरफ्तार नहीं किया”। यह सब इसलिए हुआ कि नबियों ने जो लिखा है, वह पूरा हो जाये। तब सभी शिष्य येसु को छोड़ कर भाग गये। जिन्होंने येसु को गिरफ्तार कर लिया था, वे उन्हें प्रधानयाजक कैफस के यहाँ ले गये, जहाँ शास्त्री और नेता इकट्ठे हो गये थे। पेत्रुस कुछ दूरी पर येसु के पीछे-पीछे चला। वह प्रधानयाजक के महल तक पहुँच कर अन्दर गया और परिणाम देखने के लिए नौकरों के साथ बैठ गया। महायाजक और सारी महासभा येसु को मरवा डालने के उद्देश्य से उनके विरुद्ध झूठी गवाही खोज रही थी, परन्तु वह मिली नहीं, यद्यपि बहुत-से झूठे गवाह सामने आये। अंत में दो गवाह आ कर बोले, “इस व्यक्ति ने कहा - मैं ईश्वर का मंदिर ढा सकता हूँ और तीन दिनों के अन्दर उसे फिर बना सकता हूँ”। इस पर प्रधानयाजक ने खड़ा हो कर येसु से कहा, “ये लोग तुम्हारे विरुद्ध जो गवाही दे रहे हैं, क्या इसका कोई उत्तर तुम्हारे पास नहीं है?” परन्तु येसु मौन रहे। तब प्रधानयाजक ने उन से कहा, “तुम्हें जीवंत ईश्वर की शपथ! यदि तुम मसीह, ईश्वर के पुत्र हो, तो हमें बता दो”। येसु ने उत्तर दिया, “आपका कहना ठीक है। मैं आप लोगों से यह भी कहता हूँ - भविष्य में आप मानव पुत्र को सर्वशक्तिमान्‌ ईश्वर के दाहिने बैठा हुआ और आकाश के बादलों पर आता हुआ देखेंगे”। इस पर प्रधानयाजक ने अपने वस्त्र फाड़ कर कहा, “इसने ईश-निन्दा की है। तो अब हमें गवाहों की जरूरत ही क्या है? अभी-अभी आप लोगों ने ईश-निन्दा सुनी है। आप लोगों का क्या विचार है?" उन्होंने उत्तर दिया, “यह प्राणदण्ड के योग्य है”। तब उन्होंने उनके मुँह पर थूक दिया और उन्हें घूँसे मारे। कुछ लोगों ने उन्हें थप्पड़ मारते हुए यह कहा, “हे मसीह! यदि तू नबी है, तो हमें बता - किसने तुझे मारा है?” पेत्रुस उस समय बाहर प्रांगण में बैठा हुआ था। एक नौकरानी ने पास आ कर उस से कहा, “तुम भी येसु गलीली के साथ थे”; किन्तु उसने सब के सामने अस्वीकार करते हुए कहा, “मैं नहीं समझता कि तुम क्या कह रही हो”। तब पेत्रुस फाटक की ओर खिसक गया, किन्तु एक दूसरी नौकरानी ने उसे देख लिया और वहाँ के लोगों से कहा, “यह व्यक्ति येसु नाजरी के साथ था”। उसने शपथ खा कर फिर अस्वीकार किया और कहा, “मैं उस मनुष्य को नहीं जानता”। इसके थोड़ी देर बाद आसपास खड़े लोग पेत्रुस के पास आये और बोले, “निश्चय ही तुम भी उन्हीं लोगों में से एक हो। यह तो तुम्हारी बोली से ही स्पष्ट है”। तब पेत्रुस कोसने और शपथ खा कर कहने लगा कि मैं उस मनुष्य को जानता ही नहीं। ठीक उसी समय मुरगे ने बाँग दी। पेत्रुस को येसु का यह कहना याद आया - मुरगे के बाँग देने से पहले ही तुम मुझे तीन बार अस्वीकार करोगे, और वह बाहर निकल कर फूट-फूट कर रोने लगा। भोर को सब महायाजकों और जनता के नेताओं ने येसु को मरवा डालने के लिए परामर्श किया। उन्होंने येसु को बाँधा और उन्हें ले जा कर राज्यपाल पिलातुस के हवाले कर दिया। जब येसु के विश्वासघाती यूदस ने देखा कि उन्हें दण्डाज्ञा मिली है, तो उसे पश्चात्ताप हुआ और उसने महायाजकों और नेताओं को चाँदी के तीस सिक्के लौटाते हुए कहा, “मैंने निर्दोष रक्त का सौदा कर पाप किया है”। उन्होंने उत्तर दिया, “हमें इस से क्या! तुम जानो”। इस पर यूदस ने चाँदी के सिक्के मंदिर में फेंक दिये और जा कर फाँसी लगा ली। महायाजकों ने चाँदी के सिक्के उठा कर कहा, “इन्हें खजाने में जमा करना उचित नहीं है, यह तो रक्त की कीमत है”। इसलिए परामर्श करने के बाद उन्होंने परदेशियों को दफनाने के लिए के उन सिक्कों से कुम्हार की जमीन खरीद ली। यही कारण है कि जमीन आज तक रक्त की ज़मीन कहलाती है। इस प्रकार नबी येरेमियस का यह कथन पूरा हो गया; उन्होंने चाँदी के तीस सिक्के ले लिये - वही दाम इस्राएल के पुत्रों ने उनके लिए निर्धारित किया था - और कुम्हार की ज़मीन के लिए दे दिये, जैसा कि प्रभु ने मुझे आदेश दिया था । ]

येसु अब राज्यपाल के सामने खड़े थे। राज्यपाल ने उस से पूछा, “क्या तुम यहूदियों के राजा हो?” येसु ने उत्तर दिया, “यह आप ठीक कहते हैं”। महायाजक और नेता उन पर अभियोग लगाते रहे, परन्तु येसु ने कोई उत्तर नहीं दिया। इस पर पिलातुस ने उन से कहा, “क्या तुम नहीं सुनते कि ये तुम पर कितने अभियोग लगा रहे हैं?” फिर भी येसु ने उत्तर में एक शब्द भी नहीं कहा। इस पर राज्यपाल को बहुत आश्चर्य हुआ। पर्व के अवसर पर राज्यपाल लोगों के इच्छानुसार एक बंदी को रिहा किया करता था। उस समय बराब्बस नामक एक कुख्यात व्यक्ति बंदीगृह में था। इसलिए पिलातुस ने इकट्ठे हुए लोगों से कहा, “तुम लोग क्या चाहते हो? मैं तुम्हारे लिए किसे रिहा कर दूँ - बराब्बस को अथवा मसीह कहलाने वाले येसु को?” वह जानता था कि उन्होंने येसु को ईर्ष्या से पकड़वाया है। पिलातुस न्यायासन पर बैठा हुआ ही था कि उसकी पत्नी ने कहला भेजा, “उस धर्मात्मा के मामले में हाथ न डालना, क्योंकि उसी के कारण मुझे आज स्वप्न में बहुत कष्ट हुआ है”। इसी बीच महायाजकों और नेताओं ने लोगों को यह समझाया कि वे बराब्बस को छुड़ायें और येसु का सर्वनाश करें। राज्यपाल ने फिर उन से पूछा, “तुम लोग क्या चाहते हो? दोनों में से किसे तुम्हारे लिए रिहा कर दूँ!” उन्होंने उत्तर दिया, “बराब्बस को”। इस पर पिलातुस ने उन से कहा, “तो, मैं येसु का क्या करूँ, जो मसीह कहलाते हैं?” सबों ने उत्तर दिया, “उसे क्रूस दिया जाये”। पिलातुस ने पूछा, “क्यों? उसने कौन-सा अपराध किया?” किन्तु वे और भी जोर से चिल्लाने लगे, “उसे क्रूस दिया जाए?” जब पिलातुस ने देखा कि मेरी एक भी नहीं चलती, उल्टे हंगामा होता जा रहा है, तो उसने पानी मँगा कर लोगों के सामने हाथ धोये और कहा, “मैं इस धर्मात्मा के रक्त का दोषी नहीं हूँ। तुम लोग जानो।” और सारी जनता ने उत्तर दिया, “उसका रक्त हम पर और हमारी सन्तान पर!' इस पर पिलातुस ने उनके लिए बराब्बस को मुक्त कर दिया और येसु को कोड़े लगवा कर क्रूस पर चढ़ाने के लिए सिपाहियों के हवाले कर दिया। इसके बाद राज्यपाल के सैनिकों ने येसु को भवन के अन्दर ले जा कर उनके पास सारी पलटन एकत्र कर ली। उन्होंने उनके कपड़े उतार कर उन्हें लाल चोगा पहनाया। काँटों का मुकुट गूँथ कर उनके सिर पर रखा और उनके दाहिने हाथ में सरकंडा थमा दिया। तब वे उनके सामने घुटने टेक कर यह कहते हुए उनका उपहास करने लगे, “यहूदियों के राजा, प्रणाम!” वे उन पर थूकते और सरकंडा छीन कर उनके सिर पर मारते थे। इस प्रकार उनका उपहास करने के बाद वे चोगा उतार कर और उन्हें उनके निजी कपड़े पहना कर, क्रूस पर चढ़ाने ले चले। शहर से निकलते समय उन्हें किरीन-निवासी सिमोन मिला और उन्होंने उसे येसु का क्रूस उठा ले चलने के लिए बाध्य किया। वे उस जगह पहुँचे, जो गोलगोथा अर्थात्‌ खोपड़ी की जगह कहलाती है। वहाँ लोग येसु को पित्त मिली अंगूरी पिलाना चाहते थे। उन्होंने उसे चख तो लिया, किन्तु उसे पीना अस्वीकार किया। उन्होंने येसु को क्रूस पर चढ़ाया और चिट्ठी डाल कर उनके कपड़े बाँट लिए। इसके बाद वे बैठ कर पहरा देने लगे। येसु के सिर के ऊपर दोषपत्र लटका दिया गया। वह इस प्रकार था - यह यहूदियों का राजा येसु है। येसु के साथ ही उन्होंने दो डाकुओं को क्रूस पर चढ़ाया - एक को उनके दायें और दूसरे को उनके बायें। उधर से आने-जाने वाले लोग येसु की निन्दा करते और सिर हिलाते हुए यह कहते थे, “हे मंदिर को ढाने वाले और तीन दिनों के अन्दर उसे फिर बना देने वाले! यदि तू ईश्वर का पुत्र है, तो क्रूस से उतर आ।” इसी तरह शास्त्रियों और नेताओं के साथ महायाजक भी यह कह कर उनका उपहास करते थे, “इसने दूसरों को बचाया, किन्तु यह अपने को नहीं बचा सकता। यह तो इस्राएल का राजा है। अब यह क्रूस से उतरे, तो हम उस में विश्वास करेंगे। इसे ईश्वर का भरोसा था। यदि ईश्वर इस पर प्रसन्न हो, तो इसे छुड़ाए। इसने तो कहा है - मैं ईश्वर का पुत्र हूँ।” जो डाकू येसु के साथ क्रूस पर चढ़ाएं गए थे, वे भी इसी तरह उनका उपहास करते थे। दोपहर से तीसरे पहर तक पूरे प्रदेश पर अँधेरा छाया रहा। लगभग तीसरे पहर येसु ने ऊँचे स्वर से पुकारा, “एली! एली! लेमा सबखतानी?” इसका अर्थ है - मेरे ईश्वर! मेरे ईश्वर! तूने मुझे क्यों त्याग दिया? यह सुन कर पास खड़े लोगों में से कुछ कहने लगे, "यह एलियस को बुला रहा है”। उन में से एक तुरन्त दौड़ कर पनसोख्ता ले आया और उसे खट्टी अंगूरी में डुबा कर और सरकंडे में लगा कर उसने येसु को पीने को दिया। कुछ लोगों ने कहा, “रहने दो। देख लें, एलियस इसे बचाने आता है या नहीं।' तब येसु ने फिर ऊँचे स्वर से पुकार कर प्राण त्याग दिए। उसी समय मंदिर का परदा ऊपर से नीचे तक फट कर दो टुकड़े हो गया, पृथ्वी काँप उठी, चट्टानें फट गयीं, कब्रें खुल गयीं और बहुत-से मृत सन्तों के शरीर पुनर्जीवित हो गए। वे येसु के पुनरुत्थान के बाद कब्रों से निकले और पवित्र नगर में जा कर बहुतों को दिखाई दिए। शतपति और उसके साथ येसु पर पहरा देने वाले सैनिक भूकंप और इन सब घटनाओं को देख कर अत्यन्त भयभीत हो गए और बोल उठे, “निश्चय ही, यह ईश्वर का पुत्र था।”

[वहाँ बहुत-सी स्त्रियाँ भी दूर से देख रही थीं। वे येसु का सेवा-सत्कार करते हुए गलीलिया से उनके साथ-साथ आयी थीं। उन में मरियम मगदलेना, याकूब और यूसुफ़ की माता मरियम और ज़ेबेदी के पुत्रों की माता थीं। संध्या हो जाने पर अरिमथिया का एक धनी सज्जन आया। उसका नाम यूसुफ़ था और वह भी येसु का शिष्य बन गया था। उसने पिलातुस के पास जा कर येसु का शब माँगा और पिलातुस ने आदेश दिया कि शव उसे सौंप दिया जाये। यूसुफ़ ने शव ले जा कर उसे स्वच्छ छालटी के कफ़न में लपेटा और अपनी कब्र में रख दिया, जिसे उसने हाल में चट्टान में खुदवाया था और वह कब्र के द्वार पर बड़ा भारी पत्थर लुढ़का कर चला गया। मरियम मगदलेना और दूसरी मरियम वहाँ कब्र के सामने बैठी हुई थीं। उस शुक्रवार के दूसरे दिन महायाजक और फरीसी एक साथ पिलातुस के यहाँ गए और बोले, “श्रीमान्‌! हमें याद है कि उस धोखेबाज ने अपने जीवनकाल में कहा है कि मैं तीन दिन के बाद जी उठूँगा। इसलिए तीन दिन तक कब्र की सुरक्षा का आदेश दिया जाए। कहीं ऐसा न हो कि उसके शिष्य उसे चुरा कर ले जाएँ और जनता से कहें कि वह मृतकों में से जी उठा है। यह पिछला धोखा तो पहले से भी बुरा होता।” पिलातुस ने कहा, “पहरा ले जाइए और जैसा उचित समझें, सुरक्षा का प्रबंध कीजिए।” वे चले गए और उन्होंने पत्थर पर मुहर लगायी और पहरा बैठा कर कब्र को सुरक्षित कर दिया। ]

प्रभु का सुसमाचार।

सुसमाचार - वर्ष B

मारकुस के अनुसार प्रभु येसु का दुःखभोग 14:1-15, 47

[कोष्ठक में रखा अंश छोड़ दिया जा सकता है]

[पास्का तथा बेखमीर रोटी के पर्व में दो दिन रह गए थे। महायाजक और शास्त्री येसु को छल से गिरफ्तार करने और मरवा डालने का उपाय ढूँढ़ रहे थे। फिर भी वे कहते थे, “पर्व के दिनों में नहीं, कहीं ऐसा न हो कि जनता में हंगामा हो जाये।'” जब येसु बेथानिया में सिमोन कोढ़ी के यहाँ भोजन कर रहे थे, तो एक महिला संगमरमर के पात्र में असली जटामांसी का बहुमूल्य इत्र ले कर आयी। उसने पात्र तोड़ कर इत्र येसु के सिर पर उँडेल दिया। इस पर कुछ लोग झुँझला कर आपस में कहने लगे, “इत्र का यह अपव्यय क्यों? यह इत्र तीन सौ दीनार से अधिक में बिक सकता था और इसकी कीमत गरीबों में बाँटी जा सकती थी।” और वे इसे झिड़कने लगे। येसु ने कहा, “इसे छोड़.दो। इसे क्यों तंग करते हो? इसने मेरे लिए भला काम किया है। गरीब तो बराबर तुम लोगों के साथ रहेंगे। तुम जब चाहो, उनका उपकार कर सकते हो; किन्तु मैं हमेशा तुम्हारे साथ नहीं रहूँगा। जो कुछ यह कर सकती थी, इसने कर दिया; इसने कफ़न की तैयारी में पहले ही से मेरे शरीर पर इत्र लगाया है। मैं तुम लोगों से कहे देता हूँ - सारे संसार में जहाँ कहीं सुसमाचार का प्रचार किया जाएगा, वहाँ इसकी स्मृति में इसके इस कार्य की भी चरचा होगी।” बारहों में से एक, यूदस इसकारियोती, महायाजकों के पास गया और उसने येसु को उनके हवाले करने का प्रस्ताव किया। वे यह सुन कर बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने उसे रुपया देने का वादा किया और यूदस येसु को पकड़वाने का अवसर ढूँढ़ने लगा। बेखमीर रोटी के पहले दिन, जब पास्का के मेमने की बलि चढ़ायी जाती है, शिष्यों ने येसु से कहा, “आप क्या चाहते हैं? हम कहाँ जा कर आपके लिए पास्का-भोज की तैयारी करें?” येसु ने दो शिष्यों को यह कह कर भेजा, "शहर जाओ। तुम्हें पानी का घड़ा लिए एक पुरुष मिलेगा। उसके पीछे-पीछे चलो और वह जिस घर में प्रवेश करे उसी घर के स्वामी से यह कहो, ‘गुरुवर कहते हैं - मेरे लिए अतिथिशाला कहाँ है, जहाँ मैं अपने शिष्यों के साथ पास्का का भोजन करूँ?' और वह तुम्हें ऊपर एक सजा-सजाया बड़ा कमरा दिखा देगा। वहीं हम लोगों के लिए तैयार करो।” शिष्य चले गए। येसु ने जैसा कहा था। उन्होंने शहर पहुँच कर सब कुछ वैसा ही पाया और पास्का-भोज की तैयारी कर ली। संध्या होने पर येसु बारहों के साथ आए। जब वे भोजन कर रहे थे, तो येसु ने कहा, “मैं तुम लोगों से कहे देता हूँ। तुम में से ही एक, जो मेरे साथ भोजन कर रहा है, मुझे पकड़वा देगा। वे बहुत उदास हुए और एक-एक करके उन से पूछने लगे, “कहीं वह मैं तो नहीं हूँ?” येसु ने उत्तर दिया, “वह बारहों में से ही एक है और मेरे साथ थाली में खा रहा है। मानव पुत्र तो चला जाता है, जैसा कि उसके विषय में लिखा है; परन्तु धिक्कार उस मनुष्य को, जो मानव पुत्र को पकडवाता है! उस मनुष्य के लिए यही अच्छा होता कि वह पैदा ही नहीं हुआ होता!” उनके भोजन करते समय येसु ने रोटी ली, और आशिष की प्रार्थना पढ़ने के बाद उसे तोड़ा और यह कहते हुए शिष्यों को दिया, “ले लो; यह मेरा शरीर है।” तब उन्होंने प्याला ले कर धन्यवाद की प्रार्थना पढ़ी और उसे शिष्यों को दे दिया और सब ने उस में से पीया। येसु ने उन से कहा, “यह मेरा रक्त है, विधान का रक्त, जो बहुतों के लिए बहाया जा रहा है। मैं तुम से कहे देता हूँ - जब तक मैं ईश्वर के राज्य में नवीन रस न पी लूँ तब तक मैं दाख का रस फिर नहीं पिऊँगा।” भजन गाने के बाद वे जैतून पहाड़ चल दिए। येसु ने उन से कहा, “तुम सब विचलित हो जाओगे; क्योंकि यह लिखा है - मैं चरवाहे को मारूँगा और भेड़ें तितर-बितर हो जायेंगी। किन्तु अपने पुनरुत्थान के बाद मैं तुम लोगों से पहले गलीलिया जाऊँगा।” इस पर पेत्रुस ने कहा, “चाहे सभी विचलित हो जाएँ, किन्तु मैं विचलित नहीं होऊँगा।” येसु ने उत्तर दिया, “मैं तुम से कहे देता हूँ - आज, इसी रात को, मुरगे के दो बार बाँग देने से पहले ही तुम मुझे तीन बार अस्वीकार करोगे।” किन्तु वह और भी जोर से कहता जाता था, “मुझे आपके साथ चाहे मरना हीं क्यों न पड़े, मैं आपको कभी अस्वीकार नहीं करूँगा।” और सब शिष्य यही कहते थे। वे गेतसेमानी नामक बारी में पहुँचे। येसु ने अपने शिष्यों से कहा, “तुम लोग यहाँ बैठे रहो। मैं तब तक प्रार्था करूँगा।” वह 'पेत्रुथ, याकूब और योहन को अपने साथ ले गए। वह भयभीत तथा व्याकुल होने लगे और उन से बोले, “मेरी आत्मा इतनी उदास है कि मैं मरने-मरने को हूँ; यहाँ ठहर जाओ और जागते रहो।” वह कुछ आगे बढ़ कर मुँह के बल गिर पड़े और यह प्रार्थना करने लगे कि यदि हो सके तो यह घड़ी उन से टल जाए। उन्होंने कहा, “मेरे पिता! तेरे लिए सब कुछ सम्भव है। यह प्याला मुझ से हटा ले। फिर भी मेरी नहीं, बल्कि तेरी ही इच्छा पूरी हो।” तब वह अपने शिष्यों के पास गए और उन्हें सोता देख कर पेत्रुस से बोले, “सिमोन! सोते हो? क्या तुम घंटे भर भी मेरे साथ नहीं जाग सके? जागते रहो और प्रार्थना करते रहो, जिससे तुम परीक्षा में न पड़ जाओ। आत्मा तो तत्पर है, परन्तु शरीर दुर्बल है।” और उन्होंने फिर जा कर उन्हीं शब्दों को दुहराते हुए प्रार्थना की। लौटने पर उन्होंने अपने शिष्यों को फिर सोया हुआ पाया, क्योंकि उनकी आँखें भारी थीं। वे नहीं जानते थे कि हम क्या उत्तर दें। येसु जब तीसरी बार अपने शिष्यों के पास आए, तो उन्होंने उन से कहा, “अब तक सो रहे हो? अब तक आराम कर रहे हो? बस! वह घड़ी आ गयी है। देखो! मानव पुत्र पापियों के हवाले कर दिया जाएगा। उठो! हम चलें। मेरा विश्वासघाती निकट आ गया है।” येसु यह कह ही रहे थे कि बारहों में से एक, यूदस आ गया। उसके साथ तलवारें और लाठियाँ लिए एक बड़ी भीड़ थी, जिसे महायाजकों, शास्त्रियों और नेताओं ने भेजा था। विश्वासघाती ने उन्हें यह कह कर संकेत दिया था, “मैं जिसका चुम्बन करूँगा, वही है। उसी को पकड़ लेना और सावधानी से ले जाना।” उसने सीधा येसु के पास आ कर कहा, “गुरुवर!” और उसने उनका चुम्बन किया। तब लोगों ने येसु को पकड़ कर गिरफ़्तार कर लिया। इस पर येसु के साथियों में से एक ने अपनी तलवार खींच ली और प्रधानयाजक के नौकर पर चला कर उसका कान उड़ा दिया। येसु ने भीड़ से कहा, “क्या तुम लोग मुझे डाकू समझते हो जो तलवारें और लाठियाँ लेकर मुझे पकड़ने आये हो? मैं तो प्रतिदिन तुम्हारे सामने मंदिर में शिक्षा दिया करता था, फिर भी तुमने मुझे गिरफ़्तार नहीं किया; यह इसलिए हो रहा है कि धर्मग्रंथ में जो लिखा है, वह पूरा हो जाए।” तब सभी शिष्य येसु को छोड़ कर भाग गए। एक युवक, अपने नंगे बदन पर चादर ओढ़े, येसु के पीछे हो लिया। भीड़ ने उसे पकड़ लिया किन्तु वह चादर छोड़ कर नंगा ही भाग गया। वे येसु को प्रधानयाजक के यहाँ ले गए। सभी महायाजक, नेता और शास्त्री इकट्ठे हो गए थे। पेत्रुस कुछ दूरी पर येसु के पीछे-पीछे चला। वह प्रधानयाजक के महल पहुँच कर अन्दर गया और नौकरों के साथ बेठा हुआ आग तापने लगा। महायाजक और सारी महासभा येसु को मरवा डालने के उद्देश्य से उनके विरुद्ध झूठी गवाही खोज रही थी, परन्तु वह मिली नहीं। बहुत-से लोगों ने तो उनके विरुद्ध झूठी गवाही दी, किन्तु उनके ब्यान मेल नहीं खाते थे। तब कुछ लोग उठ खड़े हुए और उन्होंने यह कह कर उनके विरुद्ध झूठी गवाही दी, “हमने इस व्यक्ति को यह कहते हुए सुना - मैं हाथ का बनाया हुआ यह मंदिर ढा दूँगा और तीन दिनों के अन्दर एक दूसरा खड़ा करूँगा जो हाथ का बनाया हुआ नहीं होगा।” किन्तु इसके विषय में भी उनके ब्यान मेल नहीं खाते थे। तब प्रधानयाजक ने सभा के बीच में खड़ा हो कर येसु से पूछा, “ये लोग तुम्हारे विरुद्ध जो गवाही दे रहे हैं, क्या इसका कोई उत्तर तुम्हारे पास नहीं है?” परन्तु येसु मौन रहे और उत्तर में एक शब्द भी नहीं बोले। इसके बाद प्रधानयाजक ने येसु से पूछा, “क्या तुम मसीह, परमस्तुत्य के पुत्र हो?” येसु ने उत्तर दिया, “मैं वही हूँ। आप लोग मानव पुत्र को सर्वशक्तिमान्‌ ईश्वर के दाहिने बैठा हुआ और आकाश के बादलों पर आता हुआ देखोगे।” इस पर महायाजक ने अपने वस्त्र फाड़ कर कहा, “अब हमें गवाहों की जरूरत ही क्या है? आप लोगों ने तो ईश-निन्दा सुनी है। आप लोगों का क्या विचार है?” और सबों का निर्णय यह हुआ कि येसु प्राणदण्ड के योग्य हैं। तब कुछ लोग उन पर थूकने लगे और उनकी आँखों पर पट्टी बाँध कर यह कहते हुए उन्हें घूँसे मारने लगे, “यदि तू नबी है तो बता दे - किसने तुझे मारा है?” नौकर भी उन्हें थप्पड़ मारते थे। पेत्रुस उस समय नीचे प्रांगण में था। प्रधानयाजक की नौकरानी ने पास आ कर पेत्रुस को आग तापते हुए देखा। और उस पर दृष्टि गड़ा कर कहा, “तुम भी येसु नाज़री के साथ थे।” किन्तु उसने अस्वीकार करते हुए कहा, “मैं न तो जानता हूँ और न समझता ही कि तुम क्या कह रही हो।” तब पेत्रुस फाटक की ओर खिसक गया और मुरगे ने बाँग दी। नौकरानी उसे देख कर पास खड़े लोगों से फिर कहने लगी, “यह व्यक्ति उन्हीं लोगों में से एक है।” किन्तु उसने फिर अस्वीकार किया। इसके थोड़ी देर बाद वहाँ खड़े हुए लोग कहने लगे, “निश्चय ही तुम उन्हीं लोगों में से एक हो; तुम तो गलीली हो।” इस पर पेत्रुस कोसने और शपथ खा कर कहने लगा कि तुम जिस मनुष्य की चरचा कर रहे हो, उसे मैं जानता भी नहीं। ठीक उसी समय मुरगे ने दूसरी बार बाँग दी और पेत्रुस को येसु का यह कहना याद आया - मुरगे के दो बार बाँग देने से पहले ही तुम मुझे तीन बार अस्वीकार करोगे; और वह फूट-फूट कर रोने लगा ।]

दिन निकलते ही महायाजकों, नेताओं और शास्त्रियों, अर्थात्‌ समस्त महासभा ने परामर्श किया। इसके बाद उन्होंने येसु को बाँधा और उन्हें ले जा कर पिलातुस के हवाले कर दिया। पिलातुस ने येसु से यह पूछा, “क्या तुम यहूदियों के राजा हो?” येसु ने उत्तर दिया, “यह आप ठीक कहते हैं”। तब महायाजक उन पर बहुत-से अभियोग लगाने लगे। पिलातुस ने फिर येसु से पूछा, “देखो, वे तुम पर कितने अभियोग लगा रहे हैं; क्या इनका कोई उत्तर तुम्हारे पास नहीं है?” फिर भी येसु ने उत्तर में एक शब्द भी नहीं कहा; इस से पिलातुस को बहुत आश्चर्य हुआ। पर्व के अवसर पर राज्यपाल लोगों के इच्छानुसार एक बन्दी को रिहा किया करता था। उस समय बराब्बस नामक व्यक्ति क़ैदखाने में था। वह उन विद्रोहियों के साथ गिरफ़्तार हुआ था, जिन्होंने राज्यद्रोह के समय हत्या की थी। जब भीड़ आ कर राज्यपाल से निवेदन करने लगी कि आप जैसा करते आए हैं, वैसा ही हमारे लिए करें, तो पिलातुस ने उन से कहा, “क्या तुम लोग चाहते हो कि मैं तुम्हारे लिए यहूदियों के राजा को रिहा कर दूँ?” वह जानता था कि महायाजकों ने ईर्ष्या से येसु को पकड़वाया है, किन्तु महायाजकों ने लोगों को उभाड़ा कि वे बराब्बस की ही रिहाई की माँग करें। पिलातुस ने फिर भीड़ से पूछा, “तो, मैं उस मनुष्य का क्या करूँ जिसे तुम यहूदियों का राजा कहते हो?” लोगों ने उत्तर दिया, “उसे क्रूस दिया जाए।” पिलातुस ने कहा, “क्यों? उसने क्या अपराध किया?”' किन्तु वे और भी जोर से चिल्लाने लगे, “उसे क्रूस दिया जाए।” तब पिलातुस ने भीड़ की माँग पूरी करने का निश्चय किया। उसने उसके लिए बराब्बस को मुक्त कर दिया और येसु को कोड़े लगवा कर क्रूस पर चढ़ाने के लिए सिपाहियों के हवाले कर दिया। इसके बाद सैनिकों ने येसु को राज्यपाल के भवन के अन्दर ले जा कर उनके पास सारी पलटन एकत्र कर ली। उन्होंने येसु को लाल चोगा पहनाया और काँटों का मुकुट गूँथ कर उनके सिर पर रख दिया। तब वे यह कह कर उनका अभिवादन करने लगे, “'यहूदियों के राजा, प्रणाम!” वे उनके सिर पर सरकंडा मारते थे, उन पर थूकते और उनके सामने घुटने टेकते हुए उन्हें प्रणाम करते थे। उनका उपहास करने के बाद उन्होंने चोगा उतार कर उन्हें उनके निजी कपड़े पहना दिए। वे येसु को क्रूस पर चढ़ाने के लिए शहर के बाहर ले चले। उन्होंने किरीन-निवासी सिमोन, सिकन्दर और रुफुस के पिता को, जो खेत से लौट रहा था, येसु का क्रूस उठा ले चलने के लिए बाध्य किया। वे येसु को गोलगोथा, अर्थात्‌ खोपड़ी की जगह, ले गए। वहाँ लोग येसु को पित्त मिली अंगूरी पिलाना चाहते थे, किन्तु उन्होंने उसे अस्वीकार किया। उन्होंने येसु को क्रूस पर चढ़ाया और किसे क्या मिले - इसके लिए चिट्ठी डाल कर उनके कपड़े बाँट लिए। जब उन्होंने येसु को क्रूस पर चढ़ाया, उस समय पहला पहर बीत चुका था । दोषपत्र इस प्रकार था - “यहूदियों का राजा।” येसु के साथ ही उन्होंने दो डाकुओं को क्रूस पर चढ़ा दिया - एक को उनके दाएँ और दूसरे को उनके बाएँ। इस प्रकार धर्मग्रंथ का यह कथन पूरा हो गया - उसकी गिनती कुकर्मियों में हुई। उधर से आने-जाने वाले लोग येसु की निन्दा करते और सिर हिलाते हुए यह कहते थे, “हे मंदिर को ढाने वाले और तीन दिनों के अंदर बना देने वाले! क्रूस से उतर कर अपने को बचा।” महायाजक और शास्त्री भी उनका उपहास करते हुए आपस में यह कहते थे, “इसने दूसरों को बचाया, किन्तु यह अपने को नहीं बचा सकता। यह तो मसीह, इस्राएल का राजा है। अब यह क्रूस से उतरे, जिससे हम देख कर विश्वास करें।” जो येसु के साथ क्रूस पर चढ़ाये गये थे, वे भी उनका उपहास करते थे। दोपहर से तीसरे पहर तक पूरे प्रदेश पर अँधेरा छाया रहा। तीसरे पहर येसु ने ऊँचे स्वर से पुकारा, “एलोई! एलोई! लामा साबाखतानी”; इसका अर्थ है - मेरे ईश्वर! मेरे ईश्वर! तूने मुझे क्यों त्याग दिया! यह सुन कर पास खड़े लोगों में से कुछ ने कहा, “देखो! वह एलियस को बुला रहा है।” उन में से एक ने दौड़ कर पनसोख्ता खट्टी अंगूरी में डुबाया, सरकंडे में लगाया और यह कह कर येसु को पीने दिया, “रहने दो! देख लें कि एलियस इसे उतारने आता है या नहीं।” तब येसु ने ऊँचे स्वर से पुकार कर प्राण त्याग दिए। मंदिर का परदा ऊपर से नीचे तक फट कर दो टुकड़े हो गया। शतपति येसु के सामने खड़ा था। वह उन्हें इस प्रकार प्राण त्यागते देख कर बोल उठा, “निश्चय ही यह मनुष्य ईश्वर का पुत्र था।”

[वहाँ कुछ नारियाँ भी दूर से देख रही थीं। उन में मरियम मगदलेना, छोटे याकूब और यूसुफ की माता मरियम और सलोमी थीं। जब येसु गलीलिया में थे, वे उनके साथ रह कर उनका सेवा-सत्कार करती थीं। बहुत-सी अन्य नारियाँ भी थीं, जो उनके साथ येरुसालेम आयी थीं। अब संध्या हो गयी थी। उस दिन शुक्रवार था, अर्थात्‌ विश्राम-दिवस के पहले का दिन। इसलिए अरिमथिया का यूसुफ़, महासभा का एक सम्मानित सदस्य, जो ईश्वर के राज्य की प्रतीक्षा में था, आया। वह साहस करके पिलातुस के यहाँ गया और उसने येसु का शव माँगा। पिलातुस को आश्चर्य हुआ कि वह इतने शीघ्र मर गये हैं। उसने शतपति को बुला कर पूछा कि क्या वह मर चुके हैं। और शतपति से इसकी सूचना पा कर यूसुफ़ को शव दिलवाया। यूसुफ़ ने छालटी का कफन खरीदा और येसु को क्रूस से उतारा। उसने उन्हें कफन में लपेट कर चट्टान में खोदी हुई कब्र में रख दिया और कब्र के द्वार पर एक पत्थर लुढ़का दिया। मरियम मगदलेना और यूसुफ़ की माता मरियम यह देख रही थीं कि येसु कहाँ रखे गए हैं।]

प्रभु का सुसमाचार।

सुसमाचार – वर्ष C

लूकस के अनुसार प्रभु येसु का दुःखभोग 22:14-23,56

[कोष्ठक में रखा अंश छोड़ दिया जा सकता है]

[समय आने पर येसु प्रेरितों के साथ भोजन करने बैठे और उन्होंने उन से कहा, “मैं कितना चाहता था कि दुःख भोगने से पहले पास्का का यह भोजन तुम्हारे साथ करूँ; क्योंकि मैं तुम से कहता हूँ, जब तक यह ईश्वर के राज्य में 'पूर्ण न हो जाए, मैं इसे फिर नहीं खाऊँगा।” इसके बाद येसु ने प्याला लिया, धन्यवाद की प्रार्थना पढ़ी और कहा, “इसे ले लो और आपस में बाँट लो; क्योंकि मैं तुम से कहता हूँ, जब तक ईश्वर का राज्य न आये, मैं दाख का रस फिर नहीं पिऊँगा”। उन्होंने रोटी ली और धन्यवाद की प्रार्थना पढ़ने के बाद उसे तोड़ा और यह कहते हुए शिष्यों को दिया, “यह मेरा शरीर है, जो तुम्हारे लिए दिया जा रहा है। यह मेरी स्मृति में किया करो।” इसी तरह उन्होंने भोजन के बाद यह कहते हुए प्याला दिया, “यह प्याला मेरे रक्त का नूतन विधान है। यह तुम्हारे लिए बहाया जा रहा है।” “देखो, मेरे विश्वासघाती का हाथ मेरे साथ मेज पर है। मानव पुत्र तो, जैसा लिखा है, चला जाता है; किन्तु धिक्कार उस मनुष्य को, जो उसे पकड़वाता है!” वे एक दूसरे से पूछने लगे कि हम लोगों में से कौन यह काम करने वाला है। उन में यह विवाद छिड़ गया कि हम में से कौन सब से बड़ा समझा जाए। येसु ने उन से कहा, “संसार में राजा अपनी प्रजा पर निरंकुश शासन करते हैं और सत्ताधारी संरक्षक कहलाना चाहते हैं। परन्तु तुम लोगों में ऐसा नहीं है। जो तुम में बड़ा है, वह सब से छोटे जैसा बने और जो अधिकारी है, वह सेवक जेसा बने। आखिर बड़ा कौन है - वह जो मेज पर बैठता हैं अथवा वह जो परोसता है? वही न, जो मेज़ पर बैठा है। परन्तु मैं तुम लोगों में सेवक जैसा हूँ। “तुम लोग संकट के समय मेरा साथ देते रहे। मेरे पिता ने मुझे राज्य प्रदान किया है, इसलिए मैं तुम्हें यह वरदान देता हूँ कि तुम मेरे राज्य में मेरी मेज़ पर खाओगे-पिओगे और सिंहासनों पर बैठ कर इस्राएल के बारह वंशों का न्याय करोगे।' “सिमोन! सिमोन! शैतान को तुम लोगों को गेहूँ की तरह फटकने की अनुमति मिली है। परन्तु मैंने तुम्हारे लिए प्रार्थना की है, जिससे तुम्हारा विश्वास नष्ट न हों। जब तुम फिर सही रास्ते पर आ जाओगे, तो अपने भाइयों को भी सँभालना।” पेत्रुस ने उन से-कहा, “प्रभु! मैं आपके साथ बंदीगृह जाने और मरने को भी तैयार हूँ।” किन्तु येसु ने कहा, “पेत्रुस! मैं तुम से कहता हूँ कि आज, मुरगे के बाँग देने से पहले ही, तुम तीन बार यह अस्वीकार करोगे कि तुम मुझे जानते हो।” येसु ने उन से कहा, “जब मैंने तुम्हें थैली, झोली और जूतों के बिना भेजा था, तो क्या तुम्हें किसी बात की कमी हुई थी?” उन्होंने उत्तर दिया, किसी की भी नहीं।” इस पर येसु ने कहा, “परन्तु अब जिसके पास थैली है, वह उसे ले ले और अपनी झोली भी और जिसके पास नहीं है, वह अपना कपड़ों बेच कर तलवार खरीद ले; क्योंकि मैं तुम से कहता हूँ कि धर्मग्रंथ का यह कथन मुझ में अवश्य ही पूरा होगा - उसेकी गिनती कुकर्मियों में हुई। और जो कुछ मेरे विषय में लिखा है, वह पूरा होने को है।” शिष्यों ने कहा, “प्रभु देखिए, यहाँ दो तलवारें हैं।” परन्तु येसु ने कहा, “बस! बस!” येसु बाहर निकल कर अपनी आदत के अनुसार जैतून पहाड़ चल दिए। उनके शिष्य भी उनके साथ हो लिए। येसु ने वहाँ पहुँच कर उन से कहा, “प्रार्थना करो, जिससे तुम परीक्षा में न पड़ जाओ।” तब वह पत्थर फेंकने की दूरी तक उन से अलग हो गए और घुटने टेक कर यह प्रार्थना करने लगे, “हे पिता! यदि तू ऐसा चाहे, तो यह प्याला मुझ से हटा ले। फिर भी मेरी नहीं, बल्कि तेरी ही इच्छा पूरी हो।” तब उन्हें स्वर्ग का एक दूत दिखाई पड़ा, जिसने उन को ढारस बँधाया। वह प्राणपीड़ा में पड़ने के कारण और भी एकाग्र हो कर प्रार्थना करते रहे और उनका पसीना रक्त की बूँदों की तरह धरती पर टपकता रहा। वह प्रार्थना से उठ कर अपने शिष्यों के पास आए और यह देख कर कि वे उदासी के कारण सो गए हैं, उन्होंने उन से कहा, “तुम लोग क्यों सोते हो? उठो और प्रार्थना करो, जिससे तुम परीक्षा में न पड़ जाओ।” येसु यह कह ही रहे थे कि एक दल आ पहुँचा। यूदस, बारहों में से एक, उस दल का अगुवा था। उसने येसु के पास आ कर उनका चुम्बन किया। येसु ने उस से कहा “यूदस! क्या तुम चुम्बन दे कर मानव पुत्र के साथ विश्वासघात कर रहे हो?” येसु के साथियों ने, यह देख कर कि क्या होने वाला है, उन से कहा, “प्रभु! क्या हम तलवार चलाएँ।” और उन में से एक ने प्रधानयाजक के नौकर पर प्रहार किया और उसका दाहिना कान उड़ा दिया। किन्तु येसु ने कहा, “रहने दो, बहुत हुआ,” और उसका कान छू कर उन्होंने उसे अच्छा कर दिया। जो महायाजक, मंदिर-आरक्षी के नायक और नेता येसु को पकड़ने आए थे, उन से उन्होंने कहा, “क्या तुम मुझ को डाकू समझ कर तलवारें और लाठियाँ ले कर निकले हो'? मैं प्रतिदिन मंदिर में तुम्हारे साथ रहा और तुमने मुझ पर हाथ नहीं डाला। परन्तु यह समय तुम्हारा है - अब अँधेरे का बोलबाला है।” तब उन्होंने येसु को गिरफ़्तार कर लिया और उन्हें ले जा कर प्रधानयाजक के यहाँ पहुँचा दिया। पेत्रुस कुछ दूरी पर उनके पीछे-पीछे चला। लोग प्रांगण के बीच में आग जला कर उसके चारों ओर बैठ रहे थे। पेत्रुस भी उनके साथ बैठ गया। एक नौकरानी ने आग के प्रकाश में पेत्रुस को बैठा हुआ देखा और उस पर दृष्टि गड़ा कर कहा, “यह भी उसी के साथ था।” किन्तु उसने अस्वीकार करते हुए कहा, “नहीं भई! मैं उसे नहीं जानता”। थोड़ी देर बाद किसी दूसरे ने पेत्रुस को देख कर कहा, “तुम भी उन्हीं लोगों में से एक हो।” पेत्रुस ने उत्तर दिया, “नहीं भाई! मैं नहीं हूँ।” करीब घंटे भर बाद किसी दूसरे ने दृढ़तापूर्वक कहा, “निश्चय ही यह उसी के साथ था। यह भी तो गलीली है।” पेत्रुस ने कहा, “अरे भाई! मैं नहीं समझता कि तुम क्या कह रहे हो।” वह बोल ही रहा था कि उसी क्षण मुरगे ने बाँग दी और प्रभु ने मुड़ कर पेत्रुस की ओर देखा। तब पेत्रुस को याद आया कि प्रभु ने उस से कहा था कि आज मुरगे के बाँग देने से पहले ही तुम मुझे तीन बार अस्वीकार करोगे। और वह बाहर निकल कर फूट-फूट कर रोने लगा। येसु पर पहरा देने वाले प्यादे उनका उपहास और उन पर अत्याचार करने लगे। वे उनकी आँखों पर पट्टी बाँधा कर उन से पूछते थे, “यदि तू नबी है, तो हमें बता - किसने तुझे मारा है?” वे और बहुत कुछ कह कर उनका अपमान करते रहे। दिन निकलने पर जनता के नेता, महायाजक और शास्त्री एकत्र हो गए और उन्होंने येसु को अपनी महासभा में बुला कर उन से कहा, “यदि तुम मसीह हो, तो हमें बता दो।” उन्होंने उत्तर दिया, “'यदि मैं आप लोगों से कहूँ, तो आप मेरा विश्वास नहीं करेंगे, और यदि मैं प्रश्न करूँ, तो आप लोग उत्तर नहीं देंगे। परन्तु अब से मानव पुत्र सर्वशक्तिमान्‌ ईश्वर के दाहिने विराजमान होगा।” इस पर सब के सब बोल उठे, “तो क्या तुम ईश्वर के पुत्र हो?'” येसु ने कहा, "यह आप लोग ठीक कहते हैं। मैं वही हूँ।” और वे कहने लगे, “हमें और गवाही की जरूरत ही क्या है? हमने तो स्वयं इसके मुँह से सुन लिया है।” ]

तब सारी सभा उठ खड़ी हो गयी और वे उन्हें पिलातुस के यहाँ ले गए। वे यह कह कर येसु पर अभियोग लगाने लगे, “हमें मालूम हो गया है कि यह मनुष्य हमारी जनता में विद्रोह फैलाता है, कैसर को कर देने से लोगों को मना करता है और अपने को मसीह, राजा कहता है।” पिलातुस ने येसु से यह प्रश्न किया, “क्या तुम यहूदियों के राजा हो?” येसु ने उत्तर दिया, “यह आप ठीक कहते हैं।” तब पिलातुस ने महायाजकों और भीड़ से कहा, “में इस मनुष्य में कोई दोष नहीं पाता।” उन्होंने यह कहते हुए आग्रह किया, “यह गलीलिया से ले कर यहाँ तक, यहूदिया के कोने-कोने में अपनी शिक्षा से जनता को उभाड़ता हे।” पिलातुस ने यह सुन कर पूछा कि क्या यह मनुष्य गलीली है और यह जान कर कि यह हेरोद के राज्य का है उसने येसु को हेरोद के पास भेज दिया। वह भी उन दिनों येरुसालेम में था। हेरोद येसु को देख कर बहुत प्रसन्न हुआ। वह बहुत समय से उन्हें देखना चाहता था, क्योंकि उसने येसु की चरचा सुनी थी और उनका कोई चमत्कार देखने की आशा करता था। वह येसु से बहुत-से प्रश्न करता रहा, परन्तु उन्होंने उसे कोई उत्तर नहीं दिया। इस बीच महायाजक और शास्त्री जोर-जोर से येसु पर अभियोग लगाते रहे। तब हेरोद ने अपने सैनिकों के साथ येसु का अपमान तथा उपहास किया और उन्हें भड़कीला वस्त्र पहना कर पिलातुस के पास वापस भेजा। उसी दिन हेरोद और पिलातुस मित्र बन गए - पहले तो उन दोनों में शत्रुता थी। अब पिलातुस ने महायाजकों, शासकों और जनता को बुला कर उन से कहा, “आप लोगों ने यह अभियोग लगा कर इस मनुष्य को मेरे सामने पेश किया है कि यह जनता में विद्रोह फैलाता है। मैंने आपके सामने इसकी जाँच की; परन्तु जिन बातों का आप इस मनुष्य पर अभियोग लगाते हैं, उनके विषय में मैंने इस में कोई दोष नहीं पाया। और हेरोद ने भी दोष नहीं पाया; क्योंकि उन्होंने इसे मेरे पास वापस भेजा है। आप देख रहे हैं कि इसने प्राणदण्ड के योग्य कोई अपराध नहीं किया है। इसलिए मैं इसे पिटवा कर छोड़ दूँगा।” पर्व के अवसर पर पिलातुस को यहूदियों के लिए एक बंदी रिहा करना था। वे सब के सब एक साथ चिल्ला उठे, “इसे ले जाइए! हमारे लिए बराब्बस को रिहा कीजिए।” बराब्बस शहर में हुए विद्रोह के कारण तथा हत्या के अपराध में कैद किया गया था। पिलातुस ने येसु को मुक्त करने की इच्छा से लोगों को फिर समझाया, किन्तु वे चिल्लाते रहे, “इसे क्रूस दीजिए। इसे क्रूस दीजिए!” पिलातुस ने तीसरी बार उन से कहा, “क्यों? इस मनुष्य ने कौन-सा अपराध किया है? मैं इस में प्राणदण्ड के योग्य कोई भी दोष नहीं पाता। इसलिए मैं इसे पिटवा कर छोड़ दूँगा।” परन्तु वे चिल्ला-चिल्ला कर आग्रह करते रहे कि उसे क्रूस दिया जाये और उनका कोलाहल बढ़ता जा रहा था। तब पिलातुस ने उनकी माँग पूरी करने का निश्चय किया। जो मनुष्य विद्रोह और हत्या के कारण कैद किया गया था और जिसे वे छुड़ाना चाहते थे, उसी को उसने रिहा कर दिया और येसु को लोगों की इच्छा के अनुसार सैनिकों के हवाले कर दिया। जब वे येसु को ले जा रहे थे, तो उन्होंने देहात से आते हुए सिमोन किरीन-निवासी को पकड़ा और उस पर क्रूस रख दिया जिससे वह उसे येसु के पीछे-पीछे ले जाए। लोगों की भारी भीड़ उनके पीछे-पीछे चल रही थी। उन में नारियाँ भी थीं, जो अपनी छाती पीटते हुए उनके लिए विलाप कर रही थीं। येसु ने उनकी ओर मुड कर कहा, “येरुसालेम की बेटियों! मेरे लिए मत रोओ। अपने लिए और अपने बच्चों के लिए रोओ, क्योंकि वे दिन आ रहे हैं जब लोग कहेंगे, - धन्य हैं वे स्त्रियाँ, जो बाँझ हैं, धन्य हैं वे गर्भ, जिन्होंने प्रसव नहीं किया और धन्य हैं वे स्तन, जिन्होंने दूध नहीं पिलाया! तब लोग पहाड़ों से कहने लगेंगे - हम पर गिर पड़ो, और पहाड़ियों से - हमें ढक लो। क्योंकि यदि हरी लकड़ी का यह हाल है, तो सूखी का क्या होगा”? वे येसु के साथ दो कुकर्मियों को भी प्राणदण्ड के लिए ले जा रहे थे। वे ’खोपड़ी की जगह' नामक स्थान पहुँचे। वहाँ उन्होंने येसु को और उन दो कुकर्मियों को भी क्रूस पर चढ़ाया - एक को उनके दायें और एक को उनके बायें। येसु ने कहा, “पिता! इन्हें क्षमा कर, क्योंकि ये नहीं जानते कि वे क्या कर रहे हैं”। तब उन्होंने उनके कपडे के कई भाग किये और उनके लिए चिट्ठी निकाली। जनता वहाँ रुक कर यह सब देख रही थी। नेता यह कहते हुए उनका उपहास करते थे, “इसने दूसरों को बचाया। यदि यह ईश्वर का मसीह और परमप्रिय है, तो अपने को बचाये।” सैनिक भी उनका उपहास करते थे। वे पास आ कर उन्हें खट्टी अंगूरी देते हुए कहते थे, “यदि तू यहूदियों का राजा है, तो अपने को बचा”। येसु के ऊपर लिखा हुआ था, “यह यहूदियों का राजा है”। क्रूस पर चढ़ाये हुए कुकर्मियों में से एक इस प्रकार येसु की निन््दाप करता था, “तू मसीह है न? अपने को और हमें भी बचा।” पर दूसरे ने उसे डाँट कर कहा, “क्या तुझे ईश्वर का भी डर नहीं! तू भी तो वही दण्ड भोग रहा है। हमारा दण्ड न्यायसंगत है, क्योंकि हम अपनी करनी का फल भोग रहे हैं; पर इन्होंने कोई अपराध नहीं किया है।” तब उसने कहा, “येसु! जब आप अपने राज्य में आयेंगे, तो मुझे याद कीजिएगा”। उन्होंने उस से कहा, “मैं तुम से कहे देता हूँ, तुम आज ही परलोक में मेरे साथ होगे”। अब लगभग दोपहर हो रहा था। सूर्य के छिप जाने से तीसरे पहर तक सारे प्रदेश पर अँधेरा छाया रहा। मंदिर का परदा बीच से फट कर दो टुकड़े हो गया। येसु ने ऊँचे स्वर से पुकार कर कहा, “हे पिता! मैं अपनी आत्मा को तेरे हाथों सौंप देता हूँ”, और यह कह कर उन्होंने प्राण त्याग दिये। शतपति ने यह सब देख कर ईश्वर की स्तुति करते हुए कहा, “निश्चय ही, यह मनुष्य धर्मात्मा था”। बहुत-से लोग यह दृश्य देखने के लिए इकट्ठे हो गये थे। वे सब के सब इन घटनाओं को देख कर अपनी छाती पीटते हुए लौट गये। येसु के सब परिचित और गलीलिया से उनके साथ आयी हुई नारियाँ कुछ दूरी पर से यह सब देख रहे थे।

[महासभा का यूसुफ नामक सदस्य निष्कपट और धार्मिक था। वह सभा की योजना और उसके षड्यंत्र से सहमत नहीं हुआ था। वह यहूदिया के अरिमथिया नगर का निवासी था और ईश्वर के राज्य की प्रतीक्षा में था। उसने पिलातुस के पास जा कर येसु का शव माँगा। उसने शव को क्रूस से उतारा और छालटी के कफन में लपेट कर एक ऐसी कब्र में रख दिया, जो चट्टान में खुदी हुई थी और जिस में कभी किसी को नहीं रखा गया था। उस दिन शुक्रवार था और विश्राम का दिन आरंभ हो रहा था। जो नारियाँ येसु के साथ गलीलिया से आयी थीं, उन्होंने यूसुफ़ के पीछे-पीछे चल कर कब्र को देखा और यह भी देखा कि येसु का शव किस तरह रखा गया है। लौट कर उन्होंने सुगंधित द्रव्य तथा विलेपन तैयार किया और विश्राम के दिन नियम के अनुसार विश्राम किया।]

प्रभु का सुसमाचार।

📚 मनन-चिंतन

आज हम खजूर रविवार मना रहे हैं यह पर्व येसु की येरुसालेम में प्रेवश की यादगारी में मनाया जाता है। वैसे तो येसु कई बार येरुसालेम जा चुके थे परन्तु येसु का यह प्रवेश एक विशेष महत्व रखता है क्योंकि इसी प्रवेश के द्वारा प्रभु येसु हमारे मुक्ति कार्य (दुःखभोग, मृत्यु एवं पुनरुत्थान) को सम्पन्न करते हैं। आज के इस पर्व के माध्यम से प्रभु येसु हमें कुछ महत्वपूर्ण संदेश देना चाहते हैंः-

1. अपमान और तिरस्कार के बाद महिमा में प्रवेशः प्रभु येसु उन्हें थप्पड़ मारने, थूकने, नग्न करने, कोड़े मारने, क्रूस लादने एवं क्रूस पर चढ़ाने वालों के सामने चुप रहा उसने कभी उनसे बदला नहीं लिया क्योंकि वो जानते थे कि इस अपमान और तिरस्कार के बदले पिता उन्हें महिमा और सम्मान से विभूषित करेंगे। हमारे जीवन में भी कई बार हमें अपमान एवं तिरस्कार का सामना करना पड़ता है लेकिन हम टूट जाते हैं, तरह-तरह के प्रश्न मन में उठते हैं। इसका मुख्य कारण यह है कि हम इन अपमानों के परे नहीं सोचते हैं हमें लगता है सब कुछ खत्म हो गया है। ऐसी स्थिति में हमें प्रभु येसु की ओर दृष्टि लगाने की आवश्यकता है वही हमारी उम्मीद और आशा हैं उसने हमें दिखाया है कि कष्ट और अपमान हमारे लिये मुक्ति प्राप्ति का साधन हैं।

2. प्रभु येसु का दुःखभोग हमारे अकेलेपन में हमारा बल हैः- जब हम कष्ट और पीड़ा में होते हैं तो हम मुख्य रुप से मनोवैज्ञानिक और आध्यात्मिक अकेलेपन का अनुभव करते हैं। स्वंय प्रभु येसु ने इस अकेलेपन को अनुभव किया है-

मनोवैज्ञानिक अकेलापन- यूदस इस्कारियोति एक चुम्बन के द्वारा अपने गुरु को पकड़वा देते हैंः चुम्बन एक प्यार की निशानी है जिसे यूदस इस्कारियोती ने छल और धोखे की निशानी बना दिया।

प्रभु येसु के सभी शिष्य उसे छोड़ देते हैं : प्रभु येसु के शिष्य इतने दिनों तक उनके साथ रहे, उनकी शिक्षाओं को सुने उसके प्यार को अनुभव किया इसके बावजूद दुःख के समय उन्हें छोड़ देते हैं।

पेत्रुस जो प्रभु के लिये तैयार था वो भी उन्हें अस्वीकार कर देते हैं : आज के सुसमाचार में हमने सुना कि पेत्रुस अपने गुरु, प्रभु येसु के लिये मरने को तैयार थे पर जैसे ही उसने देखा कि परेशानी बहुत बड़ी है वह भी उन्हें जानने से इन्कार कर देते हैं।

अब वह भारी क्रूस ढ़ोते हुये अकेले ही कलवारी पहाड़ की यात्रा तय करते हैंः अब उसके कोई भी प्रियजन उसके साथ नहीं हैं, रास्ते में सिरनी सिमोन उनकी मदद करते हैं और कुछ नारियां उन्हें सांत्वना देते हैं।

आध्यात्मिक अकेलापनः क्रूसित प्रभु येसु को अब लगता है कि पिता ने भी उन्हें त्याग दिया है इसलिये वो बोल उठते हैं ‘‘एलाई!एलोई! लमा सबाखतानी? इसका अर्थ है-मेरे ईश्वर! मेरे ईश्वर! तूने मुझे क्यों त्याग दिया है?‘‘ (मारकुस 15ː34) ।

हम हमारे जीवन में भी इस प्रकार के मनोवैज्ञानिक एवं आध्यात्मिक अकेलेपन को महसूस करते हैं पर येसु ने हमें सिखाया है कि यदि हम ईश्वर में पूर्ण विश्वास के साथ अपने आप को, हमारी इस अकेलेपन एवं सुनापन को उसे सौपते हैं तो वो हमें अकेला नहीं छोड़ते हैं बल्कि हमारे साथ बातें करता है और साहस प्रदान करता है।

- फादर संजय परस्ते (इन्दौर धर्मप्रान्त)


📚 REFLECTION

Today we are celebrating Palm Sunday. This feast is celebrated to mark Jesus' solemn entry into Jerusalem. Although Jesus had gone to Jerusalem many times, but this entry of Jesus holds a special significance because through this entry Lord Jesus accomplishes our work of salvation (suffering, death and resurrection). On this feast day, Lord Jesus wants to give us some important messages: -

1. Humiliation leads to Glorification: Lord Jesus remained silent in front of those who slapped him, spat on him, stripped him, whipped him, and crucified him. He never took revenge on them because he knew that in return for this humiliation and contempt, the Father would adorn him with glory and honour. In our lives too, many times we have to face humiliation and contempt but we get disheartened, various questions arise in our mind. The main reason for this is that we do not think beyond these insults, we feel that everything is over. In such a situation, we need to look towards Jesus, he is our hope and expectation. He has shown us that suffering and humiliation are the means of attaining salvation for us.

2. The suffering of Jesus is our strength in our loneliness: - When we are in pain and suffering, we mainly experience two types of loneliness; psychological and spiritual loneliness. Lord Jesus himself has experienced this loneliness-

Psychological loneliness: - Judas Iscariot betrays his Master by a kiss. Kiss is a symbol of love which Judas Iscariot turned into a symbol of deceit and betrayal. All the disciples of Jesus left him. The disciples of Jesus stayed with him for so long, listened to his teachings, experienced his love, but in spite of this, they left him in the time of sorrow.

Peter, who was ready to die for the Lord, also rejects Him. In today's Gospel we heard that Peter was ready to die for his Master, but as soon as he saw that the problem was too big, he also refused to know Him.

Now he travels alone to Mount Calvary, carrying a heavy cross. Now none of his loved ones are with him. On the way, Simon of Syrene helps him and some women console him, other than these no one is seen.

Spiritual loneliness: The crucified Jesus now feels that not only his loved ones but even the Father has abandoned him so cried out with a loud voice, ‘Elo, Eloi, lema sabachthani? Which means, My God, my God, why have you forsaken me?’(Mk 15:34).

We also experience this type of psychological and spiritual loneliness in our lives, but Jesus has taught us that if we surrender ourselves, our loneliness and desolation, to God with complete faith, then He does not leave us alone but talks to us and gives us courage.

-Fr. Sanjay Paraste (Indore Diocese)

📚 मनन-चिंतन - 2

खजूर इतवार हमारे ख्रीस्तीय जीवन में सबसे महत्वपूर्ण दिनों में से एक है। खजूर इतवार के दिन हम पवित्र सप्ताह में प्रवेश करते हैं, येसु का हमारे जीवन में स्वागत करते हैं और उनसे दुख, मृत्यु और पुनरुत्थान में भाग लेने की भावना प्रकट करते हैं।

आज का पर्व दो विपरीत क्षणों को जोड़ता है, एक महिमा का, दूसरा दुख का - येरूसालेम में येसु का स्वागत और उनके दुखभोग की प्रक्रिया जो उनके क्रूस पर चढ़ने और मृत्यु में समाप्त होती है। आइए हम आनन्दित हों और गाएं जैसे येसु आज हमारे जीवन में आते हैं। आइए हम भी रोएं और शोक करें क्योंकि उसकी मृत्यु हमारे पाप के साथ हमारा सामना करती है।

येसु का भव्य स्वागत के साथ-साथ दुखभोग और मृत्यु भी हुई। लोगों ने, जो उसके साथ जैतून के पहाड़ से यरूशलेम शहर तक जुलुस में चल रहे थे, येसु का राजसी स्वागत किया। येसु ने इस तरह के एक शाही जुलूस की अनुमति दी - आम जनता को प्रकट करने के लिए कि वे ही प्रतिज्ञात मसीह थे, और सपन्याह की भविष्यवाणियों को पूरा करने आये, (3:14-19): “सियोन की पुत्री! आनन्द का गीत गा। इस्राएल! जयकार करो! येरूसालेम की पुत्री! सारे हृदय से आनन्द मना।… प्रभु तेरे बीच इस्राएल का राजा है। विपत्ति का डर तुझ से दूर हो गया है। "सियोन! नहीं डरना, हिम्मत नहीं हारना। तेरा प्रभु-ईश्वर तेरे बीच है।“ और जकर्याह (9:9) के बारे में: "सिय्योन की बेटी से कहो, 'देखो, तुम्हारा राजा तुम्हारे पास आता है, नम्र और गदहे पर सवार...।"

आज के सुसमाचार के दूसरे भाग में, हम मसीह के दुखभोग के पठन में भाग लेते हैं। यह चालीसा काल और पवित्र सप्ताह का केंद्रबिंदु है, जो हमारी पूजन विधि का सबसे पवित्र समय है। हमें कुछ पात्रों के प्रकाश में अपने स्वयं के जीवन की जांच करने के लिए आमंत्रित किया जाता है जैसे पेत्रुस ने येसु को अस्वीकार कर दिया, यूदस जिसने येसु को धोखा दिया, पिलातुस जिसने अपने विवेक के खिलाफ काम किया, हेरोद जिसने येसु का उपहास किया, और लोगों के नेताओं ने अपनी स्थिति को संरक्षित किया यीशु से छुटकारा पाया।

ईश्वर ने हमारे लिए खुद को दीन किया! प्रतिक्रिया में हम केवल इतना कर सकते हैं कि हम अपने सिर को विस्मय और श्रृद्धा में झुकाएं और प्रेममयी, दया के लिए भीख मांगते हुए, ईश्वर को अपने हृदय से अर्पित करें। परमेश्वर हमारे सच्चे पश्चाताप की निशानी के रूप में एक विनम्र, पश्चातापी हृदय चाहता है।

- फादर रोनाल्ड मेलकम वॉन


📚 REFLECTION

Palm Sunday is one of the most solemn days in our Christian life. It is on Palm Sunday we enter the Holy Week, welcoming Jesus into our lives and asking Him to allow us a share in His suffering, death, and Resurrection.

Today’s celebration combines two contrasting moments, one of glory, the other of suffering - the welcome of Jesus into Jerusalem and the drama of His trial which ends in His crucifixion and death. Let us rejoice and sing as Jesus comes into our life today. Let us also weep and mourn as His death confronts us with our sin.

Jesus had a grand welcome as well as the passion and death. Jesus had a royal reception from the people, who paraded with Him from the Mount of Olives to the city of Jerusalem. Jesus permitted such a royal procession - to reveal to the general public that He was the promised Messiah, and to fulfill the prophecies of Zephaniah (3:14-19): “Shout for joy, O daughter Zion, …. The King of Israel, the Lord, is in your midst, you have no further misfortune to fear;” and of Zechariah (9:9): “Say to daughter Zion, ‘Behold, your king comes to you, meek and riding on an ass….”

In the second part of today’s Gospel, we participate in the reading of the Passion of Christ. It is the centrepiece of Lent and Holy Week, the most sacred time in our liturgical worship. We are invited to examine our own lives in the light of some of the characters like Peter who denied Jesus, Judas who betrayed Jesus, Pilate who acted against his conscience, Herod who ridiculed Jesus, and the leaders of the people who preserved their position by getting rid of Jesus.

God humbled himself for us! All we can do in response is to bow our heads in awe and present our loving, contrite hearts to God, begging for mercy. God wants a humbled, contrite heart as the sign of our true repentance.

-Fr. Ronald Melcom Vaughan

मनन-चिंतन - 3

संत लूकस के सुसमाचार के अनुसार जब प्रभु येसु जैतून नामक पहाड़ के समीप-बेथफ़गे और बेथानिया के निकट पहुँचे, तब उनके कहे अनुसार उनके दो शिष्य सामने के गाँव जा कर एक बछेड़े को खोल कर उनके पास ले आये और उस बछेड़े पर अपने कपड़े बिछा कर उन्होंने प्रभु को उस पर चढ़ाया। ज्यों-ज्यों प्रभु आगे बढ़ते जा रहे थे, लोग रास्ते पर अपने कपड़े बिछाते जा रहे थे। जब वे जैतून पहाड़ की ढाल पर पहुँचे, तो पूरा शिष्य-समुदाय आनंदविभोर हो कर आँखों देखे सब चमत्कारों के लिए ऊँचे स्वर से इस प्रकार ईश्वर की स्तुति करने लगा - धन्य हैं वह राजा, जो प्रभु के नाम पर आते हैं! स्वर्ग में शान्ति! सर्वोच्च स्वर्ग में महिमा! जब कुछ फ़रीसियों ने प्रभु से कहा, "गुरूवर! अपने शिष्यों को डाँटिए" तब उन्हें डाँटने के बजाय प्रभु ने उत्तर दिया, "मैं तुम से कहता हूँ, यदि वे चुप रहें, तो पत्थर ही बोल उठेंगे"। इस प्रकार बडे प्रताप के साथ एक राजा के रूप में प्रभु येसु येरूसालेम शहर में प्रवेश करते हैं। सुसमाचार से इस घटनाक्रम का विवरण आज की धर्मविधि की शुरूआत में खजूर की डालियों की आशिष के समय पढा जाता है। इस पाठ के पश्चात हम जुलूस में गिर्जाघर में प्रवेश करते हैं। लेकिन गिरजाघर में प्रवेश करने के बाद माहौल बदल जाता है। वातावरण अचानक शोकमय बन जाता है।

आज की धर्मविधि की एक विशेषता यह है कि इसके अन्तरगत सुसमाचार के दो पाठ पढे जाते हैं। जुलूस के पहले पढे जाने वाले पाठ के अलावा, मिस्सा बलिदान के समय प्रभु येसु के दुखभोग का पाठ सुसमाचार से पढा जाता है। प्रथम सुसमाचारीय पाठ में जो लोग प्रभु येसु के जय-जयकार कर रहे थे, वे ही लोग इस समय “इसे क्रूस दीजिए, इसे क्रूस दीजिए” चिल्लाते हैं। जब हम प्रभु येसु के सार्वजनिक जीवन को देखते हैं, तब हमें यह पता चलता है कि उन्हें कभी भी हार नहीं माननी पडी। वे शास्त्रियों और फरीसियों को भी चुनौती देकर, उनके मुँह बन्द करके आगे बढ़ते हैं। उनकी बातें सुन कर और उनके कार्यों को देख कर लोग अचम्भे में पड़ जाते हैं। एक बार ऐसा भी हुआ कि लोग उन्हें नगर से बाहर निकाल कर, उनका नगर जिस पहाड़ी पर बसा हुआ था, उन्हें नीचे गिराने के लिए उसकी चोटी तक ले गये, परन्तु वे उनके बीच से निकल कर चले गये। वे उनकी पकड में नहीं आये।

लेकिन अपनी प्राणपीडा के समय वे बहुत ही निस्सहाय दिखते हैं। लोग उन पर थूकते हैं, उनको पीटते और घसीटते हैं, उनकी हँसी उड़ाते हैं। राजओं के राजा होने के बावजूद भी संसार के राजाओं के सामने चुपचाप खडे होकर उनका दिया हुआ दण्ड स्वीकार करते हैं। इन सब घटनाक्रम को हम कैसे समझ पायेंगे? क्या सचमुच वे बलहीन हो गये? क्या वे वास्तव में निस्सहाय हैं? हरगिज नहीं! ------

मसीह का दुखभोग एक ’बेचारे’ या ’डरपोक’ की कहानी नहीं है, बल्कि एक वीरगाथा है। वे स्वयं कहते हैं, “मैं भेड़ों के लिए अपना जीवन अर्पित करता हूँ। .... पिता मुझे इसलिए प्यार करता है कि मैं अपना जीवन अर्पित करता हूँ; बाद में मैं उसे फिर ग्रहण करूँगा। कोई मुझ से मेरा जीवन नहीं हर सकता; मैं स्वयं उसे अर्पित करता हूँ। मुझे अपना जीवन अर्पित करने और उसे फिर ग्रहण करने का अधिकार है। मुझे अपने पिता की ओर से यह आदेश मिला है।" (योहन 10:15,17-18) हम सब के पापों से हमें बचाने के लिए हमारे भले गडरिये ने अपने जीवन की कुर्बानी दी हैं।

कई बार हम सोचते हैं कि गाली देने वाले के सामने चुप रहना दुर्बलता की बात है, हमारे एक गाल पर थप्पड मारने वाले के सामने दूसरा गाल भी बताना हमारी कमजोरी है, मारने वालों के सामने अपनी पीठ करना हार मानने का लक्षण है, दाढ़ी नोचने वालों के सामने अपना गाल करना हमारी शक्तिहीनता को दर्शाता है तथा अपमान करने और थूकने वालों से अपना मुख नहीं छिप़ाना असीम निर्बलता का संकेत है। परन्तु जब हमें पता चलता है कि सर्वशक्तिमान ईश्वर ही इस प्रकार का व्यवहार कर रहे हैं, तब हम एक महान रहस्य का अनुभव करने लगते हैं। प्रभु येसु अपने जीवन और मृत्यु से हमें एक नयी संस्कृति को अपनाने की चुनौती देते हैं। इस चुनौती को वे ही लोग समझ पाते हैं जो अपनी निगाह इस दुनिया की सीमाओं से ऊपर उठा सकते हैं। इस दुनिया के मूल्य स्वर्गराज्य के मूल्य के बिलकुल विपरीत है। इसलिए प्रभु येसु आशीर्वचनों में दीन-हीनों, विनम्र लोगों, शोक करने वालों, धार्मिकता के भूखे और प्यासों, दयालुओं, निर्मल हृदय वालों, मेल कराने वालों तथा धार्मिकता के कारण अत्याचार सहने वालों को धन्य घोषित करते हैं और उन्हें स्वर्गराज्य प्रदान करने का वादा करते हैं। प्रभु येसु के पद्चिन्हों पर चल कर असीसी के संत फ्रांसिस ने प्रार्थना की – “ओ स्वामी, मुझको ये वर दे कि मैं सांत्वना पाने की आशा न करुँ, सांत्वना देता रहूँ। समझा जाने की आशा न करुँ, समझता ही रहूँ। प्यार पाने की आशा न रखूँ प्यार देता ही रहूँ। त्याग के द्वारा ही प्राप्ति होती है। क्षमा के द्वारा ही क्षमा मिलती है। मृत्यु के द्वारा ही अनन्त जीवन मिलता है।”

आज की पूजन-विधि हमें स्वर्गराज्य के रहस्यों को समझने तथा उन्हें हृदय से ग्रहण करने का निमंत्रण देती है।

-फादर फ्रांसिस स्करिया